पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: देवताओं द्वारा अमृत-मंथन करने का कारण क्या था?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: गद्यांश के माध्यम से क्या सीख दी गई है
1 Crore+ students have signed up on EduRev. Have you? Download the App |
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: उन्होंने इंद्र को माला क्यों पहनाई?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: इंद्र ने माला किसे पहना दी?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।
प्रश्न: इंद्र को दुर्वासा के क्रोध का भाजन उनके किस अवगुण के कारण होना पड़ा?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: संसार में सब कुछ संभव है-
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: नेपोलियन के शब्दकोश में क्या नहीं था?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: गाँधीजी ने किसका नारा लगाया था?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: गाँधीजी का व्यक्तित्व कैसा था?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।
प्रश्न: गाँधीजी ने किस कहावत को गलत सिद्ध कर दिया?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
प्रश्न: काव्यांश में कवि ने हार किसे माना है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
प्रश्न: कवि ने हार और जीत के माध्यम से क्या बताने का प्रयास किया है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
प्रश्न: कर्तव्य की राह पर चलते हुए कवि क्या संकल्प धारण करता है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
प्रश्न: कवि संघर्ष के मार्ग में किसे स्वीकार करने की बात कर रहा है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
प्रश्न: प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने क्या न त्यागने की बात की है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन
प्रश्न: प्रस्तुत काव्यांश में कवि किसकी चर्चा कर रहा है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन
प्रश्न: कवि ने अपना तीर्थ स्थल किसे माना है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन
प्रश्न: तीर्थ स्थल का दर्शन करने का क्या परिणाम होता है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन
प्रश्न: काव्यांश के अनुसार, इतिहास किस बात का गवाह है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन
प्रश्न: किसने सबकी उन्नति अपनी जैसी चाही है
'सजावट' और 'लिखावट' में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए।
'प्रत्युपकार' शब्द में से उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए।
'पर' उपसर्गयुक्त शब्द हैं -
'प्रत्यक्ष' शब्द में से उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए।
'कुलीन' शब्द में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए।
'जीवन का साथी' समास विग्रह के लिए उचित समस्त पद और समास का नाम दिए गए विकल्पों में से चुनिए।
अव्ययीभाव समास में पूर्व पद __________होता है। रिक्त स्थान के लिए उचित विकल्प चुनिए।
कौन-सा शब्द बहुव्रीहि समास का उचित उदाहरण है?
निशाचर में कौन-सा समास है?
नरोत्तम में कौन-सा समास है?
75 docs|11 tests
|