हमारे गाँवों में। अगर हमें अपने देश की सच्ची तसवीर देखनी है तो हमें गाँवों की ओर रुख करना पड़ेगा। हमारे देश की आत्मा इन्हीं गाँवों में निवास करती है। देश की जनसंख्या का 70 प्रतिशत से अधिक भाग इन्हीं गाँवों में बसता है। इनमें से अधिकांश लोगों की आजीविका का साधन कृषि है। यहाँ रहने वाले चाहे खुद भूखे सो जाएँ पर देशवासियों को पेट भरने का दायित्व यही गाँव निभाते हैं।
यहाँ के किसानों का श्रम और कार्य देखकर श्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। गाँवों में चारों ओर हरियाली का साम्राज्य होता है। ये पेड़-पौधे ग्रामवासियों को शुद्ध वायु उपलब्ध कराते हैं। यहाँ कारखाने और औद्योगिक इकाइयों का अभाव है। यहाँ मोटर गाड़ियों का न धुआँ है और न शोर। यहाँ का वातावरण शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक है।
गाँवों की धूलभरी गलियाँ, कच्चे घर, घास-फूस की झोपड़ियाँ, नालियों में बहता गंदा पानी, मैले-कुचैले कपड़े पहने बच्चे और अधनंगे बदन वाले किसान की दयनीय दशा देखकर गाँवों की अभाव ग्रस्तता का पता चल जाता है। यहाँ रहने वालों की कृषि मानसून पर आधारित है। मानसून की कमी होने पर फ़सल अच्छी नहीं होती है जिससे उन्हें साहूकारों से कर्ज लेने पर विवश होना पड़ता है और वे ऋण ग्रस्तता के जाल में फँस जाते हैं।
ग्रामवासी आज भी अंधविश्वास और अशिक्षा के शिकार हैं। गाँवों तक पक्की सड़कें बन जाने और बिजली पहुँच जाने के कारण गाँवों की दशा में कुछ सुधार होता है। सरकार द्वारा शिक्षा की व्यवस्था करने तथा ग्रामवासियों के कल्याण हेतु अनेक योजनाएँ चलाने के कारण अब गाँवों के दिन फिरने लगे हैं।
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