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गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
जो शब्द सबसे कम समझ में आते हैं और जिनका उपयोग होता है सबसे अधिक; ऐसे दो शब्द हैं सभ्यता और संस्कृति। इन दो शब्दों के साथ जब अनेक विशेषण लग जाते हैं, उदाहरण के लिए जैसे भौतिक-सभ्यता और आध्यात्मिक-सभ्यता, तब दोनों शब्दों का जो थोड़ा बहुत अर्थ समझ में आया रहता है, वह भी गलत- सलत हो जाते हैं। क्या यह एक ही चीज़ है अथवा दो वस्तुएँ ? यदि दो हैं तो दोनों में क्या अंतर है? हम इसे अपने तरीके पर समझने की कोशिश करें। कल्पना कीजिए उस समय की जब मानव समाज का अग्नि देवता से साक्षात् नहीं हुआ था। आज तो घर-घर चूल्हा जलता है। जिस आदमी ने पहले-पहल आग का आविष्कार किया होगा, वह कितना बड़ा आविष्कर्ता होगा! अथवा कल्पना कीजिए उस समय की जब मानव को सुई-धागे का परिचय न था, जिस मनुष्य के दिमाग में पहले-पहल बात आई होगी कि लोहे के एक टुकड़े को घिसकर उसके एक सिरे को छेदकर और छेद में धागा पिरोकर कपड़े के दो टुकड़े एक साथ जोड़े जा सकते हैं, वह भी कितना बड़ा आविष्कर्ता रहा होगा!
कौन-से शब्द सबसे अधिक उपयोग होते हैं ?
एक संस्कृत व्यक्ति किसी नयी चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है और उसकी संतान जिसे अपने पूर्वज से वह वस्तु अनायास ही प्राप्त हो गई है, वह अपने पूर्वज की भाँति सभ्य भले ही बन जाए, संस्कृत नहीं कहला सकता। एक आधुनिक उदाहरण लें। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का आविष्कार किया। वह संस्कृत मानव था। आज के युग का भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण से तो परिचित है ही; लेकिन उसके साथ उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है जिनसे शायद न्यूटन अपरिचित ही रहा। ऐसा होने पर भी हम आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी को न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य भले ही कह सकें पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कह सकते।
संस्कृत व्यक्ति कौन है?
मानव की वह योग्यता जो उससे आत्म-विनाश के साधनों का अविष्कार कराती है-
अपने पूर्वजों से अनायास ही कुछ प्राप्त करने वाला व्यक्ति क्या कहलाता है?
मनीषियों से मिलने वाला ज्ञान उनके किस गुण के कारण हमें प्राप्त होता है?
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