मनुष्य और त्योहारों का अटूट संबंध है। मनुष्य अपने थके हारे मन को उत्साहित एवं आनंदित करने के साथ ही ऊर्जान्वित करने के लिए त्योहार मनाने का कोई न कोई बहाना खोज ही लेता है। कभी महीना बदलने पर, कभी नई ऋतु आने पर और कभी फ़सल पकने की आड़ में मनुष्य प्राचीन समय से त्योहार मनाता आया है।
ये त्योहार, मानव के सुख-दुख, हँसी-खुशी, उल्लास आदि व्यक्त करने का साधन भी होते हैं। त्योहार हमारे संस्कृति के अभिन्न अंग बन गए हैं। इनके माध्यम से हमारी संस्कृति की झलक मिलती है। त्योहारों के अवसर पर प्रयुक्त परिधान, रहन-सहन का ढंग, नृत्य-गायन की कलात्मकता आदि में संस्कृति के दर्शन होते हैं। ये त्योहार हमारी एकता को मजबूत बनाते हैं। वर्तमान में भौतिकवाद के कारण बदलाव आया है।
लोगों की भागम भरी जिंदगी की व्यस्तता और काम से बचने की प्रवृत्ति के कारण अब त्योहार उस हँसी-खुशी उल्लास से नहीं मनाए जाते हैं, जैसे पहले मनाए जाते थे। आज लोगों के मन में धर्म-जाति भाषा क्षेत्रीयता और संप्रदाय की कट्टरता के कारण दूरियाँ बढ़ी हैं। अब तो त्योहारों के अवसर पर दंगे भड़कने का भय स्पष्ट रूप से लोगों को आतंकित किए रहता है।
इस कारण लोग इन त्योहारों को जैसे-तैसे मनाकर इतिश्री कर लेते हैं। त्योहारों को हँसी-खुशी मनाने के लिए धार्मिक कट्टरता त्यागनी चाहिए तथा प्रकृति से निकटता बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें इस तरह त्योहार मनाने का प्रयास करना चाहिए जिससे सभी को खुशी मिल सके।
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