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प्रत्येक जीव की साँसों में ईश्वर घर-घट वासी है।
मनुष्य को अज्ञानता, माया-मोह और भ्रम से छुटकारा मिल जाता है।
‘मान सरोवर ……………. अनंत न जाहि’ इस साखी में हंस और मानसरोवर किस-किस के प्रतीक हैं?
हंस जीवात्मा का और मानसरोवर आनंदवृतित्त वाले मन का एवं शून्य विकार के अमृत कुंट का प्रतीक है
मनुष्य अपने कर्मों से महान कहलाता है।
कबीरदास जी की रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी के रूप में मिलती हैं।
कबीरदास जी निर्गुण के उपासक थे।
‘नीरू और नीमा’ कबीरदास जी के माता-पिता थे।
काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
मोको कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काये कैलास में।
ना तो कौने किया-कर्म में, नहीं योग वैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
की कबीर सुनो भाई सायो, सब स्वासों की स्वोस में।।
लोग ईश्वर को कहाँ ढूँढते हैं?
क्योंकि हम अपने अंतःकरण को नहीं टटोलते
Explain:-
मोको कहाँ दंदे बंदे, ‘मैं’ तो तेरे पास में इसमें मैं’ किसके लिए प्रयोग हुआ है।
‘मान सरोवर ………… अनंत न जाहि’ इस साखी में कौन-सा अलंकार है?
(अन्योक्ति अलंकार) क्योंकि मानसरोवर के माध्यम से आध्यात्मिक अर्थ की ओर संकेत है।
जो सरल हृदय से निष्पक्ष होकर सम्प्रदायों से ऊपर उठकर प्रभु का ध्यान करता है
कबीर ग्रंथावली में कबीर की रचनाएं संकलित हैं।
कबीरदास जी ने समाज सुधार के कार्य किए।
कबीरदास जी के गुरु का नाम रामानंद था।
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