UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  नानक (1469-1538 ई.) और मीराबाई (1499-1546 ई.) - धार्मिक आंदोलन, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

नानक (1469-1538 ई.) और मीराबाई (1499-1546 ई.) - धार्मिक आंदोलन, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

नानक (1469-1538 ई.)
 ¯ सिख मत के प्रवर्तक गुरुनानक ने भी कबीर की ही भांति निर्गुण ईश्वर की उपासना का प्रचार किया और हिंदू, मुसलमान, ऊँच-नीच का भाव छोड़कर सभी को अपने मत में दीक्षित किया।
 ¯ प्रारम्भ में दौलत खां लोदी के यहां नौकरी की और 18 वर्ष की आयु में विवाह किया।
 ¯ उनके दो पुत्र भी हुए किंतु गृहस्थ जीवन, राजकीय सेवा और गृह त्यागकर उन्होंने तीस वर्ष की आयु में संन्यास ग्रहण कर लिया।
 ¯ उन्होंने सम्पूर्ण भारत, मध्य एशिया और अरब का भ्रमण किया।
 ¯ उन्होंने अनेक सूफी संतों से भी संपर्क स्थापित किया, जिनमें फरीदउद्दीन गंजशंकर का नाम उल्लेखनीय है।
 ¯ वे निराकार ब्रह्म में आस्था रखते थे, जिसे वे सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, अतुलनीय, अचिंत्य तथा अगम्य मानते थे।
 ¯ उनके अनुसार ईश्वर के प्रति पूर्ण आत्मसमर्पण कर, उसका नाम जपने और सद्व्यवहार से मुक्ति मिल सकती है।

चैतन्य (1486-1533 ई.)
 ¯ चैतन्य का वास्तविक नाम विश्वम्भर था। उनका जन्म नवद्वीप (आधुनिक नदिया, बंगाल) में हुआ था।
 ¯ उन्होंने 15 वर्ष की अल्पावस्था में ही संस्कृत भाषा, साहित्य एवं व्याकरण और तर्कशास्त्र की उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।
 ¯ गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश किया किंतु मन न लगने के कारण गृह त्याग कर देश भ्रमण किया और कृष्ण-चैतन्य नाम धारण किया।
 ¯ कुछ समय तक वृन्दावन में रहे, फिर जगन्नाथपुरी चले गये और शेष जीवन वहीं व्यतीत किया।
 ¯ चैतन्य महाप्रभु ने भगवान कृष्ण की भक्ति और गुरु सेवा पर विशेष बल दिया।
 ¯ उनका विश्वास था कि मनुष्य प्रेम, भक्ति, नृत्य और संगीत के द्वारा ईश्वर में लीन हो सकता है।
 ¯ वे जातीय भेद-भाव, कर्मकांड तथा अंध-विश्वासों के विरोधी थे।
 ¯ उन्होंने पशु बलि और सुरापान की निंदा की और शुद्धाचरण पर बल दिया।
 ¯ उनके छः प्रमुख अनुयायियों को वृन्दावन का छः गोस्वामी कहा जाता था, जिन्होंने चैतन्य संप्रदाय का विस्तार किया।
 ¯ कुछ लोग तो उन्हें कृष्ण का ही प्रतीक मानने लगे थे फलतः स्वयं चैतन्य की गौरांग महाप्रभु के रूप में पूजा होने लगी।

नामदेव (चैदहवीं शताब्दी)
 ¯ महाराष्ट्र के भक्त संतों में नामदेव का नाम अग्रगण्य है।
 ¯ वे जाति के दर्जी थे। उन्होंने प्रेम और भक्ति का उपदेश देकर जनसाधारण का मस्तिष्क रीति-रिवाज एवं जाति-पाति के बन्धनों से मुक्त किया।
 ¯ प्रारम्भ में उन्होंने सगुणोपासना पर, किंतु बाद में निर्गुणोपासना पर बल दिया।
 ¯ इन्होंने ब्रजभाषा और खड़ी बोली को माध्यम बनाया।
 ¯ इन्होंने भी गुरु की आवश्यकता पर बल दिया।
 ¯ नामदेव ने समाज में प्रचलित अंधविश्वासों, बाह्याडंबरों, मूर्तिपूजा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व का विरोध किया।

सूरदास (1483-1523 ई.)
 ¯ सूरदास भक्ति आंदोलन के सगुण-धारा के कृष्णभक्त संत थे।
 ¯ सूरदास का संबंध वल्लध्भाचार्य की शिष्य परंपरा से था।
 ¯ सूर की तीन कृतियां सर्वाधिक जनप्रिय हैं - सूरसारावली, साहित्यलहरी और सूरसागर।
 ¯ सूर ने ईश्वर के साकार रूप की उपासना की और भगवान कृष्ण को अपना इष्टदेव माना, जिनकी भक्ति में वे सदैव लीन रहे।
 ¯ उन्होंने माधुर्य भाव से प्रेरित होकर राधा सहित कृष्ण की लीलाओं का सजीव चित्रण किया।
 ¯ भक्ति के क्षेत्र में उन्हें ”पुष्टि मार्ग का जहाज“ माना गया है।

मीराबाई (1499-1546 ई.)
 ¯ मीराबाई भक्ति-आंदोलन के महान् संतों में थीं।
 ¯ वे मेड़ता के रतनसिंह राठौर की एकमात्र कन्या थी।
 ¯ उनका जन्म कुदकी ग्राम (मेड़ता जिला) में हुआ था और विवाह 1516 में राणा सांगा के ज्येष्ठ युत्र युवराज भोजराज के साथ सम्पन्न हुआ था, किंतु तीन-चार वर्ष बाद भोजराज की अकस्मात् मृत्यु हो गयी।
 ¯ पिता भी 1527 ई. में खानवा के युद्ध में राणा सांगा की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
 ¯ आपदाओं की झड़ी लगने के बाद वे कृष्ण-भक्ति में लीन हो गयीं।
 ¯ राणा सांगा के छोटे पुत्र और उत्तराधिकारी राणा विक्रमादित्य को यह सहन न हुआ कि सिसौदिया वंश की वधू स्वच्छंदता से साधु-संतों के संपर्क में आये। उसने मीरा को विष का प्याला देकर छुटकारा पाना चाहा किंतु विष का कोई प्रभाव न पड़ा।
 ¯ राज-परिवार के दुव्र्यवहार के संबंध में मीरा ने गोस्वामी तुलसीदास जी से संपर्क भी स्थापित किया।
 ¯ राणा से तनाव उत्पन्न हो जाने पर वे अपने चाचा मेड़ता के सरदार बीरमदेव के घर चली गयीं और तपस्या, कीर्तन, नृत्यादि में भाव-विभोर रहने लगीं किंतु इसी बीच मेड़ता पर जोधपुर के राजा भालदेव का अधिकार हो गया।
 ¯ अतः वे दुःखी होकर वृन्दावन और द्वारका गयीं और अपना शेष जीवन भक्तों की भांति व्यतीत की।
 ¯ 1547 ई. में द्वारका में वे स्वर्ग सिधारीं।
 ¯ मीरा की उपासना ‘माधुर्य भाव’ की थी। उनके इष्टदेव कृष्ण थे, जिनकी भक्ति वे पति रूप में करती थीं और उसी में लीन रहती थीं।
 ¯ मीरा ने अनेक पदों की रचना की, जो सभी भजन हैं। भजन ब्रजभाषा, राजस्थानी और गुजराती में रचे गये हैं।

गोस्वामी तुलसीदास (1497-1523 ई.)
 ¯ तुलसीदास का जन्म राजापुर (जिला बांदा) नामक ग्राम में ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
 ¯ उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था।
 ¯ उनका विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था।
 ¯ गोस्वामी जी ने ईश्वर के सगुण रूप की उपासना की।
 ¯ उन्होंने राम को ब्रह्म और सीता को प्रकृति स्वरूप स्वीकार किया।
 ¯ उन्होंने अवधी और ब्रज भाषा को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया और अरबी, फारसी, बंुदेली और भोजपुरी आदि के शब्दों का भी प्रयोग किया।

दादूदयाल (1544-1603 ई.)
 ¯ इनका जन्म अहमदाबाद में हुआ था।
 ¯ कुछ लोग इन्हें ब्राह्मण और कुछ लोग निम्न जाति का मानते हैं।
 ¯ इन्होंने अजमेर, दिल्ली, आमेर आदि अनेक स्थानों का भ्रमण किया और अंत में नारैना चले गये, जहां उनकी मृत्यु हो गयी।
 ¯ दादू कबीरपंथी थे। इन्होंने निर्गुण पंथ का आश्रय लिया तथा ईश्वर की व्यापकता, गुरु की महिमा और हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।
 ¯ अन्य संतों की भांति इन्होंने भी समाज की कुरीतियों तथा ऊँच-नीच भावना और धार्मिक भेद-भाव का विरोध किया।
 रविदास
 ¯ रविदास चर्मकार थे। उनका जन्म काशी में हुआ था।
 ¯ रैदास कबीर के समकालीन थे। कबीर के प्रभाव से ही उन्होंने ईश्वर के निर्गुण रूप को अपनाया; जाति प्रथा, अस्पृश्यता, ऊँच-नीच, भेद-भाव का विरोध किया तथा व्यक्ति की समानता पर बल दिया।
 ¯ उन्होंने संसार को एक खेल और ईश्वर को इस खेल का संचालक बताया। खेल असत्य है, केवल बाजीगर सत्य है। अतः सांसारिक वस्तुओं का तिरस्कार कर ईश्वर भक्ति में तल्लीन हो जाना चाहिए।

भक्ति आंदोलन का प्रभाव
 ¯ इस आंदोलन के प्रमुख दो उद्देश्य थे। एक तो धर्म सुधार करना जिससे वे इस्लाम का सामना कर सके और दूसरे दोनों धर्मों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित हों।
 ¯ प्रथम उद्देश्य में यह आंदोलन पर्याप्त रूप में सफल रहा क्योंकि उपासना विधि सरल हो गयी और जाति संबंधी नियम उदार हो गये।
 ¯ किंतु यह आंदोलन अपने दूसरे उद्देश्य अर्थात् हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने में असफल रहा।
 ¯ इसके अतिरिक्त इस आंदोलन का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि इससे जन भाषाओं के साहित्य का विकास हुआ क्योंकि अधिकांश सुधारकों एवं संतों ने स्थानीय भाषाओं को ही माध्यम बनाया।

The document नानक (1469-1538 ई.) और मीराबाई (1499-1546 ई.) - धार्मिक आंदोलन, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|676 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on नानक (1469-1538 ई.) और मीराबाई (1499-1546 ई.) - धार्मिक आंदोलन, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. नानक (1469-1538 ई.) और मीराबाई (1499-1546 ई.) कौन थे?
उत्तर: नानक और मीराबाई दोनों ही भारतीय धर्मिक आदिकाव्य और संत थे। नानक सिख धर्म के संस्थापक और संत थे जबकि मीराबाई राजपूताना की रानी और भक्ति संत थी।
2. नानक और मीराबाई के धार्मिक आंदोलन क्या थे?
उत्तर: नानक के धार्मिक आंदोलन का मुख्य उद्देश्य सिख धर्म की स्थापना और धर्मानुसार जीने की शिक्षा थी। उन्होंने अन्य धर्मों के तत्वों को भी सम्मिलित करते हुए एक समरस धर्म की बात की। मीराबाई के धार्मिक आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था अपने प्रेम और भक्ति के माध्यम से भगवान की आराधना करना और सामाजिक बदलाव को प्रोत्साहित करना।
3. नानक और मीराबाई के इतिहास क्या है?
उत्तर: नानक ने 15वीं सदी में जन्म लिया था और उनके जन्मस्थान पाकिस्तान के नंदीपुर गांव में है। उन्होंने नानकी पंथ की स्थापना की और अपने धर्मिक वचनों को गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में संकलित किया। मीराबाई राजपूताना की रानी थीं और उनका जन्मस्थान मेड़ता, राजस्थान में है। उन्होंने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अद्भुत प्रेम और आराधना के लिए प्रसिद्ध हुईं।
4. नानक और मीराबाई के धार्मिक आंदोलन किस युग में थे?
उत्तर: नानक और मीराबाई दोनों के धार्मिक आंदोलन मध्यकालीन युग में थे। यह युग 5वीं से 15वीं सदी तक चला था और उस समय कई सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक परिवर्तन हुए थे।
5. नानक और मीराबाई के धार्मिक आंदोलन का महत्व क्या है?
उत्तर: नानक के धार्मिक आंदोलन का महत्व यह है कि उन्होंने एक समरस धर्म के विचार को प्रमुखता दी और सिख धर्म की स्थापना की। उन्होंने सभी लोगों को एक समान अवस्था में देखने की बात कही। मीराबाई के धार्मिक आंदोलन का महत्व यह है कि उन्होंने युगान्तर में महिला भक्तों के लिए एक प्रेरणास्रोत के रूप में कार्य किया और महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए प्रोत्साहित किया।
398 videos|676 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

नानक (1469-1538 ई.) और मीराबाई (1499-1546 ई.) - धार्मिक आंदोलन

,

study material

,

इतिहास

,

mock tests for examination

,

Free

,

इतिहास

,

Previous Year Questions with Solutions

,

ppt

,

यूपीएससी

,

shortcuts and tricks

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

practice quizzes

,

pdf

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Extra Questions

,

यूपीएससी

,

Exam

,

नानक (1469-1538 ई.) और मीराबाई (1499-1546 ई.) - धार्मिक आंदोलन

,

यूपीएससी

,

Viva Questions

,

Summary

,

इतिहास

,

Semester Notes

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Objective type Questions

,

video lectures

,

past year papers

,

MCQs

,

Sample Paper

,

नानक (1469-1538 ई.) और मीराबाई (1499-1546 ई.) - धार्मिक आंदोलन

,

Important questions

;