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गाकर गीत विरह के तटिनी
वेगवती बहती जाती है,
दिल हलका कर लेने को
उपलों से कुछ कहती जाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता,
“देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।”
गा-गाकर बह रही निर्झरी,
पाटल मूक खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुन्दर है?
इन पंक्तियों के रचयिता कौन हैं?
यदि भगवान ने गुलाब को भी बोलने की शक्ति दी होती तो वह पूरी दुनिया को किसके गीत सुनाता?
जब एक प्रेमी शाम के समय कोई लोक गीत गाता है तो उसकी प्रेमिका उस गाने को सुनने के लिए अपने घर से कहाँ आती है?
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