मनुष्य की स्वाभाविक विशेषता है कि वह जिस व्यक्ति, वस्तु या स्थान के साथ कुछ समय बिता लेता है उससे उसका लगाव हो जाता है। ऐसे में जिस देश में उसने जन्म पाया है, जहाँ का अन्न-जल और वायु ग्रहण कर बड़ा हुआ है, उस स्थान से लगाव होना लाजिमी है। इसी लगाव का नाम है देश-प्रेम। अर्थात् देश के कण-कण से प्रेम होना उसकी सजीव-निर्जीव वस्तुओं के अलावा पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं और मनुष्यों से प्यार करना देश-प्रेम कहलाता है।
यह वह पवित्र भावना है जो देश की रक्षा करते हुए अपना तन-मन-धन अर्थात् सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसा व्यक्ति ही सच्चादेश प्रेमी कहलाता है। कहा गया है-‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। आखिर हो भी क्यों न व्यक्ति को स्वर्ग जाने के योग्य जननी और जन्मभूमि ही बनाते हैं। माँ संतान को जन्म देती है पर जन्मभूमि की रज में लोटकर बच्चा बढ़ता है और यहीं का अन्न जलग्रहण कर बड़ा होता है।
वास्तव में जन्मभूमि के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हमारे देश के वीरों और देशभक्तों ने जन्मभूमि की रक्षा के लिए सुख-चैन त्याग दिया, जेल की दर्दनाक यातनाएँ भोगी, हँसते-हँसते लाठियाँ और कोड़े खाए और हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूम गए। देश प्रेम की पवित्र भावना जाति, धर्म, भाषा, वर्ण, वर्ग, प्रांत और दल से ऊपर होती है। यह इन संकीर्णताओं का बंधन नहीं स्वीकारती है। इससे राष्ट्रीय एकता मजबूत होती है। हमें अपने देश पर गर्व है। मैं इससे असीम प्यार करता हूँ।
12 videos|101 docs
|
12 videos|101 docs
|
![]() |
Explore Courses for Class 10 exam
|
|