मनुष्य के मन में यात्रा करने का विचार ज़ोर मारता रहता है। उसे बस मौके की तलाश रहती है। मुझे भी यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। आखिर मुझे अक्टूबर के महीने में यह मौका मिल ही गया जब पिता जी ने बताया कि हम सभी वैष्णो देवी जाएँगे। वैष्णो देवी का नाम सुनते ही मन बल्लियों उछलने लगा और मैं तैयारी में जुट गया। उधर माँ भी आवश्यक तैयारियाँ करने के क्रम में कपड़े, चादर और खाने के लिए नमकीन बिस्कुट आदि पैक करने लगी।
आखिर नियत समय पर हम प्रात: तीन बजे नई दिल्ली स्टेशन पर पहुँचे और स्वराज एक्सप्रेस से जम्मू के लिए चल पड़े। लगभग आधे घंटे बाद हम दिल्ली की सीमा पार करते हुए सोनीपत पहुँचे। अब तक सवेरा हो चुका था। दोनों ओर दूर तक हरे-भरे खेत दिखाई देने लगे। इसी बीच पूरब से भगवान भास्कर का उदय हुआ। उनका यह रूप मैं दिल्ली में नहीं देख सका था।
दस बजे तक तो मैं जागता रहा पर उसके बाद चक्की बैंक पहुँचने पर मेरी नींद खुली। उससे आगे जाने पर हमें एक ओर पहाड़ नज़र आ रहे थे। वहाँ से कटरा जाकर हमने पैदल चढ़ाई की। पर्वतों को इतने निकट से देखने का यह मेरा पहला अवसर था। इनकी ऊँचाई और महानता देखकर अपनी लघुता का अहसास हो रहा था।
अब मुझे समझ में आया कि ‘अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे’ मुहावरा क्यों कहा गया होगा। वैष्णो देवी पहुँचकर वहाँ का पर्वतीय सौंदर्य हमारे दिलो-दिमाग पर अंकित हो गया। वहाँ से भैरव मंदिर पहुँचकर जिस सौंदर्य के दर्शन हुए वह आजीवन भुलाए नहीं भूलेगा।
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