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वाक्य विन्यास | BPSC General Hindi - BPSC (Bihar) PDF Download

प्रस्तावना

पिछली इकाई में आपने रुपविज्ञान का अध्ययन किया था। इस इकाई में आप वाक्यविज्ञान के बारे में पढ़ेंगे। जैसे रुपविज्ञान भाषाविज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है, वैसे ही वाक्यविज्ञान भी है, जिसमें वाक्य के रूप, वाक्य रचना के आवश्यक तत्व, वाक्य के विभिन्न प्रकार और वाक्य विश्लेषण आदि का विस्तार से अध्ययन किया जाता है। वाक्यविज्ञान को अंग्रेजी में 'Syntax' (सिंटेक्स) के नाम से जाना जाता है। इस इकाई में हम आपको वाक्य की अवधारणा और वाक्य रचना के आवश्यक तत्वों के बारे में जानकारी देंगे।

वाक्य की अवधारणा तथा वाक्य रचना के आवश्यक तत्व

जिस प्रकार ध्वनियों के मेल से रूपिम या शब्द की रचना होती है, ठीक उसी प्रकार शब्दों या पदों के योग से वाक्य की रचना होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस प्रकार रूपिम भाषा की लघुत्तम अर्थवान इकाई है, ठीक उसी प्रकार वाक्य को भी भाषा की सबसे बड़ी सार्थक इकाई के रूप में माना गया है। यहाँ सार्थक इकाई से तात्पर्य है-'जिसका कोई अर्थ हो', अर्थात् "शब्दों या पदों के सार्थक समूह को हम वाक्य कह सकते हैं। उदाहरणस्वरुप, 'राम आम खाता है' को एक वाक्य माना जाएगा क्योंकि यह शब्दों का सार्थक समूह है, जिसका सम्पूर्ण अर्थ निकलता है। इसके विपरीत, वाक्य का प्रयोग शब्दों के समूह के रूप में न कर, एक शब्द के रूप में भी किया जा सकता है। एक शब्द के रूप में वाक्य का प्रयोग प्रायः हम अपनी बातचीत में करते हैं। 
नीचे दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं कि किस प्रकार वाक्य का प्रयोग एक शब्द के रूप में किया गया है:
प्रश्न - आप क्या कर रहे हैं?
उत्तर - पढ़ाई.

यहाँ पूछे गए प्रश्न का उत्तर एक शब्द में दिया गया है। यहाँ यह एक शब्द नहीं बल्कि एक वाक्य ही है क्योंकि इसमें प्रयुक्त शेष शब्दों/पदों का लोप किया गया है
हालाँकि, वाक्य की अवधारणा को लेकर अनेक मतभेद हैं। वाक्य की परिभाषा इस बात पर निर्भर करती है कि आप वाक्य को किस इकाई के रूप में देखते हैं। ऊपर के उदाहरण में हमने वाक्य को एक अर्थपरक एवं संरचनापरक इकाई के रूप में ही देखा है। यानि जब हम वाक्य की परिभाषा यह देते हैं कि "शब्दों या पदों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं", तो हम वाक्य को अर्थ एवं संरचना की दृष्टिकोण से देख कर ही इस प्रकार की परिभाषा देते हैं। वाक्य को इन दो इकाइयों के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक एवं सन्दर्भपरक इकाइयों के रूप में भी देखा गया है, परन्तु अभी तक वाक्य की सबसे प्रचलित एवं महत्वपूर्ण परिभाषाअर्थपरक एवं संरचनात्मक दृष्टिकोण से ही दी जाती रही है। आइये, अब हम विभिन्न वैयाकरणों एवं भाषावैज्ञानिकों के द्वारा दी वाक्य की परिभाषा को देखते हैं ताकि वाक्य की अवधारणा को और अच्छे से समझ सकें।
कुछ भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार वाक्य की परिभाषा इस प्रकार दी गई है:

  • पतंजलि एवं थ्राक्स दोनों के अनुसार- "पूर्ण अर्थ की प्रतीति करने वाले शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं।" (डॉ. कपिलदेव द्विवेदी 2019 से उद्धृत)
  • कामताप्रसाद गुरु के अनुसार- "एक विचार पूर्णता से प्रकट करने वाले शब्द-समूह को वाक्य कहते हैं।"
  • डॉ. देवेन्द्रनाथ शर्मा के अनुसार- "वाक्य पूर्णतः मानसिक या मनोवैज्ञानिक तत्व है।"
  • डॉ. कपिलदेव द्विवेदी के अनुसार- "वाक्य ही भाषा की सूक्ष्तम सार्थक इकाई माना जाता है।"
  • प्रसिद्ध पाश्चात्य भाषावैज्ञानिक, ब्लूमफील्ड अपनी पुस्तक 'Language' में वाक्य की परिभाषा कुछ इस प्रकार देते हैं-
    "Sentence is an independent linguistic form, not included by virtue of any grammatical construction in any larger linguistic form."
    (वाक्य एक स्वतंत्र भाषिक रूप है जो किसी व्याकरणिक रचना के तहत किसी बड़ी व्याकरणिक रचना का अंग नहीं है।)
  • पाश्चात्य वैयाकरण, ओटो जस्पर्सन के अनुसार वाक्य की परिभाषा कुछ इस प्रकार है-
    "A sentence is (relatively) complete and independent human utterance- the completeness and independence being shown by its standing alone or its capability of standing alone, i.e. of being uttered by itself."
    (वाक्य एक सम्पूर्ण एवं स्वतंत्र मानव उक्ति है, इसकी सम्पूर्णता एवं स्वतंत्रता इस बात से साबित होती है कि यह स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त की जाती है।)

उपरोक्त दी गई परिभाषा के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि विभिन्न विद्वानों ने वाक्य की परिभाषा को अर्थ, संरचना, मानसिक एवं प्रायोगिक इत्यादि के दृष्टिकोण से देने की कोशिश की है। वाक्य की परिभाषा मात्र जान लेने से वाक्य के बारे में हमें सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं हो जाती है। वाक्य के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें वाक्य रचना के आवश्यक तत्वों के बारे में जानना अति आवश्यक है। ये वे तत्व हैं जो किसी भी वाक्य की संरचना के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। अगर किसी भी वाक्य में इन तत्वों में से कोई भी न हो तो शायद वह वाक्य संरचना की दृष्टिकोण से परिपूर्ण वाक्य होने की विशेषताओं को पूरा नहीं कर पाएगा।

शब्दक्रम या पदक्रम

  • वाक्य की रचना में शब्दक्रम अथवा पदक्रम का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक भाषा की अपनी संरचना होती है और उस संरचना में भाषा का शब्दक्रम अथवा पदक्रम निहित होता है, जिसका अनुसरण कर शब्दों के प्रयोग द्वारा वाक्य निर्माण किया जाता है। 
  • हिंदी भाषा में मौजूद शब्दक्रम या पदक्रम को अगर आप देखेंगे तो पाएंगे कि वाक्य निर्माण की प्रक्रिया में सबसे पहले कर्ता, तत्पश्चात कर्म एवं अंत में क्रिया लगाई जाती है, जैसा कि वाक्य 'राम पुस्तक पढ़ता है' में 'राम'-कर्ता, 'पुस्तक' -कर्म एवं 'पढ़ता है' -क्रिया है। इस प्रकार हिंदी भाषा में प्रयुक्त शब्दक्रम या पदक्रम की व्यवस्था कुछ इस प्रकार है- कर्ता + कर्म + क्रिया। 
  • इसके विपरीत, अंग्रेजी भाषा में कर्ता के बाद क्रिया एवं सबसे अंत में कर्म लगाया जाता है। इस प्रकार अंग्रेजी भाषा में कर्ता + क्रिया + कर्म पदक्रम मौजूद है। दोनों भाषा के पदक्रम को अगर हम तुलना करें तो पाते हैं कि अंग्रेजी एक Subject + Verb + Object (SVO) और हिंदीSubject + Object + Verb (SOV) भाषा है। अतः वाक्य की संरचना में शब्दक्रम अथवा पदक्रम का अनुसरण करना अति आवश्यक है अन्यथा वाक्य व्याकरणसम्मत नहीं हो पाएगा।

अन्विति या अन्वय

  • प्रत्येक भाषा की अपनी भाषिक व्यवस्था होती है। भाषिक व्यवस्था से तात्पर्य है-भाषा में मौजूद व्याकरणिक नियमवाक्य के गठन में भी व्याकरणिक नियमों का पालन अनिवार्य होता है। वाक्य के स्तर पर जिन नियमों का पालन किया जाता है उनमें से एक है अन्विति या अन्वयअन्विति या अन्वय से तात्पर्य है- वाक्य में प्रयुक्त कर्ता एवं क्रिया या क्रिया एवं कर्म के बीच आपस में व्याकरणिक दृष्टि से एकरूपता या समानता, अर्थात् अगर कर्ता एकवचन में है तो क्रिया भी एकवचन में होनी चाहिए। 
  • ठीक उसी प्रकार, अगर कर्ता स्त्रीलिंग रूप में है तो क्रिया का रूप भी स्त्रीलिंग ही होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, क्रिया का रूप भी कर्म के अनुरूप ही होना चाहिए, अर्थात् अगर कर्म स्त्रीलिंग रूप में है तो क्रिया का रूप भी कर्म के स्त्रीलिंग रूप को अभिव्यक्त करें। इस प्रकार वाक्य के विभिन्न अवयवों के बीच के व्याकरणिक संबंध को अन्वय कहते हैं। इसे अंग्रेजी में 'agreement' (अग्रीमेंट) कहा जाता है। 
  • अंग्रेजी भाषा में कर्ता एवं क्रिया के बीच होने वाली अन्वय को 'subject-verb agreement' के नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी में सिर्फ यही अन्वय देखने को मिलता है, परंतु हिंदी भाषा में कर्ता के साथ क्रिया एवं कर्म के साथ क्रिया यानी अंग्रेजी में कहे तो 'subject-verb and object-verb' दोनों प्रकार के अन्वय (agreement) देखने को मिलते हैं।
    वाक्य विन्यास | BPSC General Hindi - BPSC (Bihar)
  • उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि जब संज्ञा तृतीय पुरुष, एकवचन और पुल्लिंग में होती है, तो क्रिया में '-ता' जुड़ता है, जो तृतीय पुरुष, एकवचन और पुल्लिंग का सूचक होता है। इसके विपरीत, यदि संज्ञा तृतीय पुरुष, एकवचन और स्त्रीलिंग होती है, तो क्रिया में '-ती' जुड़ता है।
  • इस प्रकार, किसी भी वाक्य में अन्वय (agreement) का होना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि यह अनुपस्थित हो, तो वाक्य व्याकरणिक दृष्टि से अशुद्ध माना जाएगा। सामान्यतः, वाक्य में अन्वय व्यक्तित्व, वचन, लिंग और कारक इत्यादि के अनुरूप होता है।

निकटस्थ अवयव

  • निकटस्थ अवयव का अर्थ है वाक्य में कौन सा पद किस अन्य पद के कितने पास है, यानी यह शब्दों या पदों के बीच की आपसी समीपता को दर्शाता है। इसे आसक्ति या सन्निधि भी कहा जाता है। वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के बीच की समीपता के आधार पर ही वाक्य का उच्चारण किया जाना चाहिए।
  • जब शब्दों या पदों का वाक्य में प्रयोग किया जाता है, तो उन्हें व्याकरणिक नियमों के अनुसार एक निश्चित क्रम में रखा जाता है। इसी तरह, जब वाक्य का उच्चारण किया जाता है, तो शब्दों या पदों को उसी क्रम में और एक साथ उच्चारण करना चाहिए। यदि हम शब्दों या पदों का क्रम बदलते हैं या उन्हें अंतराल पर उच्चारण करते हैं, तो वाक्य का ढांचा टूट सकता है, जिससे वाक्य का अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाएगा।
  • उदाहरण के तौर पर, 'बच्चे को माँ बाप की आज्ञा का पालन करना चाहिए' वाक्य में हम देख सकते हैं कि कौन सा पद किसके पास है और इस समीपता को ध्यान में रखते हुए इसका उच्चारण किया जाना चाहिए, ताकि वाक्य का अर्थ सही तरीके से समझा जा सके।

अर्थसंगति

  • अर्थसंगति या योग्यता का अर्थ है कि वाक्य में जो भी बातें कही जा रही हैं, उनका अर्थ वास्तविक रूप से सही और तर्कसंगत होना चाहिए। उदाहरण के रूप में, 'वह आग से ख़त लिखता है' वाक्य व्याकरणिक दृष्टिकोण से सही और सम्पूर्ण है, लेकिन अर्थ के स्तर पर यह तार्किक और अर्थसंगत नहीं प्रतीत होता। 
  • इस प्रकार का वाक्य वाक्य की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा क्योंकि अर्थ की दृष्टि से यह योग्य या अनुपयुक्त है। वास्तविकता में ऐसा संभव नहीं है कि कोई व्यक्ति आग से ख़त लिख सके। इसलिए, किसी भी वाक्य को केवल व्याकरणिक दृष्टिकोण से सही होने के साथ-साथ अर्थ के दृष्टिकोण से भीअर्थसंगत होना चाहिए।

अर्थ की पूर्णता या आकांक्षा

  • अर्थ की पूर्णता या आकांक्षा का तात्पर्य है वक्ता द्वारा प्रयुक्त किए गए वाक्य में अर्थ की सम्पूर्णता। इसका मतलब है कि वक्ता वाक्य इस प्रकार बनाए, कि उसका अर्थ पूरी तरह स्पष्ट हो और श्रोता के मन में कोई आकांक्षा या जिज्ञासा न रहे। 
  • अगर वक्ता पद का प्रयोग करेगा तो अर्थ की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हो पाएगी। वाक्य का प्रयोग ही अर्थ की पूर्णता सुनिश्चित कर सकता है, न कि पद या उपवाक्य के द्वारा। उदाहरणस्वरूप, 'उसने कहा कि ...' उपवाक्य के प्रयोग से सम्पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती, जिससे श्रोता के मन में जिज्ञासा बनी रहती है। बनी रह जाएगी कि 'उसने क्या कहा ?' अतः इस बात से यह साबित होता है कि अर्थ की पूर्णता वाक्य के प्रयोग द्वारा ही संभव है न कि अधूरे वाक्य के प्रयोग द्वारा।

वाक्य के भेद

वाक्य के भेद के बारे में समझने से पहले, आपने वाक्य की अवधारणा और वाक्य की परिभाषा को समझा है। इसके अलावा, आपने वाक्य रचना के लिए आवश्यक अनिवार्य तत्वों के बारे में भी जाना है। अब, वाक्य के भेद या प्रकार को विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर बताया जा रहा है। रचना और अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार को समझना और जानना बहुत अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इन्हीं दो दृष्टिकोणों के आधार पर वाक्य के भेद को समझाया जा रहा है।

संरचना के आधार पर

(i) सरल या साधारण वाक्य (Simple Sentence): सरल या साधारण वाक्य उस वाक्य को कहते हैं जिसमे कम से कम एक उद्देश्य (subject) और एक विधेय (predicate) हो या कम से कम जिसमे एक कर्ता (subject) एवं एक क्रिया (verb) का समावेश हो। जैसे-राम पढ़ता है, लड़का खेलता है इत्यादि। इस प्रकार के वाक्य में कर्ता के स्थान पर संज्ञा का प्रयोग किया जाता है परन्तु कभी कभी संज्ञा के जगह सर्वनाम का भी प्रयोग देखा जाता है जैसे कि- वह पढता है, तुम खेलते हो, वे खा रहे हैं इत्यादि। इसके अतिरिक्त, साधारण वाक्य में कर्ता (subject) एवं क्रिया (verb) के आलावा कर्म (object) भी लगा हो सकता है जैसे कि-लड़का पुस्तक पढ़ता है। इस वाक्य में 'पुस्तक' कर्म है। अतः संक्षिप्त में यह कहा जा सकता है कि साधरण वाक्य की संरचना या गठन में कम से कम एक कर्ता (subject) एवं एक क्रिया (verb) का होना अति आवश्यक है।

(ii) जटिल या मिश्र वाक्य (Complex Sentence): जटिल या मिश्र वाक्य ऐसे वाक्य को कहते हैं जो दो उपवाक्यों के मेल से बना होता है। इस प्रकार के वाक्य में एक प्रधान एवं दूसरा आश्रित उपवाक्य होता है। दूसेर उपवाक्य को आश्रित उपवाक्य इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह अपनी अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए मुख्य वाक्य पर आश्रित रहता है। 
उदाहरण:
(क) श्याम ने कहा कि वह आज पढ़ाई नहीं करेगा। 

श्याम ने कहा कि (आश्रित उपवाक्य)
वह आज पढ़ाई नहीं करेगा। (प्रधान उपवाक्य)

(ख) जिसके पास ज्ञान है उसकी पूजा होती है।

जिसके पास ज्ञान है (आश्रित उपवाक्य)
उसकी पूजा होती है। (प्रधान उपवाक्य)

इस प्रकार आप देख सकते हैं कि जटिल या मिश्र वाक्य वस्तुतः दो उपवाक्यों का मिश्रित रूप होता है। इसमें एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रकार के वाक्य में प्रधान उपवाक्य का पूर्ण अर्थ निकलता है जबकि आश्रित उपवाक्य को अपने अर्थ की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए प्रधान उपवाक्य पर निर्भर या आश्रित रहना पड़ता है। इस प्रकार के वाक्य की संरचना में आश्रित उपवाक्य कुछ समुच्चयबोधक अवयवों जैसे कि-जो, कि, जहाँ, तो, ताकि इत्यादि के द्वारा प्रधान उपवाक्य से जुड़े होते हैं। इन अवयवों के द्वारा आप आसानी से आश्रित उपवाक्य की पहचान जटिल वाक्य में कर सकते हैं।

(iii) संयुक्त वाक्य (Compound Sentence) ऐसे वाक्य जो दो या दो से अधिक सरल वाक्यों के मेल से बना हुआ हो उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। संयुक्त वाक्य में प्रयुक्त सरल वाक्य या प्रधान उपवाक्य अपने आप में स्वतंत्र होते हैं। अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए वे किसी अन्य उपवाक्य पर आश्रित नहीं होते हैं। संयुक्त वाक्यों के गठन में कुछ समुच्चयबोधक अवयवों की आवश्यकता पड़ती है जैसे कि-और, एवं, तथा, लेकिन, किन्तु, परंतु, इसलिए, बल्कि, मगर, अथवा, न ... न इत्यादि। संयुक्त वाक्य के उदाहरण निम्नलिखित है-

(क) राम आया और श्याम चला गया।

राम आया (सरल वाक्य)
और (संयोजक)
श्याम चला गया। (सरल वाक्य)

(ख) उसे आना था किन्तु मैंने मना कर दिया।

उसे आना था   (सरल वाक्य)
किन्तु (संयोजक)
मैंने मना कर दिया। (सरल वाक्य)

कभी कभी संयुक्त वाक्य में दो सरल वाक्यों को या दो से अधिक वाक्यों को जोड़ने के लिए अल्पविराम (comma) का भी प्रयोग किया जाता है 
जैसे कि- 
(ग) क्या सोचा था, क्या हो गया। 
(घ) तुम रुको, उसे आने दो, फिर हम चलेंगे। 
अतः उपरोक्त उदाहरणों के द्वारा हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दो प्रधान उपवाक्यों या सरल वाक्यों को समुच्चयबोधक अवयवों के द्वारा जोड़कर हम संयुक्त वाक्य कि रचना या गठन कर सकते हैं।

अर्थ के आधार पर

अर्थ के आधार पर वाक्य के आठ भेद होते हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) साकारात्मक वाक्य सकारात्मक वाक्य ऐसे वाक्य को कहते हैं जिससे किसी सामान्य कथन या किसी व्यक्ति या वस्तु की कोई अवस्था का बोध हो जैसे कि-लड़का पढ़ता है, मैं कल दिल्ली जाऊँगा, उसकी तबियत इन दिनों ठीक नहीं हैं इत्यादि।

(ii) नाकारात्मक वाक्य ऐसे वाक्य जिससे नाकारात्मकता का बोध होता हो उसे नाकारात्मक वाक्य कहते हैं। इसे निषेधवाचक वाक्य भी कहा जाता हैं। वस्तुतः साकारत्मक वाक्य में ही निषेधवाचक तत्व जैसे कि-न, नहीं एवं मत इत्यादि का प्रयोग कर नाकारात्मक वाक्य बनाया जाता है जैसे-मैं आपकी एक भी बात नहीं मानूँगा, वह एक भी न सुनेगा, ऐसा मत करो इत्यादि।

(iii) प्रश्नवाचक वाक्य ऐसे वाक्य जिनसे प्रश्न पूछने का बोध होता हो उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। प्रश्नवाचक वाक्य प्रायः दो तरीकों से बनाया जाता है। पहला यह कि प्रश्नवाचक वाक्य बनाने के लिए वाक्य के प्रारंभ में 'क्या' शब्द लगाया जाता है जिसका उत्तर हाँ या ना में दिया जाता है। अंग्रेजी में इसे 'yes/ no question' (हाँ/ना प्रश्न) कहते हैं। दूसरा यह कि प्रश्नवाचक वाक्य बनाने के लिए प्रश्नवाचक शब्द जैसे कि-क्या, कब, कहाँ, क्यों, कैसे, किधर इत्यादि शब्द वाक्य के बीच में लगाए जाते हैं 

जिसका उत्तर हाँ या ना में न देकर विस्तारपूर्वक दिया जाता है। अंग्रेजी में इसे 'wh-question' (wh-प्रश्न) कहते हैं। एक और बात महत्वपूर्ण है कि दोनों ही प्रकार के प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में प्रश्नवाचक चिन्ह (?) का प्रयोग अनिवार्य होता है। प्रश्नवाचक वाक्य के कुछ उदाहरण इस प्रकार है-
(क) क्या आप ठीक हैं ?  (हाँ/ना प्रश्न)
(ख) क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ ? (हाँ/ना प्रश्न)
(ग) आपको किसने भेजा है? (wh-प्रश्न)
(घ) आप किधर जायेंगे? (wh-प्रश्न)

(iv) आज्ञावाचक वाक्य: आज्ञावाचक वाक्य उसे कहते हैं जिनसे आज्ञा, निर्देश, एवं अनुरोध इत्यादि का भाव प्रकट होता हो। इस प्रकार के वाक्य को आज्ञार्थक वाक्य के नाम से भी जाना जाता है। आज्ञावाचक वाक्य के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
(क) तुम यहीं रहो। (आज्ञा)
(ख) कृप्या चलने की कृपा करें। (अनुरोध)
(ग) आपको यह काम कल शाम तक अवश्य ख़त्म करना है। (निर्देश)

(v) इच्छावाचक वाक्य: जिस वाक्य से वक्ता की इच्छा, कामना, एवं शुभकामना इत्यादि का बोध होता हो उसे इच्छावाचक वाक्य कहते हैं। 
उदाहरणस्वरुप-
(क) भगवान आपको लम्बी उम्र दें। (शुभकामना)
(ख) सदा प्रसन्न रहो। (कामना)
(ग) काश! मेरे पास एक बंगला होता। (इच्छा)

(vi) संदेहवाचक वाक्य: ऐसे वाक्य जिनमे किसी काम के होने के प्रति सम्भावना अभिव्यक्त हो या संदेह प्रकट होता हो उसे संदेहवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे-
(क) अब तक वह आ चूका होगा। (सम्भावना)
(ख) आज लाईट जा सकती है। (संदेह)
(ग) शायद, आज वह चला जाएगा। (सम्भावना)
(घ) तुम कैसे कर पाओगे इस काम को। (संदेह)

(vii) संकेतवाचक वाक्य: जिन वाक्य से शर्त की अभिव्यक्ति होती है उसे संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। 
उदाहरणस्वरुप- 
(क) अगर तुम मेहनत करोगे तो अवश्य सफल होगे। 
(ख) अगर बारिश होगी तो फसल अच्छी होगी। 
(ग) अगर वह जाएगा तो मैं नहीं जाऊँगा। 

(viii) विस्मयादिबोधक वाक्य: विस्मयादिबोधक वाक्य उसे कहते हैं जिनसे आश्चर्य, प्रेम, घृणा, शोक, हर्ष, उल्लास, जोश, दुःख इत्यादि का बोध होता है। जैसे-
(क) अरे! तुम आ गए!  (आश्चर्य)
(ख) छिः कितना गन्दा है! (घृणा)
(ग) भगवान उनकी आत्मा को शांति दे! (दुःख)
(घ) मजेदार! इसे खाकर मन तृप्त हो गया। (हर्ष)

वाक्य विन्यास एवं वाक्य के विभिन्न घटक

वाक्य विन्यास का अर्थ है वाक्य का विभाजन या विश्लेषण। इसके द्वारा हम वाक्य में मौजूद वाक्यगत कोटियों अथवा अवयवों के बारे में जान सकते हैं। वाक्य विश्लेषण के द्वारा हम वाक्य की आतंरिक संरचनाओं की भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। वाक्य का विभाजन हम उद्देश्य एवं विधेय, कर्ता, कर्म एवं क्रिया, उपवाक्य एवं पदबंध इत्यादि के स्तर पर कर सकते हैं। ये सभी वाक्य संरचना के प्रमुख घटक/अवयव कहे जाते हैं।
इस खंड में आप वाक्य विश्लेषण के द्वारा इन्हीं प्रमुख घटकों/अवयवों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे-

उद्देश्य एवं विधेय (Subject and Predicate)

विश्व की प्रत्येक भाषा की अपनी अलग-अलग आंतरिक संरचना होती है। इस प्रकार सभी भाषाओं की वाक्य संरचना पद्धति भी अलग-अलग है। अतः सभी भाषाओं के वाक्यों का विभाजन भी एक सा संभव नहीं है। इन सब के बावजूद प्रायः सभी भाषाआँ के वाक्य को दो भागों-उद्देश्य एवं विधेय में बाँटा जाता है। अंग्रेजी भाषा में उद्देश्य एवं विधेय को 'subject and predicate' के नाम से जाना जाता है। नीचे दिए गए उदाहरण में देखिए कि कैसे हिंदी भाषा के सरल वाक्यों को उद्देश्य एवं विधेय में बाँटा गया है-
(क) राम पढ़ता है।
राम (उद्देश्य)
पढ़ता है। (विधेय)
(ख) वह लड़का स्कूल जाता है।
वह लड़का (उद्देश्य)
स्कूल जाता है। (विधेय)

(ग) एक गरीब आदमी सड़क पर भीख माँग रहा है।
एक गरीब आदमी (उद्देश्य)
सड़क पर भीख माँग रहा है। (विधेय)

ऊपर दिए गए उदाहरणों में आप देख सकते हैं कि ‘राम’, ‘वह लड़का’, एवं ‘एक गरीब आदमी’ को उद्देश्य कहा गया है। इनमे किसी न किसी के बारे में या विषय में कुछ कहा जा रहा है। इसके विपरीत, ‘पढ़ता है’, ‘स्कूल जाता है’ एवं ‘सड़क पर भीख माँग रहा है को विधेय कहा गया है क्योंकि इन सब में उद्देश्य के बारे कुछ न कुछ कहा जा रहा की वे क्या – क्या कर रहे हैं इत्यादि। अतः वाक्य का वह हिस्सा या खंड जिनके बारे में वाक्य में कुछ कहा जाता है उसे उद्देश्य एवं वह हिस्सा या खंड जिसमें उद्देश्य के बारे में कुछ कहा गया होता है उसे विधेय कहते हैं।
इस प्रकार किसी भी साधारण या सरल वाक्य को उद्देश्य एवं विधेय दो भागों में बाँटा जा सकता है अर्थात किसी भी वाक्य की संरचना में कम से कम एक उद्देश्य एवं एक विधेय का होना जरूरी है। अतः उद्देश्य एवं विधेय वाक्य रचना के जरूरी घटक या अवयव हैं।

कर्ता, कर्म एवं क्रिया

ऊपर आपने देखा कि किस प्रकार एक वाक्य को उद्देश्य एवं विधेय में बाँटा जा सकता है। पुनः, एक वाक्य को हम तीन खण्डों में—कर्ता, कर्म एवं क्रिया में बाँट सकते हैं। वास्तव में उद्देश्य को ही 'कर्ता' कहा जाता है एवं विधेय को पुनः दो भागों में 'कर्म' एवं 'क्रिया' में बाँटा जाता है।
नीचे दिए गए उदाहरण में समझने की कोशिश कीजिये कि वाक्य के किस हिस्से को कर्ता, कर्म एवं क्रिया में बाँटा गया है:
राम पुस्तक पढ़ता है।
(क) राम (उद्देश्य)
पुस्तक पढ़ता है। (विधेय)
(ख) राम (कर्ता)
पुस्तक (कर्म)
पढ़ता है (क्रिया)

ऊपर दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं कि 'राम' को कर्ता, 'पुस्तक' को कर्म एवं 'पढ़ता है' को क्रिया कहा गया है। अब हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि कर्ता, कर्म एवं क्रिया कहते किसे हैं? इन तीनों को निम्न रूप में परिभाषित किया गया है—
कर्ता

  • सामान्यतः जिसके बारे में वाक्य में कुछ कहा जाता है, उसे कर्ता कहते हैं। दूसरे शब्दों में, वह जो वाक्य में किसी काम को करता है, उसे भी कर्ता के नाम से जाना जाता है।
  • वास्तव में: वाक्य में कर्ता का स्थान कर्म एवं क्रिया से पहले होता है। यह मान लीजिये कि वाक्य की शुरुआत ही कर्ता से की जाती है। कर्ता के रूप में सामान्यतः संज्ञा एवं सर्वनाम का ही वाक्य में प्रयोग किया जाता है।
    अतः ऊपर के दिए गए उदाहरण में 'राम' कर्ता इसलिए है क्योंकि राम के द्वारा पुस्तक पढ़ने का कार्य किया जा रहा है।

कर्म

  • कर्ता के काम का फल जिस पर पड़े, उसे कर्म कहते हैं। हिंदी भाषा के वाक्य में कर्म का स्थान कर्ता के बाद एवं क्रिया के पहले आता है।
    कर्ता की तरह कर्म भी वाक्य में बहुधा संज्ञा एवं सर्वनाम के रूप में ही प्रयोग किया जाता है।
  • ऊपर दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं कि 'पुस्तक' को कर्म कहा गया है क्योंकि राम के द्वारा पढ़ने का कार्य किया जा रहा है, जिसका फल 'पुस्तक' पर पड़ रहा है। अतः 'पुस्तक' यहाँ 'कर्म' है।

क्रिया

  • सामान्यत: जिस शब्द के द्वारा किसी कार्य के होने अथवा करने का बोध होता हो, उसे क्रिया कहा जाता है। क्रिया का स्थान वाक्य में प्रमुख: कर्ता के बाद ही आता है। हिंदी भाषा में क्रिया का स्थान कर्ता एवं कर्म के दोनों के बाद सबसे अंत में आता है।

ऊपर दिए गए उदाहरण में 'पढ़ता है' को क्रिया कहा गया है क्योंकि इस शब्द से किसी कार्य के होने का बोध हो रहा है। एक और बात उल्लेखनीय है कि क्रिया इस वाक्य में कर्ता एवं कर्म के बाद ही प्रमुख हुआ है।
अत: संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि एक साधारण वाक्य की रचना ‘कर्ता, कर्म एवं क्रिया’ के योग से ही होती है। हिंदी भाषा के विपरीत, अंग्रेजी भाषा में क्रिया कर्ता के बाद एवं कर्म के पहले लगाई जाती है एवं कर्म का स्थान सबसे अंत में आता है जैसे कि ‘Ram eats an apple’ में Ram (कर्ता) eats (क्रिया) an apple (कर्म)। इसके अतिरिक्त, किसी-किसी वाक्य में कर्ता का विस्तार जैसे-‘एक बेकार आदमी’, एक से अधिक क्रिया एवं कर्म, क्रिया-विशेषण, कारक चिन्ह, पूरी स्थिति को भी व्यक्त कर सकता है। इस प्रकार आप देख सकते हैं कि किसी भी वाक्य को विभाजन करने पर कम से कम एक कर्ता, एक कर्म एवं एक क्रिया का प्रयोग आपको देखने को मिलेगा। अतः: यह वाक्य के प्रमुख घटक आ आवश्यक है जिनके बिना वाक्य की संरचना संभव नहीं है।

उपवाक्य

वाक्य को कर्ता, कर्म एवं क्रिया के अतिरिक्त उपवाक्यों में भी विभाजित किया जा सकता है। पदबंध से बड़ी एवं वाक्य से छोटी भाषिक इकाई को उपवाक्य कहा जाता है। मुख्यतः उपवाक्य दो प्रकार के होते हैं—मुख्य एवं आंशिक उपवाक्य। मुख्य उपवाक्य वे होते हैं जो अपने आप में स्वतंत्र होते हैं एवं इसके द्वारा अर्थ की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति होती है। इसके विपरीत, आंशिक उपवाक्य वे होते हैं जो अपने अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए मुख्य उपवाक्य पर निर्भर रहते हैं। संक्रान्तक जुड़िकाओं से यह और बात यह महत्वपूर्ण है कि मुख्य उपवाक्य में उद्देश्य एवं विधेय होने के कारण वह सम्पूर्ण वाक्य के जैसे ही होता है या यूँ कहें कि उपवाक्य ही सरल वाक्य होता है।
अत: वाक्यों का विवरण या विचार करने पर वाक्य में विभिन्न तरह के उपवाक्ययों के प्रयोग को देखा जा सकता है। नीचे कुछ वाक्यों का विवरण किया गया है जिसे ध्यान से देखें एवं समझने की कोशिश करें कि किस प्रकार उपवाक्यों का प्रयोग वाक्य संरचना में महत्वपूर्ण है।

(क) सरल वाक्य
मैंने एक लैपटॉप खरीदा। (मुख्य उपवाक्य)
(ख) उसने कहा कि तुम्हारा कोई दोष नहीं है।
उसने कहा (आश्रित उपवाक्य)
कि (संयोजक)
तुम्हारा कोई दोष नहीं है। (मुख्य उपवाक्य)
(ग) संयुक्त वाक्य
मैंने एक लैपटॉप खरीदा, परंतु वह ठीक से नहीं चल रहा है।
मैंने एक लैपटॉप खरीदा (मुख्य उपवाक्य)
परंतु (संयोजक)
वह ठीक से नहीं चल रहा है। (मुख्य उपवाक्य)

अत: ऊपर दिए गए वाक्यों के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि एक या एक से अधिक उपवाक्यों का प्रयोग कर सरल, जटिल एवं संयुक्त वाक्य बनाया जा सकता है। एक मुख्य उपवाक्य के प्रयोग से सरल वाक्य की रचना की जाती है जबकि एक मुख्य एवं आंशिक उपवाक्य के द्वारा जटिल वाक्य की रचना की जाती है। इसके अतिरिक्त, कम से कम दो मुख्य उपवाक्यों को मिलाकर संयुक्त वाक्य की रचना की जाती है। जटिल वाक्य एवं संयुक्त वाक्य की रचना में जब दो उपवाक्यों का प्रयोग किया जाता है तो दोनों उपवाक्यों के बीच में संयोजक चिन्ह (conjunctions) भी लगाया जाता है।

पदबंध

उपवाक्य से छोटी परंतु शब्द एवं पद से बड़ी इकाई को पदबंध कहते हैं। जब हम उपवाक्य को विभाजित करते हैं तो हमें भाषिक इकाई के रूप में पदबंध मिलता है एवं पदबंध को विभाजित करने पर पद। पद एवं पदबंध में अंतर है। हिंदी एवं संस्कृत व्याकरण में पद की संकल्पना की गई है परंतु अंग्रेजी भाषा के व्याकरण एवं पाश्चात्य भाषावैज्ञानिकों ने सिर्फ पदबंध की ही संकल्पना की है। पद एवं पदबंध में निम्नलिखित अंतर है—

पद: वाक्य में प्रयुक्त शब्द को पद कहा जाता है क्योंकि शब्द जब वाक्य में प्रयोग किया जाता है तो शब्द अपने मूल रूप में न रहकर व्याकरणिक इकाइयों से जुड़ जाता है और शब्द व्याकरणिक संबंधों को दर्शाने लगता है। इसीलिए वाक्य में प्रयुक्त शब्द को पद कहा गया है।
पदबंध: जब दो या दो से अधिक पद मिलकर भी एक ही पद का कार्य करता है तो उसे पदबंध कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पदों का वह समूह जो एक ही पद को दर्शाता हो, वह पदबंध कहलाता है। पदबंध संरचना में आकार में पद से बड़ा होता है।

पद एवं पदबंध को निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है—
(क) माली पानी दे रहा है।
माली (पद)
पानी (पद)
दे रहा है (पदबंध)
(ख) मेरा माली बगीचे में पानी दे रहा है।
मेरा माली (पदबंध)
बगीचे में (पदबंध)
पानी दे रहा है (पदबंध)

उपरोक्त उदाहरण (क) में आप देख सकते हैं कि 'माली' एवं 'पानी' एकल शब्द के रूप में वाक्य में प्रयोग किया गया है अतः वे पद है परंतु 'दे रहा है' में दो से अधिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार वे सभी एक से अनके पद है परन्तु ये सभी पद आपस में मिलकर भी एक ही पद का कार्य कर रहे हैं जिसके कारण ये पदबंध कहे जायेंगे। ठीक उसी प्रकार उदाहरण (ख) में-'मेरा माली', 'बगीचे में' एवं 'पानी दे रहा है' वाक्य में में एक से अत्यधिक पद है और ये सभी पद आपस में मिलकर एक ही पद का कार्य कर रहे हैं जिसके कारण वे सभी पदबंध है। इस प्रकार एक से अत्यधिक पदों के प्रयोग द्वारा पदबंध का निर्माण किया जाता है या यूँ कह लें कि पदों का विस्तार या पदों का समूह जो एक ही पद का कार्य करता हो वह ही पदबंध है।
वाक्य में एक से अधिक एवं अलग-अलग प्रकार के पदबंध हो सकते है। पदबंधों की पहचान के लिए हमें संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण एवं क्रिया-विशेषण इत्यादि जैसे व्याकरणिक कोटियों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक पदबंध में एक मुख्य पद (शीर्ष पद) होता है जिसे अंग्रेजी में 'head' कहा जाता है। मुख्य पद के अतिरिक्त शेष पद जो मुख्य पद पर निर्भर होते हैं उन्हें आश्रित पद कहते हैं। मुख्य पद की जो व्याकरणिक कोटि होती है उसी कोटि के आधार पर उस पदबंध की पहचान की जाती है। अतः पदबंधों में मौजूद मुख्य पदों (शीर्ष पदों) की व्याकरणिक कोटियों के आधार पर पदबंधों को संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, विशेषण, क्रिया-विशेषण इत्यादि पदबंधों के रूप में बाँटा गया है। इन सभी प्रकार के पदबंधों के उदाहरण नीचे दिए गए हैं-

(i) संज्ञा पदबंध-जिसका शीर्ष पद संज्ञा हो। जैसे- दशरथ के पुत्र राम, सिया पिया घर, राम का भाई लक्ष्मण इत्यादि।

(ii) सर्वनाम पदबंध - जिसका शीर्ष पद सर्वनाम हो। जैसे - विरोध करने वाले छात्रो में से कुछ, तुम लोगों ने, यहाँ आने वाले में से अनेक इत्यादि।

(iii) क्रिया पदबंध: विशेषण पदबंध - जिसका शीर्ष पद विशेषण हो। जैसे- मेहनत करने वाला, अत्यंत सुन्दर एवं सुशील, सुन्दर दिखने वाला व्यक्ति इत्यादि।

(v) क्रिया-विशेषण पदबंध - जिसका शीर्ष पद क्रिया-विशेषण हो। जैसे- तेज दौड़ती हुई, लेटे- लेटे पढ़ रहे हैं, बहुत तेज- तेज इत्यादि।

अतः संक्षिप्त में यह कहा जा सकता है कि पदबंध पदों के समूह से बनी हुई वह छोटी भाषिक इकाई है जो न केवल उपवाक्य से छोटी होती है बल्कि जिसमे अर्थ की अभिव्यक्ति भी उपवाक्य की अपेक्षा आंशिक रूप से ही हो पाती है। इस प्रकार आप यह देख सकते हैं कि अन्य भाषिक इकाई की तरह पद एवं पदबंध भी वाक्य-संरचना के आवश्यक घटक है।

इस खण्ड में आपने यह पढ़ा कि किस प्रकार हम वाक्यों का विभाजन या विश्लेषण विभिन्न स्तरों पर कर सकते हैं एवं वे कौन-कौन से भाषिक घटक या अवयव हैं जो वाक्य संरचना के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं। वाक्य के स्तर पर मौजूद भाषिक इकाइयों को छोटे से बड़े क्रम (क) में एवं बड़े से छोटे क्रम (ख) में निम्नलिखित रूप में रखा जा सकता है-
(क) पद → पदबंध → उपवाक्य → वाक्य
(ख) पद ← पदबंध ← उपवाक्य ← वाक्य
इस प्रकार आप देख सकते है कि वाक्य के स्तर पर पद सबसे छोटी इकाई, उसके बाद पदबंध, फिर उपवाक्य एवं सबसे बड़ी इकाई वाक्य होती है।
आइये, अब आपको वाक्य विन्यास के एक और महत्वपूर्ण तरीके से अवगत कराते हैं जिसे भाषाविज्ञान में में निकटस्थ अवयव विश्लेषण के नाम से जाना जाता है।

निकटस्थ अवयव विश्लेषण (Immediate Constituent Analysis)

निकटस्थ अवयव विश्लेषण को अंग्रेजी में 'Immediate Constituent Analysis' कहते हैं। इसकी संकल्पना ब्लूमफील्ड (bloomfield) ने सं. 1939 ई. में की थी। उन्होंने इस विश्लेषण के द्वारा वाक्य में मौजूद अवयवों में से कौन सा अवयव ,किस अवयव के कितने निकट है ,इसके बारे में बताया था। निकटस्थ अवयव विश्लेषण में वाक्यों का एक निश्चित एवं क्रमवार तरीके से विश्लेषण किया जाता है यानि वाक्य को बड़े से छोटे अवयवों में जैसे कि-वाक्य, उपवाक्य, पदबंध, पद या शब्द इत्यादि में तब तक विभाजित किया जाता है जब तक वाक्य विश्लेषण रूपिम के स्तर तक न पहुँच जाए। निकटस्थ अवयव विश्लेषण दो तरीकों से किया जाता है-(i) ब्रैकेट्स (brackets) पद्धति तथा (ii) वृक्ष-आरेख (tree diagram) पद्धति। इन दोनों में से सबसे प्रचलित तरीका वृक्ष-आरेख (tree diagram) पद्धति का है क्योंकि इसके प्रयोग के द्वारा वाक्य में प्रयुक्त अवयवों की व्याकरणिक कोटियाँ या प्रकार्यों के बारे में जानकारी देना आसान हो जाता है।

सारांश

इस इकाई में वाक्य की अवधारणा, वाक्य रचना के आवश्यक तत्व, संरचना एवं अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद तथा वाक्य विन्यास के द्वारा वाक्य के प्रमुख घटक इत्यादि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। शब्दों के सार्थक समूह या पदों के मेल से बने सार्थक भाषिक इकाई को सामान्यतः वाक्य कहा जाता है। इसे भाषा की सबसे बड़ी सार्थक इकाई के रूप में भी माना गया है। हालाँकि, वाक्य की परिभाषा एवं वाक्य को भाषा की सबसे बड़ी इकाई माना जाना चाहिए की नहीं, इसे लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है इसलिए अलग-अलग विद्वानों ने अपने-अपने अनुसार वाक्य को परिभाषित करने की कोशिश की है। किसी भी वाक्य की रचना करने पर उस  वाक्य में वाक्य रचना के आवश्यक तत्व जैसे कि-पदक्रम, अन्वय, निकटस्थ अवयव, अर्थ संगति एवं अर्थ की पूर्णता का होना अति आवश्यक है अन्यथा वह वाक्य व्यावहारिक एवं व्याकरणिक रूप से शुद्ध वाक्य नहीं माना जाएगा। वाक्य को मुख्यतः संरचना एवं अर्थ के आधार पर बाँटा जा सकता है। 

  • संरचना के आधार पर वाक्य को सरल, संयुक्त एवं जटिल वाक्य में बाँटा गया है और अर्थ के आधार पर वाक्य को सकारात्मक, नकारात्मक, प्रश्नवाचक, आज्ञावाचक, इच्छावाचक, संदेहवाचक, संकेतवाचक एवं विस्मयादिबोधक इत्यादि वाक्यों में बाँटा गया है। वाक्य की आतंरिक संरचना के बारे में और अच्छे से जानने के लिए एवं वाक्य में मौजूद वाक्य के विभिन्न घटकों के बारे में पता लगाने के लिए वाक्य का विन्यास या विश्लेषण किया जाना जरुरी है। वाक्य-विन्यास या विश्लेषण में हम वाक्य को बड़े से छोटे इकाइयों में या छोटे से बड़े इकाइयों में विखण्डन कर सकते है। 
  • वाक्य का विखण्डन या विश्लेषण करने पर हमें वाक्य में विभिन्न प्रकार के घटक या अवयव दिखाई देते हैं जैसे कि-उद्देश्य, विधेय, कर्ता, कर्म, क्रिया, उपवाक्य, पदबंध, एवं पद इत्यादि। निकटस्थ अवयव विश्लेषण के द्वारा वाक्य में मौजूद वाक्य के सबसे निकटत्तम अवयवों का भी पता लगाया जाता है। इस प्रकार वाक्य के विश्लेषण के द्वारा हम न केवल वाक्य के विभिन्न घटकों या अवयवों का पता लगा पाते हैं बल्कि हमें वाक्य की आन्तरिक संरचनाओं की भी जानकारियाँ मिलती हैं जिसको बिना जाने या समझे हम वाक्य की बेहतर संरचना नहीं कर सकते हैं। 
  • संक्षिप्त में यह कहा जा सकता है कि इस इकाई में आपने वाक्य की परिभाषा से लेकर वाक्य रचना के आवश्यक तत्व एवं वाक्य की आतंरिक संरचनाओं से जुड़ी हर एक पहलु की जानकारी प्राप्त की है जिसका अध्ययन वाक्यविज्ञान में अनिवार्य रूप से किया जाता है।
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FAQs on वाक्य विन्यास - BPSC General Hindi - BPSC (Bihar)

1. वाक्य की अवधारणा क्या है?
Ans. वाक्य की अवधारणा का तात्पर्य उस समूह से है, जिसमें एक या एक से अधिक शब्द मिलकर एक संपूर्ण विचार व्यक्त करते हैं। वाक्य में एक क्रिया और उसका विषय होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कौन-सी क्रिया किसने की है।
2. वाक्य रचना के आवश्यक तत्व कौन-कौन से होते हैं?
Ans. वाक्य रचना के आवश्यक तत्वों में विषय (कौन), क्रिया (क्या किया गया), और वस्तु (किस पर क्रिया की गई) शामिल होते हैं। इसके अलावा, विशेषण, क्रिया विशेषण और अव्यय जैसे अन्य तत्व भी वाक्य को समृद्ध बनाने में सहायक होते हैं।
3. वाक्य के भेद क्या हैं?
Ans. वाक्य के भेद मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं: सरल वाक्य, मिश्रित वाक्य, जटिल वाक्य औरcompound वाक्य। सरल वाक्य में केवल एक ही स्वतंत्र clause होता है, जबकि मिश्रित वाक्य में दो या दो से अधिक सरल वाक्य होते हैं।
4. वाक्य विन्यास का क्या महत्व है?
Ans. वाक्य विन्यास का महत्व इस बात में है कि यह विचारों को स्पष्ट और प्रभावी रूप में प्रस्तुत करने में सहायता करता है। सही वाक्य विन्यास से संवाद में स्पष्टता और संप्रेषणीयता बढ़ती है, जिससे सुनने वाले या पढ़ने वाले को अर्थ समझने में आसानी होती है।
5. BPSC परीक्षा में वाक्य रचना से संबंधित प्रश्नों की तैयारी कैसे करें?
Ans. BPSC परीक्षा में वाक्य रचना से संबंधित प्रश्नों की तैयारी के लिए अभ्यर्थियों को व्याकरण की मूलभूत अवधारणाओं का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। नियमित रूप से प्रश्न पत्रों का अभ्यास करें, वाक्य रचना के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन करें और विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से अपनी समझ को मजबूत करें।
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