अधोदत्तेषु वाक्येषु विभक्ति-प्रयोगम् अवलोकयत। [नीचे दिए गए वाक्यों में विभक्ति का प्रयोग देखिए। Examine the use of case (विभक्ति) in the sentences given below.]
(क)
1. अहं कलमेन लिखामि।
2. छात्रा: पठनाय गच्छन्ति।
3. पत्राणि वृक्षात् पतन्ति।
(ख)
1. सीता रामेण सह वनम् अगच्छत्।
2. सूर्याय नम:।
3. बाल: गृहात् बहि: क्रीडति।
उपरिलिखित वाक्यों में, रेखांकित शब्दों में लगी विभक्ति का क्या कारण है? आइए समझें। (Let us understand the use of विभक्ति, in the words underlined, in the above sentences.) दोनों खण्डों में वाक्य-संख्या (1) में तृतीया विभक्ति, वाक्य-संख्या (2) में चतुर्थी तथा वाक्य-संख्या (3) में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग हुआ है, किन्तु प्रयोग का कारण भिन्न है।
(क)
पदम् |
विभक्ति: |
विभक्ति:/ कारकम् |
विभक्ति-नाम |
1. कलमेन |
तृतीया |
करण-कारकम् |
कारक-विभक्ति: |
2. पठनाय |
चतुर्थी |
सम्प्रदान-कारकम् |
कारक-विभक्ति: |
3. वृक्षात् |
पञ्चमी |
अपादान-कारकम् |
कारक-विभक्ति: |
(ख)
1. रामेण |
तृतीया |
सह योगे तृतीया |
उपपद-विभक्ति: |
2. सूर्याय |
चतुर्थी |
नम: योगे चतुर्थी |
उपपद -विभक्ति: |
3. गृहात् |
पञ्चमी |
बहि: योगे पञ्चमी |
उपपद-विभक्ति: |
उपरिलिखित वाक्यों से स्पष्ट है कि विभक्ति का प्रयोग दो बातों पर आधारित है–
1. कारक
2. उपपद
वाक्य में प्रयुक्त शब्द का, वाक्य में आई क्रिया से जो सम्बन्ध होता है, उसके अनुसार शब्द में जो विभक्ति लगती है, उसे कारक विभक्ति कहते हैं( यथा—क्रिया के कर्ता में प्रथमा, क्रिया के कर्म में द्वितीया इत्यादि।
जो विभक्ति, वाक्य में प्रयुक्त किसी उपपद (पद-विशेष) के कारण लगती है, वह उपपद-विभक्ति कहलाती है( यथा—‘सह’ के योग में तृतीया, ‘नम:’ के योग में चतुर्थी आदि।
कारक-विभक्तिः
1. कत्र्ता कारक—(Nominative Case)
राधिका गच्छति। —राधिका—कत्र्ता—प्रथमा विभक्ति:
कत्र्ता = वाक्य में आई क्रिया को करने वाला (Agent of the action /Subject of the sentence)
2. कर्म कारक—(Accusative Case)
राधिका विदेशं गच्छति। —विदेशम्—कर्म—द्वितीया विभक्ति:
कर्म = वाक्य में आने वाली क्रिया का कर्म (Object of action in the sentence)
3. करण कारक—(Instrumental Case)
सा वायुयानेन गच्छति। —वायुयानेन—करण—तृतीया विभक्ति:
करण = क्रिया का साधन, उपकरण (Instrument of the action.)
(That for which/whom an action is done/Purpose of the action.)
5. अपादान कारक —(Ablative Case)
सा गृहात् गच्छति। —गृहात्—अपादान—पञ्चमी विभक्ति:
अपादान = क्रिया का स्रोत जहाँ से (क्रिया के करने अथवा होने में) पृथक् हुआ जाता है। (Source of action Point of separation in the course of an action.)
6. सम्बन्ध कारक —(Genitive Case)
राधिका भारतस्य नागरिका। —भारतस्य—सम्बन्ध—षष्ठी विभक्ति:
सम्बन्ध = सम्बन्ध, रिश्ता( (Relationship)
7. अधिकरण कारक —(Locative Case)
सा अमेरिका–देशे पठिष्यति—अमेरिकादेशे—अधिकरण—सप्तमी विभक्ति:
अधिकरण = क्रिया का आधार/स्थान, समय आदि—(Location of the action in respect of place, time etc.)
उपपद-विभक्तिः
जो विभक्ति किसी उपपद (पद-विशेष) के योग में लगती है, उसे उपपद-विभक्ति कहते हैं—
यथा—रामेण सह (तृतीया)( परिश्रमं विना (द्वितीया)( अलं चिन्तया (तृतीया)
द्वितीया— प्रति, विना, परित:, उभयत:, अभित: इत्यादि के योग में—
1. अर्णव: गृहं प्रति अगच्छत्।
2. अहं मित्रं विना न क्रीडामि।
3. द्वीपम् परित: जलम् अस्ति।
4. मार्गम् उभयत: भवनानि सन्ति।
5. ग्रामम् अभित: वृक्षा: सन्ति।
*षष्ठी विभक्ति वाले पद का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे किसी शब्द से होता है, क्रिया से नहीं। अत: कुछ वैयाकरण सम्बन्ध कारक को कारक नहीं मानते।
तृतीया— अलम्, सह, विना इत्यादि के योग में—
1. अलं कोलाहलेन।
2. दीपिका भ्रात्रा सह गमिष्यति।
3. रामेण विना सीता अयोध्यायां न वसति।
चतुर्थी— अलम्,* नम:, स्वाहा, स्वस्ति इत्यादि के योग में—
1. राम: रावणाय अलम्।
2. देवेभ्य नम:।
3. अग्नये स्वाहा।
4. सर्वेभ्य: स्वस्ति।
पञ्चमी— पूर्वम्, अनन्तरम्, बहि:, ऋते, विना इत्यादि के योग में—
1. ग्रामात् बहि: देवालय: अस्ति।
2. भोजनात् अनन्तरं जनक: भ्रमणाय गच्छति।
3. भोजनात् पूर्वम् स: हस्तौ प्रक्षालयति।
4. अरविन्दात् ऋते सर्वे उत्तीर्णा:।
5. परिश्रमात् ऋते विना सफलता न लभ्यते।
षष्ठी— उपरि, अध:, पश्चात्, पुरत:, पृष्ठत: इत्यादि के योग में—
1. भवनस्य उपरि राष्ट्रध्वज: शोभते।
2. भूमे: अध: जलम् अस्ति।
3. भोजनस्य पश्चात् अहं विश्रामं करोमि।
4. गृहस्य पुरत: रम्या वाटिका।
5. विद्यालयस्य पृष्ठत: उन्नता: वृक्षा: सन्ति।
सप्तमी— निपुण, कुशल, प्रवीण, विश्वास, स्नेह इत्यादि के योग में—
1. दीप्ति: नृत्यकलायां निपुणा।
2. राहुल: चित्रकलायां प्रवीण:।
3. राहुले अध्यापकस्य विश्वास: अस्ति।
4. मातु: स्नेह: पुत्रे अस्ति।
संस्कृत भाषा में कुछ धातुएँ ऐसी हैं जिनके योग में विशेष विभक्ति के प्रयोग का प्रावधान (नियम) है। निम्नलिखित वाक्यों को देखिए। (In Sanskrit there are a few roots which require the use of a particular विभक्ति. Examine the sentences given below.)
(क)
1. वानर: वृक्षम् आरोहति। (आ + रुह्—द्वितीया)
2. मनु: मोहनम् कलमं याचते। (याच् — द्वितीया)
3. अध्यापिका अरविन्दं प्रश्नं पृच्छति। (प्रच्छ् — द्वितीया)
4. रावण: सीतां लङ्कां नयति। (नी—द्वितीया)
5. सैनिक: देशम् रक्षति। (रक्ष्—द्वितीया)
6. भक्त: ईश्वरं भजति। (भज्—द्वितीया)
* सामथ्र्य इति अर्थे अलम् योगे चतुर्थी प्रयुज्यते, निषेधार्थे अलं योगे तृतीया। सामथ्र्य के अर्थ में ‘अलं’ के योग में चतुर्थी, निषेध (मना करने) के अर्थ में तृतीया।
*याच् तथा प्रच्छ् धातु द्विकर्मक हैं अर्थात् इन धातुओं के योग में दो कर्म आते हैं। ऐसी और भी कई धातुएँ हैं। दुह्, पच्, दण्ड्, चि, ब्रू, नी इत्यादि। (याच् and प्रच्छ् take two objects. Besides these two there are other such roots also.)
(ख)
1. पिता पुत्राय क्रुध्यति। (क्रुध्—चतुर्थी)
2. गुरु: शिष्येभ्य: कथां कथयति। (कथ्—चतुर्थी)
3. माता शिशवे क्रीडनकम् यच्छति। (दा—चतुर्थी)
4. बालकाय आम्रम् रोचते। (रुच्—चतुर्थी)
5. सा फलेभ्य: स्पृहयति। (स्पृह्—चतुर्थी)
6. श्रीकृष्ण: अर्जुनाय उपदिशति। (उप + दिश्—चतुर्थी)
(ग)
1. गङ्गा हिमालयात् निर्गच्छति। (नि: + गम्—पञ्चमी)
2. बीजात् वृक्ष: जायते। (जन्—पञ्चमी)
3. मूषक: बिडालात् बिभेति/त्रस्यति। (भी/त्रस्—पञ्चमी)
4. अरुण: अरविन्दात् योग्यतर:। (तुलनायां—पञ्चमी)
5. वयम् अध्यापकात् संस्कृतम् पठाम:। (पठनस्य स्रोत:—पञ्चमी)
(घ)
1. शिष्य: गुरौ विश्वसिति। (वि + श्वस्—सप्तमी)
2. श्रीराम: भ्रातरि स्निह्यति। (स्निह्—सप्तमी)
3. दीनेषु दयस्व (दयां कुरु)। (दय्—सप्तमी)
4. नदीषु गङ्गा श्रेष्ठा। (निर्धारणे सप्तमी)
5. कविषु/कवीनां कालिदास: श्रेष्ठ:। (निर्धारणे सप्तमी/षष्ठी)
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1. कारक-विभक्तिः तथा उपपद-विभक्तिः क्या होती है? |
2. कारक-विभक्तिः तथा उपपद-विभक्तिः क्यों महत्वपूर्ण होती हैं? |
3. कारक-विभक्तिः तथा उपपद-विभक्तिः किस परीक्षा में पूछे जाते हैं? |
4. कारक-विभक्तिः तथा उपपद-विभक्तिः को समझने के लिए कौन-सी भाषाएँ मददगार हो सकती हैं? |
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