स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि हम जिन वस्तुओं का सेवन करें, जिस वातावरण में रहें वह साफ़-सुथरा हो। जब हमारे पर्यावरण और वायुमंडल में ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो उसे दूषित करते हैं तथा इनका स्तर इतना बढ़ जाता है कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाते हैं तब यह स्थिति प्रदूषण कहलाती है। आज सभ्यता और विकास की इस दौड़ में मनुष्य के कार्य व्यवहार ने प्रदूषण को खूब बढ़ाया है।
बढ़ती आवश्यकता के कारण एक ओर वनों को काटकर नई बस्तियाँ बसाई गईं तो दूसरी ओर अंधाधुंध कल-कारखानों की स्थापना की गई। इन बस्तियों तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाई गईं। इसके लिए भी वनों की कटाई की गई। सभ्यता की ऊँचाई छूने के लिए मनुष्य ने नित नए आविष्कार किए।
मोटर-गाड़ियाँ वातानुकूलित उपकरणों से सजी गाड़ियाँ और मकानों के कार्य आदि के कारण पर्यावरण इतना प्रदूषित हआ कि आदमी को साँस लेने के लिए शदध हवा मिलना कठिन हो गया है। प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न हो गया है। वायुमंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ गई है। इससे अम्लीय वर्षा का खतरा पैदा हो गया है।
मोटर-गाड़ियों और फैक्ट्रियों के शोर के कारण स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अति वृष्टि, अनावृष्टि और असमय वर्षा प्रदूषण का ही दुष्परिणाम है। इस प्रदूषण से बचने का सर्वोत्तम उपाय है अधिकाधिक वन लगाना। पेड़ लगाकर प्रकृति में संतुलन लाया जा सकता है। इसके अलावा हमें सादा जीवन उच्च विचार वाली जीवन शैली अपनाते हुए प्रकृति के करीब लौटना चाहिए।
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