Class 8 Exam  >  Class 8 Notes  >  संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)  >  पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - सदैव पुरतो निधेहि चरणम, रुचिरा, संस्कृत , कक्षा - 8

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - सदैव पुरतो निधेहि चरणम, रुचिरा, संस्कृत , कक्षा - 8 | संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8) PDF Download

पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)
श्रीधरभास्कर वर्णेकर ने अपने इस गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्नान किया है। श्रीधर राष्ट्रवादी कवि हैं जिन्होंने इस गीत के द्वारा जागरण और कर्मठता का सन्देश दिया है।

पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ
(क)    
चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।

अन्वय:
चल, चल पुरतः चरणम् निधेहि। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।

शब्दार्थ: भावार्थ:
चल चलो।
पुरतः आगे।
निधेहि रखो।
चरणम् कदम।
सदैव हमेशा ही।


सरलार्थ: चलो, चलो। आगे कदम रखो। सदा ही आगे कदम रखो।

(ख)    
गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्।।
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो.................।।


अन्वय: ननु गिरिशिखरे निजनिकेतनम्, यानं विना एव नगारोहणम्। स्वकीयं बलं साधनम् भवति, सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।

शब्दार्थ: भावार्थ:
गिरिशिखरे पर्वत की चोटी पर।
ननु निश्चय से।
निजनिकेतनम् अपना निवास।
विनैव बिना ही।
यानम् वाहन।
नगारोहणम् पर्वत पर चढ़ना।
बलम् शक्ति (ताकत)।
स्वकीयम् अपना।
साधनम् साधन (माध्यम)।


सरलार्थ: निश्चय (निश्चित रूप) से पर्वत की चोटी पर अपना घर है। अतः बिना वाहन के ही पहाड़ पर चढ़ना है। (उस समय तो) अपना बल ही अपना साधन होता है। इसलिए सदा ही आगे कदम रखो।

(ग)   पथि पाषाणा विषमाः प्रखराः।
        हिंस्त्रा: पशवः परितो घोराः।।
        सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
        सदैव पुरतो.......................।।


अन्वयः पथि विषमाः प्रखराः (च) पाषाणाः, परितः हिंस्त्रा: घोराः पशवः (भ्रमन्ति)। यद्यपि गमनम् सुदुष्करं खलु (अस्ति), सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।

शब्दार्थ: भावार्थ:
पथि मार्ग में।
पाषाणाः पत्थर।
विषमाः असामान्य।
प्रखराः तीक्ष्ण, नुकीले।
हिंस्त्रा: हिंसक।
पशवः पशु-पक्षी।
परितः चारों ओर।
घोराः भयंकर, भयानक।
सुदुष्करम् अत्यन्त कठिनतापूर्वक साध्य।
खलु निश्चय से।
यद्यपि जबकि।
गमनम् जाना (चलना)।


सरलार्थ: रास्ते में विचित्र (अजीब) से नुकीले और ऊबड़-खाबड़ पत्थर तथा चारों ओर भयानक चेहरे और हिंसक व्यवहार वाले पशु घूमते हैं। (अतः) निश्चित रूप से जबकि वहाँ जाना कठिन है। (फिर भी) हमेशा ही आगे-आगे कदम रखो।

(घ)    जहीहि भीतिं भज भज शक्तिम्। 
        विधेहि राष्ट्रे तथा ऽनुरक्तिम्।।
        कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
        सदैव पुरतो.......................।।


अन्वयः भीतिं जहीहि शक्तिम् भज, तथा राष्ट्रे अनुरक्तिम् विधेहि। सततं ध्येय-स्मरणम् कुरु कुरु, सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।।

शब्दार्थ: भावार्थ:
जहीहि छोड़ो, छोड़ दो।
भीतिम् डर को।
भज भजो, जपो।
शक्तिम् शक्ति को। 
विधेहि करो।
राष्ट्रे देश में। तथा-उसी प्रकार से।
अनुरक्तिम् प्रेम, स्नेह।
कुरु करो।
सततम् लगातार।
ध्येय - स्मरणम् उद्देश्य (लक्ष्य) का स्मरण।


सरलार्थ: डर को छोड़ दो और ताकत को याद करो। उसी प्रकार अपने देश से प्रेम (भी) करो। (और) सतत् अर्थात् लगातार अपने उद्देश्य को याद रखो। सदैव आगे (ही) कदम रखो।

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FAQs on पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ - सदैव पुरतो निधेहि चरणम, रुचिरा, संस्कृत , कक्षा - 8 - संस्कृत कक्षा 8 (Sanskrit Class 8)

1. कक्षा 8 के छात्रों के लिए संस्कृत के पाठों का महत्व क्या है?
उत्तर: संस्कृत के पाठ पढ़ने से कक्षा 8 के छात्रों को अपनी संस्कृति और धार्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह उनके मस्तिष्क को सक्रिय रखने के साथ-साथ भाषा कौशल और संवादात्मक योग्यता में सुधार करता है।
2. सदैव पुरतो निधेहि चरणम श्लोक का अर्थ क्या है?
उत्तर: "सदैव पुरतो निधेहि चरणम" श्लोक का अर्थ है कि हमेशा अपने पैरों को मार्ग में रखो या अपनी गतिविधियों को सदैव निर्धारित मार्ग पर चलाओ। यह एक दिशा-निर्देशक श्लोक है जो हमें ध्यान देता है कि हमेशा सही मार्ग पर चलना चाहिए।
3. संस्कृत भाषा की महत्वपूर्णता क्या है?
उत्तर: संस्कृत भाषा एक प्राचीन और महत्वपूर्ण भाषा है जो हमें हमारी संस्कृति, धर्म, दर्शन, विज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष, कविता, नाटक और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान करती है। इसका अध्ययन करने से हमें अन्य भाषाओं के शब्दार्थ, व्याकरण, और भाषा की समझ में भी सुधार होता है।
4. संस्कृत के पाठों का परीक्षा में महत्व क्या होता है?
उत्तर: संस्कृत के पाठों की परीक्षा में छात्रों को भाषा के नियमों, शब्दावली, वाक्य रचना, और पाठ के संदेश की समझ का मूल्यांकन होता है। इसके माध्यम से छात्र अपने भाषा कौशल और पाठ संबंधी ज्ञान की प्रदर्शनी करते हैं। इसलिए, पाठों के परीक्षा में महत्वपूर्ण हैं और छात्रों को ध्यानपूर्वक तैयारी करनी चाहिए।
5. संस्कृत भाषा का अध्ययन किस उम्र में शुरू किया जाना चाहिए?
उत्तर: संस्कृत भाषा का अध्ययन किसी भी उम्र में शुरू किया जा सकता है, हालांकि कक्षा 8 में इसका अध्ययन शुरू करना उचित होता है। इस उम्र में छात्रों का मस्तिष्क पर्याप्त विकसित होता है और वे भाषा के नियमों और शब्दावली को समझ सकते हैं।
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