3.
कछु भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु॥
आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कहियोमुसकाय सुदामा सों, ‘‘चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजौ न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हे॥’’
शब्दार्थ—दियो—दिया। सो—वह। काहे—क्यों। चाँपि—दबाकर, छिपाकर। पोटरी—छोटी-सी गठरी, पोटली। काँख—बगल, कंधे के नीचे का गढ़नुमा भाग। हेतु—कारण। आगे—पहले। दए—दिए। गुरुमातु—गुरुमाता अर्थात ऋषि संदीपनि की पत्नी। ते—थे। लए—लिए। चाबि—चबा। दीने—दिए। बान—बानि, आदत। प्रवीने—कुशल। खोलत—खोलना। नाख्नह—नहीं। सुधारस—अमृत। भीने—भीगे। पाछिलि—पिछली। अजौ—आज भी।तजो—त्यागना। तैसई—उसी तरह। तंदुल—चावल। कीन्हे—किए जा रहे हो।
प्रसंग—प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक वसंत, भाग-3* में संंकलित कविता सुदामा चरित* से ली गई हैं। इसके रचयिता नरोत्तम दास हैं। दवारका के लिए चलते समय सुदामा अपने मित्र कृष्ण के लिए कुछ चावल उपहारस्वरूप रखे थे किंतु कृष्ण का वैभव देखकर वे उन्हें देने का साहस नहीं कर पा रहे थे और उसे छिपाने की चेष्टा कर रहे थे, जिसे कृष्ण ने सुदामा के पैरों को धेते समय देख लिया-
व्याख्या—सुदामा के पैरों को धेने के बाद कृष्ण ने देख लिया कि सुदामा उनसे कुछ छिपाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने सुदामा से कहा कि सुदामा से कहा की भाभी ने मेरे लिए जो उपहार दिया है, उसे तुम क्यों नहीं दे रहे हो? तुम उपहार की उस पोटली को अपनी काँख में किस कारण से छिपाए जा रहे हो?
कृष्ण सुदामा को बचपन की याद दिलाते हुए कहते हैं कि बचपन में गुरुमाता ने हम दोनों के लिए, चने दिए थे, पर तुमने वे चने हमें नहीं दिए थे और अकेले ही खा लिए थे। श्री कृष्ण ने चुटकी लेते हुए कहा कि मित्र, चोरी की आदत में तुम तो पहले से ही कुशल हो। आज भी प्रेम रूपी अमृत रस में सने चावलों की पोट को अपनी काँख में छिपाने का प्रयास कर रहे हो। मित्र, तुम्हारी पिछली आदतें अभी भी ज्यों-की-त्यों हैं। तुम उन्हीं आदतों के वशीभूत, हो भाभी दवारा दिए गए चावलों को भी चुराने की कोशिश किए जा रहे हो
विशेष
प्रश्न (क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर - कवि का नाम—नरोक्रह्म्म दास।
कविता का नाम—सुदामा चरित।
प्रश्न (ख) किसने, किसके लिए सुदामा के माध्यम से उपहार भेजा था? वह उपहार क्या था?
उत्तर - सुदामा की पत्नी ने सुदामा के माध्यम से उनके मित्र श्री कृष्ण के पास उपहार भेजा था। वह उपहारस्वरूप चावल लाए थे।
प्रश्न (ग) सुदामा उस उपहार को क्यों छिपा रहे थे?
उत्तर - सुदामा उस उपहार (चावल) को इसलिए छिपा रहे थे क्योंकि कहाँ दवारकाधीश कृष्ण और कहा ये सूखे चावल। उन्हें उपहार में इतनी तुच्छ वस्तु कैसे दे सुदामा यही सोच रहे थे।
प्रश्न (घ) गुरुमाता ने उन्हें चने कब दिए थे?
उत्तर - गुरुमाता ने उन्हें चने बचपन में तब दिए थे जब कृष्ण और सुदामा ऋषि संदीपनि कह्य आश्रम में साथ-साथ पढ़ा करते थे।
प्रश्न (ङ) ‘चोरी की बान में हौं जू प्रवीनेे’ कृष्ण ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर - सुदामा बचपन में गुरुमाता दवारा दिए गए चने चुपके से अकेले ही खा गए थे और अब वे चावल की पोटली फिर छिपा रहे थे, इसलिए उन्होंने ऐसा कहा।
प्रश्न (च) श्री कृष्ण ने सुदामा दवारा लाए गए, उपहार को कैसा बताया?
उत्तर - श्री कृष्ण ने सुदामादवारा लाए हुए गए चावलों को प्रेम रुपी अमृत से सना हुआ और बहुत ही स्वादिष्ट बताया।
4.
वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात॥
कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज-समाज।
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज॥
हौं आवत नाहीं हुतौ, वाही पठयो ठेलि।
अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि॥
शब्दार्थ—पुलकनि—प्रसन्नता, खुशी। उठि—उठकर। मिलनि—मिलना। पठवनि—वापस भेजना, विदाई। गोपाल—श्री कृष्ण । जात—जा सकता। हरि—ईश्वर (श्री कृष्ण)। राज-समाज—धन-दौलत, वैभव] राज्य एवं समृद्धि । हौ आवत—आना। नाहीं—नहीं। हुतौ—होता। वाही—उसने (सुदामा की पत्नी)। पठयो—भेजा। ठेलि—धक्का देकर, ज़बरदस्ती। ओड़त फिरै—हाथ फैलाए घूमता रहता था। तनिक—ज्जरा-सी।के काज—के लिए,। बहु—बहुत। धरौ—रखना। सकेलि—सँभालकर, सावधानीपूर्वक।
प्रसंग—प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक वसंत, भाग-3* में संंकलित कविता सुदामा चरित* से ली गई हैं। इसके रचयिता नरोत्तम दास हैं। इन पंक्तियों में कवि कहता है कि श्री कृष्ण ने सुदामा को द्वारका से खाली हाथ भेज दिया। सुदामा कुछ मदद की आशा लेकर वहाँ आए थे। वे कृष्ण पर खीझ रहे थे तथा अपनी पत्नी पर भी क्रोधित हो रहे थे। वे पहले से ही कृष्ण की चोरी की आदत से परिचित थे.
व्याख्या—श्री कृष्ण ने सुदामा को द्वारका से खाली हाथ विदा कर दिया। रास्ते भर सुदामा कृष्ण पर खीजते हुए, आ रहे थे। वे सोच रहे थे कि द्वारका में रहते हुए कृष्ण उससे दौड़कर मिले, देखते ही प्रसन्नता से भरगए, तथा इतना आदर-सम्मान दिया पर आते समय कुछ भी नहीं दिया सुदामा कहतेहैं की इस तरह खाली हाथ विदा करनेवाली बात समझ से परे है वे अपने-आपसे कहते हैं कि आखिर यह है तो वही कृष्ण, जो ज़रा से दही के लिए घर-घर हाथ फैलाए घूमता रहता था। क्या हुआ जो अब यह द्वारका का राजा बन गया है, अपार धन-संपत्ति का मालिक बन गया है, पर आदतें वे स्वभाव तो वही है जो तब था। जो खुद माँगा करता था, वह दूसरे को कैसे कुछ दे सकता है। अब वे अपनी पत्नी पर नाराज्ज होते हैं और कहते हैं कि मैं द्वारका आनेवाला ही नहीं था, पर उसी ने बलपूर्वक मुझे यहाँ भेजा था। अब चलकर कहूँगा कि कृष्ण ने इतना सारा धन धकेल दिया है उसे सँभालकर रखो, जिससे यह इधर-उधर न होने पाए।
विशेष
प्रश्न (क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर - कवि का नाम—नरोत्तम दास।
कविता का नाम—सुदामा चरित।
प्रश्न (ख) सुदामा को कृष्ण और द्वारका की कौन-कौन-सी बातें याद आ रही थीं?
उत्तर - सुदामा को कृष्ण और द्वारका की वे सभी बातें याद आ रही थीं, जिनमें कृष्ण का खुशी से भर उठना, उन्हें गले लगाना, सिंहासन पर बिठाना, पैर धोना आदि आदर-सम्मान वेफ भाव छिपे थे।
प्रश्न (ग)‘कछू न जानी जात’ के माध्यम से सुदामा क्या कहना चाहते थे?
उत्तर - कछू न जानी जात’ के माध्यम से सुदामा यह कहना चाहते थे कि श्री कृष्ण की खाली हाथ विदा करनेवाली बात समझ से परे है।
प्रश्न (घ) सुदामा अपनी पत्नी पर क्यों खीझ रहे थे?
उत्तर - सुदामा अपने मित्र के पास सहायता के लिए नहीं आना चाहते थे, पर उनकी पत्नी ने उनसे बार-बार आग्रह करके भेजा था अतः वे अपनी पत्नी पर खीज रहे थे।
प्रश्न (ङ) कृष्ण पर सुदामा के खीझने का क्या कारण था?
उत्तर - कृष्ण पर सुदामा के खीझने का कारण यह था कि श्री कृष्ण ने उन्हें खाली हाथ विदा कर दिया था।
प्रश्न (च) कृष्ण के प्रति सुदामा अपनी खीझ किस प्रकार व्यक्त कर रहे थे?
उत्तर - सुदामा कह रहे थे कि अरे! यह वही कृष्ण है जो बचपन में ज़रा सी दही माँगता-फिरता था। क्या हुआ जो यह आज द्वारकाधीश बन गया है।
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1. सप्रसंग व्याख्या का अर्थ क्या है? |
2. सप्रसंग व्याख्या क्यों जरूरी होती है? |
3. सप्रसंग व्याख्या किस प्रकार की होती है? |
4. सप्रसंग व्याख्या क्या सीखने में मदद करती है? |
5. सप्रसंग व्याख्या किस विषय से संबंधित होती है? |
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