पृथ्वी पर प्राणियों के जीवन के लिए हवा के बाद सबसे आवश्यक वस्तु है-जल। यद्यपि भोजन भी आवश्यक है पर इस भोजन को तरल रूप में लाने और सुपाच्य बनाने के लिए जल की आवश्यकता होती है। मानव शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल होता है। कहा भी गया है-क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व से बना शरीरा। वनस्पतियों में तो 80 प्रतिशत से ज़्यादा जल पाया जाता है। इस जल के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है।
पृथ्वी पर यूँ तो तीन चौथाई भाग जल ही है पर इसमें पीने योग्य जल की मात्रा बहुत कम है। यह पीने योग्य जल कुओं, तालाबों, नदियों और झीलों में पाया जाता है जो मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियों के कारण दूषित होता जा रहा है। मनुष्य नदी, तालाबों में खुद नहाता है और जानवरों को नहलाता है।
इतना ही नहीं वह फैक्ट्रियों और नालियों का दषित पानी इसमें मिलने देता है जिससे जल प्रदषित होता है। पेयजल की मात्रा में आती कमी और गिरते भ-जल स्तर के कारण जल संरक्षण अत्यावश्यक हो गया। पृथ्वी पर जीवन बनाए और बचाए रखने के लिए जल बचाना ज़रूरी है।
जल संरक्षण का पहला उपाय है-उपलब्ध जल का दुरुपयोग न किया जाए और हर स्तर पर होने वाली बरबादी को रोका जाए। टपकते नलों की मरम्मत की जाए और अपनी आदतों में सुधार लाया जाए। इसे बचाने का दूसरा उपाय है-वर्षा जल का संरक्षण करना और इसे व्यर्थ बहने से बचाना। ऐसा करके हम आने वाली पीढ़ी को जल का उपहार स्वतः दे जाएँगे।
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