निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके आधार पर दिए गए प्रश्नों) के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए :
विनम्रता का यह कथन बहुत ठीक है कि विनम्रता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं। इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्मसंस्कार के लिए थोड़ी बहुत मानसिक स्वतंत्रता परमावश्यक है – चाहे उस स्वतंत्रता में अभिमान और नम्रता दोनों का मेल हो और चाहे वह नम्रता ही से उत्पन्न हो। यह बात तो निश्चित है कि जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है उसके लिए वह गुण अनिवार्य है, जिससे आत्मनिर्भरता आती है और जिससे अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है। युवा को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है और उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं। उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बड़ों का सम्मान करे, छोटे और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करे, ये बातें आत्म-मर्यादा के लिए आवश्यक हैं। यह सारा संसार, जो कुछ हम हैं और जो कुछ हमारा है – हमारा शरीर, हमारी आत्मा, - हमारे कर्म, हमारे भोग, हमारे घर और बाहर की दशा हमारे बहुत से अवगुण, और थोड़े गुण सब इसी बात की आवश्यकता प्रकट करते हैं कि हमें अपनी आत्मा को नम्र रखना चाहिए। नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन से नहीं है जिसके कारण मनुष्य दूसरों का मुँह ताकता है जिससे उसका संकल्प क्षीण और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है, जिसके कारण बढ़ने के समय भी पीछे रहता है और अवसर पड़ने पर झट से किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता। मनुष्य का बेड़ा उसके अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर ले जाए। सच्ची आत्मा वही है जो प्रत्येक दशा में प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह आप निकालती है।
Q. दब्बूपन होने से मनुष्य का क्या क्षीण हो जाता है ?
निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके आधार पर दिए गए प्रश्नों) के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए :
विनम्रता का यह कथन बहुत ठीक है कि विनम्रता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं। इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्मसंस्कार के लिए थोड़ी बहुत मानसिक स्वतंत्रता परमावश्यक है – चाहे उस स्वतंत्रता में अभिमान और नम्रता दोनों का मेल हो और चाहे वह नम्रता ही से उत्पन्न हो। यह बात तो निश्चित है कि जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है उसके लिए वह गुण अनिवार्य है, जिससे आत्मनिर्भरता आती है और जिससे अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है। युवा को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है और उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं। उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बड़ों का सम्मान करे, छोटे और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करे, ये बातें आत्म-मर्यादा के लिए आवश्यक हैं। यह सारा संसार, जो कुछ हम हैं और जो कुछ हमारा है – हमारा शरीर, हमारी आत्मा, - हमारे कर्म, हमारे भोग, हमारे घर और बाहर की दशा हमारे बहुत से अवगुण, और थोड़े गुण सब इसी बात की आवश्यकता प्रकट करते हैं कि हमें अपनी आत्मा को नम्र रखना चाहिए। नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन से नहीं है जिसके कारण मनुष्य दूसरों का मुँह ताकता है जिससे उसका संकल्प क्षीण और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है, जिसके कारण बढ़ने के समय भी पीछे रहता है और अवसर पड़ने पर झट से किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता। मनुष्य का बेड़ा उसके अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर ले जाए। सच्ची आत्मा वही है जो प्रत्येक दशा में प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह आप निकालती है।
Q. 'परमावश्यक' का संधि-विच्छेद है -
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निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके आधार पर दिए गए प्रश्नों) के उत्तर के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए :
विनम्रता का यह कथन बहुत ठीक है कि विनम्रता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं। इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्मसंस्कार के लिए थोड़ी बहुत मानसिक स्वतंत्रता परमावश्यक है – चाहे उस स्वतंत्रता में अभिमान और नम्रता दोनों का मेल हो और चाहे वह नम्रता ही से उत्पन्न हो। यह बात तो निश्चित है कि जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है उसके लिए वह गुण अनिवार्य है, जिससे आत्मनिर्भरता आती है और जिससे अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है। युवा को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है और उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं। उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बड़ों का सम्मान करे, छोटे और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करे, ये बातें आत्म-मर्यादा के लिए आवश्यक हैं। यह सारा संसार, जो कुछ हम हैं और जो कुछ हमारा है – हमारा शरीर, हमारी आत्मा, - हमारे कर्म, हमारे भोग, हमारे घर और बाहर की दशा हमारे बहुत से अवगुण, और थोड़े गुण सब इसी बात की आवश्यकता प्रकट करते हैं कि हमें अपनी आत्मा को नम्र रखना चाहिए। नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन से नहीं है जिसके कारण मनुष्य दूसरों का मुँह ताकता है जिससे उसका संकल्प क्षीण और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है, जिसके कारण बढ़ने के समय भी पीछे रहता है और अवसर पड़ने पर झट से किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता। मनुष्य का बेड़ा उसके अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर ले जाए। सच्ची आत्मा वही है जो प्रत्येक दशा में प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह आप निकालती है।
Q. 'अभिमान' शब्द में उपसर्ग का कौन-सा विकल्प सही है ?
अभिभावक शिक्षक बैठक से पहले, दौरान या बाद में एक शिक्षक के रूप में किन बातों का पालन करना चाहिए?
पाठ्यचर्या में शामिल पाठ्यपुस्तकों में निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता होनी चाहिए?
अपारदर्शी शीट पर सामग्री को ________ हार्डवेयर की मदद से प्रक्षेपित किया जाता है।
निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न में सबसे उचित विकल्प को चुनिए।
प्राचीन भारत में शिक्षा, ज्ञान प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता था। व्यक्ति के जीवन को सन्तुलित और श्रेष्ठ बनाने तथा एक नई दिशा प्रदान करने में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान था। सामाजिक बुराइयों को उसकी जड़ों से निर्मूल करने और त्रुटिपूर्ण जीवन में सुधार करने के लिए शिक्षा की नितान्त आवश्यकता थी। यह एक ऐसी व्यवस्था थी, जिसके द्वारा सम्पूर्ण जीवन ही परिवर्तित किया जा सकता था। व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का विकास करने, वास्तविक ज्ञान को प्राप्त करने और अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए शिक्षा पर निर्भर होना पड़ता था। आधुनिक युग की भाँति प्राचीन भारत में भी मनुष्य के चरित्र का उत्थान शिक्षा से ही सम्भव था। सामाजिक उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक वहन करना प्रत्येक मानव का परम उद्देश्य माना जाता है। इसके लिए भी शिक्षित होना नितान्त अनिवार्य है। जीवन की वास्तविकता को समझने में शिक्षा का उल्लेखनीय योगदान रहता है। भारतीय मनीषियों ने इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित करके शिक्षा को समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार किया। विद्या का स्थान किसी भी वस्तु से बहुत ऊँचा बताया गया। प्रखर बुद्धि एवं सही विवेक के लिए शिक्षा की उपयोगिता को स्वीकार किया गया। यह माना गया कि शिक्षा ही मनुष्य की व्यावहारिक कर्तव्यों का पाठ पढ़ाने और सफल नागरिक बनाने में सक्षम है। इसके माध्यम से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक अर्थात् सर्वांगीण विकास सम्भव है। शिक्षा ने ही प्राचीन संस्कृति को संरक्षण दिया और इसके प्रसार में मदद की। विद्या का आरम्भ ‘उपनयन संस्कार’ द्वारा होता था। उपनयन संस्कार के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए मनुस्मृति में उल्लेख मिलता है कि गर्भाधान संस्कार द्वारा तो व्यक्ति का शरीर उत्पन्न होता है पर उपनयन संस्कार द्वारा उसका आध्यात्मिक जन्म होता है। प्राचीन काल में बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए आचार्य के पास भेजा जाता था। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, जो ब्रह्मचर्य ग्रहण करता है। वह लम्बी अवधि की यज्ञावधि ग्रहण करता है। छान्दोग्योपनिषद् में उल्लेख मिलता है कि आरुणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को ब्रह्मचारी रूप से वेदाध्ययन के लिए गुरु के पास जाने को प्रेरित किया था। आचार्य के पास रहते हुए ब्रह्मचारी को तप और साधना का जीवन बिताते हुए विद्याध्ययन में तल्लीन रहना पड़ता था। इस अवस्था में बालक जो ज्ञानार्जन करता था उसका लाभ उसको जीवन भर मिलता था। गुरु गृह में निवास करते हुए विद्यार्थी समाज के निकट सम्पर्क में आता था। गुरु के लिए समिधा, जल का लाना तथा गृह-कार्य करना उसका कर्त्तव्य माना जाता था। गृहस्थ धर्म की शिक्षा के साथ-साथ वह श्रम और सेवा का पाठ पढ़ता था। शिक्षा केवल सैद्धान्तिक और पुस्तकीय न होकर जीवन की वास्तविकताओं के निकट होती थी।
Q. प्राचीन भारत में शिक्षा ________ होती थी।
निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न में सबसे उचित विकल्प को चुनिए।
प्राचीन भारत में शिक्षा, ज्ञान प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता था। व्यक्ति के जीवन को सन्तुलित और श्रेष्ठ बनाने तथा एक नई दिशा प्रदान करने में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान था। सामाजिक बुराइयों को उसकी जड़ों से निर्मूल करने और त्रुटिपूर्ण जीवन में सुधार करने के लिए शिक्षा की नितान्त आवश्यकता थी। यह एक ऐसी व्यवस्था थी, जिसके द्वारा सम्पूर्ण जीवन ही परिवर्तित किया जा सकता था। व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का विकास करने, वास्तविक ज्ञान को प्राप्त करने और अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए शिक्षा पर निर्भर होना पड़ता था। आधुनिक युग की भाँति प्राचीन भारत में भी मनुष्य के चरित्र का उत्थान शिक्षा से ही सम्भव था। सामाजिक उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक वहन करना प्रत्येक मानव का परम उद्देश्य माना जाता है। इसके लिए भी शिक्षित होना नितान्त अनिवार्य है। जीवन की वास्तविकता को समझने में शिक्षा का उल्लेखनीय योगदान रहता है। भारतीय मनीषियों ने इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित करके शिक्षा को समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार किया। विद्या का स्थान किसी भी वस्तु से बहुत ऊँचा बताया गया। प्रखर बुद्धि एवं सही विवेक के लिए शिक्षा की उपयोगिता को स्वीकार किया गया। यह माना गया कि शिक्षा ही मनुष्य की व्यावहारिक कर्तव्यों का पाठ पढ़ाने और सफल नागरिक बनाने में सक्षम है। इसके माध्यम से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक अर्थात् सर्वांगीण विकास सम्भव है। शिक्षा ने ही प्राचीन संस्कृति को संरक्षण दिया और इसके प्रसार में मदद की। विद्या का आरम्भ ‘उपनयन संस्कार’ द्वारा होता था। उपनयन संस्कार के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए मनुस्मृति में उल्लेख मिलता है कि गर्भाधान संस्कार द्वारा तो व्यक्ति का शरीर उत्पन्न होता है पर उपनयन संस्कार द्वारा उसका आध्यात्मिक जन्म होता है। प्राचीन काल में बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए आचार्य के पास भेजा जाता था। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, जो ब्रह्मचर्य ग्रहण करता है। वह लम्बी अवधि की यज्ञावधि ग्रहण करता है। छान्दोग्योपनिषद् में उल्लेख मिलता है कि आरुणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को ब्रह्मचारी रूप से वेदाध्ययन के लिए गुरु के पास जाने को प्रेरित किया था। आचार्य के पास रहते हुए ब्रह्मचारी को तप और साधना का जीवन बिताते हुए विद्याध्ययन में तल्लीन रहना पड़ता था। इस अवस्था में बालक जो ज्ञानार्जन करता था उसका लाभ उसको जीवन भर मिलता था। गुरु गृह में निवास करते हुए विद्यार्थी समाज के निकट सम्पर्क में आता था। गुरु के लिए समिधा, जल का लाना तथा गृह-कार्य करना उसका कर्त्तव्य माना जाता था। गृहस्थ धर्म की शिक्षा के साथ-साथ वह श्रम और सेवा का पाठ पढ़ता था। शिक्षा केवल सैद्धान्तिक और पुस्तकीय न होकर जीवन की वास्तविकताओं के निकट होती थी।
Q. किस शब्द में दो प्रत्ययों का प्रयोग हुआ है?
निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न में सबसे उचित विकल्प को चुनिए।
प्राचीन भारत में शिक्षा, ज्ञान प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता था। व्यक्ति के जीवन को सन्तुलित और श्रेष्ठ बनाने तथा एक नई दिशा प्रदान करने में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान था। सामाजिक बुराइयों को उसकी जड़ों से निर्मूल करने और त्रुटिपूर्ण जीवन में सुधार करने के लिए शिक्षा की नितान्त आवश्यकता थी। यह एक ऐसी व्यवस्था थी, जिसके द्वारा सम्पूर्ण जीवन ही परिवर्तित किया जा सकता था। व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का विकास करने, वास्तविक ज्ञान को प्राप्त करने और अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए शिक्षा पर निर्भर होना पड़ता था। आधुनिक युग की भाँति प्राचीन भारत में भी मनुष्य के चरित्र का उत्थान शिक्षा से ही सम्भव था। सामाजिक उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक वहन करना प्रत्येक मानव का परम उद्देश्य माना जाता है। इसके लिए भी शिक्षित होना नितान्त अनिवार्य है। जीवन की वास्तविकता को समझने में शिक्षा का उल्लेखनीय योगदान रहता है। भारतीय मनीषियों ने इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित करके शिक्षा को समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार किया। विद्या का स्थान किसी भी वस्तु से बहुत ऊँचा बताया गया। प्रखर बुद्धि एवं सही विवेक के लिए शिक्षा की उपयोगिता को स्वीकार किया गया। यह माना गया कि शिक्षा ही मनुष्य की व्यावहारिक कर्तव्यों का पाठ पढ़ाने और सफल नागरिक बनाने में सक्षम है। इसके माध्यम से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक अर्थात् सर्वांगीण विकास सम्भव है। शिक्षा ने ही प्राचीन संस्कृति को संरक्षण दिया और इसके प्रसार में मदद की। विद्या का आरम्भ ‘उपनयन संस्कार’ द्वारा होता था। उपनयन संस्कार के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए मनुस्मृति में उल्लेख मिलता है कि गर्भाधान संस्कार द्वारा तो व्यक्ति का शरीर उत्पन्न होता है पर उपनयन संस्कार द्वारा उसका आध्यात्मिक जन्म होता है। प्राचीन काल में बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए आचार्य के पास भेजा जाता था। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, जो ब्रह्मचर्य ग्रहण करता है। वह लम्बी अवधि की यज्ञावधि ग्रहण करता है। छान्दोग्योपनिषद् में उल्लेख मिलता है कि आरुणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को ब्रह्मचारी रूप से वेदाध्ययन के लिए गुरु के पास जाने को प्रेरित किया था। आचार्य के पास रहते हुए ब्रह्मचारी को तप और साधना का जीवन बिताते हुए विद्याध्ययन में तल्लीन रहना पड़ता था। इस अवस्था में बालक जो ज्ञानार्जन करता था उसका लाभ उसको जीवन भर मिलता था। गुरु गृह में निवास करते हुए विद्यार्थी समाज के निकट सम्पर्क में आता था। गुरु के लिए समिधा, जल का लाना तथा गृह-कार्य करना उसका कर्त्तव्य माना जाता था। गृहस्थ धर्म की शिक्षा के साथ-साथ वह श्रम और सेवा का पाठ पढ़ता था। शिक्षा केवल सैद्धान्तिक और पुस्तकीय न होकर जीवन की वास्तविकताओं के निकट होती थी।
Q. प्रस्तुत गद्यांश में निम्नलिखित में से किस ग्रन्थ का उल्लेख नहीं है?
निर्देश: दिए गए पद्यांश को पढकर निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प छाँटिएI
क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत-धन के नर्तन,
मुझे न साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन।
मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन।
मैं विपदाओं में मुसकाता नव आशा के दीप लिए
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान-पतन,
मैं अटका कब, कब विचलित में, सतत डगर मेरी संबल
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल
आँधी हो, ओले-वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन।
मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन,
मुझे पथिक कब रोक सके हैं अग्निशिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।
Q. 'उन्मूलन' का विलोम शब्द क्या होगा?
निम्नलिखित में से कौन सा कौशल भाषा कौशल की उत्पादक श्रेणी के अंतर्गत आता है?
भाषा कौशल को बेहतर तरीके से सीखा जा सकता है:
व्याकरण के शिक्षण से शिक्षार्थियों को ________ में मदद मिलेगी।
निम्नलिखित में से किस विधि का सिद्धांत व्याकरण के नियमों को याद रखना है?
उपचारात्मक शिक्षण एक है:
Directions: Read the passage given below and answer the question that follows.
Africa was once filled with an abundance of wild animals. But, that is changing fast. One of these animals, the black rhinoceros, lives on the plains of Africa. It has very poor eyesight and a very bad temper! Even though the black rhino is powerful, and can be dangerous, its strength cannot always help it to escape hunters. Some people think that the rhino’s horn has magical powers and many hunters kill rhinos for their valuable horns. This has caused the black rhino to be placed on the endangered species list. The elephant seems to represent all that is strong and wild in Africa. It once had no natural enemies, but is now endangered—killed for its ivory tusks. Wherever people are careless about the land, there are endangered species. Grizzly bears like to wander great distances. Each bear needs up to 1,500 square miles of territory to call its homeland. Today, because forests have been cleared to make room for people, the grizzly’s habitat is shrinking and the grizzly is disappearing. It joins other endangered North American animals, such as the red wolf and the American crocodile.
In South America, destruction of the rain forest threatens many animals. Unusual mammals, such as the howler monkey and the three-toed sloth, are endangered. Beautiful birds like the great green macaw and the golden parakeet are also becoming extinct. They are losing their homes in the rain forest and thousands die when they are caught and shipped off to be sold as exotic pets. The giant panda of Asia is a fascinating and unique animal. Yet, there are only about 1,000 still living in the wild. The giant panda’s diet consists mainly of the bamboo plant, so when the bamboo forests die, so does the panda. China is now making an effort to protect these special creatures from becoming extinct. Unfortunately, it is people who cause many of the problems that animals face. We alter and pollute their habitats. We hunt them for skins, tusks, furs and horns. We destroy animals that get in the way of farming or building. And we remove them from their natural habitats and take them home as pets.
Q. Which of the following questions is not a valid question?
Directions: Read the passage given below and answer the question that follows.
Africa was once filled with an abundance of wild animals. But, that is changing fast. One of these animals, the black rhinoceros, lives on the plains of Africa. It has very poor eyesight and a very bad temper! Even though the black rhino is powerful, and can be dangerous, its strength cannot always help it to escape hunters. Some people think that the rhino’s horn has magical powers and many hunters kill rhinos for their valuable horns. This has caused the black rhino to be placed on the endangered species list. The elephant seems to represent all that is strong and wild in Africa. It once had no natural enemies, but is now endangered—killed for its ivory tusks. Wherever people are careless about the land, there are endangered species. Grizzly bears like to wander great distances. Each bear needs up to 1,500 square miles of territory to call its homeland. Today, because forests have been cleared to make room for people, the grizzly’s habitat is shrinking and the grizzly is disappearing. It joins other endangered North American animals, such as the red wolf and the American crocodile.
In South America, destruction of the rain forest threatens many animals. Unusual mammals, such as the howler monkey and the three-toed sloth, are endangered. Beautiful birds like the great green macaw and the golden parakeet are also becoming extinct. They are losing their homes in the rain forest and thousands die when they are caught and shipped off to be sold as exotic pets. The giant panda of Asia is a fascinating and unique animal. Yet, there are only about 1,000 still living in the wild. The giant panda’s diet consists mainly of the bamboo plant, so when the bamboo forests die, so does the panda. China is now making an effort to protect these special creatures from becoming extinct. Unfortunately, it is people who cause many of the problems that animals face. We alter and pollute their habitats. We hunt them for skins, tusks, furs and horns. We destroy animals that get in the way of farming or building. And we remove them from their natural habitats and take them home as pets.
Q. Which of the following can be a suitable title for the passage?
In a language question paper, how much weightage may be given to knowledge?
Directions: Read the following passage carefully and answer the questions given below it.
Nature is an infinite source of beauty. Sunrise and sunset, mountains and rivers, lakes and glaciers, forests and fields provide joy and bliss to the human mind and heart for hours together. Everything in nature is splendid and divine. Every day and every season of the year has a peculiar beauty to unfold. Only one should have eyes to behold it and a heart to feel it like the English poet William Wordsworth who after seeing daffodils said: And then my heart with pleasure fills and dances with the daffodils?
Nature is a great teacher. Early man was thrilled with the beauty and wonders of nature. The Aryans worshipped nature. One can learn lessons in the vast school of nature. Unfortunately, the strife, the stress and the tension of modern life have made people immune to the beauties of nature. Their life is so full of care that they have no time to stand and stare. They cannot enjoy the beauty of lowing rivers, swinging trees, flying birds and majestic mountains and hills. There is, however, a cry to go back to the village from the concrete and artificial jungle of cities. Hence the town planners of today pay special attention to providing enough natural scenic spots in town planning To develop a balanced personality, one needs to have a healthy attitude which can make us appreciate and enjoy the beauty of nature. There is another balm to soothe our tired souls and listless minds than the infinite nature all around us. We should enjoy it fully to lead a balanced and harmonious life, full of peace and tranquility.
Q. According to the author of the passage, Nature:
(a) is the ultimate salvation of man
(b) is the creator of this universe
(c) is abundantly glorious and divine
(d) maintains homeostasis in human beings
Directions: Read the following passage carefully and answer the questions given below it.
Nature is an infinite source of beauty. Sunrise and sunset, mountains and rivers, lakes and glaciers, forests and fields provide joy and bliss to the human mind and heart for hours together. Everything in nature is splendid and divine. Every day and every season of the year has a peculiar beauty to unfold. Only one should have eyes to behold it and a heart to feel it like the English poet William Wordsworth who after seeing daffodils said: And then my heart with pleasure fills and dances with the daffodils?
Nature is a great teacher. Early man was thrilled with the beauty and wonders of nature. The Aryans worshipped nature. One can learn lessons in the vast school of nature. Unfortunately, the strife, the stress and the tension of modern life have made people immune to the beauties of nature. Their life is so full of care that they have no time to stand and stare. They cannot enjoy the beauty of lowing rivers, swinging trees, flying birds and majestic mountains and hills. There is, however, a cry to go back to the village from the concrete and artificial jungle of cities. Hence the town planners of today pay special attention to providing enough natural scenic spots in town planning To develop a balanced personality, one needs to have a healthy attitude which can make us appreciate and enjoy the beauty of nature. There is another balm to soothe our tired souls and listless minds than the infinite nature all around us. We should enjoy it fully to lead a balanced and harmonious life, full of peace and tranquility.
Q. What are the town planners doing today?
Directions: Read the following passage carefully and answer the questions given below it.
Nature is an infinite source of beauty. Sunrise and sunset, mountains and rivers, lakes and glaciers, forests and fields provide joy and bliss to the human mind and heart for hours together. Everything in nature is splendid and divine. Every day and every season of the year has a peculiar beauty to unfold. Only one should have eyes to behold it and a heart to feel it like the English poet William Wordsworth who after seeing daffodils said: And then my heart with pleasure fills and dances with the daffodils?
Nature is a great teacher. Early man was thrilled with the beauty and wonders of nature. The Aryans worshipped nature. One can learn lessons in the vast school of nature. Unfortunately, the strife, the stress and the tension of modern life have made people immune to the beauties of nature. Their life is so full of care that they have no time to stand and stare. They cannot enjoy the beauty of lowing rivers, swinging trees, flying birds and majestic mountains and hills. There is, however, a cry to go back to the village from the concrete and artificial jungle of cities. Hence the town planners of today pay special attention to providing enough natural scenic spots in town planning To develop a balanced personality, one needs to have a healthy attitude which can make us appreciate and enjoy the beauty of nature. There is another balm to soothe our tired souls and listless minds than the infinite nature all around us. We should enjoy it fully to lead a balanced and harmonious life, full of peace and tranquility.
Q. In the sentence, "Their life is so full of care that they have no time to stand and stare," what is the part of speech of 'care'?
Directions: Read the following passage carefully and answer the questions given below it.
Nature is an infinite source of beauty. Sunrise and sunset, mountains and rivers, lakes and glaciers, forests and fields provide joy and bliss to the human mind and heart for hours together. Everything in nature is splendid and divine. Every day and every season of the year has a peculiar beauty to unfold. Only one should have eyes to behold it and a heart to feel it like the English poet William Wordsworth who after seeing daffodils said: And then my heart with pleasure fills and dances with the daffodils?
Nature is a great teacher. Early man was thrilled with the beauty and wonders of nature. The Aryans worshipped nature. One can learn lessons in the vast school of nature. Unfortunately, the strife, the stress and the tension of modern life have made people immune to the beauties of nature. Their life is so full of care that they have no time to stand and stare. They cannot enjoy the beauty of lowing rivers, swinging trees, flying birds and majestic mountains and hills. There is, however, a cry to go back to the village from the concrete and artificial jungle of cities. Hence the town planners of today pay special attention to providing enough natural scenic spots in town planning To develop a balanced personality, one needs to have a healthy attitude which can make us appreciate and enjoy the beauty of nature. There is another balm to soothe our tired souls and listless minds than the infinite nature all around us. We should enjoy it fully to lead a balanced and harmonious life, full of peace and tranquility.
Q. Choose the word which is most OPPOSITE in meaning of the word unfold as used in the passage:
The reading skill of skimming is used
In the Constructivist Approach, language is taught by
A language learning textbook for the first grade begins first with the alphabet, two-letter words, three letter words, and then stories and poems. Which method has been followed in this textbook?
A language teacher asked the students to read a short story and to tell the summary of it by concluding the main idea of the story while decoding the meaning of the story. Which of the following reading activity is encouraged by the teacher?
The basic skills for learning a language are:
(i) Listening and speaking skill
(ii) Phonetic and word skill
(iii) Phonic and phrase skill
(iv) Reading and writing skill
Direction: Read the given passages carefully and answer the question that follows.
Everything that men do or think concerns either the satisfaction of the needs they feel or the need to escape from pain. This must be kept in mind when we seek to understand spiritual or intellectual movements and the way in which they develop, for feeling and longing are the motive forces of all human striving and productivity – however nobly these latter may display themselves to us.
What, then, are the feelings and the needs which have brought mankind to religious thought and to faith in the widest sense? A moment’s consideration shows that the most varied emotions stand at the cradle of religious thought and experience.
In primitive people, it is, first of all, fear that awakens religious ideas – fear of hunger, of wild animals, of illness, and of death. Since the understanding of causal connections is usually limited on this level of existence, the human soul forges a being, more or less like itself, on whose will and activities depend the experiences which it fears. One hopes to win the favor of this being, by deeds and sacrifices, which according to the tradition of the race are supposed to appease the being or to make him well disposed to man. I call this the religion of fear.
This religion is considerably established, though not caused, by the formation of priestly caste which claims to mediate between the people and the being they fear and so attains a position of power. Often a leader or despot will combine the function of the priesthood with its own temporal rule for the sake of greater security, or an alliance may exist between the interests of political power and the priestly caste.
Identify the part of speech of the underlined word:
Q. I call this the religion of fear.
Direction: Read the given passages carefully and answer the question that follows.
Everything that men do or think concerns either the satisfaction of the needs they feel or the need to escape from pain. This must be kept in mind when we seek to understand spiritual or intellectual movements and the way in which they develop, for feeling and longing are the motive forces of all human striving and productivity – however nobly these latter may display themselves to us.
What, then, are the feelings and the needs which have brought mankind to religious thought and to faith in the widest sense? A moment’s consideration shows that the most varied emotions stand at the cradle of religious thought and experience.
In primitive people, it is, first of all, fear that awakens religious ideas – fear of hunger, of wild animals, of illness, and of death. Since the understanding of causal connections is usually limited on this level of existence, the human soul forges a being, more or less like itself, on whose will and activities depend the experiences which it fears. One hopes to win the favor of this being, by deeds and sacrifices, which according to the tradition of the race are supposed to appease the being or to make him well disposed to man. I call this the religion of fear.
This religion is considerably established, though not caused, by the formation of priestly caste which claims to mediate between the people and the being they fear and so attains a position of power. Often a leader or despot will combine the function of the priesthood with its own temporal rule for the sake of greater security, or an alliance may exist between the interests of political power and the priestly caste.
Q. What motivates man’s actions or thinking?
Direction: Read the given passages carefully and answer the question that follows.
Everything that men do or think concerns either the satisfaction of the needs they feel or the need to escape from pain. This must be kept in mind when we seek to understand spiritual or intellectual movements and the way in which they develop, for feeling and longing are the motive forces of all human striving and productivity – however nobly these latter may display themselves to us.
What, then, are the feelings and the needs which have brought mankind to religious thought and to faith in the widest sense? A moment’s consideration shows that the most varied emotions stand at the cradle of religious thought and experience.
In primitive people, it is, first of all, fear that awakens religious ideas – fear of hunger, of wild animals, of illness, and of death. Since the understanding of causal connections is usually limited on this level of existence, the human soul forges a being, more or less like itself, on whose will and activities depend the experiences which it fears. One hopes to win the favor of this being, by deeds and sacrifices, which according to the tradition of the race are supposed to appease the being or to make him well disposed to man. I call this the religion of fear.
This religion is considerably established, though not caused, by the formation of priestly caste which claims to mediate between the people and the being they fear and so attains a position of power. Often a leader or despot will combine the function of the priesthood with its own temporal rule for the sake of greater security, or an alliance may exist between the interests of political power and the priestly caste.
Q. Choose the antonym for 'latter'.