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Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Class 9 MCQ


Test Description

30 Questions MCQ Test Sample Papers For Class 9 - Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1

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Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 1

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।

प्रश्न: देवताओं द्वारा अमृत-मंथन करने का कारण क्या था?

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इंद्र के द्वारा दुर्वासा की माला का अपमान करना

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पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।

प्रश्न: गद्यांश के माध्यम से क्या सीख दी गई है

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घमंड विनाश का कारण है

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Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 3

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।

प्रश्न: उन्होंने इंद्र को माला क्यों पहनाई?

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क्योंकि वे दिव्य पुरुष थे

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 4

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‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।

प्रश्न: इंद्र ने माला किसे पहना दी?

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 5

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
‘विष्णु-पुराण’ के प्रथम अंश के नवें अध्याय में इस अमृत-मंथन के कारणों का स्पष्ट उल्लेख है कि फूलों की माला का अपमान करने के प्रायश्चित स्वरूप देवताओं को अमृत-मंथन करना पड़ा। वह कथा इस प्रकार है कि दुर्वासा ऋषि ने पृथ्वी पर विचरण करते हुए एक कृशांगी के जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थी, हाथ में एक दिव्य माला देखी। उन्होंने उस विद्याधरी से उस माला को माँग लिया और उसे किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गर्दन में डालने की बात सोचने लगे।
तभी ऐरावत पर चढ़े देवताओं के साथ आते हुए इंद्र पर उनकी नज़र पड़ी उन्हें देखकर दुर्वासा ने उस माला को इंद्र के गले में डाल दिया लेकिन इंद्र ने अनिच्छापूर्वक ग्रहण करके उस माला को ऐरावत के मस्तक पर डाल दिया। ऐरावत उसकी गंध से इतना विचलित हो उठा कि फौरन सूंड से लेकर उसने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया। संयोगवश वह माला दुर्वासा के ही पास जा गिरी। इंद्र को पहनाई गई माला की इतनी दुर्दशा देखकर दुर्वासा को क्रोध आना स्वाभाविक था। वह वापस इंद्र के पास लौटकर आए और कहने लगे ‘अरे ऐश्वर्य के घमंड में चूर अहंकारी! तू बड़ा ढीठ है, तूने मेरी दी हुई माला का कुछ भी आदर नहीं किया।
न तो तुमने माला पहनाते वक्त मेरे द्वारा दिए गए सम्मान के प्रति आभार व्यक्त किया और न ही तुमने उस माला का ही सम्मान किया। इसलिए अब तेरा ये त्रिलोकी वैभव नष्ट हो जाएगा। तेरा अहंकार तेरे विनाश का कारण है जिसके प्रभाव में तूने मेरी माला का अपमान किया। तू अब अनुनय-विनय करने का ढोंग भी मत करना। मैं उसके लिए क्षमा नहीं कर सकता।

प्रश्न: इंद्र को दुर्वासा के क्रोध का भाजन उनके किस अवगुण के कारण होना पड़ा?

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अहंकार के

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 6

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।

प्रश्न: संसार में सब कुछ संभव है-

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 7

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।

प्रश्न: नेपोलियन के शब्दकोश में क्या नहीं था?

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असंभव शब्द

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 8

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संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।

प्रश्न: गाँधीजी ने किसका नारा लगाया था?

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अहिंसा का

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पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।

प्रश्न: गाँधीजी का व्यक्तित्व कैसा था?

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सभी

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 10

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संसार में कुछ भी असाध्य नहीं है। कुछ भी असंभव नहीं है, क्योकि दृढ़ इच्छाशक्ति, परिश्रम और अभ्यास द्वारा. असंभव को भी संभव किया जा सकता है। असंभव, असाध्य आदि शब्द कायरों के लिए हैं। नेपोलियन के लिए ये शब्द उसके कोष में ही नहीं थे। नेपोलियन के कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनमें उसने दृढ़ इच्छाशक्ति से असंभव काम को भी संभव किया। एक बार नेपोलियन युद्ध के दौरान आल्प्स पर्वत के पास सेना सहित पहुँचे तथा मार्ग की जानकारी के लिए जब नेपोलियन पास में ही रहने वाली एक वृद्ध महिला के पास पहुँचे तो नेपोलियन की बात सुनकर उसने कहा-पहले भी कई लोग इस पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उस वृद्ध महिला की बात से नेपोलियन परेशान नहीं हुआ। क्योकि उसके लिए असंभव शब्द का कोई वजूद नहीं था। वृद्ध महिला नेपोलियन के इस विश्वास को देखकर हैरान थी। उसने नेपोलियन को सफलता का आशीर्वाद दिया और नेपोलियन बोनापार्ट ने सेना सहित उस पर्वत को पार किया।
साहस के पुतले बापू ने विश्व को चकित कर दिया। क्या बापू शरीर से शक्तिशाली थे? नहीं, वे तो पतले-से, एक लँगोटी पहने लकड़ी के सहारे चलते थे, परंतु उनके विचार सशक्त थे, भावनाएँ शक्तिशाली थीं। उनके साहस को देखकर करोड़ों भारतीय उनके पीछे थे। ब्रिटिश साम्राज्य उनसे काँप गया। अहिंसा के सहारे बिना रक्तपात के उन्होने भारत को स्वतंत्र कराया। यह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है।
जब गाँधीजी ने अहिंसा का नारा लगाया तो लोग हँसते थे। कहते थे, अहिंसा से कहीं ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली जा सकती है? परंतु वे डटे रहे, साहस नहीं छोड़ा। अंत में अहिंसा की ही विजय हुई। कहते हैं, 'अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है' हाँ, फोड़ सकता है, यदि उसमें साहस हो तो।

प्रश्न: गाँधीजी ने किस कहावत को गलत सिद्ध कर दिया?

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अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है

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पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।

प्रश्न: काव्यांश में कवि ने हार किसे माना है?

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विराम को

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 12

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।

प्रश्न: कवि ने हार और जीत के माध्यम से क्या बताने का प्रयास किया है?

Detailed Solution for Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 12

जीवन के पथ पर हार-जीत जो भी मिले उसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 13

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।

प्रश्न: कर्तव्य की राह पर चलते हुए कवि क्या संकल्प धारण करता है?

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इस मार्ग में चाहे कितने ही कष्ट आएँ, वह इस मार्ग से भागेगा नहीं

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 14

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।

प्रश्न: कवि संघर्ष के मार्ग में किसे स्वीकार करने की बात कर रहा है?

Detailed Solution for Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 14

हार या जीत में जो भी प्राप्त हो

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 15

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की
संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।।
क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले वह भी सही, यह भी सही।
वरदान मागूँगा नहीं।
लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान्, बने रहो,
अपने हदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।
चाहे हदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य-पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान मागूँगा नहीं।

प्रश्न: प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने क्या न त्यागने की बात की है?

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हदयगत वेदना

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 16

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन

प्रश्न: प्रस्तुत काव्यांश में कवि किसकी चर्चा कर रहा है?

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हिमालय पर्वत की

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 17

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन

प्रश्न: कवि ने अपना तीर्थ स्थल किसे माना है?

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हिमालय पर्वत को

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 18

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन

प्रश्न: तीर्थ स्थल का दर्शन करने का क्या परिणाम होता है?

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मन दर्पण के समान स्वच्छ बन जाता है

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 19

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन

प्रश्न: काव्यांश के अनुसार, इतिहास किस बात का गवाह है?

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हिमालय का सिर किसी से नहीं झुका है

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 20

पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
जिसके चरणों पर धरती
और बाँहों में गंगा-जमुना जल है,
जिसके नयनों का काजल ही
उड़कर बनता बादल-दल है, पर्वत कैसे कह दूँ इसको-
यह तो मेरा तीर्थ स्थल है।
इस तीरथ के दर्शन से ही
मानस बन जाता है दर्पण।
यों तो इसने सबकी उन्नति
अपनी ही जैसी चाही है,
सबके संग सच्चाई औ' सुंदरता की नीति निबाही है;
पर कभी किसी से झुका नहीं इसका इतिहास गवाही है,
ऐसे गर्वोन्नत प्रहरी पर
न्योछावर मेरा तन-मन-धन

प्रश्न: किसने सबकी उन्नति अपनी जैसी चाही है

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हिमालय ने

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 21

'सजावट' और 'लिखावट' में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए।

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'सजावट' और 'लिखावट' शब्द में 'सज' और 'लिख' क्रमशः मूल शब्द हैं और दोनों में ही 'आवट' प्रत्यय है। 

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 22

'प्रत्युपकार' शब्द में से उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए।

Detailed Solution for Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 22

'प्रत्युपकार' में प्रति उपसर्ग और उपकार मूल शब्द है। 

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 23

'पर' उपसर्गयुक्त शब्द हैं -

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'परदादा' और 'परनाना' शब्द में 'पर' उपसर्ग है और 'दादा' और 'नाना' क्रमशः मूल शब्द हैं ।

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 24

'प्रत्यक्ष' शब्द में से उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए।

Detailed Solution for Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 24

प्रत्यक्ष  - शब्द में प्रति उपसर्ग है और अक्ष मूल शब्द है।

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 25

'कुलीन' शब्द में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए।

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'कुलीन' शब्द में 'कुल' मूल शब्द है और 'ईन' प्रत्यय है। 

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 26

'जीवन का साथी' समास विग्रह के लिए उचित समस्त पद और समास का नाम दिए गए विकल्पों में से चुनिए। 

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'का' कारक चिह्न के कारण संबंध तत्पुरुष समास है।  साथी का जीवन के साथ संबंध बताया गया है। 

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 27

अव्ययीभाव समास में पूर्व पद __________होता है।  रिक्त स्थान के लिए उचित विकल्प चुनिए। 

Detailed Solution for Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 27

अव्ययीभाव समास  का पूर्व पद अव्यय होता है और उससे बनने वाला नवीन पद भी अव्यय ही होता है। 

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 28

कौन-सा शब्द बहुव्रीहि समास का उचित उदाहरण है?

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पंचानन

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 29

निशाचर में कौन-सा समास है?

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बहुव्रीहि

Test: Class 9 Hindi A: CBSE Sample Question Paper Term I (2021-22) - 1 - Question 30

नरोत्तम में कौन-सा समास है?

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तत्पुरुष

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