Class 8 Exam  >  Class 8 Notes  >  संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)  >  पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - कण्टकेनैव कण्टकम्, रुचिरा, संस्कृत, कक्षा - 8

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - कण्टकेनैव कण्टकम्, रुचिरा, संस्कृत, कक्षा - 8 | संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8) PDF Download

पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)
यह कथा पंचतन्त्र की शैली में लिखी गई है। यह लोककथा मध्यप्रदेश के डिण्डोरी जिले में परधानों के बीच प्रचलित है। इस कथा में बताया गया है कि संकट में पड़ने पर भी चतुराई और तत्काल उचित उपाय की सूझ से, उससे निकला (बचा) जा सकता है।

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ
(क) आसीत् कश्चित् चञ्चलो नाम व्याधः। पक्षिमृगादीनां ग्रहणेन सः स्वीयां जीविका निर्वाहयति स्म। एकदा सः वने जालं विस्तीर्य गृहम् आगतवान्। अन्यस्मिन् दिवसे प्रात:काले यदा चञ्चलः वनं गतवान् तदा सः दृष्टवान् यत् तेन विस्तारिते जाले दौर्भाग्याद् एकः व्याघ्रः बद्धः आसीत्। सोऽचिन्तयत्, ‘व्याघ्रः मां खादिष्यति अतएव पलायनं करणीयम्।’ व्याघ्रः न्यवेदयत्-‘भो मानव! कल्याणं भवतु ते। यदि त्वं मां मोचयिष्यसि तर्हि अहं त्वां न हनिष्यामि।’ तदा सः व्याधः व्याघ्रं जालात् बहिः निरसारयत्। व्याघ्रः क्लान्तः आसीत्। सोऽवदत्, ‘भो मानव! पिपासुः अहम्। नद्याः जलमानीय मम पिपासां शमय। व्याघ्रः जलं पीत्वा पुनः व्याधमवदत्, ‘शमय मे पिपासा। साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मि। इदानीम् अहं त्वां खादिष्यामि।’ चञ्चलः उक्तवान्, ‘अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान्। त्वया मिथ्या भणितम्। त्वं मां खादितुम् इच्छसि?’

शब्दार्थ
भावार्थ: 
कश्चित् 
कोई 
व्याधः 
शिकारी, बहेलिया 
ग्रहणेन 
पकड़ने से 
स्वीयाम् 
स्वयं की 
निर्वाहयति स्म 
चलाता था 
विस्तीर्य फैलाकर 
    आगतवान् 
आ गया 
विस्तारिते 
फैलाए गए (में) 
दौर्भाग्यात् 
दुर्भाग्य से 
पलायनम् द्धः 
बँधा हुआ 
पलायनम् 
पलायन करना, भाग जाना 
न्यवेदयत् 
निवेदन किया 
कल्याणम् 
सुख/हित 
मोचयिष्यसि 
मुक्त करोगे/छुड़ाओगे 
हनिष्यामि मारूंगा 
निरसारयत् निकाला 
क्लान्तः 
थका हुआ 
पिपासुः 
प्यासा 
जलमानीय 
पानी को लाकर 
पिपासां 
प्यास 
शमय 
शान्त करो/मिटाओ 
साम्प्रतम् थका हुआ 
बुभुक्षितः 
भूखा 
त्वत्कृते 
तुम्हारे लिए 
आचरितवान् 
व्यवहार किया/आचरण किया 
भणितम् 
कहा 
माम् 
मुझको 


सरलार्थः कोई चंचल नामक शिकारी था। वह पक्षियों और पशुओं को पकड़कर अपना गुजारा करता था। एक बार वह जंगल में जाल फैलाकर घर आ गया। अगले दिन सुबह जब चंचल वन में गया तब उसने देखा कि उसके द्वारा फैलाए गए जाल में दुर्भाग्य से एक बाघ फँसा था। उसने सोचा, ‘बाघ मुझे खा जाएगा, इसलिए भाग जाना चाहिए।’ बाघ ने प्रार्थना की-हे मनुष्य! तुम्हारा कल्याण हो। यदि तुम मुझे छुड़ाओगे तो मैं तुमको नहीं मारूंगा।’ तब उस शिकारी ने बाघ को जाल से बाहर निकाल दिया। बाघ थका था। वह बोला, ‘अरे मनुष्य! मैं प्यासा हूँ। नदी से जल लाकर मेरी प्यास शान्त करो (बुझाओ)।’ बाघ जल पीकर फिर शिकारी से बोला, ‘मेरी प्यास शान्त हो गई है। इस समय मैं भूखा हूँ। अब मैं तुम्हें खाऊँगा।’ चंचल बोला, ‘मैंने तुम्हारे लिए धर्म कार्य किया। तुमने झूठ बोला। तुम मुझको खाना चाहते हो?’

(ख) व्याघ्रः अवदत्, “अरे मूर्ख! क्षुधार्ताय किमपि अकार्यम् न भवति। सर्वः स्वार्थं समीहते।’
चञ्चलः नदीजलम् अपृच्छत्। नदीजलम् अवदत्, ‘एवमेव भवति, जनाः मयि स्नानं कुर्वन्ति, वस्त्राणि प्रक्षालयन्ति तथा च मल-मूत्रादिकं विसृज्य निवर्तन्ते, वस्तुतः सर्वः स्वार्थं समीहते।’
चञ्चल: वृक्षम् उपगम्य अपृच्छत्। वृक्षः अवदत्, ‘मानवाः अस्माकं छायायां विरमन्ति। अस्माकं फलानि खादन्ति, पुनः कुठारैः प्रहृत्य अस्मभ्यं सर्वदा कष्टं ददति। यत्र कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति। सर्वः स्वार्थं समीहते।’


शब्दार्थ 
भावार्थ: 
क्षुधार्ताय 
भूखे के लिए 
अकार्यम् बुरा काम 
समीहते चाहते हैं 
नदीजलम् नदी का जल 
मयि 
मुझ में 
प्रक्षालयन्ति धोते हैं 
विसृज्य 
छोड़कर 
निवर्तन्ते 
चले जाते हैं,लौटते हैं 
उपगम्य 
पास जाकर 
छायायाम् 
छाया में 
विरमन्ति विश्राम करते हैं 
कुठारैः 
कुल्हाड़ियों से 
प्रहृत्य 
प्रहार करके 
ददति 
देते हैं 
छेदनम् 
काटना 
धर्मे 
धर्म में 


सरलार्थ : बाघ बोला-‘अरे मूर्ख! भूखे के लिए कुछ भी बुरा नहीं होता है। सभी स्वार्थ की सिद्धि चाहते हैं।’
चंचल ने नदी के जल से पूछा। नदी का जल बोला, ‘ऐसा ही होता है, लोग मुझमें नहाते हैं, कपड़े धोते हैं तथा मल और मूत्र आदि डाल कर वापस लौट जाते हैं, वास्तव में सब स्वार्थ को ही (सिद्ध करना) चाहते हैं।’
चंचल ने वृक्ष के पास जाकर पूछा। वृक्ष बोला, “मनुष्य हमारी छाया में ठहरते हैं। हमारे फलों को खाते हैं, फिर कुल्हाड़ियों से चोट मारकर हमें सदा कष्ट देते हैं। कहीं-कहीं तो काट डालते हैं। धर्म में धक्का (कष्ट) और पाप (करने) में पुण्य होता ही है।’

(ग) समीपे एका लोमशिका बदरी-गुल्मानां पृष्ठे निलीना एतां वार्ता शृणोति स्म। सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति-‘‘का वार्ता? माम् अपि विज्ञापय।” सः अवदत्-‘अहह मातृस्वसः! अवसरे त्वं समागतवती। मया अस्य व्याघ्रस्य प्राणाः रक्षिताः, परम् एषः मामेव खादितुम् इच्छति।” तदनन्तरं सः लोमशिकायै निखिल कथा न्यवेदयत्। लोमशिका चञ्चलम् अकथयत्-बाढम्, त्वं जालं प्रसारय। पुनः सा व्याघ्रम् अवदत्-केन प्रकारेण त्वम् एतस्मिन् जाले बद्धः इति अहं प्रत्यक्ष द्रष्टुमिच्छामि।।

शब्दार्थ 
भावार्थ:  
समीपे 
पास में
लोमशिका 
लोमड़ी 
बदरी-गुल्मानाम् 
बेर की झाड़ियों के 
पृष्ठे पीछे 
निलीना 
छुपी हुई 
एताम् 
इस (को) 
उपसृत्य 
समीप जाकर 
विज्ञापय बताओ 
अहह 
अरे!
मातृस्वसः 
हे मौसी 
अवसरे 
उचित समय पर 
समागतवती 
पधारी/आई 
रक्षिताः 
बचाए गए 
मामेव 
मुझको ही 
निखिलाम् 
सम्पूर्ण, पूरी 
न्यवेदयत् 
बताई 
बाढम् 
ठीक है, अच्छा 
प्रसारय 
फैलाओ 
केन प्रकारेण 
किस प्रकार से (कैसे) 
बद्धः 
बँध गए 
प्रत्यक्षम् 
अपने सामने (समक्ष) 
इच्छामि 
चाहती हूँ 


सरलार्थ : पास में एक लोमशिका (लोमड़ी) बेर की झाड़ियों के पीछे छिपी हुई इस बात को सुन रही थी। वह अचानक चंचल के पास जाकर कहती है-‘क्या बात है? मुझे भी बताओ।’ वह बोला-‘अरी मौसी! ठीक समय पर तुम आई हो। मैंने इस बाघ के प्राण बचाए, परन्तु यह मुझे ही खाना चाहता है।’ उसके बाद उसने लोमड़ी को सारी कहानी बताई (सुनाई)। लोमड़ी ने चंचल को कहा-‘ठीक है, तुम जाल फैलाओ।’ फिर वह बाघ से बोली-‘किस तरह से तुम इस जाल में बँध (फैंस) गए, यह मैं अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ।’

(घ) व्याघ्रः तद् वृत्तान्तं प्रदर्शयितुं तस्मिन् जाले प्राविशत्। लोमशिका पुनः अकथयत्-सम्प्रति पुनः पुनः कूर्दनं कृत्वा दर्शय। सः तथैव समाचरत्। अनारतं कूर्दनेन सः श्रान्तः अभवत्। जाले बद्धः सः व्याघ्रः क्लान्तः सन् नि:सहायो भूत्वा तत्रे अपतत् प्राणभिक्षामिव च अयाचत। लोमशिका व्याघ्रम् अवदत् ‘सत्यं त्वया भणितम्’ ‘सर्वः स्वार्थं समीहते।’

शब्दार्थ 
भावार्थ:  
तद् 
उस 
वृत्तान्तम् 
पूरी कहानी 
प्रदर्शयितुम् 
प्रदर्शन करने के लिए 
प्राविशत् 
प्रवेश किया 
सम्प्रति 
अब (इस समय) 

कूर्दनम् 
उछल-कूद 
  दर्शय 
दिखाओ 
तथैव 
वैसे ही 
अनारतम् लगातार 
कूर्दनेन कूदने से 
बद्धः 
बँधा हुआ 
सन् 
होता हुआ 
नि:सहायः 
असहाय 
प्राणभिक्षामिव 
प्राणों को भिक्षा की तरह 
भणितम् 
कहा गया 


सरलार्थः बाघ उस बात को बताने (प्रदर्शन) करने के लिए उस जाल में घुस गया। लोमड़ी ने फिर कहा-अब बार-बार कूद करके दिखाओ। उसने वैसे ही किया। लगातार कूदने से वह थक गया। जाल में बँधा हुआ वह बाघ थककर असहाय (निढाल) होकर वहाँ गिर गया और प्राणों को भिक्षा की तरह माँगने लगा। लोमड़ी बाघ से बोली- तुमने सत्य कहा’ ‘सभी अपना हित (स्वार्थ) साधना (पूरा करना) चाहते हैं।’

The document पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - कण्टकेनैव कण्टकम्, रुचिरा, संस्कृत, कक्षा - 8 | संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8) is a part of the Class 8 Course संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8).
All you need of Class 8 at this link: Class 8
14 videos|80 docs|27 tests

Top Courses for Class 8

FAQs on पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - कण्टकेनैव कण्टकम्, रुचिरा, संस्कृत, कक्षा - 8 - संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)

1. कण्टकेनैव कण्टकम् का अर्थ क्या होता है?
उत्तर: "कण्टकेनैव कण्टकम्" शब्दार्थ संस्कृत में "एक ही कण्टक से दूसरा कण्टक ही नष्ट होता है" होता है। इस अर्थ में यह वाक्य विशेष रूप से दो व्यक्तियों के बीच की आपसी बैर को दर्शाता है।
2. रुचिरा शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या होता है?
उत्तर: "रुचिरा" शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है "स्वादिष्ट" या "मधुर"। इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर भोजन या खाने-पीने से संबंधित स्वाद की प्रशंसा के लिए किया जाता है।
3. संस्कृत भाषा किस समय में विकसित हुई थी?
उत्तर: संस्कृत भाषा का विकास लगभग 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक के समय में हुआ था। यह वैदिक संस्कृत, भाषा का एक प्राचीन रूप है और भारतीय धर्म, दर्शन, और साहित्य का मूल आधार है।
4. कण्टकेनैव कण्टकम् को किस काव्य में प्रयोग किया गया है?
उत्तर: "कण्टकेनैव कण्टकम्" वाक्य को भर्तृहरि के काव्य "नीतिशतक" में प्रयोग किया गया है। यह वाक्य उसकी नीतिशास्त्रीय गठन की विशेषता को दर्शाता है जहां उसने बैर और द्वेष के विषय में विचार किए हैं।
5. किस कक्षा के छात्रों के लिए यह पाठ है?
उत्तर: यह पाठ कक्षा 8 के छात्रों के लिए हैं। इस पाठ में संस्कृत भाषा के महत्वपूर्ण शब्दार्थों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है और इसका प्रयोग प्रश्नों में किया गया है।
14 videos|80 docs|27 tests
Download as PDF
Explore Courses for Class 8 exam

Top Courses for Class 8

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

संस्कृत

,

past year papers

,

Extra Questions

,

Viva Questions

,

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - कण्टकेनैव कण्टकम्

,

Semester Notes

,

Objective type Questions

,

Summary

,

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - कण्टकेनैव कण्टकम्

,

Sample Paper

,

ppt

,

रुचिरा

,

MCQs

,

कक्षा - 8 | संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)

,

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - कण्टकेनैव कण्टकम्

,

mock tests for examination

,

Previous Year Questions with Solutions

,

रुचिरा

,

practice quizzes

,

Exam

,

रुचिरा

,

कक्षा - 8 | संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)

,

संस्कृत

,

Important questions

,

कक्षा - 8 | संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)

,

video lectures

,

Free

,

study material

,

pdf

,

संस्कृत

,

shortcuts and tricks

;