कविता का सार
प्रस्तुत कविता श्री राजेश जोशी जी द्वारा रची गई है। इस कविता का प्रतिपाद्य बाल मज़दूरी तथा बाल श्रम है। कवि ने बाल मज़दूरी के कारण बच्चों से उनका बचपन छिन जाने की पीड़ा को जताने का प्रयास किया है। कवि यहाँ उन सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों की ओर हम सबका ध्यान आकषिर्त कराना चाहते हैं जिनके कारण बच्चे अपना बचपन खो देते हैं। उनकी शिक्षा नहीं हो पाती तथा वे बाल मज़दूरी करने पर विवश हो जाते हैं।
कवि बताना चाहते हैं कि आर्थिक तंगी के कारण बच्चों को मजदूरी करनी पड़ती है। उन्हें सर्दी के समय में सवेरे कोहरे में ही काम पर जाना पड़ता है। उनके सामने कौन.सी समस्या है? केवल इतना सोचना और कहना ही पर्याप्त नहीं है। न ही कोई भयंकर बात है। बस सोचना यह है कि बच्चे काम पर क्यों जाते हैं किंतु इस प्रश्न का उत्तर भी समाज के पास नहीं है। बहुत बुरी बात है कि बच्चों को खेलने.खाने तथा मौज.मस्ती के समय मजदूरी करनी पड़ती है। कवि पूछते हैं उिनके हाथों के खिलौने किसने छीन लिए क्या उनकी रंग-बिरंगी किताबें काले पहाड़ के नीचे दब गई हैं उनके लिए बना मदरसा क्या किसी भूकंप में ढह गया? जो वे पढ़ने नहीं जाते क्या खेलने के स्थान बाग.बगीचे, आँगन आदि सभी खत्म हो गए जो उन्हें खेलने को नहीं मिलता। नहीं ऐसा कुछ नहीं है। सब कुछ मौजूद है किंतु फिर भी अनेक बच्चे सड़कों पर मज़दूरी करने जाते हैं। यही आश्चर्य है। यही विडंबना है। कवि कहना चाहते हैं कि सभी लोग मिलकर ऐसा कुछ महान कार्य करें जिससे गरीब बच्चे भी पढ़-लिख सकें ताकि उनका भविष्य सुधरे और वे भी खुश हों।
कवि परिचय
राजेश जोशी
इनका जन्म सन 1946 में मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ। उन्होंने पत्रकारिता, अध्यापन कार्य भी किया। इन्होने कविताओं के अलावा कहानियाँ, नाटक, लेख, और टिप्पणियाँ भी लिखीं। उनकी कविताएँ गहरे सामाजिक अभिप्राय वाली होती हैं।
प्रमुख कार्य
काव्य संग्रह - एक दिन बोलेंगे पेड़, मिटटी का चेहरा, नेपथ्य में हंसी, और दो पंक्तियों के बीच।
पुरस्कार - माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन का सिखर सम्मान, और साहित्य अकादमी पुरस्कार।
कठिन शब्दों के अर्थ