प्रसतुत पाठ में लेखक ने एक लोककथा का पुनर्सर्जन किया है। सामाजिक सरोकारों से युक्त यह कथा राजा और प्रजा के बीच संबंधों का ज्ञान कराती है्र राजतंत्र तथा प्रजातंत्र कह्य बीच अंतर समझने में यह कहानी बहुत ही सहायक सिद्ध होती है। एक नन्ही-सी गौरैया के माध्यम सम्पूयर्ण मानवजाति को कर्तव्यनिष्ट होने क लिए प्रेरित कर रहा है
एक गवरइया (मादा गौैरैया) और गवरा (नर गौरैया) का संबंध बहुत ही घनिष्ठ था। ह्लद्मह्य सदैव साथ-साथ उठते-बैठते, सोते-जागते, हँसते-रोते थे । एक शाम गवरइया ने गवरे से कहा, देखो, आदमी कैसे रंग-बिरंगे कपड़े पहनता है? उस पर कितना अच्छा लगता है।गवरे ने तुरंत विरोध करते हुए कहा कि कपड़े पहनने से आदमी बदसूरत लगने लगता है। उल्टे उसकी खूबसूरती ढँक जरूर जाती है। गवरइया ने कहा, ''आदमी, मौसम की मार से बचने के लिए कपड़े पहनता है। तब कपड़े का विरोध करते हुए गवरे ने कहा, ''कपड़े पहनने से आदमी की जाड़ा, गरमी, बरसात सहने की शक्ति जाती रहती है। कपड़ा पहनते ही उसकी है सियत का पता चल जाता है। आदमी-आदमी में सत्तरिये भेद समझ मैं आने लगता है । वह कपड़े पहनकर लाज ही नहीं ढँकता, काम करनेवाले हाथ-पैर भी ढँक लेता है। सिर की लटें टोपी से ढँक लेता है। हम तो नंगे ही सही। गवरइया बोली, ''आदमियों के सिर पर टोपी कितनी अच्छी लगती है। मेरद्म भी जी टोपी पहनने को करता है। गवरे ने कहा, लतू टोपी कहाँ पाएगी? टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है और अपनी टोपी सलामत रखने के लिए अनेस्र को टोपी पहनानी पड़ती है। तू इस चक्कर में पड़ ही मत।
गवरा तनिक समझदार था, पर गवरइया जिददी और धुन की पक्की स्नद्मद्ध। अगले दिन जब वे प्रतिदिन की तरह दाना चुगने निकले तो घूरे पर उन्हें रुई का .फाहा मिल गया। टोपी का जुगाड़ मिलते ही गवरइया खुशी से पागल हो उठी। गवरे ने उसे समझाते हुए कहा कि लतेरे जैसा ही एक बावरा था, जिसे रास्ते में एक चाबुक मिल गया। वह बावरा चीखने लगा चाबुक तो मिल गया। बाकी बचा तीन घोड़ा-लगाम-जीन। गवरे ने उससे कहा कि लरुई के फाहे से टोपी तक का स.फर ........ तुझे कुछ पता नहीं है।
गवरइया रुई का फाहा लिए धुनिया के पास गई। उसने गवरइया की रुई धुनने से मना कर दिया, पर गवरइया ने उससे कहा कि उसे पूरी मज्जदूरी मिलेगी। उसने धुनिये को आधी रुई मेहनताने में दी। अब धुनिये ने खुशी-खुशी रुई धुन दी। गवरइया धुनी हुई रुई लेकर कोरी के पास गई। वह राजा का काम मु.फ्त में करने जा रहा था। उसने सोचा-यह गवरइया भी मु.फ्त में काम कराएगी, इसलिए उसने उन दोनों को भाग जाने के लिए कहा। गवरइया ने उसे काम के बदले आधा सूत देने की जब बात कही तो कोरी सहर्ष तैयार हो गया। उसने महीन तथा लच्छेदार सूत कात दिया। कता सूत लेकर गवरइया और गवरा बुनकर के पास गए। उसने दोनों को भगाना चाहा कि इनका काम भी मु.फ्त में करना पड़ेगा। गवरइया ने साहस से कहा कि बुनकर आधा तू ले ले और आधा मुझे दे दे। हम सेत- मैत का काम नहीं करवाते। उसने तुरंत गफश और दबीज कपड़ा बुन दिया। उसने आधा कपड़ा अपनी मजदूरी के रूप मैं लेकर आधा गवरइया को दे दिया।
अब तक उनका तीन-चौथाई काम हो चुका था। उत्साह में भरकर दोनों दर्ज़ी के पास पहुँचे, दर्ज़ी उस समय राजा की सातवीं रानी से नौ बेटियों के बाद जन्मे दस रतन के लिए झब्बे तैयार करने जा रहा था। दर्जी यह काम बेगार में कर रहा था। उसने गवरइया से कहा, ''कुछ देना न लेना ......... भर माथे पसीना। उसकी बातें सुनते ही गवरइया ने कहा कि हम बेगार में कुछ नहीं करवाते। इस कपड़े की दो टोपियाँ सिल दे। एक स्वयं ले ले तथा , मुझे दे दे। उसने अत्यंत मनोयोग से दो टोपियाँ सिलकर एक गवरइया को दे दी। गवरइया ऐसी सुंदर टोपी पाकर झूम उठी। उसने टोपी पहनकर गवरे को दिखाया। गवरे ने उससे कहा, ''तू तो रानी लग रही है तो गवरइया ने उससे कहा, लरानी नहीं, राजा कहो राजा। अब कौन राजा मेरा मुकाबला करेगा।
टोपी पहनकर गवरइया उड़ते-उड़ते महल के कंगूरे पर जा बैठी। राजा अधनंगा होकर अपने टहलुए से तेल की मालिश करा रहा था। उस समय राजा का सिर नंगा था। गवरइया ने कहा, यहाँ के राजा के सिर टोपी नहीं है। मेरे सिर पर टोपी है। राजा ने गवरइया के सिर पर इतनी सुंदर टोपी देखी। राजा ने झट अपनी टोपी मँगवा ली और अपने सिर पर रख ली। अब गवरइया ने कहना शुरू किया कि मेरी टोपी में पाँच फुँदने और राजा की टोपी में एक भी नहीं। राजा को शर्म महसूस होने लगी। उसने उस ज्जरा-सी चिडिय़ा की गर्दन मसलने, पंख नोच लेने का आदेश दे दिया। एक सिपाही की गुलेल ने वह टोपी गिरा दी। दूसरे ने वह टोपी लपककर राजा के सामने हाज्जिर कर दी। राजा उसे पैरों से मसलने जा ही रहा था कि उसकी खूबसूरती, कारीगरी का नायाब नमूना देखकर जड़ हो गया। वह सोचने लगा, उसके मुल्क में इतनी सुंदर टोपी किसने बनाई? राजा ने कारीगरों को खोजने का आदेश दिया।
दर्जी को दरबार में हाज्जिर किया गया। राजा ने उससे पूछा, लहमारे लिए इतनी बढिय़ा टोपी क्यों नहीं बनाई? दर्जीं ने कपड़ा उम्दा होने की बात कही। इसी प्रकार शह्यक्त ज्ज्द्मशद्मष् बुनकर, कोरी और धुनिया ने भी दि,। क्रोधित राजा ने पूछा, ''तुम सभी ने हमारे लिए ऐसा काम क्यों नहीं किया? अभयदान का आश्वासन पाकर धुनिये ने कहा, ''महाराज, यह जो भी काम करवाती थी, उसमें आधा हिस्सा दे देती थी। इसके पास कुछ भी न था फिर भी आधा देती थी। इससे उसके काम में
अपने-आप न.फासत आती गई। गवरइया ने कहा, ''राजा, देख ले। इसके लिए पूरे दाम चुकाए हैं। यह बेगार की नहीं है। यह राजा तो कंगाल हो गया है। इससे टोपी भी नहीं जुटती है।
राजा सोच रहा था कि इस पक्षी को खजाना खाली होने का कैसे पता लगा। मंत्री ने हौले से कहा, ''यह मुँहफट तो महाराज की बेज़्ज़ती करके ही दम लेगी। घबराए राजा ने तुरंत उसकी टोपी वापस करने का आदेश दे दिया। सिपाहियों ने उसकी टोपी कंगूरे की ओर उछाल दी। गवरइया ने टोपी पहन ली और कहने लगी, ''डरपोक राजा ने डरकर टोपी वापस कर दी। अब राजा ने इस मुँहफट के मुँह न लगने का निश्चय किया और अपनी टोपी सँभाल ली।
शब्दार्थ—
पृष्ठ : दूजे—दूसरे। परमसंगी—आगे बढ़कर साथ देनेवाले। भिनसार—प्रात:काल। झुटपुटा—सुबह-शाम का अंधकारयुक्त समय। खोंता—घोंसला। फबना—सुंदर लगना। खाक—राख, मिट्ïटी। तपाक— झट से एकदम से। लटजीरा—चिचड़ा, एक पौधा। कुदरती—प्राकृतिक। सुघड़—सुंदर। काया—शरीर। रंगत—रूप। मानुष—मनुष्य। सरापा—सर से पाँव तक। ओझल—गायब हो जाना।
पृष्ठ : सकत—शक्ति, ताकत। ल.फड़ा—मुसीबत। औकात—हैसियत। पोंगापन—बेवकू.फी। ।अपन—अपने। चूक—गलती। टोपी पहनाना—चापलूसी करना। सलामत—सुरक्षित। मामूल—हमेशा की तरह। मुताबिक—के अनुसार। घूरे—कूड़े का ढेर। फाहा—रुई का टुकड़ा।
पृष्ठ : जुगाड़—इंतज्जाम। धर दिया—रख दिया। उम्दा—बेहतर। बावरा—पागल। जीन—घोड़े की पीठ पर रखी जाने वाली गददी। ताउम्र—जीवनभर। धुनिया—रुई को धुनेवाला। मनुहार—प्रार्थना। मिर्जई—जैकेट। .फोकट—मु.फ्त। उज्र—ऐतराज। उजरत—मेहह्वताना। खरी—शुद्ध । मजूरी—मज्जदूरी।
पृष्ठ : कोरी—सूत कातने का काम करनेवाला। बदन—शरीर। धज्जी-धज्जी—बिलकुल फटा हुआ। धुस्सा—मोटी चादर। अनिच्छा—अरुचिपूर्वक। अचकन—लंबा कोट। मल्लार—एक राग। मुलुक— देश। बरधा—बैल। तुरंग—घोड़ा। लगुए-भगुए—पीछे चलनेवाले। मुआवज्जा—हरज़ाना। वाज्जिब—सही। मुकरना—मना करना। माकल—उचित। उकसाना—प्रेरित कर देना। इसरार—आग्रह। अगबग—हैरान होकर। कारिंदे—कर्मचारीगण। मशगूल—व्यस्त।
पृष्ठ : सेत-मैत—मु.फ्त। पसारना—फैलाना। ग.फश—घना। दबीज—मोटा। झब्बे—बच्चे केे कपड़े। बेगार—बिना पारिश्रमिक के। मजूरी—मेहनताना। मूँजी—दुष्ट, कंजूस। मनोयोग—बहुत ध्यान से। जड़ दिए—जमा दिए। वाकई—सचमुच। हुलस—उल्लास। जायजा लेना—निरीक्षण करना। इत्ते सारे—बहुत सारे। कंगूरे—मुँडेर।
पृष्ठ : चौबारा—घर की छत पर बना खुला कमरा। टहलुओं—नौकर। फुलेल—सुगंधित तेल। चंपी—मालिश। फदगुद्ïदी—नन्ही चिडिय़ा।
पृष्ठ : हेठी—नीचता, बेइज्जती। मज्जाल—हिम्मत। पखने—पंख। नायाब—बेजोड़। नगीना टोपी—बहुत ही सुंदर टोपी। हुनरमंद—गुणी, निपुण। वजह—कारण। उम्दा—बेहतर। मानिंद—की तरह।
पृष्ठ : अन्नदाता—मालिक। खमा—क्षमा। न.फासत—सजावट। कंगाल—बहुत ही गरीब। जुटती—एकत्र होना। पाखी—पक्षी। लगान—ज्ज्द्ममीन का शुल्क। लशकरी—सेना। लवाज़िमे—यात्रा की आवश्यकताएँ।
पृष्ठ : हौले से—धीरे से। मुँहफट—बिना सोचे बोलनेवाला।
पाठ में प्रयुक्त मुहावरे
बाज न आना—ज्जरा भी न सुधरना। टाट उलट जाना—राज-पाट छिन जाना। टोपी उछलना—बेइज़्ज़ती होना। ठान लेना—तय कर लेना। मारे खुशी के लोटना—बहुत खुश होना। तार-तार होना—चीथड़े होना। खट मरना—बहुत परिश्रम करना। मंज्जिल मार लेना—लक्ष्य प्राप्त कर लेना। गर्दन मसलना—जान से मार देना। दंग रह जाना—आश्चर्यचकित रहना। जड़ हो जाना—कुछ सोच-विचार न कर पाना। अकबका जाना—हैरान एवं चकित रह जाना। पोल खुलना—भेद प्रकट हो जाना। बेपरदा करना—भेद खोलना |
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1. टोपी क्या होती है और यह हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण होती है? |
2. भारतीय संस्कृति में टोपी का क्या महत्व होता है? |
3. टोपी के अलग-अलग नामों के बारे में बताइए। |
4. टोपी बनाने के लिए कौन से सामग्री इस्तेमाल होती है? |
5. टोपी के बारे में हमारी संस्कृति में क्या संदेश है? |
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