“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीश तिहूँ लोक उजागर।” में अलंकार बताईये-
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“स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अंबर तल में।” में अलंकार बताईये-
“रहिमन जो गति दीप की,कुल कपूत गति सोय, बारे उजियारे करै, बढ़े अंधेरों होय।” में अलंकार बताईये-
“ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी, ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहती है।” में अलंकार बताईये-
“मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै, जैसे उड़ि जहाज को पंछी फिरि जहाज पै आवै।” में अलंकार बताईये-
“माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।” में अलंकार बताईये-
“भर लाऊँ सीपी में सागर, प्रिय! मेरी अब हार विजय क्या?” में अलंकार बताईये-
“अजौ तौना ही रह्यों, श्रुति सेवत इक अंग, नाक बास बेसिर लयों, बसि मुक्तन के संग।” में अलंकार बताईये-
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