संकेत बिंदु:
प्रस्तावना: भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है। ‘भ्रष्ट’ का अर्थ है- विचलित या अपने स्थान से गिरा हुआ तथा ‘आचार’ का अर्थ है-आचरण या व्यवहार अर्थात किसी व्यक्ति द्वारा अपनी गरिमा से गिरकर कर्तव्यों के विपरीत किया गया आचरण भ्रष्टाचार है। यह भ्रष्टाचार हमें विभिन्न स्थानों पर दिखाई देता है जिससे जन साधारण को दो-चार होना पड़ता है। आज लोक सेवक की परिधि में आने वाले विभिन्न कर्मचारी जैसे कि बाबू, अधिकारी आदि इसे बढ़ाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तरदायी हैं।
भ्रष्टाचार के विविधि क्षेत्र एवं रूप: भ्रष्टाचार का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसकी परिधि में विभिन्न सरकारी और अर्धसरकारी कार्यालय, राशन की सरकारी दुकानें, थाने और तरह-तरह की सरकारी अर्धसरकारी संस्थाएँ आती हैं। यहाँ नियुक्त बाबू व अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, एजेंट, चपरासी, नेता आदि जनसाधारण का विभिन्न रूपों में शोषण करते हैं। इन कार्यालयों में कुछ लिए दिए बिना काम करवाना टेढ़ी खीर साबित होता है। लोगों के काम में तरह-तरह के अड़गे लगाए जाते हैं और सुविधा शुल्क लिए बिना काम नहीं होता है। भ्रष्टाचार के बाज़ार में यदि व्यक्ति के पास पैसा हो तो वह किसी को भी खरीद सकता है। यहाँ हर एक बिकने को तैयार है। बस कीमत अलग-अलग है। यह कीमत काम के अनुसार तय होती है। जैसा काम वैसा दाम। काम की जल्दबाज़ी और व्यक्ति की विवशता दाम बढ़ा देती है।
भ्रष्टाचार के विविध रूप हैं। इसका सबसे प्रचलित और जाना-पहचाना नाम और रूप है-रिश्वत। यह रिश्वत नकद, उपहार, सुविधा आदि रूपों में ली जाती है। आम बोलचाल में इसे घूस या सुविधा शुल्क के नाम से भी जाना जाता है। लोग चप्पलें घिसने से बचाने, समय नष्ट न करने तथा मानसिक परेशानी से बचने के लिए स्वेच्छा या मज़बूरी में रिश्वत देने के लिए तैयार हो जाते हैं।
भ्रष्टाचार का दूसरा रूप भाई-भतीजावाद के रूप में देखा जाता है। सक्षम अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने चहेतों, रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों को कोई सुविधा, लाभ या नौकरी देने के अलावा अन्य लाभ पहुँचाना भाई-भतीजावाद कहलाता है। ऐसा करने और कराने में आज के नेताओं को सबसे आगे रखा जा सकता है। इससे योग्य व्यक्तियों की अनदेखी होती है और वे लाभ पाने से वंचित रह जाते हैं।
कमीशनखोरी भी भ्रष्टाचार का अन्य रूप है। सरकारी परियोजनाओं, भवनों तथा अन्य सेवाओं का काम तो कमीशन दिए बिना मिल ही नहीं सकता है। जो जितना अधिक कमीशन देता है, काम का ठेका उसे मिलने की संभावना उतनी ही प्रबल हो जाती है। इन ठेकों और बड़े ठेकों में करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं। बोफोर्स घोटाला, बिहार का चारा घोटाला, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमन वेल्थ घोटाला, मुंबई का आदर्श सोसायटी घोटाला तो मात्र कुछ नमूने हैं।
भ्रष्टाचार के कारण: समाज में दिन-प्रतिदिन भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है। इसके अनेक कारण हैं। भ्रष्टाचार के कारणों में महँगी होती शिक्षा और अनुचित तरीके से उत्तीर्ण होना है। जो छात्र महँगी शिक्षा प्राप्त कर नौकरियों में आते हैं, वे रिश्वत लेकर पिछले खर्च को पूरा कर लेना चाहते हैं। एक बार यह आदत पड़ जाने पर फिर आजीवन नहीं छूटती है। इसका अगला कारण हमारी लचर न्याय व्यवस्था है जिसमें पकड़े जाने पर कड़ी कार्यवाही न होने से दोषी व्यक्ति बच निकलता है और मुकदमे आदि में हुए खर्च को वसूलने के लिए रिश्वत की दर बढ़ा देता है। उसके अलावा लोगों में विलासितापूर्ण जीवनशैली दिखावे की प्रवृत्ति, जीवन मूल्यों का ह्रास और लोगों का चारित्रिक पतन भी भ्रष्टाचार बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं।
भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय: आज भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इसे समूल नष्ट करना संभव नहीं है, फिर भी कठोर कदम उठाकर इस पर किसी सीमा तक अंकुश लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार रोकने का सबसे ठोस कदम है-जनांदोलन द्वारा जन जागरूकता फैलाना। समाज सेवी अन्ना हजारे और दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल द्वारा उठाए गए ठोस कदमों से इस दिशा में काफ़ी सफलता मिली है। इसके अलावा इसे रोकने के लिए कठोर कानून बनाने की आवश्यकता है ताकि एक बार पकड़े जाने पर रिश्वतखोर किसी भी दशा में लचर कानून का फायदा उठाकर छूट न जाए।
उपसंहार: भ्रष्टाचार हमारे समाज में लगा धुन है जो देश की प्रगति के लिए बाधक है। इसे समूल उखाड़ फेंकने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए तथा रिश्वत न लेने-देने के लिए प्रतिज्ञा करनी चाहिए। इसके अलावा लोगों को चारित्रिक बल एवं जीवनमूल्यों का ह्रास रोकते हुए रिश्वत नहीं लेना चाहिए। आइए हम सभी रिश्वत न लेने-देने की प्रतिज्ञा करते हैं।
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