5.
वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधों पर्यो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो॥
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, अब सोचत ही सब गाँव मझायो।
पूँछत पाड़े फिरे सब सों पर, झोपरी को कहुँ खोज न पायो॥
शब्दार्थ—वैसोई—उसी तरह। राज-समाज—धन-दौलत, वैभव आदि। गज—हाथी। बाजि—घोड़ा। घने—बहुत। संभ्रम—भ्रमित होना। छायो—भरगया, छा गया। कैधों—या तो। पर्यो—पड़ गया हूँ। कहुँ—कहीं, किसी जगह। फेरिकै—वापस आकर। भौन—भवन, राजमहल। बिलोकिबे—देखने के लिए। लोचत—ललचाता है। गाँव मझायो—गाँव भर में ढूँढ़ता रहा। पूँछत—पूछते हुए। पांडे—ब्राह्मण सुदामा। झोंपररी—झोंपड़ी
प्रसंग—प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक वसंत, भाग-3* में संंकलित कविता सुदामा चरित* से ली गई हैं। इसके रचयिता नरोत्तमदास हैं। इन काव्य पंक्तियों में कवि कहता है कि सुदामा लौटकर अपने गाँव वापस आ, और सभी कुछ द्वारका जैसा ही देखकर आश्चर्यचकित रह गए। वे चकित होकर सबसे अपनी झोंपडी के बारे में पूछते-फिरते रहे। उन्हें श्री कृष्ण की महिमा का ज्ञान अब तक न हो पाया था।
व्याख्या—द्वारका से खाली हाथ लौटे सुदामा जब अपने गाँव पुहंचे तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उनकी झोंपडी की जगह द्बद्भ श्री कृष्ण के राजमहल जैसा ही शानदार प्रासाद बन चुका था। चारों ओर सब कुछ द्वारका जैसा ही दिखाई दे रहा था। द्वारका जैसे ही हाथी-घोड़े देखकर वे शंकित हो गए कि कहीं वे अपना रास्ता भूलकर पुन: द्वारका तो नहीं आ गए। उनके मन में इन सुंदर भवनों को देखने का बार-बार लोभ पैदा हो रहा था। मन बार-बार यही चाह रहा था कि वे इन सुंदर भवनों को यूँ ही देखते रहें यही सब सोचते हुए गाँवभर में अपनी झोंपड़ी खोजते-फिरते रहे,लेकिन वे अपनी झोंपड़ी को खोज नहीं पाए,।
विशेष
प्रश्न (क)कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
उत्तर - कवि का नाम—नरोत्तम दास।
कविता का नाम—सुदामा चरित।
प्रश्न (ख) 'वैसोई राज-समाज' कहाँ बने थे? ‘वैसोई’ शब्द क्या संकेत करता है?
उत्तर - वैसे ही राज-समाज सुदामा के गाँव में बने थे। यह ‘वैसोई’ शब्द द्वारका-जैसे राज-प्रासाद, वैभव, समृद्धि आदि की ओर संकेत करता है।
प्रश्न (ग) वैसे ही राज-समाज देखकर सुदामा की क्या दशा हो रही थी?
उत्तर - वैसे ही राज-समाज देखकर सुदामा का मन भ्रमित हो गया था कि वे अपना रास्ता भूलकर वापस द्वारका तो नहीं आ गए।
प्रश्न (घ) सुदामा का मन बार-बार क्या चाह रहा था?
उत्तर - सुदामा का मन बार-बार द्वारका जैसे बने सुंदर राज-प्रासादों को देखना चाह रहा था।
प्रश्न (ङ) यहाँ ‘पाड़े’ किसके लिए प्रयुक्त है? वे लोगों से क्या पूछते फिर रहे थे?
उत्तर - यहाँ ‘पाड़े’ शब्द ब्राह्मण सुदामा के लिए प्रयुक्त है। वे लोगों से अपनी झोंपड़ी के बारे में पूछ रहे थे, जिसे वे खोज नहीं पा रहे थे।
6.
कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत॥
भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पै नींद न आवत॥
के जुरतो नहिं कोदो सवाँ, प्रभु के परताप ते दाख न भावत॥
शब्दार्थ—कै—कहाँ तो। छानी—छप्पर, झोंपड़ी। हती—हुआ करती थी। कहँ—कहाँ। कंचन—सोना। धाम—राज-प्रासाद। सुहावत—'शोभायमान हो रहे हैं। पग—पैर। पनही—जूता। गजराजहु—उत्तर कोटि का हाथी। ठाढ़े—खड़े हैं। महावत—हाथियों को नियंत्रित करनेवाले। कटै—कटती है, बीतती है। सेज—बिस्तर। जुरतों—मुश्किल से मिल पाना। कोदो-सवाँ—बहुत ही महीन अनाज जो व्रत मैं काम आता है परताप—कृपा। दाख—सूखे मेवे। भावत—अच्छा लगना।
प्रसंग—प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'वसंत, भाग-3' में संंकलित कविता सुदामा चरित से ली गई हैं। इसके रचयिता नरोत्तम दास हैं। इन पंक्तियों में सुदामा के अचानक संपन्न होने तथा उसके बाद की स्थिति का सुंदर वर्णन है।
व्याख्या—द्वारका से चलते समय श्री कृष्ण ने सुदामा को प्रत्यक्ष रूप में कुछ नहीं दिया था और अप्रत्यक्ष रूप में अपने सामान ही संपन्न बना दिया था । अब सुदामा के दिन पूरी तरह से बदल चुके थे। कहाँ तो उनके पास टूटी हुई झोंपड़ी हुआ करती थी और अब वहाँ सोने के सुंदर महल सुशोभित हो रहे हैं। कहाँ तो उनके पैरों में जूते भी नहीं हुआ करते थे, पर अब महावत गजराज लिए उनके चलने का इंतज़ार करता रहता है। पहले कठोर भूमि पर सोकर रात बितानी पड़ती थी, पर अब तो मुलायम बिस्तरों पर भी नींद नहीं आती। पहले खाने के लिए सवाँ तथा कोदो जैसा मोटा तथा घटिया किस्म का अनाज भी नहीं मिलता था, पर अब प्रभु की कृपा से मीठे सूखे मेवे भी अच्छे नहीं लगते अर्थात अब मधुर तथा स्वादिष्ट व्यंजन खाने को जी नहीं करता।
विशेष
प्रश्न (क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर - कवि का नाम—नरोत्तम दास।
कविता का नाम—सुदामा चरित।
प्रश्न (ख) सुदामा की झोंपड़ी के स्थान पर किस प्रकार का परिवर्तन आ गया था?
उत्तर - सुदामा की झोंपड़ी की जगह अब सोने के भवन बन गए थे, जिन्हें सुदामा स्वयं नहीं पहचान पा रहे थे।
प्रश्न (ग) ‘सुदामा अब निर्धन नहीं रहे’, काव्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तर - सुदामा की विपन्नता पूरी तरह से संपन्नता में बदल चुकी थी। अब उनका महल सोने का हो गया था। चलने के लिए गजराज लिए महावत खड़े रहते थे। मुलायम बिस्तर पर भी अब उन्हें नींद नहीं आती थी तथा उन्हें स्वादिष्ट व्यंजन तथा सूखे मेवे भी अच्छे नहीं लगते हैं।
प्रश्न (घ) ‘कै पग में पनही न हती’- सुदामा की किस स्थिति की ओर संकेत करती है?
उत्तर - इस पंक्ति के माध्यम से सुदामा की पहलेवाली विपन्नता की ओर संकेत किया गया है।
प्रश्न (ङ) सुदामा की विपन्नता, संपन्नता में किसकी कृपा से बदली?
उत्तर - सुदामा की विपन्नता प्रभु अर्थात श्री कृष्ण की कृपा से अब सपन्नता में बदल चुकी थी।
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1. क्या है सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण? |
2. पाठ का सारांश क्या है? |
3. सप्रसंग व्याख्या क्या है? |
4. अर्थग्रहण क्या है? |
5. सप्रसंग व्याख्या और अर्थग्रहण क्यों महत्वपूर्ण हैं? |
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