प्रश्न 15 : वन अग्नि नियंत्राण की व्याख्या करें।
उत्तर : देश में आग लगने के कारणों का पता लगाने, रोकथाम और विरोध करने के लिए चंद्रपुर (महाराष्ट्र) और हल्द्वानी, नैनीताल (उत्तर प्रदेश) में यू. एन. डी. पी. के सहयोग से एक आधुनिक वन अग्नि नियंत्राण परियोजना शुरू की गई है। वर्तमान में यह देश के 11 राज्यों में चलाई जा रही है। राज्य सरकारों को हाथ के औजारों, अग्नि प्रतिरोधी वस्त्रों, वायरलेस संचार तंत्रा, अग्नि खोजी औजारों, निगरानी स्तंभों के निर्माण, फायर-लाइन्स की स्थापना आदि के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है।
प्रश्न 16 : वन्य जीवन पर चर्चा करें।
उत्तर : भारतीय वन्य जीवन बोर्ड, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्राी हैं, वन्य जीवन संरक्षण की अनेक परियोजनाओं के अमलीकरण की निगरानी और निर्देशन करने वाला शीर्ष सलाहकार संघ है।
प्रश्न 17 : 19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में रूढ़िवादी और उदारवादी विचारधारा के प्रशासकों में मौलिक मतभेद क्या थे?
उत्तर : 19वीं शताब्दी के रूढ़िवादी और उदारवादी ब्रिटिश प्रशासकों में मौलिक अंतर यह था कि जहाँ उदारवादी शासक भारतीयों की दशा में सुधार करके उनके मुखर विरोध को कम करना चाहते थे, वहीं रूढ़िवादी शासक दमन का सहारा लेकर भारत में ब्रिटिश सत्ता को बनाये रखना चाहते थे। एक ओर, जहाँ 19वीं शताब्दी में लार्ड बेलेस्की, लार्ड हेस्टिंग्स, लार्ड एलेनबरो, लार्ड डलहौजी, लार्ड लिटन, लार्ड कर्जन जैसे रूढ़िवादी शासकों ने दमन और उत्पीड़न के सहारे भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ को मजबूत किया, वहीं दूसरी ओर, विलियम बेंटिक, लार्ड कैनिंग, लार्ड रिपन आदि उदारवादी शासक भारतीयों की दशा में सुधार लाकर भारतीयों के मन में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति उत्पन्न आक्रोश को कम करने में सफल रहे। रूढ़िवादी प्रशासकों ने दमन के सहारे साम्राज्य फैलाना चाहा, विलोमतः उदारवादी प्रशासकों ने भारत में कानून के शासक की स्थापना की।
प्रश्न 18 : ”मार्ले-मिंटो सुधारों ने भारतीय समस्याओं को न हल किया और न कर सकते थे।“ व्याख्या कीजिए।
उत्तर : 1909 के मार्ले-मिन्टो सुधार अधिनियम पूर्णतः भारतीय जनता के आशानुरूप नहीं थे हालांकि, इस सुधार अधिनियम से लेजिस्लेटिव काउंसिलों के निर्माण और कृत्यों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। प्रान्तीय कार्यकारिणी में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 50 कर दी गई और विधानमंडलों को बजट पर बहस करने ओर प्रस्ताव लाने का अधिकार दिया। परन्तु स्वशासन की माँग को नकार दिया गया तथा प्रान्तीय सरकारों पर केन्द्रीय सरकार के नियंत्राण पहले जैसे ही रहे। साथ ही, इस सुधार अधिनियम के द्वारा भारत के विभाजन का बीज बो दिया गया, जिसके तहत मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की स्थापना की गई। उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि 1909 ई. के सुधारों ने भारतीय राजनीतिक समस्या का कोई समाधान नहीं दिया और न समाधान देना अधिनियम के बस की बात थी।
प्रश्न 19 : "1916 के लखनऊ समझौते पर बिना उसके परिणामों पर विचार किए हस्ताक्षर कर दिए गए“। व्याख्या कीजिए।
उत्तर (c) : टर्की और ब्रिटेन के बीच युद्ध ने मुसलमानों के सशक्त वर्गों में ब्रिटेन विरोधी प्रबल भावनायें जगाईं। परिणामस्वरूप 1916 ई. में काँग्रेस और लीग के बीच लखनऊ समझौते पर हसताक्षर किये गए। यद्यपि इस समझौते को हिन्दू और मुसलमानों के बीच ऐतिहासिक समझौते का दर्जा दिया गया, परन्तु मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन को स्वीकार करके अन्ततः यह स्वीकार कर लिया कि एक ही देश में रह रहे हिन्दुओं और मुसलमानों के हित अलग.अलग हैं। साम्प्रदायिकता के इसी कटु फल का स्वाद भारत को विभाजन के यप मे चखना पड़ा। लखनऊ समझौते ने धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता को ठेस पहुँचाई।
प्रश्न 20 : रवीन्द्र नाथ टैगोर के ग्रामीण पुननिर्माण की योजना की व्याख्या कीजिए
उत्तर : रवीन्द्र नाथ टैगोर भारत की विकास एवं समृद्धि के लिए ग्रामीण पुनर्निमान को आवश्यक मानते थे। उनका कहना था कि जब तक शिक्षित बेरोजगार रोजगार पाने के लिए शहरोें की ओर पलायन करते रहेंगे तब तक गाँवो का विकास असंभव है। इसलिए टैगोर ने ग्रामीण पुनर्निर्माण की एक विस्तृत योजना प्रस्तुत की। इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीण उद्योगों को प्रारम्भ करने तथा ग्रामीणों की समस्याओं को हल करने पर विशेष जोर दिया गया। टैगोर का यह भी कहना था कि ग्रामीण युवकों को अपनी शिक्षा समाप्त करने पर गाँव में ही रोजगार की सुविधा उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए।
प्रश्न 21 : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आरंभिक दिनों में नरम दल वालों के क्या योगदान रहे?
उत्तर : 1885 ई. में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1905 तक नरमदलीय लोगों द्वारा संचालित की जाती रही। इस समय कांग्रेस की मुख्य भूमिका भारतीय राजनीतिज्ञों को एकता व प्रशिक्षण के लिए मंच प्रदान करना था। प्रारम्भ में इसने भारतीय उच्च वर्ग की आकांक्षाओं व हितों को ही मुखरित किया। इस युग में कांग्रेस पर दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, वोमेश चन्द्र बैनर्जी, आदि लोगों का वर्चस्व था। इनका विश्वास था कि अंग्रेज न्यायप्रिय लोग हैं और वे भारतीयों के साथ न्याय करेंगे, फलस्वरूप इन्होंने भारतीयों के लिए केवल रियायतों की ही मांग की, जिसमें विधान परिषदों का विस्तार, उनकी शक्ति में वृद्धि तथा प्रतिनिधित्व देना सम्मिलित था। नरमदलीय कांग्रेसियों की उपलब्धियाँ सीमित है यथा इन्होने भारतीय राष्ट्रवाद को जन्म दिया, जनमानस में जागरूकता का प्रसार किया, इन्होंने भारतीय प्रजातंत्रा हेतु विचारों का संप्रेषण किया, इन्होंने लोक सेवाा आयोग की स्थापना के लिए अंग्रेजी सरकार को बाध्य किया, 1882 का भारतीय कांउसिल अधिनियम इनकी महान उपलब्धि है। इन्होंने भारतीयों की आर्थिक र्दुदशा को अहम् बनाया एवं इसके लिए अंग्रेजी सरकार को दोषी ठहराया, लोकसेवा में भारतीयों की भागेदारी भी नरम दलीयों की देन है। इन्होंने अंग्रेजों की वास्तविकता संपूर्ण विश्व के सामने खोलने की कोशिश की, जिसमें अंग्रेजों की क्रूरता का वर्णन किया गया।
इस प्रकार यदि प्रारम्भिक दिनों में नरमदलीय लोगों के योगदान पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपने बाद की पीढ़ियों को स्वतंत्राता प्राप्ति हेतु मार्ग प्रशस्त किया।
प्रश्न 22 : होम रूल आंदोलन में एनी बेसेंट की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर (c) : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के फूट (1907ई.) से कांग्रेसजनो में मतभेद एवं 1909 ई. के मारले-मिन्टो सुधारों के सरकारी प्रयासों ने स्वतंत्राता संग्राम की गति को धीमा कर दिया। चारो ओर निराशा और असंतोष का वातावरण छा गया। ऐसे में आयरलैंड निवासी थियोसोफी महिला एनी बेसेन्ट ने राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों में जोश का माहौल पैदा किया, और आयरलैंड में प्रचलित ‘होमरूल लीग’ की स्थापना मद्रास में 1916 ई. को की। एनी बेसेन्ट के इस भगीरथ प्रयास में लोकमान्य तिलक ने उनका साथ दिया एवं उन्होंने भी ‘होमरूल लीग’ की स्थापना की। तिलक ने ‘मराठा’ व ‘केसरी’ के माध्यम से तथा एनीबेसेन्ट ने ‘कामनवील’ व ‘न्यूइंडिया’ समाचार-पत्रों के माध्यम से गृहशासन की जोरदार मांग की, यह आंदोलन शीघ्र ही संपूर्ण भारत में फैल गया।
एनीबेसेन्ट के प्रयत्नों से ही नरमपंथी व गरमपंथी 1916 के लखनऊ अधिवेशन में पुनः एक मंच पर आये, इसी अधिवेशन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का भी समझौता हुआ। एनीबेसेन्ट के ‘होमरूल’ विचार से सभी कांग्रेसी संतुष्ट थे, इस आंदोलन की सफलता के आधार पर एनी बेसेन्ट को 1917 ई. में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। इन ‘स्वशासी आंदोलन कत्र्ताओं’ का मानना था कि भारत ने प्रथम विश्व युद्ध में जिस तरह अंग्रेजी सरकार को सहयोग प्रदान किया था, उसी तरह अंग्रेजों को उनके इस स्वशासन की मांग को भी स्वीकारना चाहिये। यद्यपि इस आंदोलन ने राजनीनितिक माहौल को गरमा दिया था। परन्तु प्रत्यक्ष रूप से इसको कोई सफलता नहीं मिली। इसी आंदोलन की प्ररेणा से 1919 ई. का मांटेसक्यू.चेम्स फोर्ड सुधार आया, जिसने ‘प्रांतीय स्वयतत्ता’ का मार्ग प्रशस्त किया।
इस प्रकार एनी बेसेन्ट के होमरूल आंदोलन ने गांधी जी के ‘अहिंसात्मक आंदोलन’ के लिए वातावरण तैयार कर दिया था, इसी आंदोलन ने भारतीयों को स्वशासन के लिए लड़ना सिखाया।
प्रश्न 23 : इस शताब्दी के तीसरे दशक के अंतिम दिनों में अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं ने जवाहरलाल नेहरू के आमूल परिवर्तन कारक विचारों को किस प्रकार प्रभावित किय?
उत्तर : जवाहरलाल नेहरू मूलतः एक राजनीतिज्ञ थे, हाॅब्स या रूसो की भांति राजनैतिक दार्शनिक नही। इसलिए विश्व की कोई भी
छोटी-बड़ी घटना उनके विचारों पर अपना प्रभाव अवश्य डालती थी। परन्तु बीसवीं सदी के दूसरे दशक में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात सोवियत गणराज्यों में जो क्रांति हुई, जिसे ‘बोल्शेविक क्रांति’ के नाम से जाना जाता है, ने विश्व के सभी राजनीतिक विचारको को प्रभावित किया। इस अभूतपूर्व क्रांति से भारतीय राजनीतिक विचारक जवाहरलाल नेहरू कैसे अछूते रह जाते। साम्यवाद व समाजवाद जो 1917 ई. के क्रांति की उपज थी, ने नेहरू जी को प्रभावित किया। अपनी जिज्ञासा को शांत करने वे 1926 ई. में बर्लिन पहुंचे, 1927 ई. में अंतर्राष्ट्रीय गणतांत्रिक आंदोलन के साथ उनके व्यापक और दीर्घकालीन संपर्कों की शुरुआत हुयी, ब्नरसेल्स में हुए पीड़ित राष्ट्र सम्मेलन में उन्होेंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। सोवियत संघ की यात्रा ने उनके जीवन दर्शन को ही बदल दिया।
नेहरू के समाजवाद में अभावों से पीड़ित जनता के लिए दर्द था, जीवन के सभी क्षेत्रों में सभी समानता की कामना थी। नेहरू जी के ऊपर द्वितीय विश्व युद्ध तक माक्र्सवाद और साम्यवाद छाया रहा, परन्तु बाद में ये क्षीण होते चले गये।
इस प्रकार बोल्शविक क्रांति, साम्यवाद, समाजवाद आदि अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम का गहन अध्ययन करने के कारण नेहरू जी भारत में साम्यवाद व समाजवाद के प्रबल समर्थक बन गये।
प्रश्न 24 : टैगोर ने राजनीतिक व्यवस्था की तुलना में सामाजिक व्यवस्था को प्राथमिकता देने पर क्यों बल दिया था?
उत्तर : अंतर्राष्ट्रीय नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रथम भारतीय ‘कविवर’ रबीन्द्रनाथ टैगोर न सिर्फ कवि थे अपितु वे एक उच्च कोटि के संगीतकार, सामाजिक विचारक थेे क्योंकि वे भारत के पिछड़ेपन का कारण सामाजिक क्षय को मानते थे, उन्होंने राज्य का लोप नहीं चाहा पर व्यक्ति और समाज को राज्य का आधार माना एवं सामाजिक कल्याण का आधार राज्य पर न मानकर समाज पर माना। ‘हीगल’ और ‘माक्र्स’ जहाँ राज्य को सामाजिक जीवन की शर्त मानते हैं वहीं टैगोर राज्य को एक ऐसी संस्था के रूप में स्वीकार करते हैं जिसका मुख्य कार्य शांति और व्यवस्था की रक्षा करना है।
टैगोर एक ऐसे समाज के समर्थक थे, जिसमें व्यक्त्यिों को सृजनात्मक और सहकारी कार्यों द्वारा आत्मभिव्यक्ति के पूर्ण अवसर मिलें। उनके अनुसार सभ्य और सुंस्कृत-समाज में असमानताएँ बहुत कम होनी चाहिए, तथा व्यक्ति को अपेक्षिक महत्त्व दिया जाना चाहिए। टैगोर के अनुसार स्वतंत्राता का अर्थ प्रथाओं और परम्पराओं के बंधन से मुक्त, मन व दृष्टिकोण की संकीर्णता से दूर तथा भय से मुक्ति प्राप्त कर लेना है। टैगोर गांवों के स्वावलंबन पर बहुत अधिक जोर देते थे, उनके अनुसार गांवों में सभी सुविधायें व संसाधन उपलब्ध होने चाहिये जिससे ग्रामीण नवयुवक शहर की ओर आकृष्ट न हों। उन्होंने सामाजिक बुराइयों को जन चेतना के जागरण द्वारा दूर करने का संकल्प दिया, जो राज्य का प्रमुख धर्म होना चाहिये।
उपरोक्त विचारधाराओं का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि टैगोर एक सामाजिक विचारक थे, वे तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियेां के लिए राजनीति को उत्तरदयी ठहराते है, उनके अनुसार राजनीतिक व्यवस्था में सुधार तभी संभव है जब समाज आदर्श निर्दिष्ट गुणों का पालन करेगा।
प्रश्न 25 : भारत के सामाजिक जन.जीवन में निम्नलिखित का योगदान समझाइये।
(i) इला भट्ट
(ii) एम. जी. रानाडे
(iii) नारायण गुरू
(iv) मदनमोहन मालवीय
(v) आचार्य नरेन्द्र देव
(vi) बिरसा मुण्डा
(vii) बाबा आम्टे
(viii) मालती देवी चैधरी
(ix) डाॅ जाकिर हुसैन
(x) सी. एन. आनन्दुरै
उत्तर (i) : इला भट्ट - इन्होंने सेल्फ एजुकेशन वुमेन एशोसिएशन (सेवा) के बैनर तले महिलाओं के उद्धार के लिए कार्य किया और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने तथा समाज में उचित स्थान दिलाने का प्रयास किया।
(ii) एम. जी. रानाडे - सुप्रसिद्ध समाज सुधारक व 1867 में केशव चन्द्र सेन की प्ररेणा से बम्बई में प्रार्थना समाज के संस्थापकों में एक, जिन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह तथा कल्याण पर जोर दिया और 1887 में ज्वलंत सामाजिक प्रश्नों पर मद्रास में नेशनल सोशल कांफ्रेंस का आयोजन किया।
(iii) नारायण गुरु - केरल के गरीब इझावा परिवार में जन्मे, जाति प्रथा के कट्टर विरोधी, जिन्होंने इझावाओं के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक उत्थान के लिए श्रीनारायण धर्म पर पालन योगुन की स्थापना की।
(iv) मदन मोहन मावलीय - 1861 में इलाहाबाद में जन्मे व पढ़े काशी हिन्दू विद्यालय के संस्थापक व उपकुलपति, इंडियन यूनियन, हिन्दुस्तान टाइम्स, अभ्युदय व लीडर के सम्पादक, इलाहाबाद उच्च-न्यायालय के प्रमुख वकील और स्वतंत्राता सेनानी मालवीय जी भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के अध्यक्ष रहे तथा 1931 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।
(v) आचार्य नरेन्द्र देव - सुप्रसिद्ध वकील, राजनीतिज्ञ, काशी विद्यापीठ के प्राचार्य व विद्वान, जिन्होंने गांधी जी के असहयोग आन्दोलन के दौरान वकालत छोड़ दी व आरम्भ में कांग्रेस में समाजवादी दल के नेता रहे और बाद में कांगे्रस से अलग होकर 1948 में सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की।
(vi) बिरसा मुण्डा-मुण्डा विद्रोहियों के नेता, जिसके नेतृत्व में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मुण्डाओं ने मुण्डा स्वशासन की स्थापनार्थ ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया और अंग्रेज सरकार ने फरवरी, 1860 में इन्हें गिरफ्तार किया तथा जेल में हैजे से मृत्यु हो गयी।
(vii) बाबा आम्टै- महाराष्ट्र के चन्दरपुर जिले में कुष्ठ रोगियों व विकलांग व्यक्तियों के लिए ‘आनन्दवन’ आश्रम के संस्थापक व 1985 के रेमन मैग्सेसे पुरस्कार के विजेता, जिन्होंने गत दिनों पंजाब में शांति स्थापनार्थ व देश की एकता व अखंडता के लिए ‘भारत जोड़ो’ यात्रा की।
(viii) मालती देवी चैधरी -उड़ीसा की बुजुर्ग स्वाधीनता सैनानी, जिन्होंने सच्चे मन से बच्चों, स्त्रिायों एवम् आदिवासियों की शिक्षा व बेहतरी के लिए काफी कार्य किया।
(ix) सी.एन. आनन्दुरै - सुप्रसिद्ध विद्वान व समाज सुधारक, जिन्होंने कामगारों व सामाजिक रूप से पिछड़ों के उत्थान के लिए कार्य करने के साथ ही तमिल भाषा के प्रचार के लिए भी कार्य किया।
प्रश्न 26 : निम्नलिखित कहाँ है? और वे इतने विख्यात क्यों हैं?
(i) दक्षिणेश्वर
(ii) भरूछ
(iii) प्रागज्योतिष
(iv) देवराला
(v) जहानाबाद
उत्तर (i) : दक्षिणेश्वर - पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में स्थित स्थान। यहां रामकृष्ण परमहंस को कालि मन्दिर में ज्ञानोदय हुआ।
उत्तर (ii) : भरूछ - गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर बसा एक प्राचीन नगर। यहां भृगुऋषि का मन्दिर है।
उत्तर (iii) : प्रागज्योतिष -प्राचीन असम की राजधानी। प्राचीन काल में ज्योतिष का सुप्रसिद्ध केन्द्र।
उत्तर (iv) देवराला -राजस्थान में अवस्थित एक स्थान जहां अपने पति की चिता की अग्नि में सती होकर रूपकंुवर ने सती प्रथा का एक और अध्याय रचा।
उत्तर (v) जहानाबाद-बिहार का एक स्थान, जहाँ लोरिक सेना द्वारा हरिजनों के सामुहिक हत्याकांड की घटना हुई।
प्रश्न 27 : सामाजिक-धार्मिक सन्दर्भ में निम्नलिखित का महत्त्व समझाइए
(i) आलवार संत
(ii) फरैजियों का आन्दोलन
(iii) कूका आंदोलन
उत्तर (i) आलवार संत-ये तमिल राज्य में 7 वीं से 9वीं शताब्दी की अवधि में वैष्णव धर्म के मतावलम्बी व प्रचारक थे। इनमें कुल 12 संतों को मान्यता मिली है, जिसमें रामानुजाचार्य माधवाचार्य प्रमुख हैं। इसमें विभिन्न व्यवसायों से जुड़े स्त्राी व पुरुष थे, जो कि विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते हुए अपनी भक्तिपूर्ण रचनाएं गाते थे। इन्होंने आराध्य और भक्तों के बीच वैयक्तिक संबंधों पर जोर देकर हिन्दुमत को एक नया मोड़ दिया तथा भक्ति की प्रचलित धारणाओं के स्थान पर अच्छे कार्यों द्वारा ईश्वर भक्ति करने पर बल दिया
उत्तर (ii) फरेजियों का आंदोलन-फरीदपुर के हाजी शरीयतुल्लाह ने पूर्वी बंगाल में फरायजी सम्प्रदाय की स्थापना की। ब्रिटिश सरकार की किसानों के खिलाफ जुल्म भरी नीतियों के विरोध में धार्मिक भावनाओं से युक्त फराजियों ने शरीयतुल्ला के नेतृत्व में आन्दोलन आरम्भ किया। इस आंदोलन का लक्ष्य इस्लाम की कुरीतियों का दूर करना था। ये जमीदारों द्वारा किसानों के शोषण के विरुद्ध थे तथा मुस्लिम शासन की स्थापना करके सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तनों के पक्षधर थे। बाद में इसका नेतृत्व दादू मियाँ ने किया।
उत्तर : (iii) कूका आंदोलन-इस आंदोलन की स्थापना लगभग 1840 में पश्चिमी पंजाब में भगत जवाहरमल ने सिक्ख धर्म में आई कुरितियों को दूर करने के उद्देश्य से की थी। इनका प्रसिद्ध अनुयायी बालक सिंह थे। इनका मुख्यालय हाजरों में था। 1863 व 1872 में अंग्रेजों ने कूकाओं को कुचलने के लिए सैनिक कार्रवाइयाँ की तथा इनके प्रमुख नेता रामसिंह कूका को रंगुन जेल भेज दिया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गयी।
प्रश्न 28: अध्यापक अभिभावक संघ का कार्य क्या होना चाहिए।
उत्तर : 1. माह में कम से कम एक बार अध्यापक-अभिभावक संघ की बैठकें आयोजित करना।
2. शिक्षक-सम्मान दिवस का आयोजन अध्यापक-अभिभावक संघ द्वारा किया जाना चाहिए।
3. समय-समय पर विभिन्न सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कार्यक्रमों जैसे कवि सम्मेलन, नाटक एकाभिनय एवं संगीत सम्मेलन आदि का आयोजन करना।
4. विद्यालय साधनों तथा अभिभावकों के उपलब्ध साधनों का पारिस्परिक उपयोग हेत आदान-प्रदान करना।
5. विद्यालय के विभिन्न क्रियाकलापों का समय-समय पर मूल्यांकन करना और उसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन एवं परिवर्द्धन करना।
6. विद्यालय में शैक्षिक समुन्नयत हेतु विषय प्रयास करना। इस हेतु अध्ययन वृत्तों तथा संगोष्ठियों आदि का आयोजन करना।
धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा के अन्तर्गत निम्न कार्यक्रमों का समावेश किया जाना चाहिए।
7. विद्यालयों में कार्यारम्भ के पूर्व ईश्वर वन्दना एवं सर्व-धर्म सम्भव प्रार्थनाएँ की जानी चाहिए।
8. प्रार्थना स्थल पर ही कुछ महान् व्यक्तियों की जीवनी, छोटी-छोटी कहानियों के रूप में, सुनाई जानी चाहिए।
9. महान् धार्मिक नेता की जयन्तियाँ बहुत ही धूमधाम के साथ विद्यालय में मनाई जानी चाहिए जिससे छोटे-छोटे बालकों को उनके बारे में ज्ञान प्राप्त हो सके।
विद्यालय के बालकों को नैतिक वाक्य बार-बार सुनाए जाने चाहिए।
छात्रों को नैतिक धार्मिक वृत्ति को बल देने के लिए अध्यापिकाओं को भी अनके आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए।
विद्यालय के बालकों को चित्रों की सहायता से महान् व्यक्तियों की जीवनी बताई जानी चाहिए।
विद्यालय के बालकों के लिए महान व्यक्तियों के जीवन संस्करणों को बताने के लिए ऐसी पुस्तक बनाइग् जानी चाहिए जो चित्रों की सहायता से महान् व्यक्तियों के जीवन की विशेषताओं को बता सकें। इन पुस्तकों को नर्सरी विद्यालय में पढ़ाया जाना चाहिए।