Class 9 Exam  >  Class 9 Notes  >  संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)  >  अनुवाद - जटायोः शौर्यम् | Chapter Explanation

अनुवाद - जटायोः शौर्यम् | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9) PDF Download

1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता।

वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना॥

शब्दार्था:-

तदा – तब, करुणा वाचो: – दुख भरी आवाज़ से, विलपन्ती – रोती हुई, सुदुःखिता – बहुत दुखी, वनस्पतिगतम् – वृक्ष पर बैठे हुए को, गृध्रम् – गिद्ध को, ददर्श – देखा, आयतलोचना-बड़ी – बड़ी आँखों वाली।

अर्थ – तब करुण वाणी में रोती हुई, बहुत दुखी और बड़ी-बड़ी आँखों वाली (सीता) ने वृक्ष पर (स्थित) बैठे हुए गीध्र (जटायु) को देखा।

विशेषण-विशेष्य-चयनम् ।
विशेषणम्
विशेष्यः विशेषणम् विशेष्यः वाचः
करुणा – वाचः
सुदु:खिता. – सा
वनस्पतिगतम् – गृध्रम्
विलपन्ती – सा
आयतलोचना – सा

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
तदा – तदा सीता जटायुम् अपश्यत्

2. जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्।

अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा॥

शब्दार्था:-
जटायो – हे जटायु!, पश्य – देखो, माम् – मुझे (मुझ को), आर्य – श्रेष्ठ, ह्रियमाणाम् – हरी (हरण की) जाती हुई, अनाथवत् – अनाथ की तरह, अनेन  -इस (से), राक्षसेन्द्रेण – राक्षसराज के द्वारा, करुणम् – दुखी, पापकर्मण-पापकर्म वाले।

अर्थ – हे आर्य जटायु! इस पापकर्म करने वाले राक्षस राज (रावण) के द्वारा अनाथ की तरह हरण की जाती हुई मुझ दुखी को देखो।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
आर्य – जटायो
अनेन/पापकर्मणा – राक्षसेन्द्रेण
ह्रियमाणाम्/करुणाम् – माम्

क्रियापद-वाक्येषु प्रयोगः
क्रियापदम् – वाक्येषु प्रयोगः
पश्य – त्वम् तम् बालकं पश्य।

3. तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः॥


शब्दार्था:- तम् – उस (को), शब्दम् – शब्द को, अवसुप्तः – सोए हुए, तु – तो, रावणम् – रावण को, क्षिप्रम् – शीध्र, जटायुः – जटायु ने, अथ – इसके बाद, शश्रुवे – सुना, निरीक्ष्य – देखकर, वैदेहीम् – सीता को, ददर्श – देखा।

अर्थ – इसके बाद सोए हुए जटायु ने उस शब्द को सुना तथा रावण को देखकर और उसने शीध्र ही वैदेही (सीता) को देखा।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
अथ – अथ श्रीराम कथा।
क्षिप्रम् – विद्यालयं क्षिप्रम् गच्छ।
च – वनम् अगच्छताम्

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
तम् – शब्दम्
अवसुप्तः, सः – जटायुः

4. ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः।
वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम्॥

शब्दार्थाः –

ततः-उसके बाद, पर्वतश्रृंगाभः-पर्वत की चोटी की तरह शोभा वाले, तीक्ष्णतुण्डः-तीखी चोंच वाले, खगोत्तमः-पक्षियों में उत्तम, गिरम्-वाणी को, वनस्पतिगतः-वृक्ष पर स्थित, श्रीमान्-शोभायुक्त, व्याजहार-बोला (कहा), शुभाम्-सुदर।

अर्थ – उसके बाद (तब) पर्वत शिखर की तरह शोभा वाले, तीखे चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित, शोभायुक्त पक्षियों में उत्तम (जटायु) ने सुंदर वाणी में कहा।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
ततः – ततः रामः सीताम् अवदत्

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः विशेषणम् विशेष्यः
पर्वतशृङ्गाभः – खगोत्तमः (जटायुः)
वनस्पतिगतः – खगोत्तमः (जटायुः)
शुभाम् – गिरम्
तीक्ष्णतुण्डः – खगोत्तमः (जटायुः)
श्रीमान् – खगोत्तमः (जटायुः)

5. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्।
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत्॥

शब्दार्था: –

निवर्तय-मना करो, रोको, मतिम्-बुद्धि (विचार) को, परदारा-पराई स्त्री के, अभिमर्शनात्- स्पर्श दोष से, अस्य-इसकी, तत्-वह (उस तरह का), समाचरेत्-आचरण करना चहिए, धीरः-बुद्धिमान (धैर्यशाली) को, यत्-जो (जिसे), परः-दूसरे लोग, विगर्हयेत्-निंदा (बुराई) करें, नीचाम-नीच (गंदी)।

अर्थ – पराई नारी (परस्त्री) के स्पर्शदोष से तुम अपनी नीच बुद्धि (नीच विचार) को हटा लो, क्योंकि बुद्धिमान (धैर्यशाली) मनुष्य को वह आचरण नहीं करना चाहिए, जिससे कि दूसरे लोग उसकी निंदा (बुराई) करें।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
तत्-यत् – त्वं कदापि तत् न कुर्याः यत् जनाः वर्जयन्ति।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् विशेष्यः
नीचाम् – मतिम्

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
तत् – यत्
समाचरेत् – विगर्हयेत्

6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि॥

शब्दार्थाः-

वृद्धः-बूढा, अहम्-मैं, युवा-जवान (युवक), धन्वी- धनुषधारी, सरथः-रथ से युक्त, कवची-कवच वाले, शरी-बाणों वाले, आदान-लेकर, कुशली-कुशलतापूर्वक, वैदेहीम्-सीता को, मे-मेरे (रहते), गमिष्यसि- जा सकोगे।

अर्थ – मैं (तो) बूढा हूँ परंतु तुम युवक (जवान) हो, धनुषधारी हो, रथ से युक्त हो, कवचधारी हो और बाण धारण किए हो। तो भी मेरे रहते सीता को लेकर नहीं जा सकोगे।

विशेषण-विशेष्या-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
वृद्धः – अहम् युवा, धन्वी, सरथः, कवची, शरी
कुशली – त्वम्

विलोमपदानि ।
पदानि – विलोमपदानि
वृद्धः – युवा
अहम् – त्वम्

7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।
चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः।

शब्दार्था:-
तस्य-उसके (जटायु के), तीक्ष्णनखाभ्याम्-तेज नाखूनों से, चरणाभ्याम्-पैरों से, महाबल:- बहुत बलशालो, पतगसत्तमः-पक्षियों में उत्तम (श्रेष्ठ), चकार-कर दिए, बहुधा-बहुत से, गात्रे-शरीर पर, व्रणान्-घावों को।

अर्थ – उस उत्तम तथा अतीव बलशाली पक्षी (राज) ने अपने तीखे नाखूनों तथा पैरों से उस (रावण) के शरीर पर बहुत से घाव कर दिए।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोग
तु – सः तु मम भ्राता वर्तते।
बहुधा – तेन बहुधा सत्कार्यं कृतम्।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
तीक्ष्णनखाभ्याम् – चरणाभ्याम्
महाबलः – पतगसत्तमः

8. ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्।
चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जास्य महद्धनु॥

शब्दार्थाः-

ततः-उसके बाद, अस्य-इसके, सशरम्-बाणों के सहित, चापम्- धनुष को, मुक्तामणिविभूषितम्-मोतियों और मणियों से सजे हुए, चरणाभ्याम्-दोनों पैरों से, महातेजा-महान तेजस्वी, बभञ्ज-तोड़ दिया, अस्य-इसके, मृहद्धनु:-विशाल धनुष को।

अर्थ – उसके बाद उस महान तेजस्वी (जटायु) ने मोतियों और मणियों से सजे हुए बाणों सहित उसके (रावण के) विशाल धनुष को अपने पैरों से तोड़ डाला।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
ततः – ततः छात्रः स्वपुस्तकं नीत्वा अपठत्

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
सशरम् – चापम्
महातेजा – सः (जटायुः)
महत्, मुक्तामणिविभूषितम् – धनुः

9. स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
तलेनाभिजघानाशु जटायुं क्रोधमूछितः ॥


शब्दार्थाः- सः-वह, भग्नधन्वा-टूटे हुए धनुषवाला, विरथः-रथ से रहित, हताश्वः-मारे गए घोड़ों वाला पर, हतसारथिः-मारे गए सारथि वाला, तलेन-मूंठ से, अभिजघान-हमला या प्रहार किया, आशु-शीघ्र, क्रोधमूर्च्छितः-बहुत क्रोधी

अर्थ – (तब) टूटे हुए धनुष वाले, रथ से विहीन, मारे गए घोड़ों व सारथि वाले अत्यन्त क्रोधित उसने तलवार की अत्यन्त क्रोधित मँठ से शीघ्र ही जटाय पर घातक प्रहार किया।

पर्यायापदानि
पदानि – पर्यायापदानि
हताश्वः – हताः अश्वाः यस्य सः
अभिजघानं – आक्रान्तवान
आशु – शीघ्रम्

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
सः – रावणः
विरथः – रावणः
हताश्वः – रावणः
हतसारथिः – रावणः

अव्यानां वाक्येषु प्रयोगः
आशु – बालकाः आशु विद्यालयं गच्छन्ति

10. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः।
वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ॥

शब्दार्था:-

जटायुः – जटायु ने, तम्-उसको, अतिक्रम्य-झपट करके, तुण्डेन-चोंच से, अस्य-उसके (रावण के),

खगाधिपः-पक्षियों के राजा, वाम–बाईं ओर की, बाहूम्-भुजाओं को, व्यपाहरत्-नष्ट कर दिया, अरिन्दमः-शत्रुाओं का नाश करने वाला।

अर्थ – तब उस पक्षीराज जटायु ने शत्रुओं का नाश करने वाली अपनी चोंच से झपटकर (अक्रमण करके) उसके (रावण के) बाईं ओर की दसों भुजाओं को नष्ट कर दिया।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
तदा – यदा कन्या गृहं गतवती तदा माता प्रासीदत्।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
खागाधिपः अरिन्दमः – जटायुः
दश – बाहून् ।

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FAQs on अनुवाद - जटायोः शौर्यम् - Chapter Explanation - संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)

1. जटायोः शौर्यम् विषय पर बताएँ।
उत्तर: जटायोः शौर्यम् कथा रामायण की महत्वपूर्ण घटना है, जिसमें जटायु नामक पक्षी रावण को सीता को अपहरण करते हुए रोकने की कोशिश करता है। वह रावण के साथ युद्ध करता है और अंत में उसकी मृत्यु हो जाती है।
2. जटायोः शौर्यम् कहाँ दिखाया गया है?
उत्तर: जटायोः शौर्यम् कथा वाल्मीकि रामायण में दिखाई गई है। यह कथा आदिकाव्य में स्थापित है और रामायण के बादी सभी प्रमुख संस्कृत कविताओं में उपयोग हुई है।
3. जटायु रावण से कैसे लड़ता है?
उत्तर: जटायु रावण के साथ युद्ध करता है और सीता को छुड़ाने की कोशिश करता है। वह अपने पंखों और नोकदार नाक का उपयोग करके रावण को आक्रमण करता है। हालांकि, जटायु की वांछा पूरी नहीं होती और उसे रावण द्वारा मार डाला जाता है।
4. जटायु ने क्या प्रकार का पक्षी था?
उत्तर: जटायु एक गिद्ध पक्षी था। गिद्ध पक्षी बड़े स्पष्ट पंखों और बड़े आकार के शरीर के साथ एक राष्ट्रीय पक्षी है। यह लोगों के लिए संकेत के रूप में भी देखा जाता है।
5. जटायु की मृत्यु कैसे होती है?
उत्तर: जटायु की मृत्यु रावण द्वारा होती है। रावण जटायु को अपने खंडहर हुक के साथ मारता है जब वह सीता को अपहरण करते हुए बचाने की कोशिश कर रहा होता है।
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