प्रश्न 1 : सभी का उत्तर दीजिए।
(a) मूल्यों पर आधारित राजनीति एवं व्यक्तित्त्व पर आधारित राजनीति के बीच के अंतर को समझाइए।
(b) काम चलाऊ सरकार तथा अल्पमत सरकार में अन्तर समझाइए।
(c) कब किसी राज्य का राज्यपाल किसी विधेयक (बिल) को भारत के राष्ट्रपति के विचारणार्थ आरक्षित कर सकता है?
(d) शिक्षा को राज्य सूची से निकालकर भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में क्यों डाल दिया गया था?
(e) मंत्रिमंडल के कार्यों को बताइए।
(f) प्रशासन में संगठन एवं पद्धति (ओ. तथा एम.) का क्या महत्व है?
उत्तर (a) : मूल्य-आधारित राजनीति -इस प्रकार की राजनीति की राजनीति में समाज के लिए हितकर मुद्दों के आलोचनात्मक विश्लेषण पर विषेश बल दिया जाता है। इसमें नीति संबंधी सिद्धांतों पर जोर रहता है।
व्यक्ति-आधारित राजनीति-इस प्रकार की राजनीति में किसी व्यक्ति विशेष की विचारधारा पूरी राजनीति को प्रभावित किए रहती है।
उत्तर (b) : काम चलाऊ सरकार (Care-taker Govt.) - संसद में बहुमत खो चुकी वह सरकार, जो राष्ट्रपति के अनुरोध पर नए चुनाव हो जाने तक शक्ति में बनी रहे।
अल्पमत सरकार (Minority Government)- अल्पमत सरकार का गठन तब होता है, जब सत्ताधारी दल को अपने बूते पर स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है, लेकिन वह अन्य दलों के समर्थन से सरकार बना लेता है।
उत्तर (c) : राज्यपाल किसी भी विधेयक को कभी भी राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है। (अनुच्छेद-200)। उच्च न्यायालय की शक्तियों में परिवर्तन करने वाले किसी अधिनियम को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजा जाना अनिवार्य है।
उत्तर (d) : केंद्र व राज्य सरकार के बीच मतभेदों से बचने के लिए शिक्षा को राज्यसूची से हटाकर समवर्ती सूचीं में भेज दिया गया।
उत्तर (e) : कैबिनेट, मंत्रिपरिषद के अन्तर्गत महत्वपूर्ण मंत्रालयों के प्रमुख मंत्रियों का एक संगठन (Body) है। कैबिनेट, सरकार की नीतिनिर्धारण करने वाली सर्वोच्च परिषद् है। यह नितियों को बनाने व लागू करवाने के लिए भी उत्तरदायी होती है।
उत्तर (f) : ओ. तथा एम. (आर्गेनाइजेशन एंड मेथाॅड) एक ऐसी संस्थानिक व्यवस्था है, जो सरकार के संगठन व प्रक्रिया को सुधारता है। यह सरकार की कार्यक्षमता में सुधार को सुनिश्चित करता है।
प्रश्न 2 : सभी का उत्तर दीजिए।
(a) मंत्रिपरिषद् एवं मंत्रिमंडल के बीच के अंतर को समझाइए।
(b) परमाधिदेश की रिट कुछ व्यक्तियों के विरुद्ध नहीं स्वीकृत होगी। वे कौन हैं?
(c) अखिल भारतीय सेवाओं तथा केन्द्रीय सेवाओं के बीच अन्तर समझाइए।
(d) वार्षिक वित्तीय विवरण एवं वार्षिक वित्त विधेयक में अंतर बताइए।
(e) विधानमंडल का पंगुसत्र क्या है?
(f) ‘प्रोटेम स्पीकर’ कौन है? उसकी क्या जिम्मेदारियां हैं?
उत्तर (a) : मंत्रिपरिषद - सामान्य रूप से केबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री, उपमंत्री तथा संसदीय सचिव, इन चार प्रकार के मंत्रियों व प्रधानमंत्राी या मुख्यमंत्री से मिलकर बनी परिषद को सामूहिक रूप से मंत्रिपरिषद कहा जाता है।
मंत्रिमंडल (केबिनेट)- यह मंत्रिपरिषद के अन्तर्गत प्रथम श्रेणी के मंत्रियों का एक समूह होता है। इसमें वे मंत्री होते हैं, जो अपने-अपने विभागों के प्रमुख होते हैं। ये सम्मिलित रूप से पूरी प्रशासनिक नीति का निर्धारण करते हैं। मंत्रिमंडल में केवल प्रधानमंत्राी या मुख्यमंत्राी और कैबिनेट स्तर के मंत्राी होते हैं।
उत्तर (b) : परमाधिदेश - न्यायालय का एक ऐसा आदेश है, जो सार्वजनिक अधिकारियों को उनके निर्दिष्ट कार्य-सम्पादन के लिए कहता है। इसका आज्ञापत्रा उस समय जारी किया जाता है, जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल, उच्च न्यायालय, न्यायिक हैसियत से कार्यरत न्यायाधीश, उच्च न्यायालय का रजिस्ट्रार व राज्य के विधानमंडल के विरुद्ध परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है।
उत्तर (c) : अखिल भारतीय सेवाएं-ये सेवाएं संघ सरकार व राज्य सरकार दोनों के लिए होती हैं। इन सेवाओं के अधिकारी विशुद्ध रूप से संघ या फिर राज्य की सेवा में न होकर, दोनों ही सेवा में होते हैं। इस प्रकार की सेवाओं में भारतीय प्रशासनिक सेवा व भारतीय पुलिस सेवा आती है।
केन्द्रीय सेवाएं-इन सेवाओं का संबंध संघीय सूची के विषयों के प्रशासन से है। ये सेवाएं संघ सरकार के अधिकार क्षेत्रा में आती है। इस प्रकार की सेवाओं में विदेश मामले, प्रतिरक्षा, डाक व तार, आयकर तथा कस्टम आदि आते हैं।
उत्तर (d) : वार्षिक वित्तीय विवरण-सामान्य- वार्षिक वित्तीय विवरण केा बजट भी कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष में सरकार के अनुमानित आय-व्यय का विवरण, जिसको राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष में संसद में प्रस्तुत करता है, वार्षिक वित्तीय विवरण कहा जाता हैं
वार्षिक वित्त विधेयक - सरकार द्वारा तैयार किया जाने वाला वह विधेयक, जो कि आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के सभी कर प्रस्तावों को शामिल करता है, वार्षिक वित्त विधेयक कहलाता है।
उत्तर (e) : पंगू सत्रा से तात्पर्य व्यवस्थापिका के उस सत्रा से होता है, जिसमें पूर्व व्यवस्थापिका, नव निर्वाचित व्यवस्थापिका के उद्घाटन सत्रा के पर्व तक राजनीतिक शक्तियों का प्रयोग करती रहती है। उदाहरणार्थ, अमरीका में प्रतिनिधि सदन का निर्वाचन नवम्बर में हो जाता है, लेकिन व कार्यारम्भ आगामी जनवरी में करता है। इस प्रकार नवम्बर व जनवरी के बीच की अवधि में पूर्व प्रतिनिधि सदन ही कार्यरत रहता है।
उत्तर (f) प्रोेटेम स्पीकर-आम चुनावों के बाद नए सदन में अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का चुनाव होने से पूर्व सदन की बैठक चलाने के लिए राष्ट्रपति अस्थायी रूप से किसी वरिष्ठ सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) नामित कर देता है। इसी प्रकार, अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों की अनुपस्थित में राष्ट्रपति, अध्यक्ष पैनल में से किसी सदस्य के अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त कर देता है। अस्थायी अध्यक्ष नए सदस्यों को सदन में शपथ दिलाने व उनके नए अध्यक्ष के चुनाव की कार्रवाई का संचालन करता है। विधान सभा में राष्ट्रपति का काम राज्यपाल करता है।
प्रश्न 3 : सभी का उत्तर दीजिए।
(a) निवारक निरोध और दण्डात्मक निरोध में अंतर स्पष्ट कीजिए।
(b) भारत के नागरिकों को उपलब्ध विभिन्न रिट क्या है?
(c) राष्ट्रीय साक्षरता मिशन कब और क्यों स्थापित किया गया?
(d) ‘समान विधि संरक्षण’ का क्या अर्थ है?
(e) भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची की विषय वस्तु क्या है?
(f) भारतीय संविधान के 24वें अनुच्छेद का उद्देश्य क्या है?
उत्तर (a) : निवारक निरोध- इसके अंतर्गत राज्य की सुरक्षा, शांति व्यवस्था व आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को बनाए रखने से संबंधित मामलों में किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार व जेल में रखा जा सकता है।
दण्डात्मक निरोध- इसके अंतर्गत किसी अपराध के साबित हो जाने पर दोषी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा दिये गए दण्ड के अनुसार जेल में रखा जाता हैः
उत्तर (b) : भारतीय नागरिकों को उपलब्ध रिट - बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा व उत्प्रेषण लेख।
उत्तर (c) :
उत्तर (d) : समान विधि संरक्षण-इससे तात्पर्य है कि कानून सभी के साथ न्याय करेगा या सबकी समान रूप से रक्षा करेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो समान परिस्थितियों में सभी के साथ समान व्यवहार किया जाएगा।
(e) : दसवीं अनुसूची की विषयवस्तु- इसमें दल परिवर्तन के निरर्हता के संबंध में उपबंध हैं अर्थात इसके अंतर्गत 52वां संविधान संशोधन अधिनियम शामिल किया गया है।
(f) संविधान के 24 वें अनुच्छेद का उद्देश्य-14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी कारखाने, खान या अन्य संकटमय नियोजन में लगाए जाने पर रोक लगाना।
प्रश्न 4 : सभी का उत्तर दीजिए।
(a) भारत में निजी स्वतंत्राता से वंचित होने के संदर्भ में ‘यथोचित विधि-प्रक्रिया’ तथा ‘विधि द्वारा सुस्थापित प्रक्रिया’ में अन्तर समझाइए।
(b) घटनोत्तर विधि व्यवस्था का अर्थ समझाइए।
(c) आई.पी.सी. की धारा 309 किससे संबंधित है? हाल में यह चर्चा में क्यों थी?
(d) हमारे देश का उच्चतम असैनिक पुरस्कार क्या है? वे कौन दो विदेशी नागरिक हैं जिन्हें यह पुरस्कार दिया गया?
(e) धर्म-निरपेक्षता से सम्बन्धित भारतीय संविधान के प्रावधान क्या हैं, उन्हें बतलाइए।
(f) दो संशोधनों के जरिए संविधान की आठवीं सूची में चार और भाषाएँ जोड़ी गईं। इन भाषाओं के नाम तथा संसोधन की क्रम संख्या बतलाइए।
उत्तर (a) : ‘यथोचित विधि प्रक्रिया’ से तात्पर्य ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें ‘नैसर्गिक न्याय’ को सम्मिलित किया जाता है। इस ‘नैसर्गिक न्याय’ के अन्तर्गत सरकार मनमाने ढंग से नागरिकों की स्वतंत्राता, सम्पत्ति या जीवन को क्षति नहीं पहुंचा सकती है। ‘विधी द्वारा सुस्थापित प्रक्रिया’ से तात्पय्र ऐसी प्रक्रिया से है, जो राज्य द्वारा विधियुक्त बनाई गई विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया हेाती है। इस प्रक्रिया में नैसर्गिक न्याय के बदले विधि के मूर्त रूप को ही महत्त्व दिया जाता है।
उत्तर (b) : ऐसी विधि व्यवस्था जिसके अन्र्तगत किसी घटना या तथ्यों के विनिश्चय के पश्चात् विधान मंडल द्वारा कानून बनाकर किसी पूर्व की तिथि से लागू किया जाये।
उत्तर (c) : आई.पी.सी. की धारा 309 आत्महत्या से संबंधित है। हाल ही में 27 अप्रैल, 1994 को सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय में आत्महत्या को अपराध की प्रक्रिया से मुक्त कर दिया है।
उत्तर (d) : भारत का सर्वोच्च असैनिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ है। भारत रत्न पाने वाले दो विदेशी नागरिक पाकिस्तान के खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमांत गांधी) तथा दक्षिण अफ्रीका के अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला हैं।
(e) : भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 एवं 16 धर्मनिरपेक्षता से संबंधित है, जो यह बतलाता है कि राज्य द्वारा किसी नागरिक के विरूद्ध धर्म के आधार पर कोई भी भेद-भाव नहीं किया जायेगा एवं सरकारी नौकरियों में सभी धर्म के लोग समान रूप से सम्मिलित होने के हकदार होंगे। अनुच्छेद 25 यह बताता है कि भारत के नागरिक को अपने अन्तः करण और धर्म को अबोध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्राता है। अनुच्छेद-26 प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक कार्यों के प्रबंध का अधिकार देता है। अनुच्छेद-27 किसी विशेष धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर न देने की स्वतंत्राता देता है तथा अनुच्छेद .28 राज्य सरकार द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा की मनाही करता है।
(f) इक्कीसवें संविधान संशोधन से सिन्धी और इकहत्तरवें संविधान संशोधन से नेपाली, मणिपुरी और कोंकणी भाषाएं आठवीं अनुसूची में जोड़ी गयीं है।
प्रश्न 5 : भारत में योजना आयोग तथा वित्त आयोग की प्रस्थिति, संगठन तथा निर्दिष्ट भूमिकाओं के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : योजना आयोग एक संवैधानिक निकाय नहीं अपितु एक परामर्शदात्राी संस्था है। संविधान में इस आयोग का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन समवर्ती सूची में ‘आर्थिक और सामाजिक’ आयोग से सम्बद्ध एक प्रविष्टि है, जिसका लाभ उठाकर केन्द्र सरकार ने 15 मार्च, 1950 को बिना विधान बनाए मात्रा एक प्रस्ताव पारित करके योजना आयोग की स्थापना की। भारत का प्रधानमंत्राी इसका पदेन अध्यक्ष तथा वित्तमंत्राी इसका पदेन सदस्य होता है। अध्यक्ष के अतिरिक्त एक उपाध्यक्ष तथा कई अन्य सदस्य होते हैं।
योजना आयोग की स्थापना देश की भौतिक पंूजी एवं मानवीय संसाधनों की आवश्यकता का अनुमान लगाने तथा इनका अधिक संतुलित प्रयोग करने के उद्देश्य से की गई। योजना आयोग की भूमिका के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं।
1. योजना का निर्माण कर सरकार को सौंपना
2. योजनाओं के लागू होने पर उसके परिणामों का मूल्यांकन।
3. सरकार की नीतियों, साधनों आदि पर सरकार व अन्य विभागों को सुझाव देना।
4. देश के सम्यक विकास के लिए प्राथमिकताओं का निर्धारण।
5. देश में उपलब्ध संसाधनों का योजना के तहत विभाजन का निर्धारण।
वित्त आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 में अधिकथित प्रावधानानुसार गठित एक सांवैधानिक संस्था है। इसका गठन राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पांच वर्ष बाद या आवश्यकतानुसार पहले भी किया जाता है। इसका अध्यक्ष सार्वजनिक कार्यानुभव रखने वाले व्यक्ति को बनाया जाता है तथा चार सदस्य होते हैं जिनमें एक उच्च न्यायलय का न्यायाधीश एक वित्तीयों विषयों व प्रशासन के बारे में अनुभवी व्यक्ति तथा एक ऐसा व्यक्ति होता है, जिसे अर्थशास्त्रा का विशेष ज्ञान हो। अब तक बाहर वित्त आयोगों की स्थापना हो चुकी है। आयोग राष्ट्रपति को निम्न बातों पर सुझाव देता हैः
1. संघ व राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगमों का वितरण।
2. राज्यों के बीच ऐसे आगमों के तत्संबंधी भाग का आवंटन।
3. भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्वों में सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धांतों पर।
4. देश के सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को भेजे जाने वाले सम्बद्ध मामलों पर।
इस प्रकार जहाँ योजना आयोग एक स्थाई व परामर्शदात्राी संस्था है, वहीं वित्त आयोग एक अस्थाई लेकिन सांविधिक संस्था है। योजना आयोग के पास केंद्र से राज्यों को वित्तीय साधनों के अंतरण की सिफारिश करने का कोई सांविधक अधिकार नहीं है। जबकि, वित्त आयोग साधनों का (करों में राज्य का हिस्सा व राज्यों को दिए जाने वाले सहायतार्थ अनुदान आदि) वैधानिक हस्तान्तरण करता है।
प्रश्न 6 : भारत सरकार की कृषि-कीमत नीति के आधारभूत उद्देश्य क्या हैं और उसे कार्यान्वित कैसे किया जाता है?
उत्तर : किसानों को उनके उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य दिलाकर उन्हें अधिक पूँजी निवेश तथा अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने तथा उपभोक्तओं को उचित मूल्य पर सप्लाई मुहैया करके उनके हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से सरकार ने कृषि मूल्य आयोग का गठन किया। इसका गठन 1965 ई. में कृषि मूल्य आयोग के नाम से किया गया, लेकिन वर्तमान में इसका नाम बदलकर कृषि लागत और मूल्य आयोग कर दिया गया है। सरकार प्रत्येक मौसम में मुख्य कृषि जिंसों के लिए खरीद/न्यनूतम समर्थन मूल्य घोषित करती है और सार्वजनिक सरकारी एजेंसियों के माध्यम से खरीद कार्य आयोजित करती है। इन मूल्यों की घोषणा सामान्यतः संबंधित फसल के बुवाई मौसम के प्रारंभ होने से काफी पहले कर दी जाती है। सरकार विभिन्न कृषि जिंसों के लिए समर्थन मूल्यों संबंधी निर्णय कृषि लागत तथा मूल्य आयोग्य की सिफारिशों को ध्यान में रखकर ही करती है। किसानों को उनकी फसलों के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम मूल्य की गारंटी दी जाती है तथा वह मूल्यों के न्यूनतम स्तर से नीचे जाने की स्थिति में उत्पादों को स्वयं खरीदना शुरू कर देती है। मूल्यों को एक सीमा के अंदर बनाये रखने के उद्देश्य से सरकार बफर स्टाॅक की नीति का सहारा लेती हैं। यदि बाजार में उत्पादों की मांग में वृद्धि पूर्ति में कमी से उनके मूल्यों में वृद्धि होने लेगे तो सरकार इसी बफर स्टाॅक का उपयोग करके कीमतों को अपने नियंत्राण में ले आती है। उपभोक्ताओं व निर्धन व्यक्तियों के हितों की रक्षार्थ सरकार सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों पर बिकने वाले खाद्य पदार्थों का विक्रय मूल्य निर्धारित कर देती है।
प्रश्न 7 : भारत के सार्वजनिक उद्यम आज जिन प्रबंधकीय समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उनमें से कुछ प्रमुख समस्याओं का उल्लेख तथा विश्लेषण कीजिए। क्या आप अपने विश्लेषण के आधार पर हमारे सार्वजनिक उद्यमों में से कुछ के ‘निजीकरण’ का समर्थन करना चाहेंगे।
उत्तर : स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद भारतीय नियोजकों का विश्वास था कि आवश्यक आर्थिक विकास दर की प्राप्ति में राज्य सरकारों से बड़े पैमाने पर विनियोग में सहयोग मिलेगा लेकिन विभिन्न समस्याओं के कारण इस क्षेत्रा में उपलब्धियां अनुमान से काफी कम रहीं। सार्वजनिक उपक्रमों में प्रबंध संबंधी अनेक समस्याएं विद्यमान रही हैं। प्रमुख समस्याएं निम्नलिखित हैं-
1. संचालक मंडल में आवश्यक योग्यता व कार्यकुशलता का अभाव व राजनीतिक लोगों को संचालन मंउल का सदस्य बनाने में राजनीतिक हस्तक्षेप।
2. पूर्णकालिक व विशेषज्ञ संचालकों का अभाव।
3. स्थापित क्षमताओं का न्यूनतम उपयोग व प्रशासनिक अव्यवस्था के कारण अल्प लाभ या प्रायः हानि।
4. पूंजी का अनावश्यक विनियोग।
5. परियोजना के स्थापित होने में अनावश्यक विलम्ब, जिससे परियोजना की अनुमानित लागत में अत्यधिक वृद्धि।
6. अनुपयोगी तकनीक के प्रयोग के कारण उद्देश्यों की प्राप्ति में असफल।
7. प्रबंधकों को तत्काल निर्णय की स्वतंत्राता का अभाव।
8. कार्मिकों की भर्ती, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि में भ्रष्टाचार।
9. प्रायः श्रम संघों की हड़ताल व बंद के शिकार।
इस प्रकार, प्रबंध व वित्त की समस्या व क्षमता के अपूर्ण उपयोग के कारण अधिकांश सार्वजनिक उद्यम लगातार घाटे में चल रहे हैं। यद्यपि निजीकृत उद्यमों की क्रिया विधि भी पूरी तरह से व्यवस्थित नहीं है तथापि उनके प्रबंधक व कर्मचारी उनका संचालन लाभप्रद ढंग से करने में सफल रहते हैं। राष्ट्रीय संसाधनों के विदोहन में सार्वजनिक उद्यमों की असफलता को देखते हुए निजीकरण को प्रोत्साहित किये जाने की आज विशेष आवश्यकता महसूस की जा रही है। कम लागतों पर अधिक उत्पादन के उद्देश्य की प्राप्ति में निजीकरण की कुशलता महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। आन्तरिक व बाह्य ऋण बोझ से ग्रस्त भारतीय अर्थव्यवस्था को इस ऋण बोझ से मुक्त करने के लिए उत्पादन वृद्धि व संसाधनों का पूर्ण विदोहन आवश्यक है और वर्तमान संदर्भों में यह निजीकरण से ही संभव है। हानि में चल रहे सार्वजनिक उद्यम समाज पर एक बोझ से कम नहीं हैं। उद्योगों के निजीकरण में इंग्लैंड की सफलता भी हमारे सामने है। अतः सार्वजनिक उद्यमों के निजीकरण के लिए पर्याप्त करण हैं। इससे गुणवत्ता व अधिकतम सेवा के स्तर में सुधार अवश्य ही होगा।
प्रश्न 8 : भारत में विकेन्द्रीकरण योजना का तार्किक आधार क्या है? इस प्रकार की योजना में जो अवरोध आ खड़े है, उनका विवेचन कीजिए।
उत्तर : अर्थव्यवस्था में नियोजन दो प्रकार का होता है। प्रथम, केन्द्रित नियोजन व दूसरा, विकेन्द्रीत नियेाजन। केन्द्रित नियोजन में सभी निर्णय किसी अधिकृत सत्ता द्वारा लिये जाते हैं तथा अधीनस्थ अधिकारी उनका अनुपालन करते हैं। इस प्रकार का नियोजन भारत जैसे प्रजातांत्रिक व्यवस्था में संभव न होकर समाजवादी अर्थव्यवस्था में संभव होता है। भारत जैसे मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए विकेन्द्रित नियोजन उचित होता है। विकेन्द्रित नियोजन में अधिकांश निर्णयों में जनसहयोग लिया जाता है तथा कुछ महत्त्वपूर्ण फैसले ही सरकार द्वारा लिये जाते हैं। 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने भारत में विकेन्द्रित नियोजन की व्यवस्था को ही प्रमुखता दी तथा इसमें भी मूल्य निर्देशित अर्थव्यवस्था व प्रेरणामूलक नियोजन पर सर्वाधिक बल दिया। मूल्य निर्देशित व्यवस्था मे केन्द्रीय सत्ता मुख्य संयोजग की भूमिका अदा करती है और विभिन्न विशेषताओं के आधार पर वर्गीकृत क्षेत्रा उसके द्वारा निर्देशित सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करते हैं। इस प्रकार एक ओर तो केन्द्रीय सत्ता का प्रयास सम्पूर्ण समाज का हित साधन होता और दूसरी ओर विभिन्न क्षेत्रा अपने.अपने में अनुकूलता लाते हैं। विभिन्न क्षेत्रों की सूचनाएं केन्द्र को प्रेषित करने के लिए मध्यस्थ समितियां होती हैं। भारत में ग्रामीण जनसंख्या का बहुंत बड़ाभाग अभी भी विकास की दृष्टि से अछूता है। नियोजन द्वारा विखरे ग्रामीण क्षेत्रों को निकट लाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया गया। इससे प्रत्येक क्षेत्रा में विकास कार्य प्रारम्भ हुआ। स्थानीय स्रोतों के दोहन में वृद्धि हुई और श्रम स्रोतों को अधिक महत्वपूर्ण समझा गया,जिससे अर्थव्यवस्था कुछ लचीली हुई। वास्तव में, आवश्यकता नियोजन प्रक्रिया को जिले स्तर पर भी मजबूत करने की है। योजना आयोग को जिला स्तर पर भी प्रतियोगी तैयार करने चाहिएं, जो नियोजन तकनीक व स्थानीय आवश्यकताओं से परिचित के आधार पर जिले की योजना को लागू नहीं किया जा सकता था। योजनाओं के क्रियान्वयन में भी अनेक बाधाएं आती हैं, जैसे-उपयुक्त तकनीक का अभाव, विदेशी तकनीक के बारे में अज्ञानता, ग्रामीण शिक्षा का अभाव, कृषि कार्यों में श्रम की घटती महत्ता, साधनों का अपूर्ण दोहन व आवश्यक पूंजी का अभाव आदि। साथ ही, विकेन्द्रित नियोजन में राजनीतिक दोषों के कारण कई अविवेक पूर्ण फैसले ले लिए जाते हैं तथा पूंजीवाद के अनेक दोष व्यवस्था में उत्पन्न होने लगते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था के कारण अनावश्यक प्रतियोगिता कभी भी जन्म ले सकती है।
प्रश्न 9 : ‘अल्प विकसित अर्थव्यवस्था’ अभिव्यक्ति द्वारा आमतौर से क्या अर्थ निकलता है? आप के अनुसार भारत में अल्पविकास के क्या मूल कारण हैं?
उत्तर (a) : सामान्यतः एक अर्द्ध-विकसित अर्थव्यवस्था से तात्पर्य उस देश से होता है, जहाँ निर्धनता, प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर, उत्पादन की प्राचीन रीतियाँ, पायी जाती हैं। यद्यपि, भौगोलिक स्थिति, जलवायु, मिट्टी, वन सम्पदा, खजिन पदार्थ, शक्ति के साधन, नदियों व जनशक्ति की दृष्टि से भारत को एक धनी देश कहा जा सकता है, लेकिन निम्न औसत आय, निम्न जीवन-स्तर, न्यून उपभोग, व्यापक बेरोजगारी, शिक्षण-प्रशिक्षण का निम्न स्तर, पूँजी निर्माण की कम दर, पिछड़ी कृषि दशायें व धीमे औद्योगिक विकास के कारण इसे अर्द्ध-विकसित देशों की श्रेणी में रखा जाता है। विश्व विकास रिपोर्ट, 1988 के अनुसार, अधिकारिक विनिमय दर पर भारत की प्रति व्यक्तिआय अमरीका की प्रति व्यक्ति आय की 1/50 है। समाज में आय व धन की व्यापक विषमतायें पाई जाती हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है, लेकिन कृषि की दशा अत्यंत पिछड़ी हुइ है तथा उत्पादन कम है। जनाधिक्य के कारण उपविभाजित तथा उपखंडन से हमारे खेत अनार्थिक जोतो में परिवर्तित हो गए हैं और कृषि की उत्पादकता कम हो गई है। जनसंख्या वृद्धि के कारण देश की बचट और विनियोग दरों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है, जिसके कारण पूँजी निर्माण की दर कम रही है और देश की तीव्र आर्थिक विकास नहीं हो सका है। जनाधिक्य के कारण अर्द्ध-विकसित देशों में व्यापक बेरोजगारी तथा अर्द्ध-बेरोजगारी हमेशा विद्यमान रहती हैं। भारत मे सातवीं योजना में 17.89 मिलियन लोग बेरोजगार थे। अर्द्ध-विकसित होने के लिए उत्तरदायी अन्य कारणों में निर्यातों पर निर्भरता, उत्पादन साधनों में असंतुलन तथा दोषपूर्ण मौद्रिक व राजकोषीय नीति प्रमुख हैं। अर्द्ध-विकसित देशों में आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है, जिससे समाज में व्यापक आर्थिक विषमतायें उत्पन्न हो जाती हैं और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण बाधा बन जाती है।
प्रश्न 10 : ग्रामीण निर्धनता कम करने के लिए पंचवर्षीय योजना में किए गए उपायों का विवेचन कीजिए।
उत्तर (b) : प्रथम योजना में कृषि श्रमिकों की दशा सुधारने के कई कार्यक्रम आरम्भ किए गए। दूसरी योजना में 5 करोड़ रुपये व्यय करके दस हजार भूमिहीन श्रमिकों के परिवारों को बसाया गया। तीसरी योजना में निर्धनों के विकास हेतु 11 करोड़ रुपये व्यय किये गए। ग्रामीण निर्धनता को दूर करने के प्रयास वास्तव में चैथी योजना में आरम्भ हुए थे। पाँचवीं योजना (1974-79) में गरीबी हटाओ का नारा दिया गया। न्यूनतम आवश्यकता की राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया गया। इसके अन्तर्गत 1977 में काम के बदले अनाज कार्यक्रम शुरू किया गया। इसे 1980 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP) के रूप में परिणत कर दिया गया। छोटे कृषकों के हितों की सुरक्षा के लिए लघु कृषक विकास अभिकरण (SFDA) 1971 में स्थापित किया गया। रूरल क्रेटित रिव्यू कमेटी 1969 की सिफारिश पर SAFDA के साथ ही.साथ सीमान्त कृषकों एवं भूमिहीन श्रमिकों के विकास के लिए सीमान्त कृषक एवं कृषि श्रमिक विकास एजेन्सी (MFALDA) स्थापित की गई। एन.सी.जी0ए.आर. की सलाह पर SFDA और MFALDA को मिलाकर छठीं योजना में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IDRP) बनाया गया, जिसे बाद जिला, ग्रामीण विकास एजेंसी (DARA) नाम से जाना गया। IRDP के अन्तर्गत दुर्बलों में से दुर्बलतम परिवारों को पहचान कर उन्हें इस प्रकार से ऋण देने की योजना बनाई गयी कि वे गरीबी रेखा से ऊपर उठ सकें। IRDP को बल प्रदान करने के लिए दो अन्य कार्यक्रम-स्वरोजगार हेतु ग्रामीण युवा प्रशिक्षण कार्यक्रम TRYSEM और ग्रामीण क्षेत्रों में महिला एवं बच्चों के विकास कार्यक्रम DWRCA शुरू किए गए। 1983.84 में रोजगार के अवसर बढ़ाने और स्थाई सामुदायिक सम्पत्ति निर्माण हेतु ग्रामीण भूमिहीन रोजगार सुरक्षा कार्यक्रम (RLEGP) शुरू किया गया। अगस्त, 1986 में शहरी गरीब परिवारों को 5,000 रुपये तक ऋण देने के लिए शहरी गरीबों के लिए स्व रोजगार (SERUP) कार्यक्रम शुरू किया गया। इसमें 25 प्रतिशत सब्सिडी है। इसके अंतर्गत रिक्शा चालक, मोची, धोबी, बढ़ई, ठेली लगाने वाले व सब्जी बेचने वाले आते हैं। सातवीं योजना में NREP और RLEGP को मिलाकर एक कार्यक्रम का रूप दे दिया गया, जिसे जवाहर रोजगार योजना (JRY) कहा गया।
1989 में आरम्भ इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के बेरोजगार और अर्द्धबेरोजगारों के लिए अतिरिक्त लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना था।
प्रश्न 11 : मानसून को प्रभावित करने वाली बाह्य दशाएँ
उत्तर : (i) मई के महीने में यदि हिन्द महासागर में अधिक उच्च वायुदाब हुआ तो उत्तरी भारत में प्रायः प्रतिचक्रवातीय पवन उत्पन्न हा
जाती है। फलस्वरूप भूमध्यरेखीय वायुदाब के कारण मानसूनी हवायें अधिक संगठित नहीं हो पाती और वे क्षीण हो जाती है।
(ii) यदि मार्च तथा अप्रैल महीनों में चिली तथा अर्जेण्टाइना में वायुदाब अधिक होता है तो भारतीय मानसून अधिक शक्तिशाली होता है क्योंकि इस वायुदाब से दक्षिणी-पूर्वी स्थायी पवनें अधिक प्रबल हो जाती है तथा भूमध्य रेखा को पार करके दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की वृद्धि करती है।
(iii) यदि अप्रैल-मई के महीनों में भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में जंजीबार के निकट अधिक वर्षा होती है, तो भारतीय मानसून कमजोर पड़ जाता है। इन क्षेत्रों में अधिक वर्षा का अर्थ है शान्त-खण्ड की पेटी में अधिक तेज संवाहिनी धाराओं का उत्पन्न होना तथा इन धाराओं का दक्षिणी-पश्चिमी स्थायी हवाओं के उत्तर की ओर जाने में बाधक होना। इसके फलस्वरूप भारतीय मानसून कमजोर हो जाता है।
(iv) जिस वर्ष उत्तरी पर्वतीय प्रदेश में मई के महीने तक हिमपात होता है उस वर्ष वहाँ उच्च वायुदाब की दशाएँ उत्पन्न होने से प्रतिचक्रवातीय हवायें चलने लगती है और मानसून क्षीण पड़ जाता है। इसके विपरीत, जिस वर्ष दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक हिमपात होता है उस वर्ष मानसून अधिक शक्तिशाली होता है।
यदि उपर्युक्त दशाएँ विपरीत हुईं तो उनका प्रभाव भी बिल्कुल विपरीत होता है।
प्रश्न 12 : ऋतुएँ
उत्तर : ¯ भारत सरकार के अन्तरिक्ष विभाग (मौसम कार्यालय) ने वर्ष को चार ऋतुओं में बाँटा हैµ
(1) उत्तरी-पूर्वी मानसूनी हवाओं का मौसम (N.E. Monsoon Season))
(अ) शीत ऋतु (15 दिसम्बर से 15 मार्च तक)
(ब) शुष्क ग्रीष्म ऋतु (लगभग 15 जून से 15 दिसम्बर तक)
(2) दक्षिणी-पश्चिमी मानसून हवाओं का मानसून (S.E. Monsoon Season)
(अ) वर्षा ऋतु (लगभग 15 जून से 15 सितम्बर तक)
(ब) शरद ऋतु या मानसून प्रत्यावर्तन काल की ऋतु (मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक)
प्रश्न 13 : शुष्क शीत ऋतु
उत्तर : ¯ उत्तरी भारत में अक्टूबर से ही आकाश मेघरहित होने लगता है और दिसम्बर तक सम्पूर्ण देश मेघविहीन हो जाता है, केवल दक्षिणी-पूर्वी भारत में लौटती मानसून से जो वर्षा होती है उसके कारण कहीं-कहीं मेघ छा जाते है। भारत में यह मौसम दिसम्बर से ही शुरू हो जाता है। इस समय सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में रहता है।
¯दिसम्बर के मध्य से मध्य एशिया में उच्च वायुदाब होने के कारण पछुआ (Westerlies) की शाखाएँ दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। इसी कारण कभी-कभी इस समय आकाश में मेघ भी जमा हो जाते है जिनका बरसना रबी फसलों के लिए काफी लाभदायक होता है।
¯ सारे देश में इस ऋतु में तापमान न्यून रहता है। सबसे कम तापमान उत्तरी-पश्चिमी भारत में होता है और ज्यों-ज्यों यहाँ से हम पूर्वी या दक्षिणी भारत की ओर बढ़ते है तापमान बढ़ता जाता है। राजस्थान का रात्रि तापमान कई बार 00C से भी नीचे उतर आता है। इस समय भारत का औसत उच्चतम तापमान कुछ स्थानों पर 290C तक रहता है जबकि उत्तर-पश्चिम में यह केवल 180ब् तक ही रहता है।
¯ फरवरी के आसपास कैस्पियन सागर एवं तुर्किस्तान प्रदेश की ठंडी हवायें भारतीय प्रदेश में प्रवेश कर जाती है। इनके कारण तापमान नीचे गिर जाता है तथा गहरा कोहरा छा जाता है फिर भारतीय वैसे प्रदेश जो समुद्र से नजदीक है वहाँ कोई कोहरा नहीं होता है। इस समय तमिलनाडु में शान्त खण्ड (Doldrums) के कारण तूफान आने की सम्भावना रहती है। पर्वतों पर भीषण हिमपात होता है।
प्रश्न 14 : उष्ण शुष्क ग्रीष्म ऋतु
उत्तर :