निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर विकल्पों में से चुनिए:‘
‘तू समझती नहीं’’। गवरा हँसकर बोला,‘‘कपड़े पहन-पहनकर जाड़ा-गरमी-बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है। ... और इस कपड़े में बड़ा ल.फड़ा भी कपड़ा पहनते ही पहननेवाले की औकात पता चल जाती ह...आदमी-आदमी की हैसियत में भेद पैदा हो जाता है।‘‘फिर भी आदमी कपड़ा पहनने से बाज नहीं आता।’’ गवरइया बोली। ‘‘नित नए-नए लिबास सिलवाता रहता है।
प्रश्न: गवरा, गवरइया को कह रहा था, ‘‘तू समझती नहीं। ऐसा क्यों?
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‘तू समझती नहीं’’। गवरा हँसकर बोला,‘‘कपड़े पहन-पहनकर जाड़ा-गरमी-बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है। ... और इस कपड़े में बड़ा ल.फड़ा भी कपड़ा पहनते ही पहननेवाले की औकात पता चल जाती ह...आदमी-आदमी की हैसियत में भेद पैदा हो जाता है।‘‘फिर भी आदमी कपड़ा पहनने से बाज नहीं आता।’’ गवरइया बोली। ‘‘नित नए-नए लिबास सिलवाता रहता है।
प्रश्न: गवरे के अनुसार कपड़े पहनने वेफ कारण मनुष्य मौसम की मार सह सकने में-
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निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर विकल्पों में से चुनिए-
:‘‘तू समझती नहीं’’। गवरा हँसकर बोला,‘‘कपड़े पहन-पहनकर जाड़ा-गरमी-बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है। ... और इस कपड़े में बड़ा ल.फड़ा भी कपड़ा पहनते ही पहननेवाले की औकात पता चल जाती ह...आदमी-आदमी की हैसियत में भेद पैदा हो जाता है।‘‘फिर भी आदमी कपड़ा पहनने से बाज नहीं आता।’’ गवरइया बोली। ‘‘नित नए-नए लिबास सिलवाता रहता है।
प्रश्न: कपड़ों से मनुष्य की औकात का क्या संबंध् है?
निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर विकल्पों में से चुनिए:-
‘‘तू समझती नहीं’’। गवरा हँसकर बोला,‘‘कपड़े पहन-पहनकर जाड़ा-गरमी-बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है। ... और इस कपड़े में बड़ा ल.फड़ा भी कपड़ा पहनते ही पहननेवाले की औकात पता चल जाती ह...आदमी-आदमी की हैसियत में भेद पैदा हो जाता है।‘‘फिर भी आदमी कपड़ा पहनने से बाज नहीं आता।’’ गवरइया बोली। ‘‘नित नए-नए लिबास सिलवाता रहता है।
प्रश्न: ‘नित नए-नए लिबास सिलवाता रहता है के माध्यम से मादा गौरैया वेफ स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है?
निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर विकल्पों में से चुनिए:-
‘‘तू समझती नहीं’’। गवरा हँसकर बोला,‘‘कपड़े पहन-पहनकर जाड़ा-गरमी-बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है। ... और इस कपड़े में बड़ा ल.फड़ा भी कपड़ा पहनते ही पहननेवाले की औकात पता चल जाती ह...आदमी-आदमी की हैसियत में भेद पैदा हो जाता है।‘‘फिर भी आदमी कपड़ा पहनने से बाज नहीं आता।’’ गवरइया बोली। ‘‘नित नए-नए लिबास सिलवाता रहता है।
प्रश्न: औकात, हैसियत आदि शब्द हैं-
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