1 Crore+ students have signed up on EduRev. Have you? |
‘वेतालपञ्चविंशतिः’ मनोहर एवं आश्चर्यजनक घटनाओं से युक्त कथाओं का अनोखा संग्रह है। प्रस्तुत पाठ इसी संग्रह से लिया गया है। इसके द्वारा जीवन-मूल्यों की स्थापना की गई है। इस कथा में पर्वतराज हिमालय के शिखर पर स्थित कंचनपुर नामक नगर का वर्णन किया गया है। उसमें जीमूतकेतु नाम का विद्याधरों का स्वामी रहता था। उसके उद्यान में कल्पतरु वृक्ष था। जीमूतकेतु के यहाँ जीमूतवाहन नाम का पुत्र हुआ। वह स्वभाव से अत्यधिक दयालु और परोपकारी था। एक दिन उसने मंत्री जनों की सभा की और उनसे अपने हित की बात पछी। सभी ने कहा कि वंश परंपरा से प्राप्त है। यह सभी मनोरथों को पूरा करने वाला है। तुम इसकी आराधना करो। तब जीमूतवाहन ने अपने पिता के पास जाकर कहा कि मैं इस कल्पवृक्ष से अपने मनोरथों की पूर्ति चाहता हूँ। उसके पिता ने उसको कल्पवृक्ष की आराधना करने की अनुमति दे दी। तत्पश्चात् जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर प्रार्थना किया-देव, आप मेरी इच्छा पूर्ति करें। मेरी इच्छा है कि इस पृथ्वी पर कोई भी निर्धन न बचे। यह सुनकर कल्पवृक्ष ने प्रसन्न होकर धन की वर्षा की। इससे जीमूतवाहन का यश सर्वत्र फैल गया।
20 videos|54 docs|20 tests
|
Use Code STAYHOME200 and get INR 200 additional OFF
|
Use Coupon Code |
20 videos|54 docs|20 tests
|