प्रश्न 13. आजकल बच्चे अपनी पढ़ाई से विमुख होकर कार्टून फ़िल्में देखते हैं। इससे बच्चों के मन में हिंसा की भावना पनप रही है। इस विषय पर दो सहेलियों रूपा और रश्मि के बीच हुई बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर:
रुचि: नमस्ते रश्मि! कैसी हो?
रश्मि: मैं ठीक हूँ! तुम कैसी हो?
रुचि: मैं भी ठीक हूँ रश्मि! चलो घर चलते हैं। वहीं बैठकर बातें करते हैं।
रश्मि: नहीं रुचि, फिर कभी-अभी नहीं।
रुचि: अरे! अभी क्यों नहीं?
रश्मि: मेरे बेटे पप्पू को टीवी पर कार्टून देखने की आदत लग गई है। वह मौका पाते ही टीवी से चिपक जाता है।
रुचि: बच्चों को थोड़ी देर टीवी भी देखने देना चाहिए
रश्मि: रश्मि पर वह तो हर समय कार्टून फ़िल्में ही देखना चाहता है।
रुचि: फिर तो उसकी पढ़ाई प्रभावित हो रही होगी।
रश्मि: सिर्फ पढ़ाई ही नहीं उसका व्यवहार भी प्रभावित हो रहा है। इन कार्टूनों की मारधाड़ और हिंसक प्रवृत्ति उसके स्वभाव का अंग बन रही है। इतना ही नहीं उसका व्यवहार भी क्रूर होता जा रहा है।
रुचि: ऐसा कैसे पता लगा?
रश्मि: कल वह डॉगी को बिस्कुट खिला रहा था। जब डॉगी ने बिस्कुट नहीं खाया तो उसने उसका सिर पकड़कर दीवार से टकरा दिया।
रुचि: बच्चे को अच्छी कार्टून फ़िल्में देखने के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि उनके स्वभाव में क्रूरता न आने पाए।
रश्मि: ठीक कह रही हो रुचि, हमें शुरू से ही इस पर ध्यान देना चाहिए था। लगता है अब पानी सिर से ऊपर बहने लगा है।
रुचि: हमें यूँ हिम्मत नहीं हारना चाहिए। चलो मैं ही उसे कुछ समझाती हूँ।
रश्मि: यह तो बहुत अच्छा रहेगा। हम एक कप चाय भी साथ पी लेंगे।
प्रश्न 14. आजकल युवाओं में अंग्रेजी साहित्य पढ़ने और अंग्रेज़ी को महत्त्व देने का चलन बन गया है। वे हिंदी को उपेक्षित मानने लगे हैं। इसी विषय पर दो मित्रों कमल और केशव की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर:
कमल: कैसे हो केशव, इस समय कहाँ से आ रहे हो?
केशव: कमल मैं एकदम ठीक हूँ। इस समय मैं बाज़ार गया था।
कमल: बाज़ार! क्या खरीदना था, भाई ?
केशव: गरमी की इन छुट्टियों में पढ़ने के लिए अंग्रेज़ी की कुछ पत्रिकाएँ और तीन-चार उपन्यास।
कमल: उपन्यास तो तुमने हिंदी का खरीदा होगा!
केशव: नहीं कमल मैं हिंदी का उपन्यास नहीं पढ़ता। मैंने उपन्यास भी अंग्रेज़ी का ही खरीदा है। इनमें से एक ‘चार्ल्स डिकेन्स’ और दूसरा रूडयार्ड किपलिंग द्वारा लिखित है।
कमल: तुम हिंदी का उपन्यास क्यों नहीं पढ़ते हो।
केशव: अंग्रेज़ी के उपन्यास पढ़ना गर्व की बात है। जो बात अंग्रेज़ी के उपन्यासों में है, वह हिंदी के उपन्यासों में नहीं।
कमल: क्या तुमने कभी प्रेमचंद, शरद चंद, जयशंकर प्रसाद, मृदुला गर्ग, वृंदावन लाल वर्मा के उपन्यासों को पढ़ा है। एक बार पढ़ो तो जानो।
केशव: कमल, हिंदी के उपन्यास पढ़ने को मेरा मन नहीं करता।
कमल: केशव, क्या तुमने कभी सोचा है कि यदि हम भारतवासी ही हिंदी का प्रयोग पढ़ने, लिखने-बोलने और अन्य रूपों में नहीं करेंगे तो कौन करेगा? क्या तुमने फ्रांस, चीन, जापान वालों को अंग्रेज़ी पढ़ते या बोलते सुना है?
केशव: नहीं।
कमल: कभी सोचा है क्यों? उन्हें अपनी भाषा पढ़ने-लिखने और बोलने में गर्व महसूस होता है। अपनी भाषा ही हमें उन्नति की ओर ले जाती है।
केशव: मित्र! तुमने मेरी आँखें खोल दी हैं। मैं अभी इस अंग्रेजी साहित्य को लौटाकर प्रेमचंद, जयशंकर, वृंदावन लाल वर्मा के उपन्यास लाऊँगा।
प्रश्न 15. हमारे देश के विकास के लिए सन् 20xx के बजट में गाँवों के विकास के लिए बजट बढ़ाकर उनके विकास का लक्ष्य रखा गया है। इसी विषय पर दो मित्रों की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर:
लक्ष्य: अरे! कहाँ जा रहे हो?
वैभव: मैं इस समय अखबार लेने जा रहा हूँ। आज अखबार वाले ने अखबार नहीं दिया है।
लक्ष्य: कल हमारे देश के वित्तमंत्री जी ने सन् 20XX का बजट प्रस्तुत किया है वही पढ़ना है।
वैभव: मैंने तो टीवी पर देखा कि इस बार सरकार ने गाँवों के विकास पर जोर दिया है।
लक्ष्य: मित्र, ऐसा तो हर बार बजट के समय कहा जाता है।
वैभव: नहीं लक्ष्य, ऐसा नहीं है। इस बार बजट में ग्रामीण विकास के लिए बजट बढ़ा दिया गया है। किसानों को उन्नत औजार, खाद, बीज, दवाइयाँ आदि छूट के साथ दी जाएंगी।
लक्ष्य: पर किसानों के कर्ज का क्या होगा, जिसके कारण किसान आत्महत्या करने पर विवश हैं?
वैभव: इसके लिए किसानों की फ़सलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाएगा। उनकी फ़सलों का बीमा किया जाएगा और बिचौलियों की भूमिका कम से कम की जाएगी।
लक्ष्य: इसके अलावा किसानों तक स्वास्थ्य सेवाएँ, बैंकिंग और प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ भी पहुँचानी होगी। गाँवों को सड़कों से जोड़ना होगा और कृषि पर आधारित उद्योग धंधों का प्रशिक्षण भी उन्हें दिया जाना चाहिए।
वैभव: इस बार सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से लगता है कि देश के अन्नदाता की दशा में सुधार अवश्य होगा।
लक्ष्य: भगवान करे ऐसा ही हो।
वैभव: अच्छा मैं चलता हूँ, नमस्ते।
प्रश्न 16. आज के नेता एक बार चुनाव जीतते ही इतने अमीर बन जाते हैं कि उनकी कई पीढ़ियों को काम करने की ज़रूरत ही नहीं रह जाती है। आज की राजनीति पर दो मित्रों की बातचीत को संवाद रूप में लिखिए।
उत्तर:
सफल: अरे नमन नमस्ते, कहाँ से आ रहे हो?
नमन: नमस्ते सफल, मैं अपने वार्ड के पार्षद के घर से आ रहा हूँ।
सफल: क्या बात है? अभी से ठान लिया है कि नेता बनना है क्या?
नमन: नहीं सफल, ऐसी बात नहीं है। मैं तो भूलकर भी नेता नहीं बनूँगा।
सफल: क्यों ऐसी क्या बात हो गई ?
नमन: करीब दो घंटे पहले पार्षद जी मेरे पिता जी के पास आए थे।
सफल: क्या अब वे तुम्हारे पिता को नेता बनाना चाहते हैं?
नमन: मेरे पिता जी शहर के प्रसिद्ध वकील हैं। वह उन्हीं के पास आए थे।
सफल: अच्छा तो ज़रूर ही पार्षद जी ने गड़बड़-घोटाला किया होगा।
नमन: शायद तुम्हें पता नहीं, चार साल पहले पैदल चलकर वोट माँगने वाले इन पार्षद जी के पास आज चार-चार महँगी गाड़ियाँ हैं। अब इस मोहल्ले में सबसे बड़ी कोठी इन्हीं के पास है।
सफल: यार, यह राजनीति धन कमाने का साधन बनती जा रही है।
नमन: ठीक कहते हो। पहले लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल, गांधी जी जैसे नेता भी थे जो लोगों की सेवा और कल्याण के लिए राजनीति में आए थे पर आज तो लोग अपना कल्याण करने के लिए राजनीति में आते हैं।
सफल: यही कारण है कि ईमानदार नेता अब उँगलियों पर गिनने जितने भी नहीं बचे हैं। इनके नाम अब घोटालों में संलिप्त पाए जाते हैं। जिसने जितना भ्रष्टाचार और घोटाला किया वह स्वयं को उतना ही बड़ा नेता समझता है।
नमन: क्या तुम्हारे पिता जी इनकी मदद करने को तैयार हो गए हैं?
सफल: नहीं इन्होंने इनका केस लड़ने से विनम्रतापूर्वक मना कर दिया?
नमन: अच्छा ही किया ताकि ये नेतागण राजनीति का असली उद्देश्य समझ सकें।
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