कविता का सार
प्रस्तुत कविता ‘गीत-अगीत’ में मौन और मुखर अभिव्यक्तियों में कौन अधिक सुंदर है, इस प्रश्न को कवि ने पाठक के सामने रखा है। इस कविता में प्रकृति के सौंदर्य के अतिरिक्त पशु-पक्षियों के स्नेह व ममत्व तथा मानवीय राग-अनुराग का भी सुंदर चित्राण हुआ है। कवि के अनुसार नदी लगातार बहती हुई कलकल स्वर में अपने
सुख-दुख की गाथा अपने तटों को सुनाती चलती है, परंतु तट पर शोभायमान गुलाब अपने मन-ही-मन सोचता है कि अगर विधाता ने उसे भी स्वर दिया होता तो वह भी पतझड़ के सपनों का गीत संसार को सुनाता। उसके हृदय का गीत मौन है। इसी प्रकार प्रकृति की सुनहरी धूप की किरणों के स्पर्श से शुक अनायास गा उठता है जबकि शुकी अपने घोंसले में अंडों को सेती हुई उस गान को सुनकर भावविभोर हो जाती है।
कवि को नदी के बहाव में गीत के स्वर सुनाई देते हैं और ग्वालबाल के आल्हा गान में तो सुर व स्वर हैं ही। उधर उसकी प्रेमिका उसके गीत से आकृष्ट हो बरबस वहाँ पहुँच जाती है और नीम की छाया में खड़ी होकर उसके प्रेम-गीत की एक कड़ी बनने का सपना देखने लगती है। उसके हृदय में मौन गीत है। अगीत का अर्थ है वह गीत जो गाया नहीं जा रहा। इस प्रकार कवि पाठकगण से बार-बार यह पूछते हैं कि गीत-अगीत ‘मुखर एवं मौन गीत’ में से कौन-सा अधिक सुंदर है।
कवि परिचय
रामधारी सिंह दिनकर
इनका जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में 30 सितम्बर 1908 को हुआ। वे सन 1952 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किये गए। भारत सरकार ने इन्हें ‘ पद्मभूषण ’ अलंकरण से अलंकॄत किया। दिनकर जी को ‘ संस्कृति के चार अध्याय ’ पुस्तक पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।अपनी काव्यकृति ‘ उर्वशी ’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दिनकर ओज के कवि माने जाते हैं। दिनकर की सबसे बड़ी विशेषता है अपने देश और युग के प्रति सजगता।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ - हुँकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी परशुराम की प्रतीक्षा, उर्वशी,और संस्कॄति के चार अध्याय।
कठिन शब्दों के अर्थ