प्रश्न 1: संविधान की उद्देशिका का क्या महत्व है? भारत के संविधान की उद्देशिका में प्रतिष्ठापित भारतीय राज्य व्यवस्था के दर्शन को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर : किसी भी देश के संविधान की उद्देशिका उस देश की शासन प्रणाली के स्वरूप का निरूपण करती हैं। संविधान की उद्देशिका से विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के पारस्परिक सम्बन्धों का निर्धारण होता है। संविधान की उद्देशिका में सम्पूर्ण संविधान की आत्मा प्रतिबिम्बित होती है।
भारतीय संविधान की उद्देशिका में कहा गया है-“ हम,भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व.सम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्राता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 29 नवम्बर, 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं”।
भारतीय संविधान में आगे चल कर जो कुछ भी लिखा है वह इसी उद्देशिका की भावना का अक्षरशः प्रतिबिम्बित करता है। संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा उद्देशिका में समाजवादी तथा पंथनिरपेक्ष एवं अखण्डता शब्दों को जोड़कर संविधान को अधिक व्यापक बनाया गया। उद्देशिका में सम्मिलित शब्द तथा वाक्यांश अपने आप में भारत की राजनीतिक प्रणाली की व्याख्या करने वाले तत्व है। हम भारत के लोग में सम्पूर्ण समाज को एक साथ लेकर चलने की बात है तथा जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्रा आदि से सम्बन्धित विभिन्नताओं के बीच भी एकता के दश्रन होते हैं। सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न होने का अर्थ यह है कि भारत के लोग कानूनों का निर्माण स्वयं करेंगे। समाजवादी समाज की स्थापना का लक्ष्य लेकर समाज के दबे कुचले, साधनहीन लोगों को बराबरी के स्तर पर लाने की बात कही गई है। पंथ निरपेक्ष राज्य का अर्थ है कि राज्य का अपना स्वयं का कोई धर्म नहीं होगा। लोकतांत्रिक शासन.प्रणाली का अर्थ जनता का शासन, जनता के द्वारा, जनता के लिए ही होता है। गणराज्य का अर्थ यह है कि राष्ट्राध्यक्ष वंशानुगत न होकर जनता द्वारा निर्वाचित व्यक्ति होगा।
समाज के सभी वर्गों को सामाजिक.आर्थिक.राजनीतिक न्याय प्रदान करने; विचारों, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्राता प्रदान करने तथा राज्य द्वारा प्रदत्त प्रतिष्ठा एवं अवसरों (विशेष तौर पर सरकारी नौकरियों) की समता के लिए संविधान के मौलिक अधिकार अपने आप में परिपूर्ण है। इसके साथ.साथ राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता को निरूपित करने के लिए मौलिक कर्तव्यों तथा व्यक्ति की गरिमा को प्रदान करने के लिए राज्य के नीति.निदेशक सिद्धान्तों को संविधान में शामिल किया गया है।
प्रश्न 2 : "सांविधानिक मशीनरी का ठप्प हो जाना" के अर्थ पर चर्चा कीजिए। इसके क्या प्रभाव होते हैं?
उत्तर : 'सांविधानिक मशीनरी ठप्प हो जाना' वाक्यांश का प्रयोग भारतीय संविधान के उनुच्छेद 356 में किया गया है। इसका सम्बन्ध किसी राज्य में संविधान के उपबन्धों के अनुसार शासन के न चल पाने की स्थिति से है। राज्यों में सांविधानिक मशीनरी से तात्पर्य विधिवत् रूप से निर्वाचित सदस्यों से युक्त विधान संभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबन्धन के नेता (मुख्यमंत्राी) के नेतृत्व में सरकार के बनने एवं चलने से है। जब आम निर्वाचन के बाद त्रिशंकविधान सभा में किसी राजनीतिक दल या गठबन्धन को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो पाता और सरकार गठित नहीं हो पाती अथवा कुछ सदस्यों द्वारा समर्थन वापस ले लिए जाने या सदन से त्यागपत्रा दे दिए जाने के कारण सरकार सदन में अपना बहुमत खो देती है और कोई वैकल्पिक सरकार नहीं बना पाती, तो इस अवस्था को 'सांविधानिक मशीनरी ठप्प हो जाना' की संज्ञा दी जाती है।
राज्यों में सांविधानिक मशीनरी ठप्प हो जाने की दशा में राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति (केन्द्र सरकार) को इस आशय की एक रिपोर्ट भेजता है कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि उसमें उस राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है। राष्ट्रपति इस प्रकार की स्थिति का समाधान हो जाने पर राज्यपाल की रिपोर्ट प्राप्त होने पर या अन्यथा, एक उद्घोषणा द्वारा सम्बन्धित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा देता है, जिसके अनुसार राष्ट्रपति -
(i) उस राज्य सरकार के सभी या कोई कृत्य और राज्यपाल में या राज्य के विधानमण्डल से भिन्न राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी में निहित या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई शक्तियाँ अपने हाथ में ले लेता है।
(ii) राज्य विधानमण्डल की शक्तियाँ संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोक्तव्य होंगी।
(iii) राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी से सम्बन्धित इस संविधान के किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन को पूर्णतः या भागतः निलम्बित करने के लिए उपबन्धों सहित ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबन्ध करता है जो उद्घोषणा के उद्देश्यों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक एवं वांछनीय होते हैं।
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान उस राज्य के उच्च न्यायालय की शक्तियों एवं कृत्यों पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता। राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की उद्घोषणा को दो माह के भीतर संसद से पारित कराना आवश्यक होता है। यह 6 माह के लिए ही वैध होती है तथा अधिकतम तीन वर्ष तक के लिए होती है।
भारतीय संविधान में यह व्यवस्था उस अवस्था को ध्यान में रखकर की गई थी जब त्रिशंकविधान सभा की स्थिति में कोई लोकप्रिय सरकार गठित न हो पाए या मुख्यमंत्राी सदन का विश्वास खो दे और कोई वैकल्पिक सरकार गठित न हो पाए। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस शक्ति का दुरुपयोग ही अधिक हुआ है। केन्द्र में सत्तासीन राजनीतिक दलों ने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए राज्य में सांविधानिक मशीनरी ठप्प हो जाने के नाम पर राज्यपालों के माध्यम से विधिवत् रूप से निर्वाचित तथा बहुमत प्राप्त सरकारों को बर्खास्त करवा कर राष्ट्रपति शासन लगवाया है।
प्रश्न 3ः धन विधेयक की परिभाषा दीजिए। चर्चा कीजिए कि यह संसद् में किस प्रकार पारित किया जाता है?
उत्तर : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 (1) तथा 199 के अनुसार कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाता है यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से सम्बन्धित उपबन्ध हैंः-
(i) किसी कर का अधिरोपण, उत्पादन, परिहार या विनियमन,
(ii) धन उधार लेने या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा सरकार द्वारा अपने ऊपर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से सम्बन्धित विधि का संशोधन।
(iii) संचित निधियों या आकस्मिकता निधियों में धन जमा करना या निकालना।
(iv) संचित निधि में से धन का विनियोग।
(v) किसी व्यय को संचित विधि पर भारित व्यय घोषित कर या ऐसे किसी व्यक्त की रकम को बढ़ाना।
(vi) संचित निधि या लोक लेखे मद से धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की समीक्षा।
(vii) (i) से (vi) तक के विषयों का कोई आनुषंगिक विषय।
कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इस पर अंतिम निर्णय लोक सभा के स्पीकर या विधान सभा के स्पीकर का ही होता है।
धन विधेयक राज्य सभा या विधान परिषद् में पुरः स्थापित नहीं किया जा सकता। धन विधेयक लोक सभा (राज्यों के मामले में विधान सभा) द्वारा पारित किए जाने के बाद राज्य सभा को उसकी सिफारिशों के लिए प्रेषित किया जा सकता है। राज्य सभा को धन विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चैदह दिन की अवधि के भीतर अपनी सिफारिशों सहित लोक सभा को लौटा देना होता है। यदि लोक सभा राज्य सभा द्वारा की गई सिफारिशों को स्वीकार करके तद्नुसार संशोधित विधेयक को फिर से पारित कर देती है तो इसे दोनों सदनों द्वारा पारित हुआ मान लिया जाता है। यदि लोक सभा राज्य सभा द्वारा सुझाई गई किसी सिफारिश या सभी सिफारिशों को अस्वीकार कर देती है, तो विधेयक मूल रूप से पारित हुआ माल लिया जाता है। यदि राज्य सभा 14 दिन के भीतर धन विधेयक को लोक सभा को वापस नहीं लौटाती है, तो उसे उसी रूप में पारित किया हुआ मान लिया जाता है जिस रूप में वह लोक सभा द्वारा पारित किया गया था।
प्रश्न 4: चर्चा कीजिए कि राज्य सरकारें पंचायतों पर किस प्रकार नियन्त्राण रख सकती हैं?
उत्तर : संविधान के तिहत्तरवें संशोधन द्वारा यद्यपि पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया है, तथापि अभी भी राज्य सरकारों को ऐसे अनेक अधिकार प्राप्त हैं जिनका प्रयोग करते हुए राज्य सरकारें पंचायतों पर नियंत्राण रख सकती है। संविधान के अनुच्छेद की संरचना की बाबत उपबंध बनाने के लिए कानून बनाने की शक्ति राज्य विधानमण्डलों को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वे ग्राम प्रधानों को क्षेत्रा समिति में क्षेत्रा समितियों के अध्यक्षों को जिला पंचायतों में, लोक सभा/राज्य सभा/विधान सभा/विधानपरिषद् के सदस्यों को/जिला पंचायतों/क्षेत्राीय पंचायतों/ग्राम पंचायतों में सदस्य के रूप में नामित किए जाने का कानून बनाए। विभिन्न स्तर के पंचायती निकायों में आरक्षण सम्बन्धी रोस्टर.प्रणाली राज्य सरकार द्वारा ही तय की जाती है। प्रत्येक स्तर के निकाय का अधिशासी अधिकारी सरकारी कर्मचारी होता है जो वित्तीय मामलों में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित विनियमों का ही पालन करता है वित्तीय अनियमितता होने पर विभिन्न निकायों के अध्यक्षों को शक्तिविहीन करने की शक्ति भी राज्य सरकार के पास ही होती है। कर लगाने के शक्ति कानून बनाकर पंचायतों को दी जाएगी, तथापि राज्य सरकारों द्वारा उद्गृहीत ऐसे कर, शुल्क, पथकर आदि फीसें पंचायतेां को भी हस्तान्तरित की जाती हैं। (अनु. 243 ज)।
प्रश्न 5: बंदी प्रत्यक्षीकरण क्या होता है?
उत्तर : संविधान के अनुच्छेद 32, 139 तथा 226 के तहत् सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह संविधान के भाग II में प्रदत्त मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण जारी करे। इसके तहत् किसी भी व्यक्ति को बन्दी बनाए जाने के 24 घंटे के भीतर कारण बताओं नोटिस जारी किया जाता है।
प्रश्न 6: राज्य सरकारों की उधार लेने की शक्ति पर कौन से सांविधानिक निर्बंधन आरोपित किए गए हैं?
उत्तर : संविधान के अनुच्छेद 293 (3) के अनुसार, श्यदि किसी ऐसे उधार का जो भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने उस राज्य को दिया था अथवा जिसके सम्बन्ध में भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने प्रत्याभूति दी थी, कोई भाग अभी भी बकाया है, जो वह राज्य, भारत सरकार की सहमति के बिना उधार नहीं ले सकताश्।
प्रश्न 7: अनुच्छेद 350 (क) के अधीन भाषाई अल्पसंख्यकों को कौन सी विशेष सुविधा प्रदान की गई है?
उत्तर : संविधान के अनुच्छेद 350 क के प्रावधानों के तहत् प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा।
प्रश्न 8: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को किस प्रकार हटाया जा सकता है?
उत्तर : संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के प्रावधानों के तहत् उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पर संसद में महाभियोग चलाकर ही हटाया जा सकता है।
प्रश्न 9: भारत का निर्वाचन आयोग किस प्रकार गठित किया जाता है?
उत्तर : राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोक सभा/राज्य सभा/विधान सभाओं/विधानपरषिद् के सदस्यों का निर्वाचन कराने के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 (2) में निर्वाचन आयोग के गठन की प्रक्रिया दी गई है, जिसके अनुसार, श्निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उतने अन्य निर्वाचन आयुक्तों, यदि कोई हों, जितने राष्ट्रपति समय.समय पर नियम करे मिलकर बनेगा। (वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो निर्वाचन आयुक्त हैं) इन निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
प्रश्न 10: मांग का अथ क्या है? यह किन बातों पर निर्भर करता है?
ऊत्तर : अर्थशास्त्रा में ‘एक वस्तु की मांग’ से आशय है, कि एक व्यक्ति किसी वस्तको खरीदने की इच्छा, शक्ति और तत्परता रखता है। इसको हम ‘प्रभावपूर्ण इच्छा’ के नाम से जानते हैं। एक इच्छा को हम तभी प्रभावपूर्ण इच्छा (मांग) कह सकते हैं, जबकि इसमें तीन बातें शामिल हों (1) इच्छित वस्तको खरीदने की सामथ्र्य, (ii) इच्छित वस्तु के लिए मुद्रा खर्च करने की तत्परता, (iii) वस्तु की उपलब्ध्ता। जब तक किसी इच्छा में उपरोक्त तीन बातें शामिल नहीं होगीं, इनको मांग नहीं कहा जाएग।
किसी वस्तु की मांग को सदैव किसी निर्दिष्ट कीमत और निर्दिष्ट समय के अनुसार व्यक्त किया जाता है।
उदाहरण के लिए, आपकी माँ एक रुपया प्रति-किलोग्राम पर 5 किलोग्राम मटर खरीदना चाहती हैं, लेकिन यदि मटर की कीमत 20 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाती है, तो हो सकता है वे मटर की मांग ही न करें। इसी प्रकार; हो सकता है, कि 100 रुपये कीमत पर वे सर्दी में आपके लिए एक आकर्षक स्वेटर खरीदने को तैयार हैं, लेकिन गर्मी में इस कीमत पर कोई स्वेटर खरीदने को तत्पर न हों।
इससे मांग की यह परिभाषा स्पष्ट होती है: ”एक वस्त की मांग वस्तु की वह मात्रा है जिसे निर्दिष्ट कीमत पर किसी निश्चित समय पर खरीदा जाता है।“
आप अपनी कमीज के लिए कपड़ा खरीदते हैं। क्या कभी आपने विचार किया है कि आप यह कपड़ा क्यों खरीदना चाहते हैं? इसके कई कारण हो सकते हैं, जिस प्रकार कि इस कपड़े की कीमत, इस कपड़े पर जितनी मुद्रा आप खर्च करना चाहते हैं, इस कपड़े के लिए आपकी पसन्दगी, आदि। इसी प्रकार, जब आपने इस पुस्तक को खरीदा होगा, तो कई बातें आपके ध्यान में आयी होंगी, जिस प्रकार, इस पुस्तक के लिए आपकी पसन्दगी (हो सकता है आपके अध्यापक ने इसकी संस्तुति की हो), इस पुस्तक की कीमत, इस पुस्तक के लिए जितनी मुद्रा आप खर्च करना चाहते हैं, आदि।
इसी तरह जब भी आप कोई वस्तखरदते हैं (वस्तु की मांग करते हैं) अनेक बातों का प्रभाव आपके निर्णय पर पड़ता है। माँग के कुछ महत्वपूर्ण निर्धारक तत्त्व निम्न हैं: (क) वस्तु की कीमत, (ख) सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत, (ग) अपभोक्ता की आय, तथा (घ) उपभोक्ता की रूचि।
सांकेतिक रूप में, इन चार तत्त्वों को निम्न फलन के रूप में भी प्रकट किया जा सकता है )
Dn=f(Pn, Pr, Y,T,U)
उपरोक्त फलन में,
D से अभिप्राय वस्तु- N की मांग
Pn से अभिप्राय वस्तु- N की कीमत
Pr से अभिप्राय अन्य सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत,
Y से अभिप्राय उपभोक्ता की आय,
T से अभिप्राय उपभोक्ता की रुचि, एवं
U से अभिप्राय अन्य कारकों से है।
संकेत ' f ' फलन का सूचक है, जोकि इस बात को स्पष्ट करता है कि वस्तु की माँग अन्य चार बातों पर निर्भर करती है। उपरोक्त चारों तत्त्व भिन्न-भिन्न रूप से प्रभाव डालते हैं। इसी कारण प्रत्येक तत्त्व का अध्ययन अलग-अलग किया जाता है। एक तत्त्व का अध्ययन करते समय बाकी तीनों तत्त्वों के प्रभाव को स्थिर माना जाता है। अर्थात् ‘अन्य बातें समान रहेंगी’ की मान्यता करना अनिवार्य है।
प्रश्न 11: विभिन्न तत्वों के मांग पर पड़ने वाले प्रभाव की अलग-अलग विवेचना करें। इसमें किसी एक पर केन्द्रित कर भी सवाल पुछ सकते हैं।
ऊत्तर : वस्तु की कीमत
Dn=f(Pn) : अर्थात् वस्तु N की माँग वस्तु N की कीमत पर निर्भर करती है। वस्तु की कीमत एवं वस्तु की माँग में विपरीत सम्बन्ध होता है। अर्थात् वस्तु की कीमत में वृद्धि के साथ वस्त की माँग कम हो जाती है और इसी प्रकार वस्तु की कीमत में कमी के साथ वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है।
सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतें
Dn=f(Pr) :अर्थात् अन्य बातें समान रहने पर वस्तु N की माँग वस्तु N से सम्बन्धित अन्य वस्तुओं की कीमत पर निर्भर करती है। सम्बन्धित वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैंः (1) स्थानापन्न अथवा प्रतियोगी, तथा (2) पूरक।
1. स्थापन्न वस्तुएँ : ऐसी वस्तुएँ जो एक दूसरे के बदले में प्रयोग की जा सकती हैं, स्थानापन्न वस्तुएँ कहलाती हैं। इनमें से किसी भी वस्तु की कीमत में अन्तर आने से दूसरी वस्तु की माँग में अन्तर आ जाता है।
जैसे बाजार में यदि चाय की कीमत कम हो जाती है तो इसके फलस्वरूप काॅफी की माँग कम हो जाएगी, क्योंकि काॅफी की कीमत अपेक्षाकृत बढ़ जायेगी।
2. पूरक वस्तुएँ : ऐसी वस्तुएँ जिनकी उपयोगिता पूर्ण रूप से एक-दूसरे की उपलब्धि पर निर्भर करती है, पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं। उदाहरण के लिए, बाॅल-पेन और रिफिल। एक वस्तु की उपयोगिता दूसरी वस्तु के बिना लगभग शून्य होती है। इसी कारण एक वस्तु की कीमत का प्रभाव अन्य वस्तपर भी पड़ता है।
यदि रिफिल की कीमत कम हो जाती है तो बाॅल-पेन की माँग स्वतः ही बढ़ जाएगी।
उपभोक्ता की आय
Dn=(Y) : अर्थात् अन्य बातें समान रहने पर वस्तु N विभिन्न को हम तीन वर्गों में बाँट सकते हैं)
1. आवश्यक वस्तुएँ : आय में वृद्धि के फलस्वरूप आवश्यक वस्तुओं की माँग केेवल एक सीमा तक ही बढ़ती है। उस स्तरी के पश्चात् आय में परिवर्तन ऐसी वस्तुओं की माँग को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसी वस्तुओं के उपभोग की एक सीमा है जैसे, आय में वृद्धि के साथ-साथ एक निर्धन परिवार गेहूँ पर अधिक व्यय करता जाएगा।
किन्तएक सीमा के पश्चात् आय में वृद्धि किसी भी प्रकार उस परिवार द्वारा की जाने वाली गेहूँ की माँग को प्रभावति नहीं करेगी।
2. घटिया वस्तुएँ : आय में वृद्धि के साथ-साथ घटिया वस्तु, जैसे मोटा कपड़ा, की माँग कम हो जाती है, क्योंकि उपभोक्ता अपने आप को घटिया कपड़े के बदले में बढ़िया कपड़े, टेरीकाॅट, खरीदने में समर्थ पाता है।
3. विलासिता की वस्तुएँ : ऐसी वस्तुओं की माँग आय के साथ प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होती है। अतः आय में वृद्धि के साथ इन वस्तुओं की माँग बढ़ती है और आय में कमी के साथ माँग कम होती है।
अर्थशास्त्राी उपरोक्त तीन तत्वों, अर्थात वस्तु की कीमत, सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत, उपभोक्ता की आय, के आधर पर भिन्न तीन तरह की माँग के विभेद करते हैः (क) कीमत माँग, (ख) तिरछी माँग, तथा (ग) आय माँग। कीमत माँग वस्तु की कीमत एवं मांग के परस्पर सम्बन्ध को व्यक्त करती है। तिरछी माँग सम्बन्धित वस्तु की कीमत और मूल वस्तु की माँग के परस्पर सम्बन्ध को व्यक्त करती है। आय माँग उपभोक्ता की आय और वस्तु की माँग सम्बन्ध को व्यक्त करती है।
उपभोक्ता की रुचि
DN=F(U) : अर्थात अन्य बातें समान रहने पर वस्तु N की माँग अन्य कारणों से भी प्रभावित होती है जो कि निम्नलिखित हैंः
(क) जनसंख्या की मात्रा : सामान्य रूप से एक देश में जनसंख्या की मात्रा जितनी अधिक होगी, वस्तुओं की माँग भी वहाँ अधिक होगी। घनी आबादी वाले इलाकों में जनरल स्टोर, कपड़े की दुकानें, फल व सब्जी की दुकानों की संख्या अधिक होती है; डाॅक्टर भी ऐसे क्षेत्रों में क्लिीनिक खोलना पसंद करते हैं, जहाँ मरीजों की संख्या अधिक होती है। उपभोक्ताओं की संख्या अधिक होने पर वस्तु की माँग भी अधिक होती है।
(ख) जनसंख्या की बनावट : यदि जनसंख्या में बच्चों की संख्या अधिक है तो डिब्बे का दूध, खिलौने, बिस्कुट, टाॅफी, आदि वस्तुओं की माँग अधिक होगी। इसके विपरीत, यदि जनसंख्या में वृद्धों की संख्या अधिक है, तो ऐनक, छड़ी, नकली दाँत, टाॅनिक ,आदि की माँग बढ़ जाएगी।
(ग) आय का वितरण : यदि समाज में आय का समान वितरण है, तो समाज के सभी सदस्य अधिक मात्रा में वस्तुओं की माँग कर सकेंगे। इसके विपरीत, यदि आय का वितरण इतना असमान है कि अधिकांश लोगों को राष्ट्रीय आय का एक छोटा सा हिस्सा ही प्राप्त होता है तो वस्तुओं की माँग भी कम होगी।
(घ) भावी कीमतों की संभावनाएँ : यदि उपभोक्ता किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि की आशा करते हैं तो वर्तमान समय में उसकी अधिक मात्रा में माँग करेंगे। इसके विपरीत, यदि उपभोक्ता भविष्य में वस्तु की कीमत में गिरावट की आशा करते हैं, तो वे इसका उपभोग स्थगित कर देंगे, जिसके परिणाम स्वरूप वस्तु की माँग कम हो जाएगी।
प्रश्न 12: नीचे की ओर झुकी हुई माँग के नियम को समझाऐं।
उत्तर : माँग का नियम वस्तु की कीमत एवं वस्तु की माँग के विपरीत सम्बन्ध को व्यक्त करता है। मार्शल के शब्दों में, ”किसी वस्तु की अधिक मात्राओं की बिक्री के लिए उनके मूल्य में कमी होनी चाहिए ताकि उसके खरीदार मिल सकें। दूसरे शब्दों में, मूल्य में कमी के साथ माँग की मात्रा में वृद्धि और मूल्य में वृद्धि के साथ माँग की मात्रा में कमी होती है।“
चाकलेट की कीमत घटने पर इसकी माँग बढ़ती है, रेप्रिजरेटर की कीमत कम होने पर गृहस्थ इसकी अधिक माँग करते हैं, या कमीजों की कीमत बढ़ने पर इनकी माँग कम हो जाती है। ये सब बातें मनुष्य के सामान्य व्यवहार को प्रदर्शित करता है।
प्रो सेम्यूलसन ने इस नियम को ‘नीचे की ओर झुकी हुई माँग का नियम’ कहा है। उन्हीं के शब्दों में,”जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो (अन्य बातें समान रहने पर) उस वस्तु की माँग कम हो जाती है। अथवा दूसरे शब्दों में, यदि बाजार में वस्तु की अधिक मात्रा उपलब्ध है तो (अन्य बातें समान रहने पर) वस्तको बेचने के लिए कीमत में कमी करना अनिवार्य होगा।“
संक्षेप में, माँग का नियम बताता है कि अन्य बातें समान रहने पर ऊँची कीमत पर उपभोक्ता एक वस्तको कम तथा नीची कीमत पर अधिक मात्रा में खरीदेगा।
प्रश्न 13: माँग अनुसूची को परिभाषित करें और इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
ऊत्तर : - माँग अनुसूची एक सारणी के रूप में प्रस्तुत विवरण है जो कि यह बताता है कि विभिन्न कीमतों पर वस्तु की माँग कितनी होगी। माँग अनुसूची दो प्रकार की होती हैः (1) व्यक्तिगत माँग अनुसूची (1) बाजार माँग अनुसूची
1. व्यक्तिगत माँग अनुसूची यह बताती है कि एक व्यक्ति या गृहस्थ द्वारा विभिन्न कीमतों पर वस्तु की कितनी माँग की जाएगी। मान लीजिए, एक व्यक्ति 20 रुपये प्रति दर्जन कीमत पर एक सप्ताह में दो दर्जन संतरे खरीदता है। यदि संतरों की कीमत बढ़कर 50 रुपये प्रति-दर्जन हो जाती है तो व्यक्ति डेढ़ दर्जन संतरों प्रति-सप्ताह खरीदता है और यदि कीमत और अधिक बढ़ती है तो व्यक्ति को संतरे की माँग में और अधिक कटौती करनी पड़ेगी। व्यक्ति के माँग-व्यवहार केा माँग-अनुसूची की सहायता से प्रदर्शित किया जा सकता है।
2. (क) बाजार माँग अनुसूची व्यक्तिगत माँग अनुसूचियों की सहायता से ही तैयार की जाती है। बाजार माँग अनुसूची निम्नलिखित विधियों में से किसी एक को अपनाने से तैयार की जा सकती हैः
(क) गुणात्मक विधि : पहली विधि के अनुसार हम किसी एक क्षेत्रा में रहने वाले उपभोक्ताओं में से किसी एक व्यक्ति (जिसे उस क्षेत्रा का प्रतिनिधि उपभोक्ता समझा जाएगा) की वस्तु के लिए माँग-अनुसूची तैयार कर लेते हैं। इस प्रकार से अनुमानित माँग को क्षेत्रा में रहने वाले उपभोक्ताओं की संख्या से गुणा कर दिया जाता है। गुणा करने पर जो परिणाम प्राप्त होता है उसे बाजार माँग अनुसूची की संज्ञा दी जाती है।
(ख) जोड़ विधि : बाजार माँग अनुसूची बनाने की दूसरी विधिके अनुसार किसी वस्तसे सम्ब) सभी उपभोक्ताओं की व्यक्गित माँग अनुसूचियों को जोड़ लिया जाता है। व्यक्तिगत माँग अनुसूचियों को जोड़ कर जो अनुसूची बनती है उसे बाजार माँग अनुसूची कहते हैं।
प्रश्न 14: माँग वक्र से आप क्या समझते हैं? माँग वक्र का ढाल नीचे की ओर क्या होता हैं?
ऊत्तर : - माँग वक्र भी कीमत और माँग के उसी सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है, जो कि माँग अनुसूची के द्वारा प्रकट किया जाता है। माँग वक्र में यह सम्बन्ध रेखाचित्रा की सहायता से स्पष्ट किया जाता है, जबकि माँग अनुसूची में इसे गणितात्मक रूप से प्रकट किया
यदि माँग समीकरण के रूप व प्राचल के बारे में पूर्ण जानकारी उपलब्ध हो, तो माँग के किसी विशेष समीकरण का ज्ञात किया जा सकता है। उदाहरण के लिए एक सरल रेखीय समीकरण निम्न रूप धरण करेगा) Qd = 110 - 10p
अत) 10 रु. प्रति-इकाई कीमत पर वस्तु की माँग 110-10 (10) = 10 इकाई होगी; 9 रु. कीमत पर माँग 20 इकाई होगी। इसी प्रकार कीमतों पर माँग को ज्ञात किया जा सकता है।
(व्यक्तिगत माँग-वक्रों का क्षैतिज जोड़ (horizontal sum) करके बाजार माँग-वक्र को प्राप्त किया जा सकता है।)
बाजार माँग संक्षेप में कहा जा सकता है कि बाजार माँग-वक्र कीमत और माँग के उसी सम्बन्ध को प्रकट करता है, जो की व्यक्तिगत माँग वक्र द्वारा प्रकट किया जाता है।
साँकेतिक रूप से बाजार माँग वक्र को हम निम्न प्रकार भी स्पष्ट कर सकते हैंः Dm= DA+ DB +...Dn जहाँ D से अभिप्राय बाजार माँग वक्र से तथा DA, DB, Dn से अभिप्राय उसी वस्तु के व्यक्तिगत माँग वक्रों से है।
इसको बाजार माँग वक्र को ज्ञात करने की जोड़ विधि कहा जाता है। इस विधि की सबसे बड़ी सीमा यह है, कि इसको व्यवहार में लागू करना बहुत कठिन है। इस विधि से पहले किसी वस्तु विशेष के लिए व्यक्तिगत माँग अनुसूचियों को ज्ञात करना पड़ता है तथा बाद में उन्हें जोड़कर बाजार माँग अनुसूची को ज्ञात किया जाता है।
किसी वस्तु की बाजार माँग वक्र को एक अन्य विधि के द्वारा भी ज्ञात किया जा सकता है जिसे ‘गुणात्मक विधि' कहते हैं। इस विधि में किसी वस्तु विशेष के लिए भी व्यक्तिगत माँग अनुसूचियों को ज्ञात करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसकी बजाय हम किसी वस्तु विशेष के लिए औसत उपभोक्ता की माँग वक्र ज्ञात करते हैं तथा विभिन्न कीमतों पर इस उपभोक्ता के द्वारा माँगी गई वस्तु की मात्रा को बाजार में क्रेताओं की संख्या से गुणा कर देते हैं।
माँग वक्र जो कि माँग के नियमों को रेखाचित्रा के रूप प्रस्तुत करता है,‘अन्य बातें समान रहें’ की मान्यता पर आधरित है। ‘अन्य बातें समान रहें’ का आशय यह है, कि उपभोक्ताओं की आय, रुचि, अधिमानों, आदि में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए, तथा सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतें भी स्थिर रहनी चाहिए। सामान्य रूप से माँग वक्रों का ढाल ऊपर से नीचे दाहिणी ओर होता है, जबकि यह स्पष्ट करता है कि ऊँची कीमत पर वस्तु की माँग कम तथा नीची कीमत पर माँग अधिक होती है।
माँग वक्र सामान्यतः दाहिनी ओर नीचे की तरफ झुकते हैं। इसकों माँग वक्र का ऋणात्मक ढाल भी कहा जाता है। माँग वक्र का नीचे की ओर ढाल कीमत और माँग के विपरीत सम्बन्ध को प्रकट करता है। किसी भी वस्तु की माँग ऊँची कीमत पर कम तथा कम कीमत पर अधिक होती है।