1.
जाति ने पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
शब्दार्थ—साध—साधु-संत। मोल करो—दाम तय करना। तरवार—तलवार। म्यान—जिसमें तलवार रखी जाती है।
प्रसंग—प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत, भाग-3’ में संकलित ‘कबीर की साखियाँ’ से ली गई है। इसके रचयिता संत कवि कबीर हैं। इसमें कवि ने मनुष्य को जाति-पाँति पर ध्यान न देकर गुण ग्रहण करने की बात कही है।
व्याख्या—कवि कहता है कि मनुष्य को कभी भी साधु-संतों की जाति नहीं पूछनी चाहिए। वे जाति-पाँति की भावना से बहुत उपर उठ चुके होते हैं। वे तो ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं। ऐसे लोगों से ज्ञान की बातें अधिकाधिक ग्रहण कर लेनी चाहिए। वैसे भी जाति और ज्ञान का कोई संबंध नहीं होता। मनुष्य के लिए जाति नहीं, ज्ञान महत्वपूर्ण है। जैसे हमें तलवार का मोल-भाव करना चाहिए, म्यान का नहीं, क्योंकि असली काम तो तलवार से लेना है म्यान से नहीं, उसी प्रकार हमें जाति को महत्व नहीं देना चाहिए।
विशेष-
प्रश्न (क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर: कवि का नाम—कबीरदास।
कविता का नाम—कबीर की साखियाँ।
प्रश्न (ख) कवि ने साधु की जाति न पूछने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर: कवि के अनुसार साधु की कोई जाति नहीं होती। वे तो ईश्वर-भक्ति में लीन रहते हैं। मनुष्य का उद्देश्य ज्ञान से पूरा होगा, जाति से नहीं, इसलिए कवि साधु से जाति न पूछने के लिए कहता है।
प्रश्न (ग) हमें म्यान का मोल क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर: हमारा काम तलवार से सिद्ध होगा।युद्ध में तलवार की मजबूती, उसकी धार ही कारगर साबित होगी। अच्छी तलवार से ही हमारा काम बनेगा, इसलिए म्यान का मोल नहीं करना चाहिए।
प्रश्न (घ) आपके विचार से जाति महत्शपूर्ण है या ज्ञान की बातें, लिखिए।
उत्तर: मेरे विचार से ज्ञान की बातें महत्वपूर्ण हैं, जाति नहीं, क्योंकि मनुष्य का भला ज्ञानपूर्ण बातों से होना है, जाति सम्बंधी बातों से नहीं।
2.
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक ॥
शब्दार्थ—आवत—आते हुए। गारी—अपशब्द, गाली। उलटत—जवाब देने पर। होइ—हो जाती है।
प्रसंग—प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत, भाग-3’ में संकलित ‘कबीर की साखियाँ’ से ली गई है। इसके रचयिता संत कवि कबीर हैं। इस साखी में कवि ने मनुष्य को किसी के द्वारा दिए गए अपशब्द का का जवाब (गाली) अपशब्द से न देने की सीख दी है।
व्याख्या—कबीर कहते हैं कि यदि हमें कोई एक अपशब्द कहता है और अगर हम उसका शवाब पलटकर अपशब्द से ही देते हैं, तो वह एक न रहकर अनेक हो जाता है क्योंकि वातावरण में वही शब्द और अधिक हो जाता है अर्थात वातावरण दूषित हो जाता है। इससे आरंभ का एक अपशब्द बढ़कर अनेक बन जाते हैं। कवि मानव जाति को शिक्षा देते हुए यह कहना चाहता है कि हमें बुराई का शवाब बुराई से कभी नहीं देना चाहिए। इससे बुराई और अधिक नहीं बढ़ पाती है।
विशेष-
प्रश्न (क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर: कवि का नाम—कबीर।
कविता का नाम—कबीर की साखियाँ।
प्रश्न (ख) अपशब्द का जवाब अपशब्द से क्यों नहीं देना चाहिए?
उत्तर: अपशब्द का जवाब अपशब्द से इसलिए, नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे एक अपशब्द बढ़कर अपशब्दों में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न (ग) अपशब्द एक का एक रह जाए—इसके लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए?
उत्तर: अपशब्द एक का एक रह जाए—इसके लिए हमें अपशब्द सुनकर भी शांत रहना चाहिए। अपनी सहनशीलता बनाए रखते हुए हमें अपशब्द का जवाब अपशब्द से भूलकर भी नहीं देना चाहिए।
प्रश्न (घ) इस साखी में मनुष्य को क्या सीख दी गई है?
उत्तर: प्रस्तुत साखी में मनुष्य को सहनशील बनने तथा अपशब्द का जवाब अपशब्द से न देने की सीख दी गई है।
प्रश्न (ङ) उक्त साखी से दो परस्पर विपरीतार्थक शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर: परस्पर विपरीतार्थक शब्द—अनेक - एक
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