स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। इनमें स्त्रियों की स्थिति में देश काल और परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर बदलाव आता रहा है। प्राचीनकाल में हमारे देश में स्त्रियों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। वह यज्ञ कार्यों, वेद-पुराण और ऋचाओं की रचना में सहभागी रहती थी। वह पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती थी।
उस समय कहा जाता था कि ‘यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वहीं देवता निवास करते हैं। इससे नारी की उच्च स्थिति का अनुमान स्वयं लगाया जा सकता है। मध्यकाल तक नारियों की स्थिति में बहुत गिरावट आ चुकी थी। पुरुष प्रधान समाज ने नारियों को परदे की वस्तु बनाकर घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया।
उसे निर्णय लेने के अधिकार से वंचित कर दिया गया।मुसलमानों के आक्रमण के कारण वे घरों में रहने को विवश थी। इस कारण उनकी शिक्षा में गिरावट आई और वे निरक्षरता का शिकार हो गई। आधुनिक काल में स्त्रियों की दशा में खूब सुधार हुआ है। स्वतंत्रता के बाद उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया। इस कारण वह प्रगति की दौड़ में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।
चिकित्सा, शिक्षा, पुलिस सेवा, प्रशासन आदि में वह अपनी योग्यता से पुरुषों से आगे निकलती जा रही है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘लाडली योजना’ जैसी योजनाओं के कारण उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है। नारी त्याग, ममता, सहानुभूति, स्नेह की मूर्ति है। हमें नारियों का सम्मान करना चाहिए।
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