प्रश्न 1 : संसद में कार्य-संचालन के संदर्भ मेें ‘शून्य काल’ (Zero Hour) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : संसद के दोनों सदनों में ‘प्रश्न काल’ के तुरन्त बाद का समय ‘शुन्यकाल’ कहलाता है। इस समय की कार्य प्रकृति अनियमित होती है; क्योंकि इस दौरान बिना किसी अनुमति या पूर्व सूचना के मुद्दे उठाये जाते हैं।
प्रश्न 2 : संसद सदस्यों के विशेषाधिकार क्या.क्या हैं?
उत्तर : संसद सदस्य द्वारा विशेषाधिकार निम्नलिखित हैंः
(क) सदस्य को सदन या उसकी किसी समिति के, जिसका वह सदस्य है, अधिवेशन के चलते रहने के दौरान या सदनों या समितियों की संयुक्त बैठक के दौरान तथा अधिवेशन या बैठक के पूर्व या पश्चात् गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
(ख) जब संसद सत्र में हो तो सदन की अनुमति के बिना किसी सदस्य को साक्ष्य देने हेतु समन नहीं किया जा सकता।
(ग) सदस्य को प्रत्येक सदन में वाक् स्वातंत्राय प्रदान है।
(घ) संवधिान में धरा 102(1) के अनुसार सांसद द्वारा संसद में किया कार्य (वोट देना आदि) को अदालत में चुनौटी नहीं दी जकती।
प्रश्न 3 : भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर : भारतीय संविधान का अनुच्छेद.370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष स्तर प्रदान करता है। संविधान की प्रथम अनुसूची में दिये गए राज्यों पर जो उपबन्ध लागू होते हैं, वे सभी इस राज्य पर लागू नहीं होते। उक्त राज्य के लिए विधि बनाने की संसद की शक्ति संघ और समवर्ती सूची के उन विषयों तक सीमित होगी, जो राष्ट्रपति उस राज्य की सरकार की सहमति से आदेश द्वारा निर्दिष्ट करे।
प्रश्न 4 : जाँच आयोग (संशोधन) विधेयक, 1986 का उद्देेश्य क्या है?
उत्तर : इसका उद्देश्य किसी भी जाँच आयोग की ऐसी रिपोर्ट को सरकार द्वारा संसद में पेश करने पर प्रतिबंध लगाना है, जिससे देश कि एकता व सुरक्षा को खतरा हो। विधेयक का मानना है कि कुछ रिपोर्ट की गोपनीयता के लिए ऐसा जरूरी है, क्योंकि कुछ मुद्दे उसमें बहुत संवेदनशील होते हैं।
प्रश्न 5 : संसदीय लोकतंत्रा में सामूहिक उत्तरदायित्त्व का क्या तात्पर्य है?
उत्तर : सामूहिक उत्तरदायित्व संसदीय शासन प्रणाली की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। मंत्रिमंडल के सभी सदस्य सरकार के प्रत्येक निर्णय और कार्य के लिए सामूहिक रूप से उत्तरदायी होते हैं। यदि उनकी नीतियों को संसद का समर्थन प्राप्त नहीं हो पाता, तो सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद को त्यागपत्रा देना पड़ता है।
प्रश्न 6 : भारत को गणतंत्रा क्यों कहा जाता है?
उत्तर : भारत को गणतंत्रा इसलिए कहा गया है कि देश का राष्ट्रपति जनता द्वारा निर्वाचित होता है, हालांकि निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
प्रश्न 7 : संसद में कटौती प्रस्ताव से क्या तात्पर्य है? उसके विभिन्न प्रकार बातइए?
उत्तर : संसद में किसी मंत्रालय की प्रस्तुत अनुदान मांगो पर विचार करने के उपरांत अनुदान मांगों पर संसद सदस्यों द्वारा कटौती करने का प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव कहलाता है। इससे संसद सदस्यों को उस मंत्रालय के कार्य.कलापों का परीक्षण करने का एक सही अवसर मिल जाता है। कटौती प्रस्ताव तीन प्रकार के होते हैं-
1. प्रतीक कटौती:इसमें केलव प्रतीक स्वरूप एक रुपये की कटौती का प्रस्ताव रखा जाता है।
2. मितव्ययता कटौतीः इसमें मांगों में किसी व्यय को कम करने या न करने का प्रस्ताव रखा जाता है।
3. पूर्ण कटौतीःइसमें मांगों में इतनी कटौती की जाती है कि केवल 1 रुपये की अनुदान मांग ही स्वीकृत की जाती है। दूसरे अर्थों में मांगों को पूर्णतः अस्वीकार कर देना पूर्ण कटौती कहलाता है।
प्रश्न 8 : भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालायों से सम्बद्ध परामर्शदात्राी समितियों के तहत्त्व का विवेचन कीजिए।
उत्तर : विभिन्न मंत्रालयों से सम्बद्ध परामर्शदात्राी समितियों के लिए संसद सदस्य अपनी प्राथमिकता संसदीय कार्यमंत्राी को बताते हैं। संसदीय मंत्राी उनमें से विधि समितियों में दलीय शक्ति के अनुसार सदस्यों की नियुक्ति करता है। समितियों की समय-समय पर होने वाली बैठकों में विभाग से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार किया जाता है। यह पूरी तरह औपचारिक व्यवस्था है तथा इसके कोई नियम व संविधान नहीं होते और इसके निर्णय भी बाध्यकारी नहीं होते। इसका मूल कार्य सरकारी नीतियों व सार्वजनिक प्रशासन के सिद्धांतों, समस्याओं व कार्यप्रणली पर विचार करना तथा संसदों और विभागों में सहज सम्बंध स्थापित करना है। इसे गवाहों को बुलाने या सरकारी रिकार्ड मंगाकर देखने का भी अधिकार नहीं होता।
प्रश्न 9 : संसद में पूछे जाने वाले तारांकित तथा उप. तारांकित प्रश्नों का अन्तर समझाइए।
उत्तर : जिस प्रश्न का उत्तर सदस्य संसद में मौखिक रूप से चाहता है, उस प्रश्न के सामने तारा अंकित कर देता है तथा मंत्राी द्वारा उत्तर दिए जाने के बाद पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। जबकि जिन प्रश्नों के आगे तारा अंकित नहीं रहता उनके उत्तर मंत्राी मौखिक रूप से नहीं देते, बल्कि उत्तर लिखकर प्रश्नकाल के बाद सदन की मेज पर रख देते हैं। इसमें पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं।
प्रश्न 10 : संसद के विशेषाधिकार का भंग सदन के अवमानन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर : संविधान में संसद सदस्यों को सदन में भाषण देने की स्वतंत्राता व बंदी बनाये जाने से मुक्ति आदि कुछ विशेषाधिकार का स्पष्ट उल्लेख है तथा इस विशेषाधिकार का भंग करना असंवैधानिक होता है। दूसरी ओर, संसद में किसी अन्य व्यक्ति के साथ जबरदस्ती प्रवेश का प्रयत्न, पर्चे फेंकना या संसद के आदेशों का उल्लंघन आदि कृत्य संसद की अवमानना कहे जाते हैं।
प्रश्न 11 : कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ पर केवल राज्यसभा का प्राधिकार चलता है। वे कौन.कौन हैं?
उत्तर : (i) अनुच्छेद 249 के अनुसार, राज्यसभा विशेष बहुमत द्वारा राज्यसूची के किसी विषय पर संसद को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है, यदि वह इसे राष्ट्रहित में आवश्यक समझे।
(ii) अनुच्छेद 312 के अनुसार, राज्यसभा विशेष बहुमत द्वारा नई अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना की अनुशंसा कर सकती है।
प्रश्न 12 : औचित्य-प्रश्न (प्वाइंट आॅफ आर्डर) क्या होता है और कब उठाया जाता है?
उत्तर : व्यवस्थापिका के सदस्य द्वारा विवादास्पद या संदेहास्पद विषय पर व्यवस्थापिका में उठाया गया प्रश्न औचित्य-प्रश्न कहलाता है। इसके द्वारा सदस्य किसी कार्रवाई के नियमानुसार चलने या न चलने पर प्रश्न उठाते हैं। इसमें निर्णय का अधिकार अध्यक्ष के पास होता है।
प्रश्न 13 : सभी का उत्तर दीजिए।
(a) आधुनिक जनसंचार माध्यमों के परिप्रेक्ष्य में प्रसार भारतीय निगम के महत्त्व को समझाइए।
(b) संसद अवमान क्या होता है? उसके विभिन्न प्रकार बताइए।
(c) हमारे संविधान के अनुच्छेद.370 का महत्व समझाइए।
(d) राज्य विधानमंडल की द्वितीय सदन बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
(e) मेंडेमस (परमादेश) रिट की परिभाषा बताइए और उसका महत्त्व समझाइए।
(f) संसद की कारोबार सलाहकार समिति (Business Advisory Comittee) के कत्र्तव्य-कृत्य क्या हैं?
उत्तर (a): भारत में संचार माध्यमों (आकाशवाणी व दूरदर्शन) का दुरुपयोग सत्तारूढ़ दलों स्वहित साधन में किया जाना आम बात है। इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने हेतु स्वायत्तशासी प्रसार भारती निगम की स्थापना के उद्देश्य से राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने आकाशवाणी और दूरदर्शन को स्वायत्ता देने संबंधी एक विधेक लोकसभा में प्रस्तुत किया। विधेयक में किये गए उपबंधों के अनुसार, प्रसार भारती निगम संसद के प्रति उत्तरदायी होगा तथा देश की एकता, अखण्डता व सांस्कृतिक मूल्यों को सर्वोपरि स्थान देते हुए कार्य करेगा। निगम द्वारा आकाशवाणी तथा दूरदर्शन को पृथक बनाने का प्रावधान है। इससे दानों संचार माध्यम स्वायत्ता, निष्पक्षता व स्वतन्त्राता से कार्य कर सकेगें। साथ ही, यह निगम दोनों संचार माध्यमों की सेवाओं को देश व समाज के लिए उपयोगी बनाने में भी सफल हो सकेगा।
उत्तर (b) : किसी भी रूप में ससंद के विशेषाधिकारों का हनन, उसके आदेश की अवहेलना, उसकी सत्ता व गरिमा पर चोट और उसकी निंदा आदि कार्य संसद की अवमानना कहे जाते हैं।
संसद सदस्य या बाह्य व्यक्ति द्वारा सदन के प्रति निरादर; संसद सदस्य पर आक्रमण, संसद सदस्य के चरित्रा पर लांछन या उसके प्रति अशिष्टता, संसद सदस्य के कार्य में रुकावट डालना, संसद की कार्रवाई में बाधा डालना और संसदीय समितियों के कार्य में हस्तक्षेप या उसके आदेश की अवहेलना आदि संसद की अवमाना के विभिन्न प्रकार हैं। संसद को विशेषाधिकार या अवमानना के लिए संबंधित व्यक्ति को दण्डित करने का अधिकार है।
उत्तर (c) : मूल संविधान के अधीन (अनुच्छेद.370) जम्मू-कश्मीर राज्य की जो विशेष सांविधानिक स्थिति बनी हुई थी, वह अभी भी बनी हुई है, जिससे भारत के संविधान के सभी उपबन्ध जो पहली अनुसूची के राज्यों से संबंधित हैं, जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते हैं, यद्यपि वह उस अनुसूची में विर्निदिष्ट राज्यों में से एक हैं। संविधान के अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 स्वमेव जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू होते हैं, जबकि अन्य अनुच्छेदों का लागू होना राज्य सरकार के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा ही अवधारित होता है। जम्मू कश्मीर के संबंध में संसद की अधिकारिता संघ सूची और समवर्ती सूची में प्रमाणित विषयों तक ही इस उपान्तर के अधीन रहते हुए सीमित होगी कि उसे समवर्ती सूची में प्रमाणित विषयों के विषय में कोई अधिकारिता नहीं होगी। जम्मू-कश्मीर के संबंध में विधान बनाने की अवशिष्ट शक्ति संसद को न होकर राज्य विधान मंडल को हैै। साथ ही, भारत के संविधान का संशोधन जम्मू-कश्मीर पर तभी विस्तारित होता है, जब वह अनुच्छेद 370(a) के अधीन राष्ट्रपति के आदेश द्वारा ही विस्तारित होता है।
उत्तर (d) : किसी राज्य की व्यवस्थापिका का द्वितीय सदन विधान परिषद कहलाता है। संविधान में यह उपबन्ध है कि जिन राज्यों में विधान परिषद विद्यमान है, वहां उसका समापन किया जा सकता है और जहां वह विद्यमान नहीं है, उस राज्य में उसका सृजन किया जा सकता हे। इस कार्य के लिए संबंधित राज्य की विधानसभा एक विशेष बहुमत द्वारा एक संकल्प पारित करती है, जिसके अनुसरण में संसद अधिनियम बनाएगी। संकल्प कुल संदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा परित किया जाएगा (अनुच्छेद 169)। विधान परिषद की सदस्य संख्या विधान सभा की सदस्य संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं होगी, किन्तु कम से कम 40 सदस्य होंगे। यह उपबंध इसलिए किया गया है ताकि विधान परिषद को प्रमुखता प्राप्त न हो। [ अनुच्छेद 171(1)]
उत्तर (e): परमादेश का शब्दिक अर्थ है ”हम आदेश देते हैं“। आज्ञा-पत्रा सर्वोच्च न्यायालय का वह आदेश है, जिसे किसी व्यक्ति या सार्वजनिक प्राधिकारी (सरकार व निगम संहिता) को विधिक या सार्वजनिक कर्तव्य अथवा किसी संविधि के अधीन आरोपित कर्तव्यों को करने का आदेश दिया जाता है, या उन कर्तव्यों का अनाधिकृत रूप से न करने का आदेश दिया जाता है।
परमादेश मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु पांच प्रकार के आज्ञा प्रत्रों में से एक है। इसकी अनुपस्थिति में संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकार का कोई अर्थ नहीं रहेगा।
उत्तर (f) संसद की ”कारोबार सलाहकार समिति“ में लोकसभा अध्यक्ष व 14 अन्य सदस्य होते हैं। लोकसभा अध्यक्ष समिति का पदेन अध्यक्ष होता है तथा वही अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। सदन के लिए समय-सारणी तैयार करना तथा सदन का कार्य सुचारू रूप से संचालित करना इस समिति के मुख्य कार्य हैं। कभी.कभी समिति अपने विवेक से विशेष सार्वजनिक महत्व के विषय पर सदन में चर्चा कराने हेतु सरकार को परामर्श भी देती
प्रश्न 14 : वित्त आयोग क्या होता है? राज्य वित्त आयोग के मुख्य प्रकार्यों पर चर्चा कीजिएः
उत्तर-भारत एक संघीय गणराज्य है जिसमें संघीय सरकार एवं राज्य सरकारों का अलग.अलग अस्तित्व है। प्रत्येक के लिए कर लगाने तथा वसूले जाने की प्रक्रिया एवं अधिकार क्षेत्रा निश्चित है। संघीय सरकार द्वारा लगाए एवं वसूले जाने वाले कुछ कर ऐसे हैं जिनका विभाजन संघीय सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच होता है। संविधान के अनुच्छेद.280 के प्रावधानों के अन्तर्गत वित्त आयोग एक ऐसा संवैधानिक एवं सांविधिक निकाय है जिसका गठन पाँच वर्षों की अवधि के लिए राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। वित्त आयोग में एक अध्यक्ष तथा चार सदस्य होते हैं। वित्त आयोग विभाज्यनीय करों के बँटवारे, राज्यों को केन्द्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले अनुदानों, राज्यों की ऋणग्रस्तता आदि से सम्बन्धित विषयों की सिफारिश करता है।
संविधान के अनुच्छेद.243 झ तथा 243 म के प्रावधानों के तहत् राज्य वित्त आयोग का गठन पाँच वर्ष की अवधि के लिए राज्यपाल द्वारा किया जाता हैै। राज्य वित्त आयोग के मुख्य प्रकार्य निम्नलिखित हैंः-
प्रश्न 15 : पूरा (पी.यू.आर.ए.) क्या है? उसके प्रमुख उद्देश्यों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर : पूरा (PURA) : अर्थ एवं उद्देश्य- ‘पूरा’ (PURA) अर्थात् श्प्रोवाइडिंग अर्बन एमिनिटीज इन रूरल एरियाजश् भारत के राष्ट्रपति डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा अभिकल्पित एक अवधारणा है जो ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुख.सुविधाएं मुहैया कराए जाने पर केन्द्रित है। ‘पूरा’ का उद्देश्य भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुख.सुविधाएं मुहैया कराकर उन्हें शहरों के समकक्ष लाकर, ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त बेरोजगारी तथा निर्धनता को दूर करते हुए आर्थिक विकास की प्रक्रिया को तेज करना है। विगत दशकों में भारत में आर्थिक विकास की जो दिशा एवं दशा रही है उससे शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों के जीवनस्तर तथा सुख.सुविधाओं में गहरी खाई साफ दिखाई देती है। इसी से ग्रामीण क्षेत्रों के साधन सम्पन्न लोग शहरी सुख.सुविधाएं भोगने के लिए तथा बेरोजगार एवं निर्धन लोग आय सृजक रोजगार पाने के लिए गाँवों से शहरों की ओर भाग रहे हैं। इससे भारत के शहर बेतरतीब ढंग से फैलते जा रहे हैं।
राष्ट्रपति डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का मानना है कि यदि ग्रामीण क्षेत्रों में ही वे समस्त सुख.सुविधाएं मुहैया करा दी जाएं जो शहरों में उपलब्ध हैं, तो गाँवों के जीवन स्तर में न केवल सुधार आएगा बल्कि गाँवों से शहरों की ओर निम्नलिखित पाँच प्रकार के संयोजनों (Connectivity) को प्रदान कर रोजगार एवं आय.सृजन की सम्भावनाओं को दोहन करने की बात कही गई है-
(1) भौतिक संयोजन - चयनित ग्राम समूहों को दुतरफा मुद्रिका मार्ग से जोड़ते हुए क्लाॅक.वाइज तथा एन्टीक्लाॅक वाइज नियमित बस सेवाएं संचालित करना।
(2) वाणिज्यिक संयोजन- ग्रामीण उद्यमियों तथा आम नागरिकों को बाजारों, बैंकों तथा भण्डारगृहों के नेटवर्क से जोड़ना।
(3) सामाजिक संयोजन-नागरिक सेवाओं-स्वास्थ्य देखभाल, बुनियादी शिक्षा, स्वच्छता, स्वच्छ पेयजलापूर्ति, मनोरंजन आदि के नेटवर्क तक ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों की पहुँच सुनिश्ति करना।
(4) ज्ञान संयोजन-रोजगारपरक शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण की बेहतर व्यवस्था के नेटवर्क से ग्रामीण क्षेत्रा के निवासियों की सुगम पहुँच सुनिश्चित करना।
(5) इलेक्ट्रानिक संयोजन-टेलीफोन, इन्टरनेट, कम्प्यूटर आदि तीव्रगति वाली सम्प्रेषण प्रणाली की पहुँच ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाना।
‘पूरा’ माॅडल के तहत् 30000 से 100000 तक की जनसंख्या वाले ऐसे 10.15 गाँव वाले समूहों का चयन किया जाना है जहाँ चार लेन वाले मुद्रिका.मार्ग का निर्माण करने लायक पर्याप्त भूमि हो तथा नहरों, रेल की पटरियों, हाईटेंशन विद्युत लाइनें, नदियाँ जेसी रुकावटें न हों। यह क्षेत्रा ऐसा ही जिसमें बुनियादी सुविधाएं विकसित करने में कम से कम लोगों का विस्थापन हो तथा ऐसा क्षेत्रा यथासम्भव एक ही जिले के भीतर हो।
डाॅ. कलाम का कहना है कि, "पूरा के उद्यमियों के पास इतना कौशल होना चाहिए कि वे बैंकों के साथ मिलकर योजना बना सकें और सहायता के लिए बुनियादी आधार तैयार कर सकें।
प्रश्न 16 :डब्ल्यू. टी.ओ. (विश्व व्यापार संगठन) क्या है? उसके समग्र प्रकार्यण पर भारत की क्या आपत्तियाँ हैं?
उत्तर : प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (GATT) की उरुग्वे चक्र की वार्ताओं में डंकल प्रस्तावों के आधार पर विश्व व्यापार संगठन 1 जनवरी, 1995 को अस्तित्व में आय। विश्व व्यापार संगठन एक ऐसी वैधानिक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जिसके प्रावधान एवं नियम सदस्य देशों के लिए बाध्यकारी हैं। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। इसके संस्थापक देशों की संख्या 123 थी जो फरवरी 2003 में बढ़कर 145 हो गई। विश्व व्यापार संगठन में सभी सदस्यों को बराबरी का दर्जा हासिल है। यह विश्व व्यापार समझौता एवं बहुपक्षीय तथा बहुवचनीय समझौतों के कार्यान्वयन, प्रशासन एवं परिचालन हेतु सुविधा प्रदान करता है। व्यापार एवं प्रशुल्क से सम्बन्धित किसी भी भावी मसले पर सदस्यों के बीच विचार.विमर्श हेतु एक मंच के रूप में कार्य करता है। विवादों के निपटारे हेतु नियमों एवं प्रक्रियों को प्रशासित करता है। व्यापार नीति पुनरीक्षा प्रणाली से सम्बन्धित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करता है। वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामंजस्य भाव लाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक समूह की संस्थाओं के साथ ताल.मेल बैठाता है तथा विश्व संसाधनों के अनुकूलतम उपभोग हेतु प्रयास करता हैं।
भारत विश्व व्यापार संगठन के संस्थापक देशों में एक है, तथापि विश्व व्यापार संगठन की कार्यप्रणाली के प्रति भारत की कतिपय आपत्तियाँ हैं। भारत सरकार एवं आर्थिक टीकाकारों का मानना है कि विगत 10 वर्षों के दौरान विश्व व्यापार संगठन विकसित देशों-सं. रा. अमरीका, यूरोपीय संघ तथा जापान आदि के हितों की पोषक संस्था के रूप में उभरा है। भारत की सर्वाधिक आपत्तियाँ, बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के संरक्षण के नाम पर भारत के परम्परागत उत्पादों-बासमती चावल, नीम, हल्दी, जामुन आदि का छद्म नामों से पेटेन्ट कराए जाने, प्रक्रिया पेटेन्टीकरण के स्थान पर उत्पाद पेटेन्टीकरण को लागू किए जाने, कृषि पर समझौते से जुड़े मुद्दों-कृषि उत्पदों के निर्यातों पर विकसित देशों द्वारा भारी सब्सिडी दिए जाने, कृषकों को उत्पादन सब्सिडी दिए जाने, विदेशी निवेश, प्रतिस्पद्र्धा, व्यापार सुविधा तथा सरकारी खरीद में पारदर्शिता सम्बन्धी प्रावधानों को लेकर है। कैनकुन में 10.14 सितम्बर, 2003 को सम्पन्न पाँचवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत ने चीन, ब्राजील, द. अफ्रीका जैसे विकासशील देशों के साथ मिलकर जी.20 (अब इसके सदस्य देशों की संख्या 21 हो गई है) समूह के झण्डे तले विश्व व्यापार संगठन में ऐसे किसी भी समझौते को नकार देने में सफलता प्राप्त की जो भारत सहित अन्य विकासशील देशों के हितों के विरुद्ध जाता हो।