पाठ का सार
दांडी कूच की तैयारी के सिलसिले में वल्लभभाई पटेल सात मार्च को ‘रास’ पहुँचे थे। वहाँ लोगों के आग्रह पर पटेल ने जो संक्षिप्त भाषण दिया उसमें उन्होंने कहा ‘‘भाइयो और बहनो, क्या आप सत्याग्रह के लिए तैयार हैं?’’ बस इतना कहते-कहते पटेल गिरफ्ऱ तार कर लिए गए। यह गिरफ्ऱतारी स्थानीय कलेक्टर शिलिडी के आदेश पर हुई थी क्योंकि शिलिडी को पटेल ने ही पिछले आंदोलन के समय अहमदाबाद से भगा दिया था। बोरसद की अदालत में लाए जाने पर पटेल ने जज के सामने अपना अपराध कबूल कर लिया। उन्हें 500 रुपए जुर्माना और तीन महीने की जेल की सज़ा दी गई। उस समय गाँधी जी साबरमती आश्रम में थे, जहाँ उन्हें पटेल की गिरफ्रतारी की सूचना मिली। गाँधी जी इस गिरफ्रतारी से बहुत क्षुब्ध हुए। इस दशा में गाँधी जी ने दांडी कूच की तारीख बदलने की संभावना बताई और अनुमान किया गया कि अभियान 12 मार्च से पहले शुरू हो सकता है।
पटेल की गिरफ्रतारी पर देशभर में प्रतिक्रिया हुई। इस पर मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की‘‘सरदार वल्लभभाई पटेल की गिरफ्ऱतारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता के सिद्धांत पर हमला है। भारत सरकार एक ऐसी नज़ीर पेश कर रही है जिसके गंभीर परिणाम होंगे।’’ गाँधी जी के ‘रास’ पहुँचने के समय वह कानून लागू था, जिसके तहत पटेल को गिरफ्रतार किया गया था। ‘रास’ में गाँधी जी का भव्य स्वागत हुआ था। सत्याग्रही बाजे-गाजे के साथ ‘रास’ में दाखिल हुए। वहाँ गाँधी जी को एक धर्मशाला में ठहराया गया जबकि बाकी सत्याग्रही तंबुओं में रुके। रास की आबादी केवल तीन हज़ार थी लेकिन उनकी जनसभा में बीस हज़ार से ज्यादा लोग थे। अपने भाषण में गाँधी जी ने पटेल की गिरफ्रतारी का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘सरदार को यह सज़ा आपकी सेवा के पुरस्कार के रूप में मिली है। उन्होंने सरकारी नौकरियों से इस्ती़फे का उल्लेख किया और कहा कि ‘‘कुछ मुखी और तलाटी ‘गंदगी पर मक्खी की तरह’ चिपके हुए हैं। उन्हें भी अपने निजी तुच्छ स्वार्थ भूलकर इस्ती़फा दे देना चाहिए।’’ गांधी जी ने फिर कहा ‘‘आप लौग कब तक गावेां को चसूने में अपना योगदान देते रहेगें, सरकार ने तो लटू मचा रखी है उसकी आरे से क्या अभी तक आपकी आखेंँ खलुी नहीं हैं?
सत्याग्रही शाम छह बजे रास से चले और आठ बजे कनकापुरा पहुँचे। उस समय लोग यात्रा से कुछ थके हुए थे और कुछ थकान इस आशंका से थी कि मही नदी कब और कैसे पार करेंगे। नियमों के अनुसार उस दिन की यात्रा कनकापुरा में गाँधी के भाषण के बाद समाप्त हो जानी चाहिए थी लेकिन इसमें परिवर्तन कर दिया गया। यह तय किया गया कि नदी को आधी रात के समय समुद्र का पानी चढ़ने पर पार किया जाए ताकि कीचड़ और दलदल में कम-से-कम चलना पडे़ । रात साढ़े दस बजे भोजन के बाद सत्यागह्री नदी की ओर चले। अँधेरी रात में गाँधी जी को लगभग चार किलोमीटर दलदली शमीन पर चलना पड़ा।
रात बारह बजे महिसागर नदी का किनारा भर गया। पानी चढ़ आया था। गाँधी जी घुटने भर पानी में चलकर नाव पर चढ़े। महात्मा गाँधी, सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू के नाम के नारों से दिशाएँ गूँज उठीं। महीसागर के दूसरे तट पर भी स्थिति इससे कुछ भिन्न न थी। डेढ़ किलोमीटर तक पानी और कीचड़ में चलकर गाँधी जी रात एक बजे उस पार पहुँचे और सीधे विश्राम करने चले गए। गाँव के बाहर नदी के तट पर उनके लिए झोंपड़ी पहले ही तैयार कर दी गई थी। गाँधी जी के पार उतरने के बाद भी तट पर दिये लेकर लोग खड़े रहे। अभी सत्याग्रहियों को भी उस पार जाना था। शायद उन्हें पता था कि रात में कुछ और लोग आएँगे जिन्हें नदी पार करानी होगी।
शब्दार्थ