प्रश्न 13 : बेलोच पदार्थों की माँग-लोचहीनता के परिणाम का उल्लेख करें।
उत्तर : (1) यदि समग्र कृषि-उत्पादन की मात्रा में वृद्धिहोती है, तो कृषि उत्पादक को अपेक्षाकृत कम आय प्राप्त होगी, क्योंकि लोचहीन माँग होने के कारण उत्पादक को अपना उत्पादक कम कीमत पर बेचने के लिए बाध्य होना पड़ता है। अतः कृषि पदार्थों की लोचहीन माँग के कारण, उत्पादक बड़ी विचित्र स्थिति में फंसा रहता है। एक ओर, यदि उत्पादक अधिक उत्पादन प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता, तो उसे कम कुल आय प्राप्त होती है, किन्तु दूसरी आरे यदि उत्पादक अधिक उत्पादन करने का प्रयास करता है और बाकी समस्त उत्पादक भी इसी प्रकार सफलतापूर्वक अधिक उत्पादन प्राप्त करते हैं तो उत्पादन के बाहुल्य के कारण कीमतें नीचे गिर जाती हैं। इससे उत्पादक को भारी हानि उठानी पड़ती है।
(2) किन्तु (1) के विपरीत, कृषि-उत्पादक उत्पादन पर नियन्त्राण करके भी अधिक लाभ प्राप्त नहीं कर सकते। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
(क) यह सर्वथा अस्वाभाविक प्रतीत होता है कि कोई भी कृषि-उत्पादक उत्पत्ति की मात्रा पर नियन्त्राण लगाने का प्रयास करेगा। भूमि से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना ही उत्पादक की स्वाभाविक प्रकृति होती है।
(ख) उत्पादन मात्रा पर नियन्त्राण लगाना अव्यावहारिक है। जैसा हम जानते है कि समग्र कृषि उत्पादन असंख्य छोटे-छोटे कृषि-उत्पादकों के उत्पादन का जोड़ होता है। ऐसी दशा में यह अव्यावहारिक प्रतीत होता है कि सभी उत्पादक संयुक्त रूप से समग्र उत्पादन की मात्रा पर नियन्त्राण लगाने का प्रयास कर सकते है।
(ग) अमरीका जैसे अतिरिक्त कृषि-उत्पादन के देश ही उत्पादन मात्रा पर रोक लगाने का विचार कर सकते हैं। किन्तु भारत जैसे कृषि-उत्पादन की कमी वाले देशों में उत्पादन की मात्रा में रोक लगाना न केवल असामाजिक है, बल्कि अर्थहीन एवं अनार्थिक भी है।
प्रश्न 14 : दक्षिण गंगा क्या है? इसको यह नाम क्यों दिया गया?
उत्तर : (d) : दक्षिण गंगा-भारतीय प्रायद्वीप की 1,465 कि.मी. लम्बी नदी गोदावरी को दक्षिण गंगा कहा जाता है। इसका उद्गम स्रोत नासिक जिले में राजसमुन्दरी के पास तराम्ब (Trambak) में है। दक्षिण पठार में गंगा के बाद सबसे बड़ी नदी होने के कारण इसे दक्षिण गंगा कहा जाता है।
प्रश्न 15 : मेघालय पठार, दककन पठार से किस प्रकार पृथक हुआ था?
उत्तर : पृथ्वी की भूगर्भीय हलचलों के कारण पृथ्वी के समतल भू-भाग के नीचे धँस जाने के कारण मेघालय पठार, दक्कन पठार से अलग हुआ था। इन दोनों पठारों के बीच का अंतर (Gap) गारो-राजमहल कहलाता है, जो कि एक विस्तृत उपजाऊ भू.भाग है।
प्रश्न 16. निम्नलिखित प्रत्येक स्थान पर खोदे जाने वाले खनिज पदार्थ का नाम बताइएः
(i) नेवेली
(ii) पन्ना
(iii) जादुगुडा
(iv) ”एल निनो“ क्या है?
उत्तर : (i) नेवेली - लिग्नाइट
(ii) पन्ना -हीरा
(iii) जादुगुड़ा -यूरेनियम
उत्तर (iv) : दक्षिण अमेरिका देश पूरू के किनारे पूर्वी प्रशांत महासागर में प्रवाहित होने वाली गर्म सामुद्रिक जल धारा एलनिनो है। इसे भूमध्य रेखीय जल धारा का विस्तार माना जाता है जो स्थ्लीय जल के तापमान 10° सेन्टिगे्रड तक बढ़ा देता है। यह जलधारा 7 या 14 वर्ष के अन्तराल में प्रवाहित होती है।
प्रश्न 17. निम्नलिखित के सम्बन्ध में लिखिएः
(क) इसरो (आई.एस.आर.ओ.)
(ख) केन्द्रीय सतर्कता आयोग
(ग) एन.डी.डी.बी.
(घ) परीचू झील
उत्तर : (क) इसरो (ISRO) -भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) भारत के अन्तरिक्ष कार्यक्रम का सर्वोच्च संगठन है। जिसकी स्थापना सन् 1962 में करके सन् 1969 में इसका पुनर्गठन कर दिया गया। प्रत्येक श्रेणी के उपग्रहों, प्रक्षेपण एवं अनुप्रयोग आदि कार्य इसरो के द्वारा ही किए जाते हैं।
(ख) केन्द्रीय सतर्कता आयोग-सन् 1964 में स्थापित केन्द्रीय सतर्कता आयोग एक उच्चस्तरीय सांविधिक निकाय है जो केन्द्र सरकार के सभ मन्त्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्रा के उपक्रमों के वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार आदि से सम्बन्धित शिकायतों की जाँच करती है।
(ग) एन.डी.डी.बी. (National Dairy Development Board)- (राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड) भारत में दुग्ध विकास के क्षेत्रा की सर्वोच्च विशेषज्ञ निकाय है। वर्तमान में यह संस्था देश के भीतर दुग्ध विकास की विभिन्न परियोजनाओं के संचालन के साथ.साथ खाद्य तेलों के प्रमुख ब्राण्ड ‘धारा’ का विपणन भी करती है।
(घ) परीचू झील - भू-स्खलन के कारण तिब्बत की एक नदी का प्रवाह अवरुद्ध हो जाने से परीचू झील का जल स्तर काफी ऊँचा उठ गया जिससे हिमाचल प्रदेश के एक भाग में बाढ़ की आशंका पैदा हो गई।.
प्रश्न 18. द्वितीय विश्व महायुद्ध के आंरभ का भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर कया प्रभाव पड़ा? क्या क्रिप्स मिशन भारत में राजनीतिक संकट को सुलझा पाया?
उत्तर : सितंबर 1939 में द्वितीय महायुद्ध प्रारंभ हाने के समय भारत राजनैतिक रूप से अस्थिर था। सभी राजनैतिक दल अंग्रेज सरकार पर भारत की स्वतंत्राता के लिए दबाव बनाये हुये थे। 1935 का अधीनियम संघीय मामलों में लागू न था परंतु इसमें दी गई प्रांतीय स्वायत्ता के वजह से राज्यों में लोकतांत्रिक विधायिकायें एवं सरकारें थी। इन परिस्थितियों में भारत के वायसराय ने 3 सिंतबर 1939 को भारतीय नेताओं से बिना विचार विमर्श किये भारत को भी युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी। वायसराय का यह कदम जले में नमक छिड़कने जैसा था। पूर्वी मोर्चे पर जापान के बढ़ते आक्रमण तथा पश्चिमी मोर्चे पर जर्मनी की लगातार विजय से ब्रिटेन महायुद्ध में धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा था। इस अवसर पर भारतीय, ब्रिटेन की कमजोर स्थिति का लाभ उठाकर उसे स्वतंत्राता के लिये बाध्य कर सकते थे, किंतु पारस्परिक वैमनस्यता तथा शीर्ष स्तर पर नेताओं के मध्य उभरे मतभेद से यह अवसर हाथ से जाता रहा। यद्यपि कांग्रेस ने इस अवसर पर सरकार को किसी भी तरह का समर्थन देने से इंकार कर दिया किंतु उसके दो प्रमुख नेताओं जवाहर लाल नेहरू एवं गंाधी जी द्वारा सरकार समर्थक बयान जारी करने से विरोधाभास की स्थिति पैदा हो गयी। सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रितानी सरकार द्वारा दबाव डालने का प्रयास किया। बोस की अवधारणा में महायुद्ध से ब्रिटेन का कमजोर होना भारतीय स्वतंत्राता की मांग के लिए लाभदायक होगा। विनोवाभावे ने भी इस अवसर पर व्यक्तिगत रूप से आंदोलन प्रारंभ किया। मुस्लिम लिग ने खुद को तटस्थ रखा तथा कोई बयान जारी नहीं किया।
ब्रितानी सरकार ने भारतीय राजनीति के इस विरोधाभास तथा फूट का लाभ उठाते हुये भारत को आजादी दिये जाने का मसला पुनः टाल दिया। इस प्रकार भारतीय नेताओं के उक्त रवैये के कारण स्वतंत्राता या अधिकारों की प्राप्ति का एक सुंदर अवसर उनके हाथ से निकल गया। इसी समय ब्रिटिश सरकार ने अवसर का लाभ उठाया तथा भारतीय नेताओं को फुसलाने के लिये क्रिप्स मिशन को भारत भेज दिया।
इन संकट ग्रस्त परिस्थितियों तथा ब्रिटिश सरकार पर पड़ रहे दबाव के फलस्वरूप हाउस आॅफ कामन्स के प्रमुख सर स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक शिष्ट मंडल 22 मार्च 1942 को भारत पहुंचा। मिशन ने निम्नलिखित घोषणाऐं कि-
किंतु उक्त घोषणाओं के बावजूद भारत के प्रत्येक राजनैतिक दल एवं नेताओं ने इन प्रस्तावों को नकार दिया। जिसके कारण इस प्रकार थेः
अन्ततोगत्वा लगभग सभी पक्षों द्वारा क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को ठुकरा दिया गया तथा क्रिप्स मिशन तत्कालीन संकट को सुलझाने में असफल रहा है।
प्रश्न 19 : 1917 के चम्पारण सत्याग्रह तक भारतीय राजनीति में हुए गांधीजी के उद्भव को रेखित कीजिए। उनके द्वारा प्रतिपादित सत्याग्रह का आधारभूत दर्शन क्या था?
उत्तर : भारतीय स्वतंत्राता के प्रेरक, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 1894 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में अपने ”सत्य के प्रयोग व दर्शन“ को व्यथित वर्गों हेतु प्रयोग करते रहे, जिसमें उन्हें सफलता मिली। अपनी इन्हीं सफलताओं की ‘आजमाइश’ का ख्याब पिरोये गांधीजी भारतीय जनता को अंग्रेजी कुशासन से छुटकारा दिलाने जनवरी 1915 में भारत की धरती पर पधारे, गांधीजी के भारत-आगमन पर राष्ट्रवाद का तीसरा युग प्रारम्भ हुआ। भारत आते ही गांधीजी अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले से मिले एवं तत्कालीन परिस्थितियों का अध्ययन किया। यद्यपि चम्पारन सत्याग्रह 1917 गांधीजी का प्रथम सत्याग्रह माना जाता है, तथापि इससे पूर्व वे कई छोटे-छोटे आंदोलनों में भाग ले चुके थे, 1916 ई. में सावरमती आश्रम की स्थापना आदि अंग्रेजों या वहशीयत की नीति के विरुद्ध उनका शंखनाद था।
अपने अभियान के प्रथम चरण में उन्होंने अनेक राजनीतिक मामलों में सक्रियता दिखाई।
गांधीजी ने भारतीय श्रमिकों को अन्य देशों में श्रमिक कार्य हेतु ले जाने एवं अत्याचार करने के खिलाफ प्रदर्शन किया, इस समय अफ्रीका व लेटिन अमेरिकी देशों में भारतीय श्रमिकों को ले जाने तथा स्थायी रूप से बसाये जाने की प्रथा प्रचलित थी, गांधीजी के सत्याग्रह के फलस्वरूप यह प्रथा समाप्त हुई।
फरवरी 1916 में बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह पर गांधीजी ने विचार व्यक्ति करते हुए प्रबुद्ध वर्ग को आड़े हाथ लिया, इस समारोह में उपस्थित राजाओं महाराजाओं एवं धनाठ्यों पर कहर बरपाते हुए उनके अपने निर्धन साथियों (देशवासियों) की खातिर विलासितापूर्ण जीवन त्यागने के लिए कहा एवं अन्य समस्याओं पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि ”यदि हमें स्वशासन प्राप्त करना है तो एक जुट होना होगा, तभी यह लक्ष्य प्राप्त हो सकेगा“ इस अवसर पर गांधीजी के उत्तेजित भाषण ने उन्हें भारतीय राजनीतिक पटल पर प्रमुखता से ला खड़ा किया।
गांधीजी ने अपने निर्धन देशवासियों की दुरूह-करों एवं छोटी-छोटी समस्याओं से निपटने के असफल प्रयास किये, जैसे राजकोट के नजदीक स्थित बीरमगांव जहां पर लोगों से सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा तटकर लिया जाता था, गांधीजी के सत्याग्रह के फलस्वरूप इस समस्या का निदान भी संभव हुआ।
इसके पश्चात् चम्पारन के कृषकों को इस अत्याचार से निजात दिलाने के लिए गांधीजी ने 1917 में सत्याग्रह प्रारम्भ किया, यह सत्याग्रह गांधीजी द्वारा किया गया प्रथम समग्र सत्याग्रह था जिससे गांधीजी भारत की राजनीति के अग्रिम पंक्ति के नेताओं में शामिल हो गये।
गांधीजी के अनुसार, ”सत्याग्रह, सत्य, प्रेम और अहिंसा पर आधारित राजनीतिक व सामाजिक अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने का एक नैतिक तरीका है।“ सत्याग्रह का तात्पर्य है, हर हातल में सत्य का पालन करना अर्थात् सत्यसे कभी न डिगना। चूंकि सत्य अनादि, अनन्त है, एक सामान्य आदमी द्वारा इसे नहीं समझा जा सकता, सत्य की अवधारणा भिन्न हो सकती है, उन्होंने ‘स्याद्वाद’ का अनुसरण करते हुए बताया कि सत्य के अनेक पहलू हो सकते हैं, यह प्रत्येक व्यक्ति के बीच भिन्न हो सकता है। जहां सब कुछ असफल हो जाता है, वहाँ एक सत्याग्रही व्यक्ति को विवेकपूर्ण ठंग से समझाने का प्रयास करता है, एवं उसके हृदय ओर अंतर-आत्मा को परिवर्तित करने का मार्ग प्रशस्त करता है। सत्याग्रह के मूल में यह भी दृष्टिगत होता है कि एक सही सत्याग्रही वही है जो स्वयं को कष्ट दे परन्तु अहिंसात्मक रूख अपनाये रहे। सत्याग्रही विचारों एवं कार्यों से प्राणी मात्रा को कष्ट न पहुंचाने को भी प्रधानता देता है। गांधीजी ने अहिंसात्मक कष्ट सहने की विचारधारा को मानव जीवन की सभी क्रियाओं में लागू किया ताकि साामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्रा में मौलिक परिवर्तन लाया जा सकें। अहिंसा का अर्थ यह भी है कि आप अपने दुश्मन का भी भला करें, उसके द्वारा पहुंचाये गयें कष्ट को सहें, आपकी इन क्रियाओं से शायद उसका मन बदले, वह दुराचारी आपसे प्रभावित होकर सदाचारी बन जाये एवं सत्याग्रह की राह पकड़ ले।
गांधीजी ने सत्याग्रह को बलवानों का औजार बताया है, इससे लोगों के मन से भय दूर होता है, उसको प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार का शारीरिक कष्ट भोगा जा सकता है परन्तु अहिंसा की लाठी के सहारे सत्य का पथ कभी नहीं छोड़ा जा सकता है।
प्रश्न 20 : गांधी-इर्विन समझौता क्या था? इस पर हस्ताक्षर क्यों किए गए? उसके क्या परिणाम थे?
उत्तर : साइमन आयोग की रिपोर्टानुसार, शासन संबंधी सुधारों पर विचार के उद्देश्य से 1930 में लंदन में बुलाया गया प्रथम गोलमेज सम्मेलन कांगे्रस के भाग न लेने के कारण असफल रहा। इस घटना से ब्रिटिश सरकार ने कांगे्रस के महत्व को समझते हुए कांगे्रस के साथ किसी समझौते पर पहुँचने को प्राथमिकता दी। अतः 5 मार्च, 1931 को गाँधी जी व लार्ड इर्विन के बीच एक समझौता सम्पन्न हुआ, जिसकी मुख्य बातें निम्नलिखित थींः
1. उन सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई, जो किसी आपराधिक मामले में संलिप्त नहीं थे।
2. आन्दोलन के दौरान सत्याग्रहियों की जब्त की गयी सम्पत्ति की वापसी।
3. भारतीयों को समुद्र तट पर एक निश्चित सीमान्तर्गत नमक बनाने का अधिकार।
4. शराब तथा विदेशी कपड़ों की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरने की अनुमति।
5. सभी अध्यादेशों की वापसी और अभियोगों की समाप्ति।
समझौते के परिणामस्वरूप काँग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया और लंदन में द्वितीय गोल मेज सम्मेलन (1931) में कांग्रेस की ओर से गांधी जी ने भाग लिया। लेकिन अपने द्वारा रखे गए प्रस्तावों पर असहमति के बाद वे भारत लौट आए और आन्दोलन को पुनः शुरू कर दिया।
प्रश्न 21 : ‘सिविल सेवाओं में भारतीयों की भर्ती उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थांश का सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न था।’ स्पष्ट समझाइए?
उत्तर : लार्ड क्लाईव एवं लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज के प्रयासों के बावजूद कम्पनी के अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सका था। लार्ड कार्नवालिस ने महसूस किया कि जब तक भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त नहीं कर दिया जाता, तब तक प्रशासन में सुधार नहीं आ सकता और न ही इसमें कुशलता आएगी। इसी कारण उसने सिविल परीक्षा की व्यवस्था लागू की और सुधारों के द्वारा प्रशासन को स्वच्छ बनाना चाहा। लार्ड वेलेजली ने फोर्ट विलियम काॅलेज की कलकत्ता में स्थापना की, जहाँ नये सिविल अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता था। 1908 में जब कंपनी के निदेशकों ने इसे मंजूरी नहीं दी तो , उसने इंग्लैण्ड के हेलीबरी में ईस्ट इंडिया काॅलेज की स्थापना की, जहाँ नये अधिकारियों (जो सिविल सेवाओं के लिए नियुक्त हो जाते थे) को 2 वर्ष का प्रशिक्षण दिया जाता था। 1853 के चार्टर एक्ट के अनुसार, सिविल सेवाओं में भर्ती प्रतियोगिता परीक्षाओं के द्वारा की जाने लगी। तब भी उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में सिविल सेवाओं से सम्बन्धित सबसे महत्वपूर्ण सवाल भारतीयों को इस सेवा से अलग रखना था। इसके अनेक कारण थे, जो निम्नलिखित हैंः
1. अंग्रेजों का विचार था कि ब्रिटिश शासन प्रणाली को ब्रिटेनवासी ही अच्छी तरह चला सकते हैं।
2. भारतीयों की क्षमता और एकता के बारे में वे संदिग्ध थे।
3. यह एक जानबूझ कर अपनायी गयी नीति थी, क्योंकि ब्रिटिश शासन की स्थापना और उसकी मजबूती का काम भारतीयों के हाथों नहीं छोड़ा जा सकता था।
4. ब्रिटिश समाज के प्रभावी तत्व चाहते थे कि उच्चपद उनकी संतानों के लिए सुरक्षित रखे जाएं।
भारतीय नेताओं ने भारतीयों को अलग रखने की कोशिश का विरोध किया। बाद में उन्नीसवीं सदी के अंत में सिविल सेवाओं में भारतीयों की भर्ती की माँग माल ली गयी।
प्रश्न 22. जवाहरलाल नेहरू समाजवादी विचारों से कैसे प्रभावित हुए? नेहरू तथा अन्य नेताओं के समाजवादी चिन्तन ने 1942 से पहले कांग्रेस को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर : 1929 में विश्व में बड़े पैमाने पर आर्थिक मंदी और बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हुई जो कि अमेरिका में हुए आर्थिक मंदी के दौर का परिणाम था। इससे पूँजीवादी देशों में उत्पादन कम होने लगा और विदेशी व्यापार में भी कमी आयी। लेकिन रूस में ठीक इसके विपरीत हुआ। वहाँ माक्र्सवाद, समाजवाद ओर आर्थिक नियोजन की नितियों के फलस्वरूप प्रगति हुई, जिससे पूँजीवादी देश इस तरह की नई अर्थव्यवस्था के प्रति सजग हो गए। इसी वजह से नेहरू समाजवाद के सिद्धान्तों से आकर्षित हुए।
सन् 1942 के पूर्व कांग्रेस में नहेरू और सुभाष जैसे नेताओं के चलते समाजवाद की चिंतनधारा का असर पड़ा। नेहरू और सुभाष ने पूरे देश का दौरा करके समाजवादी विचारधारा को अपनाने की शिक्षा दी। आर्थिक मंदी की वजह से किसानों और मजदूरों की हालत खराब हो गयी थी। फिर भी वे अपने अधिकारों के लिए लड़े और उन्हे मजदूर संघ और किसान संगठन बनाने में सफलता मिली। 1936 की लखनऊ काँग्रेस में नेहरू ने समाजवाद की विचारधारा पर जोर दिया तथा कांग्रेस को किसानों व मजदूरों के निकट आने पर जोर दिया। सत्यभक्त ने भारतीय साम्यवादी दल स्थापित करने की घोषणा की। काँग्रेस के बाहर आचार्य नरेन्द्र देव ओर जयप्रकाश नारायण ने मिलकर कांग्रेस समाजवादी पार्टी का गठन किया। 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने फारर्वाड ब्लाक का गठन किया। इस तरह विभिन्न संगठनों के निर्माण में समाजवाद की भूमिका अहम रही। 1942 से पहले की कांग्रेस राजनीति में नेहरू व सुभाष का अध्यक्ष चुना जाना इस बात का स्पष्ट संकेत था कि कांग्रेस में समाजवादी विचारधारा का वर्चस्व हो चुका है। कांग्रेस के कराची अधिवेशन में समाजवादी धारा का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
प्रश्न 23. परमोच्च शक्तिमत्ता की राज्य-अपहरण नीति के दुष्परिणामों को अपवारित कर भारत की रियासतों को समेकित करने में पटेल किस प्रकार सफल हुए?
उत्तर : ब्रिटिश प्रधानमंत्राी एटली ने 20 फरवरी, 1947 को घोषणा की कि जून, 1948 तक भारत को स्वतंत्रा कर दिया जाएगा और ब्रिटिश सरकार किसी भी आने वाले सरकार को अपने अधिकार और कर्तव्य सौंप देगी। उससे यह डर बना रहा कि अगर छोटे.छोटे राज्य अपनी संप्रभुता बनाए रहे तो गृह-युद्ध की स्थिति बन सकती है। साथ ही, ब्रिटेन के हटने के बाद अस्थिरता और अराजकता फैल सकती है। भारतीय स्वाधीनता अधिनियम, 1947 के मुताबिक ब्रिटेन का शासन भारत पर खत्म हुआ और राज्यों को छूट दी गयी कि वह भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं। 5 अगस्त’ 47 तक 36 रियासतें भारत में शामिल हो गयी पर कुछ रियासतें भारत में शामिल होने से आनाकानी करने लगीं।
इस मोड़ पर भारत के तत्कालीन गृहमंत्राी सरदार पटेल ने चतुर राननीतिक व कूटनीतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया। इस काम में उनकी मदद वी.पी.मेनन ने की। पटेल ने राष्ट्रवादी और देशभक्त राजाओं से अपील की कि वे संविधान सभा में शामिल हो जाएं। उन्होंने यह भी आग्रह किया किय केवल विदेश, रक्षा व यातायात ही केन्द्र के जिम्मे रहेंगे और बाकी व्यवस्था वैसी ही होगी जैसी ब्रिटिश शासन में थी। लेकिन जब रियासतों ने प्रपत्रा पर हस्ताक्षर किए तो उन्हें अपनी संप्रभुता खोनी पड़ी। जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू एवं कश्मीर ने पहले प्रपत्रा पर हस्ताक्षर नहीं किए, वहाँ पर बल और लोकमत विधि प्रयोग करके उन्हें भारतीय प्रदेश में शामिल कर दिया गया। पटेल की राजनीतिक दूरदर्शिता एवं कूटनीति के कारण कश्मीर ने विलय पत्रा पर 26 अक्टूबर, 1947 तथा जूनागढ़ व हैदरावाद ने 1948 में हस्ताक्षर किये। इस तरह पटेल ने लोकतंत्रा की ताकतों को एकजुट कर तथा देशभक्त रियासतों को मिलाकर भारतीय संघ की स्थापना की।
उत्तर : बुनियादी शिक्षा के बारे में गांधी जी ने प्रथम बार 1937 में विचार प्रकट किये। इसे ‘नयी तालीम’ नाम से भी संबोधित किया गया। गांधी जी ने बुनियादी शिक्षा में शारीरिक प्रशिक्षण, स्वच्छता व स्वावलम्बन पर जोर दिया है। उनके अनुसार किसी प्रकार के हस्त-कौशल या कारीगरी के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा शीघ्र ग्राह्य व लाभकारी होती है। इस पद्धति से व्यक्ति का मानसिक व आध्यात्मिक विकास होता है। गांधी जी के अनुसार, बालकों को जीवकोपार्जन के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए तथा उसी के अनुरूप उनके शरीर, मस्तिष्क, हृदय आदि की शक्तियों का विकास करना चाहिए। इससे वह अपने व्यवसाय में निपुणता प्राप्त कर लेगा। उन्होंने बालकों के लिए कला, संगीत व शारीरिक प्रशिक्षण के अलावा रस व सौन्दर्य बोध के विकास पर भी ध्यान देने की आवश्यक बताया है।
टैगोर ने अपने शिक्षा संबंधी विचारों में ऐसी शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया है, जिससे मनुष्य सामाजिक व प्राकृतिक परिवेश में विश्वात्मा को देखे। वे शिक्षा के लिए औपचारिक वातावरण के स्थान पर सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा देने के पक्षपती थे। वे बाल मस्तिष्क को पूर्ण स्वतंत्राता देने व उसे अपनी रुचि की शिक्षा की ओर प्रवृत्त होने देने के दृष्टिकोण का समर्थन करते थे। उनके अनुसार, जो भी शिक्षा हो वह आर्थिक विकास के साथ.साथ सांस्कृतिक व कलात्मक विकास करने वाली भी हो। साथ ही, टैगोर ने स्व.सहायता, स्व.अनुशासन व ग्राम सेवा पर काफी बल दिया है।
प्रश्न 24. बच्चों को कैस सुघारा जा सकता है?
उत्तरः पुरस्कार से बच्चों में एक प्रेरणा जागती है। किन्तु अधिक मात्रा में इसका प्रयोग करने से हानि भी होती है। दंड से लाभ होता है, गलत व्यवहार को रोकता है। पर कठोर दंड का परिणाम घातक होता है। अंग्रेजी में एक पुरानी कहावत है "Spare the rod and spoil the child" अर्थात् इसका मतलब होता है कि आप दंड देना छोड़ दें और आपका बच्चा बर्बाद। पर आधुनिक युग में यह गलत साबित होता जा रहा है। अभी तो यह कहा जाता है कि "Hold the rod and spoil the child" यानि अगर दंड दिया तो बच्चा बर्वाद।
कहने का मतलब यह नहीं है कि दंड देना ही नहीं चाहिए। अगर मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चे को तैयार किया जाए तो वह ज्यादा लाभ प्रद होगी। हमें अपने अनुसार उनको ढ़ालने पर यानि जो चाहते है वही वे करें एैसा नहीं हो सकता। उनको अपने अनुसार विकसित होने का सुअवसर देना ही ज्यादा उचित होगा। बहुत ही ज्यादा दंड और बहुत ही छुट दोनों ही गलत होता हैै। बालक को दण्ड देना तभी उचित है जब उसको सुधारना हो।