पाठ का सार
एवरेस्ट विजय के जिस अभियान दल में लेखिका बचेंद्री पाल एक सदस्य थीं, वह उस अभियान दल के साथ 7 मार्च, 1984 को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से रवाना हुईं। इस दल से पूर्व एक दल और काठमांडू के लिए छूट चुका था जो आगे ‘बेस कैंप’ पहुँचकर दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ करता। लेखिका ने उस स्थान का भी जिक्र किया है जिसका नाम नमचे बाज़ार है और जहाँ से एवरेस्ट की प्राकृतिक छटा का बखूबी अवलोकन किया जा सकता है। यहाँ से लेखिका ने भारी ब.र्पफ का बड़ा पूफल (प्लूम) देखा जिसने उन्हें आश्चर्य में डाल दिया। लेखिका का अनुमान था कि वह र्बफ का फूल 10 कि.मी. तक लंबा हो सकता था।
इस अभियान दल के सदस्य 26 मार्च को पैरिस नामक स्थान पर पहुँचे, जहाँ से काफिलों और आरोहियों के दल पर प्राकृतिक आपदा मँडराने लगती है। यह एक संयोग था कि 26 मार्च को अग्रिम दल में शामिल प्रेमचंद पैरिस लौट आए थे। उनसे सूचना मिली कि 6000 मी. की ऊँचाई पर कैंप-1 तक जाने का रास्ता बिलकुल साफ कर दिया गया है। दूसरे-तीसरे दिन पार करके चैाथे दिन दल के सदस्य अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा साउथ कोल पहुँच गए। 29 अप्रैल को 7900 मीटर की उँफचाई पर उन लोगों ने कैंप-4 लगाया। लेखिका 15-16 मई, 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन ल्होत्से की बर्फीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलोन के बने तंबू के कैंप-3 में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे। साउथ कोल कैंप पहुँचने पर लेखिका ने अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। सारी तैयारियाँ होती रहीं, अभियान चलता रहा, पर्वतारोही दल आगे बढ़ता रहा और अंततोगत्वा 23 मई, 1984 को दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच गई।
एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी होकर लेखिका ने गज़ब का अनुभव किया। लेखिका ने उन सूक्ष्म भावों को भी लिपिबद्ध किया, जिन भावों को अभिव्यक्त कर पाना अत्यंत कठिन है। इस सफलता के उपरांत उन्हें बधाइयों का ताँता लग गया। लेखिका ने उस स्थान को फावड़े से काटकर उतना चैड़ा किया, जिस पर वह खड़ी हो सके। वहाँ उन्होंने राष्ट्रध्वज फहराया, आध्यात्मिक दृष्टि से कुछ संक्षिप्त पूजा-अर्चना भी की। विजय दल का वर्णन करते हुए लेखिका ने वर्णनात्मक शैली को इस तरह एकरूप बनाए रखा कि पाठक को इन घटनाओं का वर्णन आँखों देखा दृश्य जैसा लगने लगा।
लेखक परिचय -
बचेंद्री पाल
इनका जन्म सन 24 मई, 1954 को उत्तरांचल के चमोली जिले के बमपा गाँव में हुआ। पिता पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते थे। अत: बचेंद्री को आठवीं से आगे की पढ़ाई का खर्च सिलाई-कढ़ाई करके जुटाना पड़ा। विषम परिस्थितियों के बावज़ूद बचेंद्री ने संस्कृत में एम.ए. और फिर बी. एड. की शिक्षा हासिल की। बचेंद्री को पहाद़्ओं पर चढ़ने शौक़ बचपन से था। पढ़ाई पूरी करके वह एवरेस्ट अभियान – दल में शामिल हो गईं। कई महीनों के अभ्यास के बाद आखिर वह दिन आ ही गया , जब उन्होंने एवरेस्ट विजय के लिए प्रयाण किया।
कठिन शब्दों के अर्थ