पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)
पहेलियाँ मनोरंजन का एक प्राचीन विद्या (तरीका) है। ये लगभग संसार की सभी भाषाओं में उपलब्ध् हैं। संस्कृत के कवियों ने इस परम्परा को अत्यन्त समृद्ध किया है। पहेलियाँ हमें आनन्द देने के साथ-साथ हमारी मानसिक व बौद्धिक प्रक्रिया को तीव्र बनाती हैं। इस पाठ में संस्कृत प्रहेलिका (पहेली) बूझने की परम्परा के कुछ रोचक उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं।
पाठ का सरलार्थ
(क) कस्तूरी जायते कस्मात्?
को हन्ति करिणां कुलम्?
किं कुर्यात् कातरो युद्धे?
मृगात् सिंहः पलायते।।1।।
अन्वयः कस्तूरी कस्मात् जायते? मृगात्। कः करिणां कुलम् हन्ति? सिंहः।
कातरः युद्धे किं कुर्यात्? पलायते।।
शब्दार्थ: | भावार्थ |
जायते | उत्पन्न होता है। |
हन्ति | मारता/मारती है। |
करिणाम् | हाथियों का। |
कुलम् | झुंड (समूह) को। |
कुर्यात् | करे (करना चाहिए)। |
कातरः | कमजोर। |
पलायते | भाग जाता है (भाग जाना चाहिए)। |
सरलार्थ: कस्तूरी किससे उत्पन्न होती है? मृग से। कौन हाथियों के समूह को मार देता है? सिंह। कमजोर व्यक्ति युद्ध में क्या करे? भाग जाए।
(ख) सीमन्तिनीषु का शान्ता?
राजा कोऽभूत् गुणोत्तमः?
विद्वद्भिः का सदा वन्द्या?
अत्रौवोक्तं न बुध्यते।।2।।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
सीमन्तिनीषु | नारियों में। |
शान्ता | शान्त स्वभाव वाली। |
कोऽभूत् | कौन हुआ। |
गुणोत्तमः | गुणों में सबसे अच्छा। |
विद्वद्भिः | विद्वानों के द्वारा। |
वन्द्या | वन्दना के योग्य। |
उक्तम् | कहा गया। |
बुध्यते | जाना जाता है। |
सरलार्थ: नारियों में कौन (सबसे अधिक) शान्त स्वभाव वाली है? सीता। कौन-सा राजा गुणों में उत्तम हुआ? राम। विद्वानों के द्वारा कौन हमेशा वन्दना करने योग्य है? विद्या। यहीं कही गई (यह बात) है (फिर भी मनुष्यों के द्वारा) नहीं जानी जा रही है अर्थात् पता नहीं चल रहा है।
अन्वय: का सीमन्तिनीषु शान्ता? सीता, गुणोत्तमः राजा अभूत्? रामः।
का सदा विद्वद्भिः वन्द्या? विद्या। अत्रा एव उक्तं (परम्) न बुध्यते।।
ध्यान दें: पंक्ति का प्रथम व अंतिम वर्णों के योग से बना शब्द ही उत्तर होगा।
(ग) कं सञ्ज्घान कृष्णः?
का शीतलवाहिनी गङ्गा?
के दारपोषणरताः?
कं बलवन्तं न बाधते शीतम्।।3।।
अन्वय: कृष्णः कं सञ्ज्घान? कंसम्? शीतलवाहिनी गङ्गा का? काशी।
के दारपोषणरताः? केदारपोषणरताः। कं बलवन्तम् शीतम् न बाधते। कंबलवन्तम्।।
ध्यान दें: पहले दो या तीन वर्णों को मिलाने पर पहेली का उत्तर प्राप्त हो जाता है।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
कम् | किसे। |
सञ्ज्घान | मारा। |
कृष्णः | श्रीकृष्ण। |
(कंसम् जघान कृष्णः) का | कौन। |
शीतलवाहिनी | ठण्डी धरा वाली। |
(काशी-तल-वाहिनी गङ्गा) के | कौन। |
दारपोषणरताः | पत्नी के पोषण में लीन। |
केदार-पोषण-रताः | खेती के काम में संलग्न। |
कम् | किस। |
बलवन्तम् | बलवान को। |
बाधते | कष्ट देता है। |
शीतम् | ठण्ड। |
कम्बलवन्तम् | कम्बल युक्त। |
सरलार्थ: श्रीकृष्ण ने किसको मारा? कंस को। शीतल (ठण्डी) धरा वाली गंगा को बहाने वाली जगह कौन-सी है? काशी। पत्नी सहित बच्चों के पालन-पोषण में कौन लगे होते हैं? खेती के काम में संलग्न किसान। किस बलवान को ठण्ड कष्ट नहीं देती? कम्बल वाले व्यक्ति को।
(घ) वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः
त्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः।
त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्धयोगी
जलं च बिभ्रन्न घटो न मेघः।।4।।
अन्वयः वृक्षाग्रवासी च न पक्षिराजः, त्रिनेत्रधारी च न शूलपाणिः। त्वग्वस्त्रधारी च न सिद्धयोगी, जलं च विभ्रन् न घटः न मेघः (अस्ति)।।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
वृक्षाग्रवासी | पेड़ के उपर रहने वाला। |
पक्षिराजः | पक्षियों का राजा (गरुड़)। |
त्रिनेत्रधारी | तीन नेत्रों वाला (शिव)। |
शूलपाणिः | जिनके हाथ में त्रिशूल है (शंकर)। |
त्वग् | त्वचा, छाल। |
वस्त्रधारी | कपड़ों वाला। |
सिद्धयोगी | तपस्वी (ध्यानी)। |
बिभ्रन्न (बिभ्रन् + न) | धरण करता हुआ। |
घटः | घड़ा। |
मेघः | बादल। |
सरलार्थ: वृक्ष के ऊपर रहने वाला है और फिर भी पक्षियों का राजा गरुड़ नहीं है। तीन आँखों वाला है तो भी हाथ में त्रिशूलधारी शिव नहीं है। छाल रूपी वस्त्र को धरण करने वाला है फिर भी तपस्वी साधक नहीं है और जल को (अन्दर) धरण करता है तो भी न घड़ा है और न ही बादल है। अर्थात्-नारियल है।
(ङ) भोजनान्ते च किं पेयम्?
जयन्तः कस्य वै सुतः?
कथं विष्णुपदं प्रोक्तम्?
तक्रं शक्रस्य दुर्लभम्।।
अन्वय: भोजनान्ते च पेयम् किं? तक्रम्। जयन्तः वै कस्य सुतः? शक्रस्य। विष्णुपदं कथं प्रोक्तम्? दुर्लभम्।।
शब्दार्थ: | भावार्थ: |
भोजनान्ते | भोजन के अन्त में। |
वै | निश्चित रूप से। |
सुतः | पुत्र। |
विष्णुपदम् | स्वर्ग, मोक्ष। |
प्रोक्तम् | कहा गया है। |
तक्रम् | छाछ, मट्ठा। |
शक्रस्य | इन्द्र का। |
दुर्लभम् | कठिनाई से प्राप्त। |
सरलार्थ: और भोजन के अंत में क्या पीना चाहिए? छाछ। निश्चय (निश्चित रूप) से जयन्त किसका पुत्र है? इन्द्र का। भगवान विष्णु का स्थान स्वर्ग (मोक्ष) कैसा कहा गया है? दुर्लभ (कठिनाई से प्राप्त होने योग्य)।
प्रहेलिकानामुत्तरान्वेषणाय सङ्केता:
प्रथमा प्रहेलिका - अन्तिमे चरणे क्रमशः त्रायाणां प्रश्नानां त्रिभिः पदैः उत्तरं दत्तम्।
द्वितीया प्रहेलिका - प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चरणेषु प्रथमस्य वर्णस्य अन्तिमवर्णेन संयोगात् उत्तरं प्राप्यते
तृतीया प्रहेलिका - पत्येकं चरणे प्रथमद्वितीययोः प्रथमत्रायाणां वा वर्णानां संयोगात् तस्मिन् चरणे प्रस्तुत्सय प्रश्नस्य उत्तरं प्राप्यते।
चतुर्थप्रहेलिकाः उत्तरम् - नारिकेलफलम्
पञ्चमप्रहेलिकाः उत्तरम् - प्रथम-प्रहेलिकावत्।
पहेलियों के उत्तर खोजने (पाने) के लिए संकेत
पहली पहेली - अंतिम चरण के तीनों पदों (शब्दों) में पहेली के तीनों प्रश्नों के उत्तर दिए हुए हैं।
दूसरी पहेली - पहले, दूसरे और तीसरे चरणों के प्रथम और अंतिम वर्ण के मेल से बने शब्द ही उत्तर हैं।
तीसरी पहेली - प्रत्येक चरण के प्रथम दो या प्रथम तीन वर्णों को मिलाने से उस पहेली का उत्तर मिल जाता है।
चौथी पहेली - अंतिम चरण के तीनों पद (शब्द) ही पहेली में दिए गए प्रश्नों के उत्तर हैं।
1. प्रहेलिका क्या होती है? |
2. रुचिरा का अर्थ क्या होता है? |
3. संस्कृत भाषा क्यों महत्वपूर्ण है? |
4. कक्षा 8 में परीक्षा कैसे तैयार करें? |
5. प्रहेलिका के लिए उपयुक्त स्रोत क्या हैं? |
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