भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-नैतिक एवं मर्यादापूर्ण आचारण से हटकर आचरण करना। इस तरह का आचरण जब सत्ता में बैठे लोगों या कार्यालयों के अधिकारियों द्वारा किया जाता है तब जन साधारण के लिए समस्या उत्पन्न हो जाती है। पक्षपात करना, भाई-भतीजावाद को प्रश्रय देना, रिश्वत माँगना, समय पर काम न करना, काम करने के बदले अनुचित माँग रख देना, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।
भ्रष्टाचार समाज और देश के लिए घातक है। दुर्भाग्य से आज हमारे समाज में इसकी जड़ें इतनी गहराई से जम चुकी हैं कि इसे उखाड़ फेंकना आसान नहीं रह गया है। भ्रष्टाचार के कारण देश की मान मर्यादा कलंकित होती है। इसे किसी देश के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। भ्रष्टाचार के कारण ही आज रिश्वतखोरी, मुनाफाखोरी, चोरबाज़ारी, मिलावट, भाई-भतीजावाद, कमीशनखोरी आदि अपने चरम पर हैं।
इससे समाज में विषमता बढ़ रही है। लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है और विकास का मार्ग अवरुद्ध होता जा रहा है। इसके कारण सरकारी व्यवस्था एवं प्रशासन पंगु बन कर रह गए हैं। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोगों में मानवीय मूल्यों को प्रगाढ़ करना चाहिए। इसके लिए नैतिक शिक्षा की विशेष आवश्यकता है। लोगों को अपने आप में त्याग एवं संतोष की भावना मज़बूत करनी होगी। यद्यपि सरकारी प्रयास भी इसे रोकने में कारगर सिद्ध होते हैं पर लोगों द्वारा अपनी आदतों में सुधार और लालच पर नियंत्रण करने से यह समस्या स्वतः कम हो जाएगी।
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