UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  शुंग और गुप्त वंश - गुप्त-पूर्व एवं गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

शुंग और गुप्त वंश - गुप्त-पूर्व एवं गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

शुंग वंश

  • लगता है कि पुष्यमित्र शुंग, जिसने अंतिम मौर्य राजा बृहद्रथ की हत्या करके बलपूर्वक मगध का राजसिंहासन हड़प लिया, एक ब्राह्मण था। संभवतः वह बैम्बिक वंश का था।
  • शुंग साम्राज्य पाटलिपुत्र से नर्मदा नदी तक फैला था और उसमें अयोध्या और विदिशा नगर शामिल थे।
  • पुष्यमित्र ने युद्ध द्वारा सफलतापूर्वक विदर्भ पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया। वह हिन्दू धर्म का घोर समर्थक था तथा ब्राह्मणमार्गीय जीवन-पद्धति का पुनराम्भ दिखाने के लिए कई वैदिक यज्ञ किए, तथापि शुंगों के शासन के दरम्यान ही भरहुत के प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप का निर्माण हुआ।
  • पुष्यमित्र के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र राजा बना। वह कालिदास के नाटक मालविकाग्निमित्र का नायक है।
  • महान वैयाकरण और महाभाष्य के रचयिता पतंजलि का जन्म इसी युग में मध्य भारत के गोनार्द नामक स्थान पर हुई।
  • भरहुत स्तूप के साथ-साथ अशोक द्वारा निर्मित सांची स्तूप (भोपाल के पास) की वेदिका (रेलिंग) और तोरण-द्वार का निर्माण शुंग काल में ही हुआ।

कण्व वंश

  • पुराणों के अनुसार शुंगवंशियों ने 112 वर्ष तक मगध पर शासन किया। करीब 75 ई.पू. में अंतिम शुंग शासक दैवभूति की हत्या करके उसके मंत्री वसुदेव ने मगध राजसिंहासन हड़प लिया और कण्ववंश की नींव डाली।
  • कण्ववंशियों का भी शासन करीब 30 ई. पू. में समाप्त हो गया। कण्ववंशी भी ब्राह्मण थे।

कलिंग का चेटी या चेदी वंश

  • अशोक के बाद कलिंग का इतिहास अस्पष्ट है। प्रथम सदी ई.पू. में एक नए वंश चेट या चेटी या चेदी का उद्भव इस क्षेत्र में हुआ।
  • इस वंश की जानकारी इसके तीसरे शासक खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख (भुवनेश्वर के निकट) से मिलती है।
  • खारवेल जैन धर्म का उपासक था। वह जैन संतों को संरक्षण देता था और उनके रहने के लिए उसने उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट उदयगिरी पहाड़ियों पर गुफाएं बनवाई।

गुप्त वंश

  • समुद्रगुप्त के ‘प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख’, कुमार गुप्त के ‘बिलसड़ स्तम्भ लेख’, स्कंदगुप्त के ‘भितरी स्तम्भ लेख’ आदि के आधार पर गुप्तों के आदि पुरुष का नाम श्रीगुप्त माना जाता है। इनको ‘महाराज’ की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
  • इनके पुत्र व उत्तराधिकारी के रूप में घटोत्कगुप्त का उल्लेख किया गया है।

 

शक-कुषाण कालीन साहित्य       

पुस्तक  लेखक
  सौन्दर्यानन्द, 
बुद्ध चरित 
सारिपुत्र प्रकरण  अश्वघोष
प्रज्ञापारमिता-सूत्रशास्त्र     नागार्जुन
महाविभाष-शास्त्र वसुमित्र


चंद्रगुप्त प्रथम (319 - 334 ई.)

  • इस वंश का यह पहला शासक था, जिसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की।
  • उसने 319.320 ई. में अपने राज्यारोहण के स्मारक के रूप में गुप्त संवत् चलाया।
  • अपनी शक्ति को पूर्वी भारत में सम्मान दिलाने के लिए चंद्रगुप्त प्रथम ने वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया, जैसा कि मुद्रा साक्ष्यों से स्पष्ट है।
  • चंद्रगुप्त ने साकेत (अयोध्या), प्रयाग (इलाहाबाद) और मगध (दक्षिण बिहार) पर शासन किया।

समुद्रगुप्त (335 -380 ई.)

  • चंद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख में चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा समुद्रगुप्त को भरी सभा में राज्य प्रदान करने का वर्णन है।
  • प्रयाग प्रशस्ति के सातवें श्लोक से समुद्रगुप्त की सामरिक विजयों का विवरण प्राप्त होता है। यह अभिलेख इलाहाबाद के किले में स्थित उसी स्तम्भ पर लिखा है जिस पर मौर्य शासक अशोक का अभिलेख है। बाद में एक मुगल अभिलेख भी इसी स्तम्भ पर खोदा गया।
  • समुद्रगुप्त के सिक्कों और इरान (मध्य प्रदेश में) से प्राप्त अभिलेख से भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
  • एक चीनी स्रोत के अनुसार श्रीलंका के राजा मेघवर्मन ने गया में बुद्ध का एक मंदिर बनवाने की अनुमति प्राप्त करने के लिए समुद्रगुप्त के पास एक दूत भेजा था। अनुमति दी गई और यह मन्दिर एक विशाल बौद्ध विहार के रूप में विकसित हो गया।
  • प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त कभी पराजित नहीं हुआ और उसकी बहादुरी एवं युद्ध कौशल के कारण ही स्मिथ ने उसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है।
  • द्वीपसमूहों पर उसके आधिपत्य के उल्लेख से पता चलता है कि समुद्रगुप्त के पास नौसेना भी थी। उसने विक्रमांक की उपाधि ग्रहण की।
  • अपनी विजयों के उपरांत समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ किया जिसका परिचय सिक्कों और उसके उत्तराधिकारियों के अभिलेखों से प्राप्त होता है।
  • वह ललित कलाओं में भी निपुण था। उसे कविराज भी कहा गया है।
  • वह संगीत कला में भी निपुण था। वीणा बजाती हुई उसकी आकृति उसके एक सिक्के पर मिलती है।
  • वह गरुड़वाहन विष्णु का भक्त था, परन्तु दूसरे धर्मों का भी समान रूप से आदर करता था।
  • कहा जाता है कि प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुबंधु उसका मंत्री था।


चंद्रगुप्त द्वितीय (380 - 412 ई.)

  • चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त का पुत्र और उत्तराधिकारी था। वह विक्रमादित्य के नाम से भी प्रसिद्ध था। चंद्रगुप्त द्वितीय का दूसरा नाम देवराज या देवगुप्त था, जैसा कि वाकाटक अभिलेखों व उसके अपने कुछ सिक्कों से, जिन पर देवश्री लिखा है, स्पष्ट है।
  • विशाखदत्त कृत देवीचंद्रगुप्तम नामक नाटक में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य से पूर्व रामगुप्त का गुप्त शासक के रूप में वर्णन किया गया है।

सातवाहन

  • एक प्राकृत ग्रंथ गाथा सत्तसई सातवाहन नरेश हाल की रचना बतलाई जाती है। इसमें 700 श्लोक हैं।
  • सातवाहन काल में हम दक्कन की भौतिक संस्कृति में स्थानीय उपादान और उत्तर के वैशिष्ट्य दोनों का मिश्रण देखते हैं।
  • इस काल में गोदावरी और कृष्णा की घाटियों में समूचे उत्तरी दक्कन में आवागमन के लिए सड़कें बनवाई गईं।
  • व्यापार में वृद्धि के फलस्वरूप गोदावरी के मुहाने के प्रदेश में और बम्बई के पास भी नगर बस गए।
  • इस काल में पश्चिम भारत में स्थित भड़ौबंदरगाह ईरान, इराक, अरब और मिò से आने वाले जहाजों के लिए आकर्षण का केन्द्र था।
  • सातवाहनों ने स्वर्ण का प्रयोग बहुमूल्य धातु के रूप में किया, क्योंकि उन्होंने कुषाणों की तरह सोने के सिक्के नहीं चलाए। उनके सिक्के मुख्यतः सीसे के हैं। उन्होंने पोटीन, तांबे, काँसे के भी सिक्के चलाए।
  • सातवाहन काल में पश्चिमोत्तर दक्कन या महाराष्ट्र में अत्यंत दक्षता और लगन के साथ ठोस चट्टानों को काट-काट कर अनेक चैत्य और विहार बनाए गए। इस समय का सबसे प्रसिद्ध चैत्य पश्चिम दक्कन में कार्ले चैत्य है। नासिक में तीन विहार हैं।
  • शिलाखंडीय वास्तुकला आंध्र में कृष्णा-गोदावरी क्षेत्र में भी पाई जाती है, परंतु यह क्षेत्र वस्तुतः स्वतंत्र बौद्ध संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है। इन संरचनाओं में एलोरा के चारों ओर बिखरे स्तूप प्रमुख हैं। इनमें अमरावती और नागार्जुनकोंडा के स्तूप सबसे अधिक मशहूर हैं।
  • सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत और लिपि ब्राह्मी थी।
  • उसने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रूद्रसेन द्वितीय के साथ किया। वाकाटक नरेश की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी प्रभावती ने अपने नाबालिग पुत्र की संरक्षिका के रूप में वाकाटक राज्य की बागडोर संभाली।
  • विष्णु पुराण और वायु पुराण में चंद्रगुप्त के राज्य का विस्तार कोसल, ओड्र, पुन्ड्र, ताम्रलिप्ति और पुरी तक बताया गया है।
  • चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा दक्षिण-पश्चिम में साम्राज्य विस्तार के फलस्वरूप वहां उसके चांदी के सिक्के (मालवा में) और उसके अधीनस्थ सामंतों के अभिलेख मिले हैं।
  • लगता है चंद्रगुप्त द्वितीय ने उज्जैन को द्वितीय राजधानी बनाया।
  • दिल्ली में कुतुब मीनार के पास स्थित लौह-स्तम्भ में ‘चंद्र’ नामक शासक की विजयों का उल्लेख है। लेखन-शैली की विशेषता के आधार पर इसे चंद्रगुप्त द्वितीय के समय का माना जाता है।
  • उसका दरबार नवरत्न (नौ विभूतियों) के लिए प्रसिद्ध है। इन विभूतियों में कालीदास, अमरसिंह जैसे बड़े-बड़े विद्वान थे। उसके युग में चीनी बौद्ध यात्री फाह्यान ने भारत की यात्रा (399 - 414 ई.) की।
The document शुंग और गुप्त वंश - गुप्त-पूर्व एवं गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|676 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on शुंग और गुप्त वंश - गुप्त-पूर्व एवं गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. शुंग और गुप्त वंश में व्यापार और वाणिज्य कितना महत्वपूर्ण था?
उत्तर: शुंग और गुप्त वंश में व्यापार और वाणिज्य अत्यंत महत्वपूर्ण था। इन कालों में, व्यापारिक गतिविधियों के माध्यम से विदेशी वस्त्र, गहनों, सुरम्य अवस्था के यातायात साधनों, खाद्य और अन्य आवश्यकता की वस्तुओं का व्यापार होता था। यह व्यापारसंबंधी गतिविधियाँ न केवल आर्थिक विकास को संभावित करती थीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक और राजनीतिक व्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देती थीं।
2. शुंग और गुप्त वंश में व्यापार किस प्रकार संचालित होता था?
उत्तर: शुंग और गुप्त वंश में व्यापार विभिन्न तरीकों से संचालित होता था। व्यापारिक गतिविधियाँ मुख्य रूप से नगरों के आसपास के व्यापारी इलाकों में होती थीं। इन व्यापारी इलाकों में व्यापारियों के द्वारा वस्त्र, गहने, खाद्य, यातायात साधन और अन्य आवश्यकता की वस्तुएं बाजारों में उपलब्ध की जाती थीं। इसके अलावा, व्यापारियों के बीच यात्राएँ भी होती थीं, जहां वे वस्त्र, गहने और अन्य वस्तुएं खरीदने और विक्रय करने के लिए जाते थे।
3. गुप्त-पूर्व और गुप्त काल में व्यापार किस प्रकार महत्वपूर्ण था?
उत्तर: गुप्त-पूर्व और गुप्त काल में व्यापार अत्यंत महत्वपूर्ण था। इन कालों में, व्यापारिक गतिविधियों के माध्यम से भारतीय वस्त्र, गहने, मसाले, सुरम्य अवस्था के यातायात साधनों, खाद्य और अन्य आवश्यकता की वस्तुओं का व्यापार होता था। इसके अलावा, व्यापारिक गतिविधियाँ न केवल आर्थिक विकास को संभावित करती थीं, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक और राजनीतिक व्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देती थीं।
4. शुंग और गुप्त वंशों में व्यापार की विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर: शुंग और गुप्त वंशों में व्यापार की कुछ विशेषताएं थीं। पहले, इन वंशों में नगरों का विकास हुआ जहां व्यापारियों की बड़ी संख्या बसने लगी। दूसरे, इन वंशों में व्यापारिक गतिविधियाँ बड़े स्थानों पर सम्पन्न होती थीं, जिन्हें बाजार कहा जाता था। तीसरे, इन वंशों में व्यापारियों के बीच यात्राएँ होती थीं, जहां वे वस्त्र, गहने और अन्य वस्तुएं खरीदने और विक्रय करने के लिए जाते थे।
5. गुप्त-पूर्व और गुप्त काल में व्यापार किस प्रकार अर्थसंघटित होता था?
उत्तर: गुप्त-पूर्व और गुप्त काल में व्यापार एक अर्थसंघटित प्रक्रिया था। इस कार्यक्रम में व्यापारियों के बीच वस्त्र, गहने, खाद्य,
398 videos|676 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

शुंग और गुप्त वंश - गुप्त-पूर्व एवं गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य

,

past year papers

,

इतिहास

,

Important questions

,

ppt

,

Sample Paper

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

pdf

,

mock tests for examination

,

practice quizzes

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

shortcuts and tricks

,

Objective type Questions

,

Free

,

शुंग और गुप्त वंश - गुप्त-पूर्व एवं गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य

,

MCQs

,

Viva Questions

,

Summary

,

यूपीएससी

,

Semester Notes

,

इतिहास

,

इतिहास

,

यूपीएससी

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Extra Questions

,

यूपीएससी

,

video lectures

,

Previous Year Questions with Solutions

,

शुंग और गुप्त वंश - गुप्त-पूर्व एवं गुप्त काल में व्यापार और वाणिज्य

,

study material

,

Exam

;