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परिभाषा

अलंकार वे साहित्यिक तत्व होते हैं जो भाषा या काव्य की सुंदरता को बढ़ाते हैं और उसके अर्थ को अधिक प्रभावशाली बना देते हैं। हिंदी साहित्य में, साहित्यकारों ने अलंकारों की तुलना स्त्री के आभूषणों से की है।

अलंकार का इतिहास

  • मनुष्य शुरुआत से ही सौंदर्य-प्रेमी रहा है, और जीवन के हर क्षेत्र में चीजों को अधिक सुंदर बनाने का प्रयास करता आया है। हिंदी साहित्य में अलंकार की शुरुआत इसी सौंदर्य-प्रेम की प्रवृत्ति का परिणाम है।
  • यदि इंसानी स्वभाव पर ध्यान दें, तो दैनिक जीवन में सौंदर्य की ओर आकर्षण के कई उदाहरण मिलते हैं, जैसे बच्चे खेल और खिलौनों के प्रति, युवा सुंदरता के प्रति, और भ्रमण-प्रेमी प्राकृतिक स्थलों के प्रति आकृष्ट होते हैं।
  • मानव की इच्छा केवल सौंदर्य तक सीमित नहीं, बल्कि उसकी वृद्धि की खोज भी जारी रहती है। अपने परिवेश, वेश-भूषा और निवास को सुंदर बनाने का प्रयास हर युग में होता आया है। इसी प्रवृत्ति ने सदियों पहले संस्कृत भाषाविदों और हिंदी कवियों को अलंकार की रचना करने की प्रेरणा दी। तब से काव्यों में अलंकारों का प्रयोग साहित्य को अधिक सुसज्जित बनाने के लिए किया जाने लगा।

अलंकार का शाब्दिक अर्थ

  • अलंकार शब्द दो शब्दांशों के योग से बनता है – ‘अलं’ + ‘कृ’। अतः अलंकार से तात्पर्य है – जो आभूषित करता हो।
  • अलंकार का शाब्दिक अर्थ है – आभूषण।  यह एक हिन्दी भाषा का शब्द है, इसकी उत्पत्ति संस्कृत के ‘अलंकारः’ शब्द से हुई है।

अलंकार क्या हैं 

  • काव्य या भाषा की सुंदरता बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहा जाता है। ये शब्दों को सजाकर वाक्यों को सुसज्जित करते हैं और उनके अर्थ का प्रभाव बढ़ा देते हैं। हिंदी साहित्य में साहित्यकार भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग लंबे समय से कर रहे हैं।
  • जिस तरह स्त्रियों के आभूषण और सौंदर्य प्रसाधन उनकी सुंदरता को निखारते हैं, उसी प्रकार वाक्यों में अलंकारों का प्रयोग काव्य की शोभा बढ़ा देता है।
  • संस्कृत अलंकार संप्रदाय के संस्थापक आचार्य दंडी ने कहा था,
    काव्यशोभा करान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते।
    अर्थात, साहित्य के वे तत्व जो काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, उन्हें अलंकार कहा जाता है।

अलंकार के प्रकार  

काव्य-शास्त्रियों के अनुसार सैंकड़ों अलंकार होते हैं। इसलिए इनकी वास्तविक संख्या बता पाना मुश्किल है। यही कारण है कि आधुनिक युग के पाठ्यक्रम में सिर्फ कुछ मुख्य अलंकारों को ही शामिल किया गया है।
इन मुख्य अलंकारों का अध्ययन आज के समय के लिए काफी है। आइये देखते हैं कि वो विशेष अलंकार कौन-कौन से हैं, जिससे हम अलंकार के प्रकार (भेद) और प्रयोग को समझ सकें।

शब्दालंकार

यदि किसी काव्य या साहित्य के वाक्यों को विशेष शब्दों से अलंकृत किया जाता है, तो अलंकृत करने वाले उन कारकों को शब्दालंकार कहा जाता है। ऐसे वाक्यों में शब्दों का प्रयोग सांस्कृतिक शैली में किया जाता है। शब्दालंकार सदैव शब्दों पर आधारित होते हैं। यही कारण है कि यदि ऐसे वाक्यों में शब्द बदल दिये जाएँ, तो अलंकार का प्रभाव खत्म हो जाता है। यदि ‘शब्द’ को व्याकरणीय शैली से समझा जाए, तो शब्द के दो रूप होते हैं – ध्वनि एवं अर्थ। शब्दालंकार में अर्थ की नहीं बल्कि ध्वनि की महत्ता होती है। इसलिए इस अलंकार से शब्दों की संगीतात्मकता या वर्णों के लय का प्रभाव देखने को मिलता है।
जैसे –

  • कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
  • वा खाये बौराय नर, वा पाये बौराय।।
  • भुजबल भूमि भूप बिन किन्ही।

शब्दालंकार के कितने प्रकार हैं ?

(1) अनुप्रास अलंकार: अनुप्रास शब्द दो शब्दांशों से मिल कर बना है – अनु (बार-बार) + प्रास (वर्ण)। अर्थात जिस वाक्य में वर्णों की आवृति बार-बार होने से शब्दों की सुंदरता बढ़ती है, वहाँ प्रयोग हुए अलंकार को अनुप्रास अलंकार कहा जाता है।
जैसे –

  • विमल वाणी ने वीणा ली , कमल कोमल कर में सप्रीत।
  • चारुचंद्र की चंचल किरणें , खेल रही है जल थल में।

(2) यमक अलंकार: जब किसी वाक्य में समान शब्दों की बार-बार आवृति होती है, लेकिन उनके अर्थ भिन्न होते हैं तो उन्हें यमक अलंकार कहा जाता है। ऐसे अलंकारों के प्रयोग से एक ही शब्द का कई बार प्रयोग के बावजूद, हर बार उनके मायने अलग निकलते हैं।
जैसे –

  • कहै कवि बेनि बेनि व्याल की चुराई लीनी।
  • काली घटा का घमंड घटा।

(3) श्लेष अलंकार: जब किसी वाक्य में प्रयुक्त एक ही शब्द में कई अर्थ छिपे होते हैं, तो उसे श्लेष अलंकार कहा जाता है। इस अलंकार में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिसके एक से अधिक अर्थ होते हैं।
जैसे –

  • रहिमन पानी राखिए , बिन पानी सब सून।
  • पानी गए न ऊबरे , मोती मानुष चून।
    (पानी = सम्मान या जल)

(4) वक्रोक्ति अलंकार: ‘वक्रोक्ति’ दो शब्दों से मिल कर बना है – ‘वक्र + उक्ति’ अर्थात ‘टेढ़ी बात’। कुछ वाक्यों में जब वक्रोक्ति अलंकार का प्रयोग होता है तो उन वाक्यों के अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए भिन्न हो जाते हैं। ऐसे वाक्यों में वक्ता कुछ और कहना चाहता है लेकिन सुनने वाला उसका मतलब कुछ और समझ लेता है।
जैसे –

  • एक कह्यौ ‘वर देत भव, भाव चाहिए चित्त’।
  • सुनि कह कोउ ‘भोले भवहिं भाव चाहिए ? मित्त’ ।।

ऐसे वाक्यों में शब्द और अर्थ दोनों में वक्रोक्ति होती है, इसलिए कुछ विद्वानों में यह चर्चा चलती रहती है कि यह शब्दालंकार का रूप है या अर्थालंकार का!

(5) वीप्सा अलंकार: सम्मान, आश्चर्य, घृणा या डर जैसे भावों को व्यक्त करने के लिए या कथन में रोचकता लाने के लिए एक समान शब्दों को दुहराया जाता है तो उसे वीप्सा अलंकार कहा जाता है।
जैसे –

  • फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज।
  • मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।

(6) प्रश्न अलंकार: यदि कथन में प्रश्न काव्य या पद्द के रूप में हों, तो उसे प्रश्न अलंकार  कहते हैं। कविताओं के बीच में हमें ये अलंकार अक्सर देखने को मिलते हैं
जैसे –

  • उसके आशय की थाह मिलेगी किसको,
  • जन कर जननी ही जान न पाई जिसको?

अर्थालंकार

काव्य में अर्थ को अलंकृत करने वाले तत्वों को अर्थालंकार कहा जाता है। ऐसे काव्यों या वाक्यों में अलंकार शब्द के बजाय अर्थ पर आश्रित होते हैं। इसलिए, यदि शब्द बदल भी दिये जायें तो भी अलंकारत्व को कोई क्षति नहीं होती है।
अर्थालंकार के कितने प्रकार (भेद) हैं?
विभिन्न समय (16-17वीं सदी) के भाषाविदों और कवियों ने अर्थालंकार के 35 से लेकर 115 प्रकारों ( या रूपों) की विवेचना की है।
आज के समय में कुछ लोग अर्थालंकार के प्रथम 3 ही प्रकारों की चर्चा करते हैं। लेकिन वास्तव में, आधुनिक व्याकरण में अर्थालंकार के 7 प्रकारों का अध्ययन किया जाता है।

(1) उपमा अलंकार: जब दो भिन्न वस्तुओं के समान गुण के कारण, उनकी समानता बतायी जाती है तो वहाँ उपमा अलंकार का प्रयोग होता है। 
जैसे –

  • समय घोड़े की गति-सा भागा जा रहा था।
    (उपमेय = समय । उपमान = घोड़े की गति)

(2) रूपक अलंकार: जब दो भिन्न वस्तुओं में समान गुण होते हैं और उनकी उपमा भी दी जाती है। लेकिन उपमेय को उपमान के जैसा नहीं बल्कि वही बताया जाता है, तो वहाँ रूपक अलंकार का प्रयोग होता है। 
जैसे –

  • पायो जी मैंने राम-रतन धन पायो।
  • यहाँ पर राम (ईश्वर) को ‘धन के जैसा’ नहीं बल्कि ‘धन’ ही बताया गया है।

(3) उत्प्रेक्षा अलंकार: जब किसी वाक्य में किसी वस्तु की कल्पना उसके संभावित रूप में की जाती है तो वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग होता है। ऐसी कल्पना और विवेचना में न तो पूरी तरह संदेह होता है और न ही पूरी तरह निश्चय। 
जैसे–

  • जान पड़ता है नेत्र देख बड़े-बड़े, हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े।

(4) अतिशयोक्ति अलंकार: यदि किसी वाक्य में किसी चीज का वर्णन काफी बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है या उसकी तुलना ऐसी चीज से की जाती है जो संभव न हो,  तो ऐसे में प्रयुक्त अलंकार को अतिशयोक्ति अलंकार कहा जाता है। 
जैसे–

  • देख लो साकेत नगरी है यही। स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।

(5) पुनरुक्ति अलंकार: काव्य में जब एक ही शब्द की लगातार आवृति होती है, और उनके अर्थ भी एक समान होते हैं, तो प्रयुक्त अलंकार को पुनरुक्ति अलंकार कहा जाता है। 
जैसे –

  • सूरज है कुछ बुझा-बुझा, भोजन है कुछ जला-जला।

(6) अन्योक्ति अलंकार: काव्य में जब किसी चीज की उपमा दी जाती है, जिसमें उदाहरण वाली चीज प्रत्यक्ष होती है, लेकिन वास्तविक चीज छिपी हुई होती है, तो ऐसे तत्वों को अन्योक्ति अलंकार कहा जाता है। 
जैसे-

  • खोता कुछ भी नहीं यहां पर केवल जिल्द बदली पोथी।

(7) मानवीकरण अलंकार: जब अन्य प्राणियों या निर्जीव चीजों का वर्णन मानवीय रूपों या भावनाओं में किया जाता है, तो ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त अलंकारों को मानवीकरण अलंकार कहा जाता है। 
जैसे –

  • मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
  • सागर के उर पर नाच नाच करती है, लहरें मधुर गान।

अलंकार का महत्व

  • काव्य-शास्त्र में अलंकारों का विशेष महत्व प्रारंभिक काल से ही रहा है। संस्कृत के साथ-साथ, हिन्दी के विद्वानों ने भी काव्यों में अलंकारों को प्रमुख स्थान दिया है।
  • आधुनिक काल में अलंकारों का प्रयोग घटने से भाषा में उदासीनता आ गई थी। लेकिन हाल के वर्षों में, हिन्दी साहित्यकारों और कवियों ने इसमें फिर से रुचि दिखाते हुए काव्यों की शोभा और सौंदर्य को पुनः स्थापित किया है।
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FAQs on अलंकार - BPSC General Hindi - BPSC (Bihar)

1. अलंकार का क्या महत्व है और यह कविता या साहित्य में कैसे योगदान करता है ?
Ans. अलंकार का महत्व साहित्य में उसकी सुंदरता और भावनात्मक गहराई को बढ़ाने में है। यह शब्दों को सजाने और उनके अर्थ को गहराई देने का कार्य करता है। अलंकारों का उपयोग करके लेखक पाठक के मन में भावनाएँ और चित्र उत्पन्न करता है, जिससे कविता या गद्य अधिक आकर्षक और प्रभावशाली बनता है।
2. अलंकार के प्रमुख प्रकार कौन-कौन से होते हैं ?
Ans. अलंकार के प्रमुख प्रकार मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित होते हैं: शब्दालंकार और अर्थालंकार। शब्दालंकार में उन अलंकारों का समावेश होता है जो शब्दों की विशेषताओं पर आधारित होते हैं, जैसे अनुप्रास, रूपक आदि। वहीं, अर्थालंकार उन अलंकारों को संदर्भित करता है जो अर्थ के आधार पर होते हैं, जैसे उपमा, अतिशयोक्ति आदि।
3. अलंकार का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
Ans. अलंकार का शाब्दिक अर्थ "सजावट" या "सौंदर्य" है। यह एक ऐसा तत्त्व है जो किसी रचना की रूप-रेखा या अर्थ को सुसज्जित और आकर्षक बनाता है। साहित्य में अलंकार का प्रयोग रचनाओं को और भी मनमोहक और प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है।
4. अलंकार का इतिहास क्या है और यह किस प्रकार विकसित हुआ ?
Ans. अलंकार का इतिहास प्राचीन संस्कृत साहित्य से जुड़ा हुआ है, जहां इसे काव्य की एक महत्वपूर्ण विशेषता माना जाता था। समय के साथ, विभिन्न काव्य परंपराओं और शैलियों ने अलंकारों के उपयोग में विविधता लाई। भारतीय काव्यशास्त्र में अलंकारों का उल्लेख सबसे पहले काव्यशास्त्र के ग्रंथों में किया गया, जैसे कि "काव्यदर्पण" और "साहित्यदर्पण"।
5. क्या अलंकार केवल कविता में ही उपयोग होते हैं या गद्य में भी ?
Ans. अलंकार केवल कविता में ही नहीं, बल्कि गद्य में भी उपयोग होते हैं। गद्य में भी लेखक अपनी रचनाओं को अधिक आकर्षक और अर्थपूर्ण बनाने के लिए अलंकारों का सहारा ले सकते हैं। यह पाठकों के लिए गद्य को अधिक रोचक और मनमोहक बनाता है, जिससे विचार और भावनाएँ बेहतर तरीके से प्रस्तुत होती हैं।
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