पाठ का सार
लेखक इस पाठ में यह चुनौतीपूर्ण बात कहता है कि हम सभी आकाश, पृथ्वी, सूर्य, चंद्र, तारे, बादल और न जाने कितने तरह की वस्तुओं के वर्णन करते हैं लेकिन कीचड़ का वर्णन कोई नहीं करता क्योंकि लोग कीचड़ को प्रारंभ से ही हेय समझते आए हैं। कीचड़ में पाँव डालना या हाथ से छूना तो दूर, लोग कीचड़ का संर्पक किसी भी रूप में नहीं चाहते हैं। कीचड़ को प्रायः लोग वज्र्य मानते हैं। यहाँ तक कि बुरी संगति या बुरे मित्रों की बात करने में लोग उसकी उपमा कीचड़ से देते हैं।
लेखक कीचड़ की अच्छाई की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहते हैं कि कमल भी कीचड़ में ही खिलते हैं। पूरे देश और पूरी दुनिया को खाद्यान्न भी कीचड़ से ही प्राप्त होता है। कीचड़ में लेखक सौंदर्य के भी दर्शन करते हैं । इसके लिए वे सबसे महत्वपूर्ण स्थान खंभात को मानते हैं, जहाँ मीलों पसरे हुए कीचड़ का अपना सौंदर्य भी है और अपना अस्तित्व भी है। उस पर छोटे पक्षियों के नाखून और अँगूठे के निशान द्रष्टव्य हैं तो कुछ ठोस होने पर जानवरों के पंजों और खुरों के नाखून भी ऐतिहासिक महत्व के हैं। वैसे स्थान में कीचड़ के स्टेटस की बात अगर की जाए तो वह अपने अंदर बड़े-बड़े हाथियों को तो लील ही सकता है, पर्वतों को भी समा सकता है।
लेखक अंत में यह भी आशंका व्यक्त करते हैं कि लोग यह र्तक दे सकते हैं कि चूँकि हीरा कोयले से प्राप्त होता है, इसलिए कोयले का मोल हीरेके बराबर नहीं हो जाता। अगर यह र्तक माना ही जाए, तब तो करोड़ों टन अनाज के कीचड़ से उत्पन्न होने के बाद भी कीचड़ उपेक्षित और घृणा के योग्य ही रह जाएगा।
इस पाठ से हमें एक सीख लेनी चाहिए कि साहित्यकार घिसी-पिटी लीक पर नहीं चलता। वह व्यक्ति प्रखर साहित्यकार माना जाता है जो लीक से हटकर सृजन करता है। यहाँ काका साहब ने गुलाब, कमल, बादल, चंद्रिका आदि के वर्णन से अलग हटकर कीचड़ का वर्णन किया है।
लेखक परिचय
काका कालेलकर
इनका जन्म महराष्ट्र के सतारा नगर में सन 1885 में हुआ। काका की मातृभाषा मराठी थी, उन्हें गुजराती, हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था। गांधीजी के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार में जुड़ने के बाद काका हिंदी में लेखन करने लगे। आजादी के बाद काका जिंदगी भर गांधीजी के विचार और साहित्य के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ - हिमालयोन प्रवास, लोकमाता (यात्रा वृत्तांत), स्मरण यात्रा (संस्मरण), धर्मोदय (आत्मचरित), जीवननो आनंद, अवारनवार (निबंध संग्रह)।
कठिन शब्दों के अर्थ