पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तीकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि ' 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:" अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
लेकिन विडंबना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तीकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरी वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती है। महिला सशक्तीकरण भौतिक या आध्यात्मिक, शारीरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। महिलाओं के सामाजिक सशक्तीकरण में शिक्षा की अहम भूमिका है। ग्रामीण महिलाएँ सदियों से घर-खेत में पुरुषों के बराबर ही काम करती आई हैं, लेकिन वहाँ उन्हें सामंती सोच के कारण दूसरे दर्जें का नागरिक ही माना जाता रहा है।
ग्रामीण समाज की सोच बदलने का वक्त अब आ गया है। महिलाओं की बेहतरी के लिए गाँवों में पहल की जानी चाहिए। नारी सशक्तीकरण के इस वर्तमान दौर में महिलाएँ केवल आर्थिक रूप से सुदृढ़ ही नहीं हुई, अपितु समाज एवं परिवार की सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने प्रारंभ हो गए हैं। आज महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं के बल पर आगे बढ़ रही हैं, चाहे सामाजिक क्षेत्र हो, राजनीतिक हो, शिक्षा हो, रोज़गार हो, सभी जगह महिलाओं ने अपना परचम लहराया है। वर्तमान समय में लोग बेटियों को बोझ न समझें और दुनिया में आने से पहले मारे नहीं, इसलिए सरकार ने बहुत सारी योजनाओं; जैसे-लाडली योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तथा उड़ान आदि की शुरुआत की है।
प्रश्न. महिला सशक्तीकरण से क्या तात्पर्य है?
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आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तीकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि ' 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:" अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
लेकिन विडंबना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तीकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरी वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती है। महिला सशक्तीकरण भौतिक या आध्यात्मिक, शारीरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। महिलाओं के सामाजिक सशक्तीकरण में शिक्षा की अहम भूमिका है। ग्रामीण महिलाएँ सदियों से घर-खेत में पुरुषों के बराबर ही काम करती आई हैं, लेकिन वहाँ उन्हें सामंती सोच के कारण दूसरे दर्जें का नागरिक ही माना जाता रहा है।
ग्रामीण समाज की सोच बदलने का वक्त अब आ गया है। महिलाओं की बेहतरी के लिए गाँवों में पहल की जानी चाहिए। नारी सशक्तीकरण के इस वर्तमान दौर में महिलाएँ केवल आर्थिक रूप से सुदृढ़ ही नहीं हुई, अपितु समाज एवं परिवार की सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने प्रारंभ हो गए हैं। आज महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं के बल पर आगे बढ़ रही हैं, चाहे सामाजिक क्षेत्र हो, राजनीतिक हो, शिक्षा हो, रोज़गार हो, सभी जगह महिलाओं ने अपना परचम लहराया है। वर्तमान समय में लोग बेटियों को बोझ न समझें और दुनिया में आने से पहले मारे नहीं, इसलिए सरकार ने बहुत सारी योजनाओं; जैसे-लाडली योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तथा उड़ान आदि की शुरुआत की है।
प्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को किस तरह का नागरिक माना जाता रहा है?
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आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तीकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि ' 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:" अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
लेकिन विडंबना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तीकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरी वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती है। महिला सशक्तीकरण भौतिक या आध्यात्मिक, शारीरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। महिलाओं के सामाजिक सशक्तीकरण में शिक्षा की अहम भूमिका है। ग्रामीण महिलाएँ सदियों से घर-खेत में पुरुषों के बराबर ही काम करती आई हैं, लेकिन वहाँ उन्हें सामंती सोच के कारण दूसरे दर्जें का नागरिक ही माना जाता रहा है।
ग्रामीण समाज की सोच बदलने का वक्त अब आ गया है। महिलाओं की बेहतरी के लिए गाँवों में पहल की जानी चाहिए। नारी सशक्तीकरण के इस वर्तमान दौर में महिलाएँ केवल आर्थिक रूप से सुदृढ़ ही नहीं हुई, अपितु समाज एवं परिवार की सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने प्रारंभ हो गए हैं। आज महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं के बल पर आगे बढ़ रही हैं, चाहे सामाजिक क्षेत्र हो, राजनीतिक हो, शिक्षा हो, रोज़गार हो, सभी जगह महिलाओं ने अपना परचम लहराया है। वर्तमान समय में लोग बेटियों को बोझ न समझें और दुनिया में आने से पहले मारे नहीं, इसलिए सरकार ने बहुत सारी योजनाओं; जैसे-लाडली योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तथा उड़ान आदि की शुरुआत की है।
प्रश्न. आज के समय में महिलाओं की स्थिति क्या है?
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आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तीकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि ' 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:" अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
लेकिन विडंबना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तीकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरी वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती है। महिला सशक्तीकरण भौतिक या आध्यात्मिक, शारीरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। महिलाओं के सामाजिक सशक्तीकरण में शिक्षा की अहम भूमिका है। ग्रामीण महिलाएँ सदियों से घर-खेत में पुरुषों के बराबर ही काम करती आई हैं, लेकिन वहाँ उन्हें सामंती सोच के कारण दूसरे दर्जें का नागरिक ही माना जाता रहा है।
ग्रामीण समाज की सोच बदलने का वक्त अब आ गया है। महिलाओं की बेहतरी के लिए गाँवों में पहल की जानी चाहिए। नारी सशक्तीकरण के इस वर्तमान दौर में महिलाएँ केवल आर्थिक रूप से सुदृढ़ ही नहीं हुई, अपितु समाज एवं परिवार की सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने प्रारंभ हो गए हैं। आज महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं के बल पर आगे बढ़ रही हैं, चाहे सामाजिक क्षेत्र हो, राजनीतिक हो, शिक्षा हो, रोज़गार हो, सभी जगह महिलाओं ने अपना परचम लहराया है। वर्तमान समय में लोग बेटियों को बोझ न समझें और दुनिया में आने से पहले मारे नहीं, इसलिए सरकार ने बहुत सारी योजनाओं; जैसे-लाडली योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तथा उड़ान आदि की शुरुआत की है।
प्रश्न. वर्तमान में महिलाओं ने अपना परचम किस क्षेत्र में लहराया है?
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आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तीकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि ' 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:" अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
लेकिन विडंबना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तीकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरी वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती है। महिला सशक्तीकरण भौतिक या आध्यात्मिक, शारीरिक या मानसिक, सभी स्तर पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। महिलाओं के सामाजिक सशक्तीकरण में शिक्षा की अहम भूमिका है। ग्रामीण महिलाएँ सदियों से घर-खेत में पुरुषों के बराबर ही काम करती आई हैं, लेकिन वहाँ उन्हें सामंती सोच के कारण दूसरे दर्जें का नागरिक ही माना जाता रहा है।
ग्रामीण समाज की सोच बदलने का वक्त अब आ गया है। महिलाओं की बेहतरी के लिए गाँवों में पहल की जानी चाहिए। नारी सशक्तीकरण के इस वर्तमान दौर में महिलाएँ केवल आर्थिक रूप से सुदृढ़ ही नहीं हुई, अपितु समाज एवं परिवार की सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने प्रारंभ हो गए हैं। आज महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं के बल पर आगे बढ़ रही हैं, चाहे सामाजिक क्षेत्र हो, राजनीतिक हो, शिक्षा हो, रोज़गार हो, सभी जगह महिलाओं ने अपना परचम लहराया है। वर्तमान समय में लोग बेटियों को बोझ न समझें और दुनिया में आने से पहले मारे नहीं, इसलिए सरकार ने बहुत सारी योजनाओं; जैसे-लाडली योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तथा उड़ान आदि की शुरुआत की है।
प्रश्न. वर्तमान समय में महिलाओं के लिए सरकार ने कौन-सी योजना चलाई है?
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आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आज़ादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है? क्या एक आज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है उसमें?
बेशक समाज बदल रहा है मगर यथार्थ की परतें कितनी बहुआयामी और जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी।
प्रश्न. नारी की वास्तविक आज़ादी कब होगी?
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आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आज़ादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है? क्या एक आज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है उसमें?
बेशक समाज बदल रहा है मगर यथार्थ की परतें कितनी बहुआयामी और जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी।
प्रश्न. नैतिकता शब्द से प्रत्यय अलग करके मूलशब्द भी लिखिए।
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आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आज़ादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है? क्या एक आज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है उसमें?
बेशक समाज बदल रहा है मगर यथार्थ की परतें कितनी बहुआयामी और जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी।
प्रश्न. कैसे कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं बल्कि पूरी दुनिया महिलाओं की है?
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आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आज़ादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है? क्या एक आज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है उसमें?
बेशक समाज बदल रहा है मगर यथार्थ की परतें कितनी बहुआयामी और जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी।
प्रश्न. नारी सही मायनों में क्या लाना चाहती है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आज़ादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है? क्या एक आज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है उसमें?
बेशक समाज बदल रहा है मगर यथार्थ की परतें कितनी बहुआयामी और जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी।
प्रश्न. गद्यांश के लिए सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक है -
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. शांतनु कौन था?
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. किसका बचपन का नाम देवव्रत था?
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. गंगा किसकी माता थी?
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. मल्लाहों के प्रमुख का नाम निम्नलिखित में से क्या है?
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भारतवर्ष के महान् वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे महाराजा शांतनु और माता गंगा के इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को चली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती से महाराज का विवाह कर दूंगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रह्नमचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए–चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्मांध थे अतः राजगद्दी पांडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडव कहे जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयद्ध में अद्वितीय थे। दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
प्रश्न. शांतनु किसके वियोग में दुःखी रहते थे?
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विज्ञान ने मनुष्य को मशीन बना दिया है, यह कहना उचित नहीं है। मशीनों का आविष्कार मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए किया है। यदि मशीनें नहीं होतीं, तो मनुष्य इतनी तेजी से प्रगति नहीं कर पाता एवं उसका जीवन तमाम तरह के झंझावातों के बीच ही गुम होकर रह जाता। मशीनों से मनुष्य को लाभ हुआ है, यदि उसे भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं, तो उसमें मशीनों का योगदान प्रमुख है। मशीनों को कार्यान्वित करने के लिए मनुष्य को उन्हें परिचालित करना पड़ता है जिससे कार्य करने में उसे अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता।
यदि कोई व्यक्ति मशीन के बिना कार्य करे, तो उसे अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता पड़ेगी। इस दृष्टि से देखा जाए, तो मशीनों के कारण मनुष्य का जीवन यंत्रवत् नहीं हुआ है, बल्कि उसके लिए हर प्रकार का कार्य करना सरल हो गया है। यह विज्ञान का ही वरदान है कि अब डेबिट-क्रेडिट कार्ड के रूप में लोगों के पर्स में प्लास्टिक मनी आ गई है और वे जब भी चाहें, रुपये निकाल सकते हैं। रुपये निकालने के लिए अब बैंकों में घंटों लाइन में लगने की जरूरत ही नहीं।
पहले लंबी दूरी की यात्रा करना मनुष्य के लिए अत्यंत कष्टदायी होता था। अब विज्ञान ने मनुष्य की हर प्रकार की यात्रा को सुखमय बना दिया है। सड़कों पर दौड़ती मोटरगाड़ियाँ एवं एयरपोर्ट पर लोगों की भीड़ इसका उदाहरण हैं। पहले मनुष्य के पास मनोरंजन के लिए विशेष साधन उपलब्ध नहीं थे। अब उसके पास मनोरंजन के हर प्रकार के साधन उपलब्ध हैं। रेडियो, टेपरिकॉर्डर से आगे बढ़कर अब एलईडी, डीवीडी एवं डीटीएच, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल का जमाना आ गया है। यही नहीं मनुष्य विज्ञान की सहायता से शारीरिक कमजोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा ( निजात) पाने में अब पहले से कहीं अधिक सक्षम हो गया है और यह सब संभव हुआ चिकित्सा क्षेत्र में आई वैज्ञानिक प्रगति से।
प्रश्न. विज्ञान ने मनुष्यों को क्या दिया है?
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विज्ञान ने मनुष्य को मशीन बना दिया है, यह कहना उचित नहीं है। मशीनों का आविष्कार मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए किया है। यदि मशीनें नहीं होतीं, तो मनुष्य इतनी तेजी से प्रगति नहीं कर पाता एवं उसका जीवन तमाम तरह के झंझावातों के बीच ही गुम होकर रह जाता। मशीनों से मनुष्य को लाभ हुआ है, यदि उसे भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं, तो उसमें मशीनों का योगदान प्रमुख है। मशीनों को कार्यान्वित करने के लिए मनुष्य को उन्हें परिचालित करना पड़ता है जिससे कार्य करने में उसे अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता।
यदि कोई व्यक्ति मशीन के बिना कार्य करे, तो उसे अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता पड़ेगी। इस दृष्टि से देखा जाए, तो मशीनों के कारण मनुष्य का जीवन यंत्रवत् नहीं हुआ है, बल्कि उसके लिए हर प्रकार का कार्य करना सरल हो गया है। यह विज्ञान का ही वरदान है कि अब डेबिट-क्रेडिट कार्ड के रूप में लोगों के पर्स में प्लास्टिक मनी आ गई है और वे जब भी चाहें, रुपये निकाल सकते हैं। रुपये निकालने के लिए अब बैंकों में घंटों लाइन में लगने की जरूरत ही नहीं।
पहले लंबी दूरी की यात्रा करना मनुष्य के लिए अत्यंत कष्टदायी होता था। अब विज्ञान ने मनुष्य की हर प्रकार की यात्रा को सुखमय बना दिया है। सड़कों पर दौड़ती मोटरगाड़ियाँ एवं एयरपोर्ट पर लोगों की भीड़ इसका उदाहरण हैं। पहले मनुष्य के पास मनोरंजन के लिए विशेष साधन उपलब्ध नहीं थे। अब उसके पास मनोरंजन के हर प्रकार के साधन उपलब्ध हैं। रेडियो, टेपरिकॉर्डर से आगे बढ़कर अब एलईडी, डीवीडी एवं डीटीएच, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल का जमाना आ गया है। यही नहीं मनुष्य विज्ञान की सहायता से शारीरिक कमजोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा ( निजात) पाने में अब पहले से कहीं अधिक सक्षम हो गया है और यह सब संभव हुआ चिकित्सा क्षेत्र में आई वैज्ञानिक प्रगति से।
प्रश्न. मशीनें नहीं होती तो क्या होता?
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विज्ञान ने मनुष्य को मशीन बना दिया है, यह कहना उचित नहीं है। मशीनों का आविष्कार मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए किया है। यदि मशीनें नहीं होतीं, तो मनुष्य इतनी तेजी से प्रगति नहीं कर पाता एवं उसका जीवन तमाम तरह के झंझावातों के बीच ही गुम होकर रह जाता। मशीनों से मनुष्य को लाभ हुआ है, यदि उसे भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं, तो उसमें मशीनों का योगदान प्रमुख है। मशीनों को कार्यान्वित करने के लिए मनुष्य को उन्हें परिचालित करना पड़ता है जिससे कार्य करने में उसे अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता।
यदि कोई व्यक्ति मशीन के बिना कार्य करे, तो उसे अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता पड़ेगी। इस दृष्टि से देखा जाए, तो मशीनों के कारण मनुष्य का जीवन यंत्रवत् नहीं हुआ है, बल्कि उसके लिए हर प्रकार का कार्य करना सरल हो गया है। यह विज्ञान का ही वरदान है कि अब डेबिट-क्रेडिट कार्ड के रूप में लोगों के पर्स में प्लास्टिक मनी आ गई है और वे जब भी चाहें, रुपये निकाल सकते हैं। रुपये निकालने के लिए अब बैंकों में घंटों लाइन में लगने की जरूरत ही नहीं।
पहले लंबी दूरी की यात्रा करना मनुष्य के लिए अत्यंत कष्टदायी होता था। अब विज्ञान ने मनुष्य की हर प्रकार की यात्रा को सुखमय बना दिया है। सड़कों पर दौड़ती मोटरगाड़ियाँ एवं एयरपोर्ट पर लोगों की भीड़ इसका उदाहरण हैं। पहले मनुष्य के पास मनोरंजन के लिए विशेष साधन उपलब्ध नहीं थे। अब उसके पास मनोरंजन के हर प्रकार के साधन उपलब्ध हैं। रेडियो, टेपरिकॉर्डर से आगे बढ़कर अब एलईडी, डीवीडी एवं डीटीएच, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल का जमाना आ गया है। यही नहीं मनुष्य विज्ञान की सहायता से शारीरिक कमजोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा ( निजात) पाने में अब पहले से कहीं अधिक सक्षम हो गया है और यह सब संभव हुआ चिकित्सा क्षेत्र में आई वैज्ञानिक प्रगति से।
प्रश्न. मशीनों से मनुष्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
विज्ञान ने मनुष्य को मशीन बना दिया है, यह कहना उचित नहीं है। मशीनों का आविष्कार मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए किया है। यदि मशीनें नहीं होतीं, तो मनुष्य इतनी तेजी से प्रगति नहीं कर पाता एवं उसका जीवन तमाम तरह के झंझावातों के बीच ही गुम होकर रह जाता। मशीनों से मनुष्य को लाभ हुआ है, यदि उसे भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं, तो उसमें मशीनों का योगदान प्रमुख है। मशीनों को कार्यान्वित करने के लिए मनुष्य को उन्हें परिचालित करना पड़ता है जिससे कार्य करने में उसे अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता।
यदि कोई व्यक्ति मशीन के बिना कार्य करे, तो उसे अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता पड़ेगी। इस दृष्टि से देखा जाए, तो मशीनों के कारण मनुष्य का जीवन यंत्रवत् नहीं हुआ है, बल्कि उसके लिए हर प्रकार का कार्य करना सरल हो गया है। यह विज्ञान का ही वरदान है कि अब डेबिट-क्रेडिट कार्ड के रूप में लोगों के पर्स में प्लास्टिक मनी आ गई है और वे जब भी चाहें, रुपये निकाल सकते हैं। रुपये निकालने के लिए अब बैंकों में घंटों लाइन में लगने की जरूरत ही नहीं।
पहले लंबी दूरी की यात्रा करना मनुष्य के लिए अत्यंत कष्टदायी होता था। अब विज्ञान ने मनुष्य की हर प्रकार की यात्रा को सुखमय बना दिया है। सड़कों पर दौड़ती मोटरगाड़ियाँ एवं एयरपोर्ट पर लोगों की भीड़ इसका उदाहरण हैं। पहले मनुष्य के पास मनोरंजन के लिए विशेष साधन उपलब्ध नहीं थे। अब उसके पास मनोरंजन के हर प्रकार के साधन उपलब्ध हैं। रेडियो, टेपरिकॉर्डर से आगे बढ़कर अब एलईडी, डीवीडी एवं डीटीएच, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल का जमाना आ गया है। यही नहीं मनुष्य विज्ञान की सहायता से शारीरिक कमजोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा ( निजात) पाने में अब पहले से कहीं अधिक सक्षम हो गया है और यह सब संभव हुआ चिकित्सा क्षेत्र में आई वैज्ञानिक प्रगति से।
प्रश्न. गद्यांश के अनुसार, विज्ञान का वरदान क्या है?
पाठ को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों के उत्तर दें:
विज्ञान ने मनुष्य को मशीन बना दिया है, यह कहना उचित नहीं है। मशीनों का आविष्कार मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए किया है। यदि मशीनें नहीं होतीं, तो मनुष्य इतनी तेजी से प्रगति नहीं कर पाता एवं उसका जीवन तमाम तरह के झंझावातों के बीच ही गुम होकर रह जाता। मशीनों से मनुष्य को लाभ हुआ है, यदि उसे भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं, तो उसमें मशीनों का योगदान प्रमुख है। मशीनों को कार्यान्वित करने के लिए मनुष्य को उन्हें परिचालित करना पड़ता है जिससे कार्य करने में उसे अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता।
यदि कोई व्यक्ति मशीन के बिना कार्य करे, तो उसे अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता पड़ेगी। इस दृष्टि से देखा जाए, तो मशीनों के कारण मनुष्य का जीवन यंत्रवत् नहीं हुआ है, बल्कि उसके लिए हर प्रकार का कार्य करना सरल हो गया है। यह विज्ञान का ही वरदान है कि अब डेबिट-क्रेडिट कार्ड के रूप में लोगों के पर्स में प्लास्टिक मनी आ गई है और वे जब भी चाहें, रुपये निकाल सकते हैं। रुपये निकालने के लिए अब बैंकों में घंटों लाइन में लगने की जरूरत ही नहीं।
पहले लंबी दूरी की यात्रा करना मनुष्य के लिए अत्यंत कष्टदायी होता था। अब विज्ञान ने मनुष्य की हर प्रकार की यात्रा को सुखमय बना दिया है। सड़कों पर दौड़ती मोटरगाड़ियाँ एवं एयरपोर्ट पर लोगों की भीड़ इसका उदाहरण हैं। पहले मनुष्य के पास मनोरंजन के लिए विशेष साधन उपलब्ध नहीं थे। अब उसके पास मनोरंजन के हर प्रकार के साधन उपलब्ध हैं। रेडियो, टेपरिकॉर्डर से आगे बढ़कर अब एलईडी, डीवीडी एवं डीटीएच, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल का जमाना आ गया है। यही नहीं मनुष्य विज्ञान की सहायता से शारीरिक कमजोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा ( निजात) पाने में अब पहले से कहीं अधिक सक्षम हो गया है और यह सब संभव हुआ चिकित्सा क्षेत्र में आई वैज्ञानिक प्रगति से।
प्रश्न. मशीनों का प्रमुख योगदान क्या है?
पद के बारे में कौन-सा कथन सत्य है?
विकारी शब्द कितने प्रकार के होते हैं?
निम्नलिखित शब्दों में से अनुनासिक के उचित प्रयोग वाला शब्द चुनिए-
पँडित, मँत्र, पतँग, शँख
अनुनासिक का प्रयोग बिंदु रूप (अनुस्वार) के समान कब किया जाता है?
निम्नलिखित शब्दों में से अनुनासिक के उचित प्रयोग वाला शब्द चुनिए-
गँध, सुगँध, डांट, ऊँट
अधिकोष शब्द में कौन-सा उपसर्ग है?
कनिष्ठ शब्द में कौन-सा प्रत्यय है?
व्यवस्था से पूर्व कौन-सा उपसर्ग लगाए कि उसका अर्थ विपरीत हो जाए?
निर्निमेष शब्द में कौन-सा उपसर्ग है?
निम्नलिखित में से किस शब्द में प्रत्यय प्रयोग किया गया है?
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