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विज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ (भाग - 4) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

अल्ट्रासाउंड - इस तकनीक में गर्भ की स्थिति पर्दे पर देखी जा सकती है। यदि भ्रूण 14 सप्ताह का हो गया हो तो इसका लिंग भी परदे पर देखा जा सकता है। यह विधि आसान और विश्वसनीय है लेकिन जरूरत पर गर्भ समापन कराना खतरनाक हो सकता है क्योंकि 14 सप्ताह के भ्रूण का समापन मां के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। अल्ट्रासाउंड तकनीक में ध्वनि की तेज तरंगें विशेष यंत्रा से पेट के ऊपर से गर्भ पर डाली जाती है जो भ्रूम से टकराकर लौटती है और परदे पर भ्रूण की आकृति बनाती है। शरीर के भीतरी अंगों को देखने की यह सबसे आधुनिक तकनीक है।
कैट स्कैन तकनीक (कैट स्कैनर) - यह एक्स किरणों की सहायता से शरीर में कहीं भी हुई किसी भी प्रकार की बीमारी का पता लगाने का आधुनिकतम उपकरण है। कैट (CAT) शब्द का अर्थ है कम्प्यूटराइज्ड ऐक्सियल टोमोग्राफी। इस विधि द्वारा मस्तिष्क संबंधी रोगों, जैसे कृ ब्रेन हैमरेज, रसौली, ब्रेन ट्यूमर आदि जटिल रोगों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। इस आधुनिक यंत्रा का आविष्कार 1970 में लंदन के जाइप्रे हाउसफल्ड और द. अफ्रीका के प्रो. एलेन कोमेक ने किया।
न्यूक्लियर फाल आऊट - परमाणु बम का विस्फोट किए जाने पर रेडियो एक्टिव आइसोटोप्स हवा के साथ-साथ नीचे गिरते है और वनस्पतियों पर फैल जाते है । इन वनस्पतियों के उपयोग से जनजीवन के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिससे अनेक बीमारियां फैलती है।
आर. डी. एक्स(RDX) -  विस्फोटक के रूप मे प्रयुक्त किए जाने वाले इस तत्व का पूरा नाम रिसर्च डेवलपमेण्ट एक्सप्लोसिव है। इसका रासायनिक नाम साइक्लो ट्राइमैथिलिन ट्राई नाइट्रेमीन है। इसको खोजने का श्रेण जर्मनी के है स हैनिंग (1899) को है। इसको टी-4 हेक्सोजन और साइक्लोनाइट आदि नामों से भी जानते है । यह क्रिस्टल जैसा सफेद रंग का कठोर पदार्थ है। यह जल में घुलनशील नहीं है। आर. डी. एक्स. को ठोंकने या पीटने पर विस्फोट होता है।
लीप सेकेण्ड - लीप सेकेण्ड विश्व समन्वित समय के साथ तुल्यकालत्व (Synchronism) बनाए रखने के लिए संकेत उत्सर्जन में आवर्ती समायोजन होता है। जून अथवा दिसंबर माह के अन्त में यह समायोजन किया जाता है। यह देखा गया है कि पृथ्वी के घूर्णन काल में प्रतिवर्ष एक सेकेण्ड की कमी होती जा रही है। इसका समायोजन लीप सेकेण्ड के रूप में किया जा रहा है।
 चुम्बकीय अनुनाद चित्राण (Magnetic Resonance Imaging—MIR) - यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें वस्तु को स्थानीय रूप से परिवर्तित होने वाले चुम्बकीय क्षेत्रा में रखकर उस पर रेडियो आवृत्ति विकिरण के स्पन्द (Pulse)  डाले जाते हैं तथा इससे प्राप्त न्यूक्लीय चुम्बकीय अनुनाद स्पेक्ट्रमों को मिलाकर वस्तु के अनुपरिच्छेदीय चित्रा (Cross Sectional Images) प्राप्त किये जाते है ।

  • इस तकनीक का उपयेाग चिकित्सा विज्ञान में मस्तिष्क, उसके विभिन्न अंगों, मेरुदण्ड तथा शरीर की अन्य संवेदनशील भागों की विकृतियों का अध्ययन करके रोग निदान करने में किया जाता है कयोकि इसकी विभेदन क्षमता बहुत अधिक होती है। अतः इससे प्राप्त चित्रों से उन विकृतियों का सुस्पष्ट ज्ञान हो जाता है।

मिनी कम्प्यूटर - डिजीटल इक्यूपमेंट कारपोरेशन (डी. ई. सी.) ने 1959 में प्रोग्रामेबल डेटा प्रोसेसर-1 (पी. डी. पी. - 1) को बनाकर मिनी कम्प्यूटरों के उत्पादन की शुरुआत की थी। इसके संशोधित माॅडल पी. डी. पी. - 8 में एकीकृत परिपथों का उपयोग कर इस कम्प्यूटर का आकार एवं कीमत दोनों ही विशाल से लघुकाय हो गये जिससे मिनी कम्प्यूटर शब्द का जन्म हुआ। चूंकि मिनी कम्प्यूटर का आकार एक छोटी अलमारी के बराबर होता है, इसीलिये इन्हें मिनी कम्प्यूटर कहा जाने लगा। यह कम्प्यूटर माइक्रो-कम्प्यूटर से लगभग 5 से 50 गुणा अधिक शीघ्रता से कार्य कर सकता है। इनके द्वारा 5 लाख से लेकर 50 लाख अनुदेश प्रति सेकेण्ड प्रतिपादित किये जा सकते है । इसकी दत्त अंकरज दर (Data transfer rate) 40) लाख बाइट/सेकेण्ड होती है।
सुपर मिनी कम्प्यूटर - उन मिनी कम्प्यूटरों को जिनमें सुपर चिप 80386 का प्रयोग कर अति शक्तिशाली बना दिया गया है, सुपर मिनी कम्प्यूटर कहा जाता है। अधिक विकसित चिपों ने यह सम्भव कर दिखाया कि एक छोटे से केबिनेट साइज के कम्प्यूटर में 5 लाख अनुदेश प्रति सेकेण्ड की क्षिप्रता और 80 मेगाबाइट की मुख्य स्मृति समाहित हो। ऐसे मिनी कम्प्यूटरों में जिनमें मेनफ्रेम कम्प्यूटर के बराबर प्रोसेसिंग पावर हो, सुपर मिनी कम्प्यूटर कहलाते है ।
मुख्य चैखट कम्प्यूटर (Main Frame Computer) -  सुपर कम्प्यूटरों को छोड़कर विशाल आकार वाले सभी कम्प्यूटरों को मेन फ्रेम कम्प्यूटर कहते है । इस प्रकार के कम्प्यूटरों के उपकरणों को बड़े स्टील के चैखटों (Frames) में लगा कर बनाया जाता था तब से सभी बड़े कम्प्यूटरों का नाम मुख्य चैखट कम्प्यूटर पड़ गया, हालांकि आजकल इस प्रकार के फ्रेम की आवश्यकता नहीं होती। वाॅल्व पर आधारित एनीयक, ट्रांजिस्टर पर आधारित एडवाॅक, एकीकृत परिपथों पर आधारित आई. बी. एम. 360, तथा चतुर्थ पीढ़ी का प्रथम कम्प्यूटर एनीयक प्ट सभी मेन फ्रेम कम्प्यूटर थे। बाद के सुपर कम्प्यूटर इतने विशाल क्षमता वाले बने कि मेन फ्रेम कम्प्यूटर को मिनी कम्प्यूटर कहा जाने लगा।
अनुरूप कम्प्यूटर (Analogue Computer) - एनालाॅग एक ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ है दो राशियों में अनुरूपता खोजना। एनालाॅग कम्प्यूटर में किसी भौतिक विधि या राशि को इलेक्ट्रानिक परिपथों की सहायता से विद्युत संकेतों में अनुरूपित किया जाता है। जिस प्रकार अंकीय कम्प्यूटर राशियों को गिनकर कार्य करता है, उसी प्रकार अनुरूप कम्प्यूटर मापकर या नापकर अपना कार्य करता है।

  •  किसी भी भौतिक विधि के अवकलन गणित का प्रयोग कर समीकरण में बदल लिया जाता है फिर अनुरूप कम्प्यूटरों के एम्पलीफायर ब्लाक्स की सहायता से इनके अनुरूप विद्युत परिपथ की रचना कर ली जाती है। इस प्रकार, इस विधि का एक इलेक्ट्रानिक प्रतिदर्श बन जाता है। अब इन एम्पलीफायरों का जो निर्गम होता है वह अवकलित समीकरण को समाकलित कर निकला परिणाम होता है। इस प्रकार किसी भी विधि के नियंत्राण के लिये इन कम्प्यूटरों की सहायता से दिशा-निर्देश मिल जाता है।
  • किसी भी भौतिक विधि के नियत्रांण के लिये इस कम्प्यूटर से जो कि विशेषकर उसी कार्य के लिये बनाया जाता है, क्षण भर में ही दिशा-निर्देश मिल जाता है, हालांकि ये निष्कर्ष उतने शुद्ध नहीं होते, फिर भी तात्कालिक नियत्रांण के लिये पर्याप्त होते है । इन कम्प्यूटरों की मदद से की गयी गणनाओं की यथार्थता बहुत शुद्ध नहीं होती फिर भी 99ः शुद्धता प्राप्त की जा सकती है।

संकर (Hybrid) कम्प्यूटर - इनसे अंकीय एवं अनुरूप दोनों कम्प्यूटरों की विशेषताओं का फायदा उठाया जाता है। इनका उपयोग स्वचालित उपकरणों में बहुतायत से किया जाता है। एक ऐसा ही उपकरण है रोबोट, जिसकी सहायता से आजकल लाखों कार्य स्वचालित रूप से किये जा रहे है ।

  • अनुरूप कम्प्यूटरों में किसी भी विधि के नियंत्राण के लिये एक ही क्षण में दिशा- निर्देश मिल जाते है एवं वह लगातार उस विधि पर नियंत्राण करते रहता है, लेकिन इसके द्वारा प्राप्त होने वाले परिणामों में उतनी शुद्धता नहीं होती इसलिये विद्युतीय अनुरूपण के पश्चात् इससे मिलने वाले संकेतों को सांख्यिक रूप में बदल लिया जाता है जिससे शत प्रतिशत निष्कर्ष मिल सकें। वे यन्त्रा जिनके द्वारा अनुरूप संकेतों को अंकीय संकेत या उसके विपरीत कार्य-पद्धति अपनायी जाती है, मोडेम कहते है जोकि मोडुलेटर या डिमोडुलेटर( Modulator or Demodulator) का लघु रूप कहा जाता है। संकर कम्प्यूटर का प्रयोग एक सहायक कम्प्यूटर के रूप में किया जाता है जो कि मुख्य यंत्रा के किसी भी हिस्से में छिपा कर लगा दिया जाता है। रोबोट की नियंत्राण विधि में इस प्रकार के कम्प्यूटरों का बहुतायत से प्रयोग किया जाता है।

प्रकाशीय (आॅप्टीकल) कम्प्यूटर - पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटरों के विकास क्रम में इस प्रकार के कम्प्यूटर बनाये जा रहे है जिनमें एक अवयव को दूसरे से जोड़ने का कार्य आॅप्टीकल फायबर के वायरों से किया गया है एवं गणना अवयव की प्रकाशीय पद्धति पर बनाये गये है । विद्युतीय प्रवाह की गति 3 लाख किलो. प्रति सेकेण्ड होती है लेकिन इतनी गति से भी 1 मीटर तक जाने में किसी भी विद्युतीय संकेत को 3 मेनो सेकेण्ड का समय लगता है। इसलिये गणना इससे भी बहुत कम समय में करने के लिये बिना वायर के कम्प्यूटर बनाने की आवश्यकता हो रही है जिसे आप्टीकल फायबर पद्धति से हल किया जा रहा है।
एटाॅमिक कम्प्यूटर - कार्नेगी विश्वविद्यालय में ऐसे परमाण्विक कम्प्यूटर पर खोज कार्य जारी हैं जो कि किसी खास प्रोटीन परमाणुओं को एकीकृत परिपथ में बदल दें और कम्प्यूटर को इतनी अधिक स्मृति क्षमता प्रदान कर दें कि ऐसा कम्प्यूटर आज के कम्प्यूटरों से 10000 गुनी क्षमता एवं क्षिप्रता वाला हो जाये। बैक्टीरियो - हार्डोप्सिन नामक इस प्रोटीन में 10000 गाइगाबाईट के बराबर जानकारी को संग्रहित किया जा सकता है और 10 माइक्रो सेकेण्ड की क्षमता से कार्य लिया जा सकता है।
फोरट्रान Fortran) - फोरट्रान विश्व की सर्वप्रथम उच्च स्तरीय कम्प्यूटर प्रोग्रामन भाषा है, जिसका विकास जे. डब्लू. बेकस के द्वारा दिये गये प्रस्ताव पर आई. बी. एम. के द्वारा 1957 में किया गया था। यह अंग्रेजी के शब्दों फार्मूला - ट्रान्जिशन (Formula Transition) का संक्षिप्त रूपान्तर है। फोरट्रान में उन स्वरूपों का व्यापक प्रयोग किया जाता है जो कि बीजगणितीय सूत्रों से मिलते है , इसलिये इसका नाम फार्मूला-ट्रांजिशन रखा गया। चूँकि इस भाषा के प्रयोग से गणितीय सूत्रों को बहुत आसानी से हल किया जा सकता है, सारे संसार में जटिल वैज्ञानिक गणनाओं में इसका व्यापक प्रयोग होता है। फोरट्रान का व्याकरण बहुत कठिन है, लेकिन इसका प्रयोग किसी भी कम्प्यूटर पर किया जा सकता है। फोरट्रान में लिखे गये प्रोग्राम में हुई कुछ निश्चित अशुद्धियों को कम्प्यूटर अपने आप बदल देता है जिससे उन्हें ठीक कर प्रोग्राम पुनः कम्प्यूटर में भेजा जा सके।
अल्गोल (Algol) - अल्गोल अंग्रेजी के शब्दों अल्गोरिथ्मिक लैंग्वेज (Algorithmic Language)  का संक्षिप्त रूपान्तर है। इसे प्रमुखतः जटिल बीजगणितीय गणनाओं में प्रयोग हेतु बनाया गया था। अल्गोरिथ्मिक का अर्थ होता है, जटिल समस्याओं के निश्चित समाधान हेतु रचा गया तार्किक विधान।
पास्कल (Pascal) - कम्प्यूटर विज्ञान की योजनाबद्ध पद्धति पर बनायी गयी अल्गोल भाषा को परिवर्द्धित करके बनाया गया था। इसमें रंचनात्मक प्रोग्रामन पर ज्यादा ध्यान दिया गया है जिससे प्रोग्रामन में सहूलियत हो सके। पास्कल तथा बेसिक में सबसे बड़ा अन्तर यह है कि पाॅस्कल में सभी चरों (Variables) को पहले ही परिभाषित किया जाना जरूरी है। पास्कल का प्रयोग माइक्रो कम्प्यूटरों में ज्यादातर किया जाता है।
कोमाल (Comal) - यह अंग्रेजी के शब्दों Common Algorithmic Language का संक्षिप्त रूपान्तर है। यह पास्कल से बहुत मिलती-जुलती भाषा है जिसे माध्यमिक स्तर के स्कूल के विद्यार्थियों के प्रयोग हेतु बनाया गया है।
लोगो (Logo) - छोटी क्लास के विद्यार्थियों को ग्राफिक रेखानुकृतियां आदि सिखाने के लिए लोगो का प्रयोग किया जाता है। बहुत ही सरल अंग्रेजी शब्दों जैसे ;डवअमए ज्नेनद्ध की सहायता से एक कछुए जैसी आकृति को स्क्रीन पर घुमाकर कई प्रकार की त्रिकोणीय आकृतियाँ बनायी जा सकती है ।
पायलट (Forth) - यह एक प्रकार की लेखकीय भाषा है, जिसके द्वारा शिक्षक या प्रशिक्षक बहुत सारे कम्प्यूटरों की सहायता से पहले से रिकार्ड किये हुये विषय पढ़ा सकते है और विद्यार्थियों के द्वारा दिये गये उत्तरों को चेक कर सकते है ।
फोर्थ (Forth) - इस भाषा को चाल्र्स एच. भूरे के द्वारा 1960 के दशक में वर्जीनिया की नेशनल रेडियो एस्ट्राॅनामी आवजरवेटरी में चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटरों में प्रयोग हेतु रचा गया था, जिन्होंने अपना ”फोर्थ-इन्ट्रेस्ट ग्रुप“ बना लिया था। बाद में इसके कई संस्करण प्रचलित हुये जैसे कि पालीफोर्थ, एफ. आई. जी. फोर्थ एवं फोर्थ 79। फोर्थ का सभी क्षेत्रों में व्यापक प्रयोग हुआ।
सी C - आई. बी. एम. ने अपने पर्सनल कम्प्यूटरों में एम. एस. डास. ;डै.क्वेद्ध आपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग किया। इसी प्रकार मिनी कम्प्यूटरों के लिये यूनिक्स आपरेटिंग सिस्टम और ‘सी’ प्रोग्रामिंग भाषा का साथ-साथ प्रयोग हुआ।

  •  वास्तव में यह न तो फोरट्रान या कोबोेल जैसी उच्चस्तरीय भाषा है, न ही असेम्बली भाषा जैसी निम्न स्तर की भाषा है। वरन् यह एक मध्यम स्तरीय भाषा। असेम्बली भाषा को सामान्य बुद्धि वाले प्रोग्रामर आसानी से नहीं समझ सकते इसलिये ‘सी’ भाषा में यह छूट मिल जाती है कि अति बुद्धिमान प्रोग्रामर उच्चस्तरीय भाषा के प्रचलित नियमों से हटकर अपने आप कुछ प्रोग्राम आदेश बना सके। ‘सी’ की सहायता से प्रायोगिक प्रोग्राम (Application Programme) भी बनाये जा सकते है ।

स्नोबोल (Snobol) - यह शब्द अंग्रेजी के शब्दों String Oriented Symbolic Language स्ंदहनंहम का संक्षिप्त रूपान्तर है जिसे ग्रिस्बोल के नेतृत्व में 1962 में बना लिया गया था। यह अन्य भाषाओं से सबसे हटकर बनायी गयी भाषा थी जिसकी सहायता से संदेश, शब्दावलियां और नमूने बनाये जा सकते थे। यदि किसी व्यक्ति को यह पता करना है कि इस पुस्तक में कम्प्यूटर शब्द कितने बार प्रयोग हुआ है तो इस भाषा की मदद से आसानी से पता किया जा सकता है।
लिस्प (Lisp) - यह स्पेज List Processing का संक्षिप्त रूपान्तर है। कृत्रिम बुद्धि से संबंधित विषयों के जनक जाॅन मेकार्थो ने 1960 के दशक में एम. आई. टी. के सान्निध्य में कृत्रिम बुद्धि कार्यों के लिये लिस्प का आविष्कार किया था जिसके साथ ही प्रतीकात्मक शब्द संसाधन (Symbolic Processing) भाषाओं के विकास का मार्गद्वार खुल गया। लिस्प लाजिक थ्योरिस्ट एवं आई. पी. एल. के बाद बनने वाली तीसरी कृत्रिम बुद्धि-भाषा मानी जाती है। लिस्प एक अनुवादक भाषा है। लिस्प प्रोग्रामर को अपने प्रोग्राम खुद विकसित करने के लिये लिस्ट के माध्यम से सहायता करती है। यह बेसिक के समान इन्टरएक्टिव भी है।
प्रोलाॅग (Prolog) - यह Programming in Logic का संक्षिप्त रूप है। कृत्रिम बुद्धि के कार्यों के लिये इस भाषा का विकास 1973 में फ्रांस में किया गया। इस भाषा को यूरोप एवं बाद में जापान में वृहत स्तर पर स्वीकृत किया गया। प्रोलाॅग में समस्याओं के हल के लिये तर्क-तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिसे निर्धारण कलन (Predicate Calculas) कहा जाता है।
हार्डवेयर (Hardware) - कम्प्यूटर और कम्प्यूटर से जुड़े सारे यन्त्रों और उपकरणों को हार्डवेयर कहा जाता है। इसमें कम्प्यूटर के चारों उपविभाग यानि केन्द्रीय संसाधन एकक, आन्तरिक स्मृति, बाह्यस्मृति, निवेश एवं निर्गम एकक, सभी प्रकार की निवेश या निर्गम युक्तियां, सभी प्रकार की स्मृति (संचय) युक्तियां, टेपरिकार्डर, डिस्क ड्रायव, मोडेम और कपलर आदि आते है ।

  • हार्डवेयर के दो मुख्य भाग होते है - (1) कम्प्यूटर एवं (2) उससे जुड़ी हुयी सारी युक्तियां जिन्हें संयुक्त रूप से परिधीय युक्तियाँ कहा जाता है।

साफ्टवेयर  (Software) - अधिकतर बार-बार और विस्तृत रूप से प्रयुक्त होने वाले प्रोग्राम पहले से ही उपलब्ध रहते है जो थोड़े से परिवर्तन से किसी समस्या विशेष के लिये उपयोग में लाये जा सकते है । इन पहले से ही उपलब्ध, लिखे गये प्रोग्रामों को ‘साफ्टवेयर’ कहते है । जिन समस्याओं के समाधान के लिये इन लिखे गये प्रोग्रामों का प्रयोग किया जाता है उनके आधार पर इन्हें निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है -
(I) सिस्टम साफ्टवेयर (System Software) - इस श्रेणी में आपरेटिंग सिस्टम कम्पाइलर तथा अन्य प्रोग्राम आते है जो कम्प्यूटर की मूल कार्य विधि तथा कार्यनीति निर्धारित करते है । इनमें कम्प्यूटर के आन्तरिक विभागों का संयोजन व पारस्परिक संवाद प्रमुख है।
(II) एप्लीकेशन साफ्टवेयर (Apllication Software) - कई विभागों में एक ही तरह की समस्या को सुलझाने के लिये जिस प्रोग्राम का उपयोग किया जाता है उसे एप्लीकेशन साफ्टवेयर कहते है । जैसे यात्रा आरक्षण, फैक्टरियों के कच्चे माल की मात्रा का निर्धारण इत्यादि। जहाँ भी इस तरह की आवश्यकता हो वहाँ एप्लीकेशन साफ्टवेयर उपयोग में लाया जा सकता है।
(III) कस्टम साफ्टवेयर (Custom Software) -  इस श्रेणी में वे प्रोग्राम आते है जो किसी विशेष आवश्यकता की पूर्ति के लिये लिखे जाते है । किसी एक समस्या विशेष के समाधान के लिये लिखे गये ये प्रोग्राम सिर्फ उसी प्रयोगकर्ता के काम आ सकते है ।

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FAQs on विज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ (भाग - 4) - सामान्य विज्ञानं - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. विज्ञान क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: विज्ञान एक प्रक्रिया है जिसमें हम नए ज्ञान को प्राप्त करते हैं और उसे समझते हैं। विज्ञान हमें अपने आस-पास की दुनिया को बेहतर समझने और समस्याओं का समाधान ढूंढने में मदद करता है। इसके माध्यम से हम नए तकनीकी और आविष्कार करते हैं जो हमारे जीवन को सुखद बनाने में मदद करते हैं।
2. विज्ञान की प्रमुख शाखाओं में से कुछ नाम बताएं?
उत्तर: विज्ञान की प्रमुख शाखाओं में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित विज्ञान, भूगोल विज्ञान, खगोल विज्ञान, आणु विज्ञान और आयुर्विज्ञान शामिल हैं।
3. वैज्ञानिक अनुसंधान क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: वैज्ञानिक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसमें वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं, प्रयोग करते हैं और नए ज्ञान को प्राप्त करते हैं। यह विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में नए आविष्कारों और नवीनतम तकनीकों की विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से हम बेहतर उपकरण और प्रौद्योगिकी विकसित करते हैं जो हमारे जीवन को आसान और सुखद बनाते हैं।
4. वैज्ञानिक अध्ययन के लिए क्या आवश्यकताएं होती हैं?
उत्तर: वैज्ञानिक अध्ययन के लिए कुछ महत्वपूर्ण आवश्यकताएं होती हैं। इनमें से कुछ हैं: स्पष्ट और परिभाषित लक्ष्य, प्रयोगशाला और उपकरण, वैज्ञानिक मार्गदर्शन, विशेषज्ञों का सहयोग, और वैज्ञानिक मैथमैटिकल और तार्किक कौशल। इन सभी आवश्यकताओं का पालन करके हम वैज्ञानिक अध्ययन को सफलतापूर्वक कर सकते हैं।
5. विज्ञान के लिए UPSC परीक्षा क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: UPSC परीक्षा एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षा है जो वैज्ञानिक ज्ञान, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में अभियांत्रिकी, चिकित्सा, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, भूगोल, खगोल विज्ञान और अन्य विज्ञान के प्रमुख विषयों पर ज्ञान की माप लेती है। इसके माध्यम से विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में गहरी ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलता है।
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