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पाठ का सार

रवींद्रनाथ टैगोर का स्वास्थ्य अधिक खराब हो गया था। अतः उन्होंने सोचा कि शांतिनिकेतन छोड़कर अपने पैतृक मकान की तीसरी मंशिल पर एकांत में विश्राम करें क्योंकि दर्शनार्थी उन्हें आराम नहीं करने दे रहे थे। अतः एक दिन जब लेखक ने भी सपरिवार उनके दर्शन करने चाहे, तब लेखक को देखते ही रवींद्रनाथ बोले थे कि उनके साथ दर्शनार्थी भी हैं क्या? दर्शनार्थियों के समय-कुसमय पर आ टपकने के कारण वे परेशान हो जाते थे। अतः भयभीत से रहते थे। लेखक जब उनके पास पहुँचेए तब वे थोड़े अस्त-व्यस्त थे किंतु फिर भी सूर्य की ओर एकटक देख रहे थे। तभी उनका पालतू कुत्ता वहाँ आया और पूंछ हिलाने लगा। वह गुरुदेव के हाथ का स्पर्श पाकर मग्न हो गया था।

गुरुदेव ने कुत्ते को लक्ष्य बनाकर एक कविता लिखी जो आरोग्य में छपी है। उसमें वे कहते हैं कि मेरा कुत्ता मेरा स्पर्श पाकर उमंग से भर जाता है। वेजुबान  पशु-पक्षियों में मनुष्यता के अनुभव की शक्ति होती है। वे भी मानवीय अच्छे-बुरे व्यवहार को महसूस कर सकते हैं। वे भी दीनताए स्वामिभक्तिए स्नेह तथा आत्मनिवेदन का भाव प्रकट कर सकते हैं। वे मनुष्य की संवदे नशीलताए उसके सुख-दुख को समझते किंतु समझा नहीं पाते हैं।

लेखक गुरुदेव की सूक्ष्म संवेदनशील एवं मर्मभेदी दृष्टि पर आश्चयर्च कित हैं क्योंकि उन्होंने कुत्ते जसैे जानवर में भी मानवी विशषता को अनुभव कर लिया। यह कोई सामान्य घटना नहींए बल्कि विश्व की महिमाशाली घटनाओं में से एक मालूम होती है। उसके बाद जब गुरुदेव की चिताभस्म को आश्रम में लाया गया तो वुफत्ता भी उत्तरायण तक गया और सारे मनुष्यों की भाँति कुछ देर तक मौन एवं शांत बैठा रहा। ऐसा देखकर लेखक के आश्चर्य का ठिकाना हीन रहा। गुरुदेव पशुपक्षियों के प्रति अत्यधिक आत्मीय संबंध् रखते थे। अतः आश्रम के पशु-पक्षियों के बारे में भी अकसर बातें करते रहते थे। एक दिन प्रातः टहलते समय उन्होनें पूछा था कि आश्रम के कौवे कहाँ चले गए। एक सप्ताह बाद सारे कौवे फिर वापस आश्रम में आ गए। तो लेखक को समझ में आया कि कौवे भी प्रवासी पक्षी हैं। एक बार लँगड़ी मैना को देखकर वे बोले कि यह यूथभ्रष्ट हैए अतः इसमें करुण भाव है। उनकी बात सुनकर लेखक के मन में भी मैना के प्रति करुण भाव उत्पन्न हो गया।

हशारी प्रसाद जी के मकान में कुछ छेद हैं जिनमें एक मैना परिवार रहता है। वे पता नहीं कहाँ-कहाँ से फटे-पुराने कपड़ों को तथा दूसरे कुड़ा-करकट को ले आते हैं। लेखक ने एक बार तो ईंट रखकर छेद बंद भी कर दिया था किंतु वे बची हुई जगह में अपना निवास बना ही लेते हैं। लेखक को अनुभव होता है कि वे खुश होकर नाचते हैं, गाते हैं तथा उन्हें देखकर उन पर टीका टिप्पणी करते हैं। मैना परिवार लेखक के घर को खाली स्थान समझता है। मैना पत्नी तो अकसर कहती है कि लेखक को उनके प्राइवेट घर में नहीं आना चाहिए । पहले लेखक मैना के प्रति करुणावान नहीं थे किंतु गुरुदेव की बातें सुनकर उन्हें विश्वास हो गया कि मैना वास्तव में अपने साथी से बिछुड गई है तथा एक वियोगिनी का जीवन जी रही है। लेखक कहते हैं कि गुरुदेव ने मैना पर एक कविता भी लिखी है। उस कविता का भाव है कि यह मैना अपने दल से अलग क्यों हैघ् यह अकेले ही लँगड़ा कर घूम रही है। वह कीड़ों का शिकार करती हैए वह लेखक से बिलकुल भयभीत नहीं है। पता नहीं यह अपने समाज से अलग क्यों रहती है? सारी मैनाएँ नाचती-कुदती हैं किंतु यह शोकाकुल है। पता नहीं कि इसे क्या पीड़ा है? किसने इसे चोट पहुँचाई है? न तो इसे किसी पर कोई अभियोग हैए न जीवन में विरक्ति है और न आँख में जलन है। न जाने कौन.सी गाँठ इसके हृदय में पड़ी है।

गुरुदेव की इस कविता को पढ़ने के बाद लेखक के मन में मैना की करुण मूर्ति अंकित हो गई। लेखक आश्चर्यचकित है कि गुरुदेव मैना के मर्मस्थल अर्थात दुख तक पहुँचे केसे? उसी शाम मैना के उड़ जाने से कवि गुरुदेव बहुत दुखी हुए। 

 

लेखक परिचय

हजारीप्रसाद दिवेदी
इनका जन्म सन 1907 में गांव आरत दुबे का छपरा, जिला बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उन्होंने उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविधालय से प्राप्त की तथा शान्ति निकेतन, काशी हिन्दू विश्वविधालय एवं पंजाब विश्वविधालय में अध्यापन कार्य किया।

प्रमुख कार्य
कृतियाँ - अशोक के फूल, कुटज, कल्पलता, बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा, हिंदी साहित्य के उद्भव और विकास, हिंदी साहित्य की भूमिका, कबीर।
पुरस्कार - साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण।

कठिन शब्दों के अर्थ

  • क्षीणवपु – कमजोर शरीर
  • प्रगल्भ- वाचाल 
  • परितृप्ति – पूरी तरह संतोष प्राप्त करना 
  • प्राणपण – ज़ान की बाज़ी 
  • मर्मभेदी – दिल को लगने वाला 
  • तितल्ले – तीसरी मंज़िल पर 
  • अभियोग – आरोप 
  • ईषत – आंशिक रूप से 
  • निर्वास्न – देश निकाला 
  • बिडाल – बिलाव 
  • मुखातिब – संबोधित होकर 
  • सर्वव्यापक – सब में रहने वाला 
  • अपरिसीम – असीमित 
  • यूथभ्रष्ट – समुह से निकला हुआ 
  • धृष्ट – लज्जा रहित 
  • उत्तरायण – शांतिनिकेतन में उत्तर दिशा की ओर बना रवींद्रनाथ टैगोर का एक निवास-स्थान
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FAQs on पाठ का सार: एक कुत्ता और एक मैना - Class 9

1. What is the story of "Ek Kutta Aur Ek Maina" about?
Ans. "Ek Kutta Aur Ek Maina" is a story from the Hindi textbook "Kshitij" for Class 9. The story is about a dog and a mynah who become friends and help each other in times of need.
2. What is the moral of the story "Ek Kutta Aur Ek Maina"?
Ans. The moral of the story "Ek Kutta Aur Ek Maina" is that true friendship knows no boundaries. Even animals from different species can become friends and help each other in times of need.
3. Which class is the Hindi textbook "Kshitij" for?
Ans. The Hindi textbook "Kshitij" is for Class 9 students.
4. What is the significance of the Hindi textbook "Kshitij" for Class 9?
Ans. The Hindi textbook "Kshitij" for Class 9 is significant as it helps students improve their Hindi language skills. The textbook includes a variety of stories, poems, and essays that help students enhance their reading, writing, and comprehension skills.
5. What are some other stories included in the Hindi textbook "Kshitij" for Class 9?
Ans. Some other stories included in the Hindi textbook "Kshitij" for Class 9 are "Kabir Ki Sakhiyan," "Khol Do," "Karambhoomi," "Reedh Ki Haddi," and "Mere Bachpan Ke Din." These stories cover a range of themes and help students develop a deeper understanding of Hindi literature.
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