प्रश्न 1 : निम्नलिखित में से किन्ही दो के उत्तर दीजिए:
(a) राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का क्या महत्व है? बतायें कि राज्य की नीति के किन निर्देशक तत्वों को मूल अधिकारों की अपेक्षा प्रमुखता प्राप्त है।
(b) राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के गठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
(c) भारतीय संविधान के चैबीसवें संशोधन की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
(d) जन लेखा समिति की भूमिका के महत्व का आकलन कीजिए।
उत्तर : (a) नीति निर्देशक सिद्धांत एक कल्याणकारी एवं समाजवादी प्रकार के समाज को प्राप्त करने के लिए राज्य के समक्ष उपस्थित किये गये आदर्श रूप सिद्धांत हैं। राज्यों का यह कर्तव्य है कि वे प्रशासन में तथा विधि के निर्माण के दौरान इन सिद्धांतों का अनुसरण करें। ये सिद्धांत प्रजातांत्रिक संविधान के अधीन राज्य के उद्देश्य को समेटे हुए हैं। वस्तुतः अधिकांश निर्देशक सिद्धांतों का उद्देश्य आ£थक एवं सामाजिक लोकतंत्रा स्थापित करना ही है, जिसका संकल्प संविधान की प्रस्तावना में लिया गया है। ये सिद्धांत समाजवादी, गांधीवादी एवं उदारवादी-सिद्धांतों के सम्मिश्रण हैं। किंतु, इनको न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं बनाकर इन्हें संविधान में नैतिक शक्ति एवं राष्ट्रीय अंतःकरण के स्तर पर पहुंचा दिया गया है। इन सिद्धांतों का क्षेत्रा काफी व्यापक है, जिसके तहत राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्रा के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा का भी उल्लेख किया गया है। इनका उद्देश्य न्याय की स्थापना करना है। इतना ही नहीं, यह विपक्ष के हाथों में एक अस्त्रा का कार्य करता है, जिससे वह सरकार की आलोचना इस आधार पर कर सकता है कि उसका अमुक कार्यपालक या विधायी कार्य, निर्देशक सिद्धांतों के विरुद्ध है। ये दरअसल सरकार के लिए एक लक्ष्य के रूप में हैं, जहां तक पहुंचने का गंभीर प्रयास किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर, ये सिद्धांत सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों रूपों में काफी महत्वपूर्ण हैं।
संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद-39 (ख) तथा 39 (ग) के निर्देशक तत्वों को मूल अधिकारों की अपेक्षा प्रमुखता प्रदान की गयी है; अर्थात् ऐसी विधि को किसी न्यायालय में इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है।
उत्तर : (b) केंद्र सरकार ने नवंबर 1998 में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के गठन की घोषणा की। तीन स्तरों वाली इस परिषद में प्रधानमंत्राी सहित कुल छह सदस्य हैं। इस परिषद की सहायता के लिए एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड का भी गठन किया गया। प्रधानमंत्राी इस परिषद के अध्यक्ष होंगे, जबकि रक्षा मंत्राी, गृहमंत्राी, विदेश मंत्राी, वित्त मंत्राी तथा योजना आयोग के उपाध्यक्ष इस परिषद के सदस्य होंगे। राष्ट्रीय सामरिक नीति दल, संयुक्त गुप्तचर समिति तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में देश के ऐसे व्यक्तियों को लिया जायेगा, जो देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा, सामरिक मामलों, वSnेशिक घटनाओं, सुरक्षा बलों से संबंधित मामलों तथा सशस्त्रा सेनाओं, अर्थव्यवस्था, विज्ञान एवं तकनीक आदि मामलों के विशेषज्ञ होंगे।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् की मदद तथा महत्वपूर्ण मामलों में अपने सुझाव देने के लिए राष्ट्रीय सामरिक नीति दल को भी मजबूत बनाया जायेगा। यह दल सुरक्षा परिषद की मदद करने के लिए अलावा केंद्र में विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय का काम भी करेगा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड का मुख्य कार्य सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी समस्याओं के समाधान सुझाना तथा उन सुझावों पर अमल के लिए नीति संबंधी विकल्पों की सलाह देना होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद इस बोर्ड को किन्हीं विशेष मुद्दों पर विचार करने के लिए भी कह सकती हैं।
उत्तर : (c) भारतीय संविधान के अनुच्छेद:13 में यह सुस्पष्ट किया गया है कि संसद द्वारा ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाया जायेगा, जिससे संविधान के भाग-3 में उल्लिखित मूल अधिकारों का हनन हो। लेकिन 17वें संविधान संशोधन में तथा बिहार राज्य बनाम शंकरी प्रसाद के विवाद में निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह स्वीकार किया था कि ससंद मूल अधिकारों में भी संविधान के अन्य उपबंधों की भांति संशोधन कर सकती है। परंतु, बाद में उच्चतम न्यायालय ने गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार के विवाद में यह अवधारित किया कि संसद का भाग-3 के प्रावधानों में संशोधन करने तथा मौलिक अधिकारों को समाप्त या सीमित करने का अधिकार नहीं है। संविधान के 24 वें संशोधन (1971) के अंतर्गत संसद द्वारा यह निर्धारित किया गया कि मूल अधिकारों को भी संशोधित किया जा सकता है। बाद में, उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के विवाद में 24 वें संविधान संशोधन के अधिकार पर निर्बंधन लगाया, जिसके अनुसार संसद मूल अधिकारों में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे को परिव£तत नहीं कर सकती।
उत्तर : (d) जन लेखा समिति सार्वजनिक धन के खर्चों का निरीक्षण करती है, जिसमें कुल 22 सदस्य होते हैं। इनमें से 15 सदस्य लोकसभा से तथा शेष 7 सदस्य राज्यसभा से संबंधित होते हैं। इस समिति का उद्देश्य सरकारी विभागों के खर्च संबंधी हिसाब की जांच करना है। यह समिति संसद द्वारा स्वीकृत धन तथा आॅडिटर जनरल की रिपोर्ट का सूक्ष्म परीक्षण करती है। समिति यह विनश्चय करती है कि जो धन किसी विभाग द्वारा खर्च किया गया, उतना खर्च करने की उसको कानूनी दृष्टि से स्वीकृति प्राप्त भी है अथवा नहीं। समिति यह भी विचार करती है कि धन उसी अधिकारी द्वारा खर्च हुआ है, जो उस धन पर नियंत्राण रखता है। साथ ही, वह यह भी देखती है कि एक मद से दूसरे मद में धन स्थानांतरित करने के दौरान प्रचलित नियमों के अनुसार उचित अधिकारी द्वारा नियमों का पालन किया गया है अथवा नहीं। इसके अलावा, यह समिति विभिन्न सरकारी नियमों से आये हुए आमदनी तथा खर्च संबंधी हिसाब की जांच भी करती है। इस प्रकार, यह समिति सरकार पर वित्तीय अनुशासन बनाये रखने तथा उचित वित्तीय निष्पादन का सार्थक प्रयास करती है।
प्रश्न 2 : ‘भारत का राष्ट्रपति भारतीय संविधान का अभिरक्षक है।’ सोदाहरण व्याख्या कीजिये।
उत्तर: भारतीय राष्ट्रपति संविधान का मात्रा एक शक्तिहीन पहरूआ नहीं, बल्कि वह देश का एक शक्तिशाली संवेधानिक प्रधान है। आमतौर पर उसे ‘रबर स्टाम्प’ की संज्ञा प्रदान की जाती है, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका के विषय में पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमन की टिप्पणी काफी सटीक है। उन्होंने कहा था कि “राष्ट्रपति की भूमिका इमर्जेन्सी लैम्प की भूमिका है, जो सामान्यतः प्रकाशित नहीं रहती, परन्तु व्यवस्था में गतिरोध पैदा होते ही प्रकाशित हो उठती है।” इस प्रकार वह संविधान का अभिरक्षक है, खास तौर से जब वह अपने विवेक के बुद्धि का प्रयोग करता है। इस बात की पुष्टि में नीचे कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैंः
1. भारतीय संविधान एक ऐसे संघवाद की स्थापना करता है, जिनमें हर दृष्टि से केन्द्र शक्तिशाली है। देश के संयोजित विकास एवं पृथकतावादी प्रवृत्ति को अवरुद्ध करने के लिए इस प्रकार की व्यवस्था अनिवार्य थी। संसद, राज्यसूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है तथा राष्ट्रपति की निषेधाधिकार की शक्ति केन्द्र की शक्तिशाली बनाती है। इस प्रकार केन्द्र का राज्यों पर नियंत्राण बना रहता है। यदि किसी राज्य को सरकार संविधान के अनुसार नहीं कार्य कर रही है तो इस आपात स्थिति में राज्यपाल की रिपोर्ट पर या राष्ट्रपति स्वयं ही उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। यदि केन्द्र सरकार अनुच्छेद 365 का दुरुपयोग कर रही है तो राष्ट्रपति यह सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक उपबंधों का दुरुपयोग न हो। हाल ही में राष्ट्रपति महोदय ने बिहार के मामले में केन्द्र के प्रस्ताव को पुन£वचार हेतु भेज कर इस राज्य को केन्द्रीय सरकार का कोपभाजन बनने से रोका।
2. देश में सरकार के गठन में राष्ट्रपति महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है तथा संविधान में अस्पष्ट व्याख्याओं को अपने विवेक द्वारा सुलझाता है। त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में वह सरकार के स्थायित्व की जांच करके ही विभिन्न दलों को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है। राष्ट्रपति महोदय ने पिछली त्रिशंकु लोकसभा के संदर्भ में ऐसा ही किया था।
3. राष्ट्रपति के पास ‘जेबी वीटो’ की शक्ति होती है, जिसके सहारे वह किसी विधेयक को अधिनियम बनने से रोक सकता है। 1986 में संसद ने भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक पारित कर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पास अनुमति के लिए भेजा था, परन्तु इसके कुछ उपबन्ध प्रेस की स्वतंत्राता के खिलाफ थे। अतः राष्ट्रपति की जेब में पड़ कर वह विधेयक लागू नहीं हो सका।
4. राज्यों के बीच उत्पन्न विवादों को सुलझाने में राष्ट्रपति महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस संबंध में वह अन्तर्राज्यीय परिषद का गठन कर सकता है, जो राज्यों के बीच या केन्द्र और राज्यों के बीच उठे विवाद को सुलझा सकता है। ऐसे परिषद का गठन हो चुका है। इसके अलावा राष्ट्रपति कुछ विवादों के हल के लिए उच्चतम न्यायालय से परामर्श कर सकता है। इस प्रकार वह किसी जटिल एवं विवादास्पद मसले को हल करने का प्रयास करता है। राष्ट्रपति ने राम जन्मभूमि विवाद तथा कावेरी जल विवाद के मामले में उच्चतम न्यायालय से ऐसा परामर्श किया था।
5. राष्ट्रपति भारत की धर्मनिरपेक्षता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हाल ही में चुनाव के दौरान धर्म का दुरुपयोग करने पर छह वर्ष के लिए मताधिकार के प्रयोग से वचित कर दिया है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राष्ट्रपति संविधान का सही मामले में अभिरोधक है।
प्रश्न 3 : निम्न पर टिप्पणियां लिखिये।
(i) कामचलाऊ सरकार की स्थिति
(ii) आरक्षण की राजनीति
उत्तर : (i) जब कोई सरकार विश्वास मत हार चुकी हो और लोकसभा भंग कर दी गयी हो, तो अगली लोकसभा के गठन तक वही सरकार एक कामचलाऊ सरकार की भूमिका निभाती है। प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का मानना है कि संविधान में कहीं भी कामचलाऊ सरकार का उल्लेख नहीं है, अतः प्रत्येक सरकार पूर्ण शक्तिसंपन्न तथा पूर्णतः साविधानिक सरकार होती है।
1970 में श्रीमती इंदिरा गांधी की कामचलाऊ सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे, परन्तु 1979 में चरण सिंह की कामचलाऊ सरकार का राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने से रोका। इसी प्रकार पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमन का मानना था कि कामचलाऊ सरकार कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं ले सकती है। मदन मुरारी वर्मा और चरण सिंह एवं अन्य 1980' नामक विवाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि कोई भी नीति विषयक निर्णय जो लोक सदन के प्रति उत्तरदायी हो, उसे कामचलाऊ सरकार द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। दुर्गा दास बसु ने इस निर्णय की कटु आलोचना की थी। 1996 में वाजपेयी सरकार छह महीने के लिए ‘कामचलाऊ सरकार’ की भूमिका का निर्वाह करती रही। जाहिर है कि इतनी बड़ी समयावधि में सरकार हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकती थी। उसने अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिये, जिससे उसकी आलोचना हुई। सम्प्रति स्थिति वही है कि चूंकि संविधान इस संबंध में मौन है, अतः यहां अभिसमय, परम्परा एवं विवेक पर ही हमें अमल करना होगा।
(ii) हमारे संविधान में आरक्षण का प्रावधान शोषित एवं दलित वर्गों के उत्थान हेतु किया गया था। समय के साथ-साथ हमारे राजनीतिज्ञों ने इसे ‘वोट बैंक’ की राजनीति से जोड़ कर इस प्रावधान का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया।
आरक्षण की राजनीति का सूत्रापात मंडल कमीशन के रिपोर्ट से हुई। हमारे राजनीतिज्ञों ने ‘सामाजिक न्याय’ की आड़ में देश में कटुता का वातावरण फैलाया। निःसन्देह पिछड़े वर्गों का उत्थान अपरिहार्य है। लेकिन क्या आरक्षण द्वारा ही इस उद्देश्य की पू£त की जा सकती है? विगत वर्षा के अनुभवों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आरक्षण द्वारा दलितों का उत्थान संभव नहीं है तथा इस आरक्षण का लाभ उन्हीं लोगों को प्राप्त हो रहा है जो पिछड़े वर्ग से संबंध तो जरूर रखते हैं, परन्तु अन्य मामलों में वे अगड़े वर्ग से किसी भी मामले में कम नहीं हैं। इस प्रकार की राजनीति ने विभिन्न दलों को जन्म दिया जो अपने आप को ‘दलितों के मसीहा’ के रूप में देखते हैं गौरतलब है कि इन तथाकथित ‘सामाजिक न्याय’ से जुड़े लोगों ने अपने राजनीतिक हित के लिए भारतीय जनता पार्टी जैसे आरक्षण विरोधी दल के साथ समझौता किया तथा सरकारें बनायीं। सम्प्रति भारतीय जनता पार्टी ने भी जाटों को आरक्षण प्रदान कर राजस्थान में अपनी जीत सुनिश्चित की। इस प्रकार ‘आरक्षण की राजनीति’ देश के लिए घातक सिद्ध हो रही है। इससे एक ओर जहां देश में जातीय वैमनस्य बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर आरक्षित श्रेणी का विस्तार हो रहा है, परन्तु इसका लाभ वांछित वर्ग को नहीं मिल पा रहा है।
प्रश्न 4 : भारत में अवस्थापनात्मक विकास के महत्व पर प्रकाश डालिए। (लगभग 150 शब्दों में) 6
उत्तर : अवस्थापना या आधाभूत संरचना के अन्तर्गत ऊर्जा, दूरसंचार, डाक सेवाएं, पत्तन, रेलवे, नागर विभाजन, शहरी अवसंरचना तथा विभिन्न आर्थिक सेवाओं को शामिल किया जाता है। सम्प्रति भारत में अर्थव्यवस्था में लाये गये सुधारों द्वारा विभिन्न विकास योजनाएं क्रियान्वित की जा रही है। साथ ही, अर्थव्यवस्था के भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण के लिए न सिर्फ आधारभूत संरचना का क्षेत्राीय विस्तार अपरिहार्य है, अपितु इनमें गुणात्मक सुधार लाना भी उतना ही जरूरी है। यह कदम अत्यावश्यक है, क्योंकि आधारभूत संरचना की मांग, पू£त से कहीं ज्यादा है।
किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक सुदृढ़ एवं सक्षम आधाारभूत संरचना का होना अत्यावश्यक है। मसलन विद्युत या ऊर्जा के अभाव में न सिर्फ हमारे उद्योग प्रभावित हो रही है। इसी प्रकार दूरंसचार एवं यातायात के साधनों के अभाव में हमें सूचना संप्रेषण एवं कच्चे माल एवं तैयार माल को उपयुक्त स्थानों तक पहुंचाने में दिक्कतें पेश आ रही हैं। बैंक, बीमा एवं अन्य सेवा सुविधाओं के प्रसार के अभाव में ऋण, पूंजी आदि आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं जिससे हमारी आ£थक प्रगति की गति शिथिल पड़ती जा रही है। कहना न होगा कि यह आधारभूत संरचना हमारी अर्थव्यवस्था के विकास की गति को उचित दिशा प्रदान नहीं कर पायेंगे।
हमारी सरकार समाज कल्याण को प्राथमिकता प्रदान करती है, अतः उसका कर्तव्य है कि वह प्रत्येक नागरिक को आधारभूत संरचना की सुविधा मुहैया कराये। एक अन्य कारण भी अवस्थापनात्मक विकास के महत्व पर ध्यान आकृष्ट करती है। आधारभूत संरचना के विकास की परियोजनाओं में आरंभ में बहुत लागत आती है और उनकी वापसी भुगतान की अवधि भी लम्बी होती है। अतः यह आवश्यक है कि अधिक तीव्रता से सुविधाएं उपलब्ध करा कर वास्तविक खर्चों में बचत की जाये।
प्रश्न 5 : सीधी रेखा माँग वक्र पर लोच की नाप कैसे की जाती है?
उत्तर : सीधी रेखा वाले माँग वक्र तीन आकृतियों के होते हैंः
(1) बाईं से दाईं ओर नीचे ढ़ाल वाले; (2) X -एक्सिज के समानान्तर अनुप्रस्थ सीधी रेखा; और (3) Y -एक्सिज के समानान्तर उदग्र सीधी रेखा।
अनुप्रस्थ सीधी रेखा माँग वक्र के केस में, माँग की कीमत लोच ;मचद्ध वक्र में लगातार एक-सी रहती है और अनन्त माँग है। Y -एक्सिज के समानान्तर सीधी रेखा वाले माँग वक्र लोच भी वक्र में लगातार एक-सी रहती है और उसका मूल्य शून्य होता है।
बाईं से दाईं ओर ढाल सिधी रेखा माँग वक्र के केस में (यानि ऋणात्मक ढाल वाले में) जो दोनों एक्सिज को जोड़ती है, माँग की लोच इस प्रकार होती है।
(1) इकाई (ep=1) वक्र के मध्यबिन्दु पर;
(2) इकाई से बड़ी (ep>1) मध्यबिन्दु और उदग्र एक्सिज पर मिलने वाले बिन्दु के बीच कहीं भी;
(3) इकाई से कम (ep<1) मध्यबिन्दु और जिस बिन्दु पर वह अनुप्रस्थ एक्सिज से मिलती है, के बीच कहीं पर भी;
(4) अनन्त मात्रा (ep= ) उस बिन्दु पर जहाँ सीधी रेखा उदग्र एक्सिज से मिलती है; और
(5) शून्य जहाँ वह अनुप्रस्थ एक्सिज से मिलती है। चित्रा में, B सीधी रेखा माँग वक्र का मध्य बिन्दु है। बिन्दु A वक्र EC के ऊपरी भाग में और बिन्दु C निचले भाग में है। बिन्दु E पर वक्र उदग्र एक्सिज से मिलता है और बिन्दु D पर यह अनुप्रस्थ एक्सिज से मिलता है।
सिधी रेखा माँग वक्र की लोच को किसी बिन्दु पर नापने का ज्यामितिक तरीका हैः वक्र के निचले भाग को वक्र के ऊपरी भाग से भाग देना। चित्रा में, बिन्दु A पर AD/AC और C बिन्दु पर CD/CE
प्रश्न 6 : वस्तु की माँग की लोच और प्रभावित करने वाले कारणों का वर्णण करें।
उत्तर : वस्तु की माँग की कीमत लेाच ऊँची होगी या कम यह कई कारणों पर निर्भर करता है। इनकी चर्चा नीचे की गई हैः
वस्तु के निकट प्रतिस्थापी वस्तुओं की उपलब्धि
यदि वस्तु की बहुत-सी निकट प्रतिस्थापित वस्तुएँ हैं तो उसकी माँग की लोच अधिक होने की सम्भावना है। मान लीजिए चाय, काॅफी और कोकोआ एक दूसरे की प्रतिस्थापी वस्तुएँ हैं। उनमें से एक: मान लीजिए चाय: की माँग अधिक लोचदार होने की संभावना है। दूसरी ओर, नमक की माँग अधिक बेलोचदार होगी क्योंकि नमक की कोई अच्छी प्रतिस्थापित वस्तु नहीं है।
वस्तु के उपयोग
यदि एक वस्तु, जैसे मक्खन, के केवल कुछ ही उपयोग हैं तो उसकी माँग बेलोचदार होने की संभावना है। यदि, दूसरी ओर, अल्यूमिनियिम जैसी वस्तु के बहुत से उपयोग हैं तो उसकी माँग लोचदार होने की संभावना है।
यदि एक परिवार का एक वस्तु पर खर्च ज्यादा है, उसकी माँग की कीमत लोच ऊँची होने की संभावना है। दूसरी ओर, यदि उस वस्तु कुल खर्च का छोटा-सा अंश ही है जो उसकी माँग की कीमत के लिए बेलोचदार होगी।
कीमत के स्तर
माँग सामान्यतया कीमत के ऊँचे स्तर पर कीमत के नीचे स्तरी की तुलना से अधिक लोचदार होती है। इस प्रकार, सिधी रेखा माँग वक्र के केस में, वक्र का ऊपरी भाग जो ऊँची कीमत का प्रतीक होता है, अधिक लोचदार होता है। वक्र का निचला भाग जो कम कीमत का प्रतीक है, कम लोचदार होता है।
परिवार की आय के स्तर
यदि परिवार का आय स्तर ऊँचा है तो वस्तुओं की माँगी गई मात्रा पर कीमतों में परिवर्तन की प्रतिक्रिया नहीं होगी। लेकिन आय के नीचे स्तर वाले परिवारोें की अधिकतर वस्तुओं की माँग की लोच अधिक होगी।
प्रश्न 7 :पूर्ति के सिद्धान्त पर प्रकाश डालें। पूर्ति किन कारणों पर निर्भर करता है।
उत्तर : किसी विक्रेता विशेष (या फर्म) द्वारा पूर्ति का अर्थ है किसी वस्तु की वह मात्रा जिसे वह एक विशेष समय पर विशेष कीमत पर बाजार में बेचने के लिए तैयार है।
वस्तु की पूर्ति निम्नलिखित कारणों पर निर्भर करती हैः
(क) फर्म का उद्देश्य
(ख) वस्तु की कीमत
(ग) दूसरी वस्तुओं की कीमतें
(घ) वस्तु के उत्पादक साधनों की कीमतें
(ड.) तकनीक की स्थिति
सामानयतया, हम मानकर चलते हैं कि फर्म का उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम बनाना है। यहाँ विवेचित मानक व्यष्टि अर्थशास्त्रा के सिद्धांत के पीछे भी यही मान्यता है। लाभ आगम और लागत के अंतर को कहते हैं। यह तब अधिकतम होता है जब कुल आगम अधिकतम और लागत न्यूनतम होती हैै। जहाँ अन्य उद्देश्यों को मुख्य माना जाता है वहाँ भी यह माना जाता है कि लाभ को अधिकतम बनाना उन उद्देश्यों के बाहर नहीं है।
यह अन्य उद्देश्य क्या हैं? ये बिक्री को अधिकतम बनाना या तत्कालीन बाजार के अधिकतमक भाग को हथियाना, अधिकतम रोजगार या समाज द्वारा इच्छित वस्तुओं का अधिकतम उत्पादन या इसी प्रकार के अन्य उद्देश्य हो सकते हैं।
उत्पादक के उद्देश्यों में परिवर्तन का अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव वस्तु की पूर्ति पर पड़ सकता हैं।
किसी वस्तु की पूर्ति अन्य सभी सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतों पर निर्भर करती हैं क्योंकि यदि दूसरी कीमतें बढ़ जाँए तो उनका उत्पादन अधिक बेहतर माना जाएगा और वस्तु जिसकी कीमत नहीं बढ़ी है कम आकर्षक हो जाएगी। इस प्रकार, उसकी पूर्ति कम हो जाएगी।
किसी एक साधन की, जिसका प्रयोग वस्तु के उत्पादन में बड़ी मात्रा में होता है, कीमत बढ़ जाने पर उस वस्तु की लागत बढ़ जाएगी। जिन वस्तुओं के उत्पादन में इस साधन का प्रयोग कम मात्रा में होता है उनकी कीमत कम बढ़ेगी। इससे उनका उत्पादन अधिक लाभप्रद हो जाएगा। जिसकी लागत में अधिक वृद्धि हुई है उस वस्तु की तुलना में अन्य वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाऐगी।
औद्योगिक क्रांति के समय से तकनीकी प्रगति और नई खोजों के कारण उत्पादन की लागत कम हुई है और नई-नई वस्तुएँ बनाने लगी हैं।
वैज्ञानिक अनुसंधान तथा वस्तुओं के व्यापारिक उत्पादन में इनके प्रयोग के कारण कुल पूर्ति की बनावट में परिवर्तन आए हैं। ज्ञान समय-समय पर बदल जाता है। इसके फलस्वरूप समय के अनुसार विशिष्ट वस्तुओं की पूर्ति का उत्पादन भी बदल जाता है।
प्रश्न 8 : माँग वक्र वस्तु की माँग और उसकी कीमत को सम्बन्धित करता है। विवेचन करें।
उत्तर : माँग वक्र वस्तु की माँग और उसकी कीमत को सम्बन्धित करता है। ऊँची कीमत पर वस्तु की कम मात्रा और कम कीमत पर अधिक मात्रा की माँग होती है। जब हम ऊँची कीमत से नीची कीमत की ओर चलते हैं तो माँग वक्र पर नीचे की ओर चलते हैं और जब हम नीची कीमत से ऊँची कीमत की ओर चलते हैं तो हम माँग वक्र पर ऊपर की ओर चलते हैं। दूसरे शब्दों में, वस्तु की कीमत में परिवर्तन का अर्थ है माँग वक्र के साथ-साथ चलना।
नीचे दिए गए चित्रा में, कीमत में P से P1 तक कमी और आगे P2 तक कमी माँगी गई मात्रा में PA से P1B तक और फिर P2C तक का परिवर्तन लाती है। बिन्दु A से B तक और B से C तक गति माँग वक्र DD के साथ-साथ है।
जब परिवार की वस्तु की माँग कीमत में परिवर्तन के कारण नहीं बल्कि माँग के अन्य निर्धारकों परिवार की आय, उनकी रुचि और अधिमान और प्रतिस्थापी वस्तुओं की कीमतों के कारण बदलती है तो माँग वक्र परिवर्तन की दिशा के अनुसार खिसक जाता है।
चित्रा में जो नीचे दिया गया है, उसी कीमत पर, माँग की मात्रा बढ़ाकर बिन्दु D तक पहुँच जाती है। वैकल्पिक कीमत P1 और P2 के लिए माँग के बिन्दु क्रमशः E और F हैं। कीमत-मात्रा के संगठन को दिखाने वाले बिन्दु भी दाईं ओर खिसक जाते हैं। माँग में कीमत की बजाय अन्य कारणों द्वारा लाए गए परिवर्तन के फलस्वरूप माँग वक्र AB दाईं ओर A1B1 पर खिसक जाता है।
प्रश्न 9 : माँग की लोच को कुल खर्च विधि द्वारा कैसें मापा जा सकता हैं?
उत्तर : - माँग की लोच को नापने का एक अन्य तरीका उस वस्तु पर कीमत परिवर्तन से पहले और बाद में हुए खर्च की तुलना भी हो सकता है।
(1) यदि माँग की लोच इकाई से अधिक हो (यानि ep>1) तो कीमत में कमी से परिवार द्वारा वस्तु पर कुल खर्च बढ़ जाता है और कीमत में वृद्धि से यह कुल खर्च कम हो जाता है।
(2) यदि माँग की लोच इकाई में कम हो (यानि ep<1) तो कीमत में कमी से परिवार द्वारा वस्तु पर कुल खर्च कम हो जाता है, और कीमत में वृद्धि उसे बढ़ा देती है।
(3) यदि माँग की लोच इकाई के बराबर हो (यानि ep = 1) तो कीमत में वृद्धि या कमी से वस्तु पर कुल खर्च पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। नीचे दी गई अनुसूची इन्हीं तीन स्थितियों को देख सकते हैं।
तीन काल्पनिक वस्तुओं A, B और C की कीमतों में परिवर्तन और खर्च में परिवर्तन दिखाने वाली अनुसूची | |
वस्तु A की A पर B की Bपर Cकी C की की माँगी गई खर्च माँगी माँगी गई माँगी गई खर्च कीमत मात्रा (रु॰) गई मात्रा मात्रा मात्रा (रु॰) (रु॰) (इकाइयाँ) (इकाइयाँ) | |
1 2 3 4 5 6 7 | |
6 100 600 100 600 100 600 5 110 550 120 600 150 750 4 120 480 150 600 225 900 3 140 420 200 300 325 975 2 200 400 300 600 500 1000 1 300 300 600 600 1100 1100 |
वस्तु A के केस में, कीमत में कमी से वस्तु पर खर्च कम हो जाता है और कीमत में हर परिवर्तन पर माँग की कीमत लोच इकाई से कम है। वस्तु C के केस में वस्तु पर खर्च बढ़ जाता है और माँग की लोच इकाई से अधिक है, और B के केस में यह लागातार इकाई बनी रहती है। विभिन्न तीन वस्तुओं के उदाहरण दिए हैं जिनकी लोच इाकाई के बराबर रहती है। लेकिन, कीमत में विभिन्न स्तरों पर एक ही वस्तु के लिए भी लोच इकाई से अधिक, इकाई के बराबर और इकाई से कम हो सकती है।
अर्थशास्त्राी माँग में इन दो प्रकार के परविर्तनों को व्यक्त करने के लिए दो विभिन्न प्रकार के शब्दों का प्रयोग करते हैं। जब माँग में परिवर्तन केवल कीमत में परविर्तन के कारण होता है, इसे माँग की सिकुड़न और फैलाव कहते है। ये शब्द माँग वक्र पर ऊपर या नीचे गति या वक्र के साथ-साथ की गति को दिखाते हैं। लेकिन जब माँग में परिवर्तन अन्य कारणों में परविर्तन के कारण होता है तो उसे माँग की वृद्धि या कमी कहते हैं। माँग में वद्धि माँग वक्र के दाईं ओर खिसक जाने से दिखलाई पड़ती हैै और माँग में कमी के कारण माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। नीचे दिए गए चित्रा में DD आरम्भिक माँग वक्र है। वक्र D1D1 जो दाईं ओर खिसकने के बाद बना है, बताता है कि उसी कीमत पर माँग बढ़ गई है। वक्र D2D2 जो माँग वक्र के बाईं ओर खिसकने से बना है, दिखाता है कि कीमत में परिवर्तन के बिना माँग कम हो गई है।
प्रश्न 10. किसी विक्रेता द्वारा किसी विशेष समय किसी वस्तु की कीतम और उसके सम्बधों की परिचर्चा करें।
उत्तर : किसी वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन उसकी कीमत के अनुरूप होता है, यदि पूर्ति के अन्य कारण अपरिवर्तित रहें तो किसी वस्तु की पूर्ति के सम्बन्धों को हम नीचे दिए गए समीकरण से दिखा सकते हैंः
Sn = f ( Pn, P1.....Pn—1, F1,......FwG, T )
Sn वस्तु द की पूर्ति है, च्द उस वस्तु की कीमत है, Pn....Pn—1 सभी वस्तुओं की कीमतों के लिए एक ही अभिव्यक्ति है, F1......Fw उत्पादन के सभी साधनों की कीमत की एक ही अभिव्यक्ति है। G उत्पादकों के उद्देश्य का द्योतक है और तकनीकी स्थिति को दिखाता है।
यदि पूर्ति के अन्य कारण अपरिवर्तित रहें और हम किसी वस्तु की कीमत और उसकीे पूर्ति के सम्बन्धों को व्यक्त करना चाहें तो निम्न फामूर्ला उपयुक्त होगा।
Sn = f(Pn)
P1.....Pn — 1 = p1 ....Pn - 1
F1.....Fn = F1.....Fw
G = G
T = T
कीमत के अनुरूप परिवर्तन : इस कथन का अर्थ है कि दोनों चर (कीमत और पूर्ति) एक ही दिशा में चलते हैं।
निम्नलिखित काल्पनिक अनुसूची किसी वस्तु की पूर्ति तथा उसकी कीमत के सम्बन्धें को दिखाती हैः
वस्तु X के विक्रेता की काल्पनिक पूर्ति अनुसूची | |
X की प्रति इकाई कीमत (रुपये) | X की प्रति सप्ताह पूर्ति मात्रा |
6 5 4 3 2 | 80 60 40 20 0 |
ऊपर दी गई तालिका को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।
कीमत और पूर्ति के बीच सकारात्मक सम्बन्ध और पूर्ति वक्र की ढाल अधिकतर स्थितियों में सकारात्मक है, यानि वस्तु की कीमत में वृद्धि के साथ वह बाएँ से दाएँ ऊपर की ओर चलती है। कीमत के प्राथमिक सिद्धांत में हम पूर्ति वक्र की इसी बनावट की मान्यता पर चलते है। पूर्ति के माध्यमिक सिद्धांत की कठिन स्थितियों की परिचर्चा में इस मान्यता को संशोधित किया जा सकता है।
प्रश्न 11 : निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखिए:
(i)कच्छ वन (ii) शुष्क कृषि (iii) रेनुकूट
(iv) नामधापा (v) शान्त घाटी (vi) मरुस्थलीकरण
उत्तर : (i)‘कच्छ वन’ एक नमक सहिष्णु पर्यावरण तंत्रा (वनस्पति) है, जो मुख्यतः ज्वारीय क्षेत्रों में पायी जाती है। इन वनों के पेड़ों की जड़ें जल के बीच में रहने के बावजूद पेड़ जीवित रहते हैं। ये वन तटीय क्षेत्रों को सागर के प्रतिक्रमण से बचाते हैं, उदाहरण: सुन्दर वन (प. बंगाल)
(ii) ‘शुष्क कृषि’ ऐसे स्थानों पर की जाती है, जहां वर्षा कम होती है तथा कृषि इसी अल्प वर्षा पर निर्भर होती है। इस प्रकार की कृषि में मोटे अनाज, तिलहन, कपास आदि उगाये जाते हैं।
(iii) ‘रेनुकूट’ में एल्युमिनियम उत्पादक संयंत्रा हिन्डालाको स्थित है। इस संयंत्रा को बाॅक्साइट लोहरदग्गा (बिहार) एवं अमरकंटक (म.प्र.) से तथा जल विद्युत, रिहन्द जल विद्युत संयंत्रा से प्राप्त होता है।
(iv) ‘नामधापा’ राष्ट्रीय उद्यान अरुणाचल प्रदेश में स्थित है। यह उद्यान बाघ परियोजना के अन्तर्गत शामिल है। यहां बाघों की संख्या 17 है।
(v) ‘शांत घाटी’ केरल राज्य में स्थित है। अपनी जैविक विविधता के लिए मशहूर यह घाटी पर्यावरण असंतुलन की समस्या से जूझ रही है। इसके संरक्षण के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन भी चलाया गया था।
(vi) मरुस्थल के सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रसार की प्रक्रिया को ‘मरुस्थलीकरण’ कहते हैं। इस प्रक्रिया में मरुस्थल के रेत वायु द्वारा निकटवर्ती क्षेत्रों में निक्षेपित होते हैं, जिससे इन क्षेत्रों में भी मरुस्थलीकरण का वातावरण उत्पन्न हो जाता है।