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प्रस्तुत पाठ महाकाव्य ‘रामायणम्’ के अरण्यकांड से लिया गया है। इस महाकाव्य के रचयिता आदिकवि वाल्मीकि हैं। इस पाठ में जटायु और रावण के मध्य युद्ध का वर्णन है।
पाठ का सार इस प्रकार है पंचवटी में सीता करुण विलाप करती है। उसके विलाप को सुनकर, पक्षिराज जटायु उसकी रक्षा के लिए आता है। वह रावण को धिक्कारता है, परंतु रावण पर इसका कोई असर नहीं होता है। रावण की अपरिवर्तित मनोवृत्ति को देखकर जटायु उसके साथ युद्ध के लिए उद्यत हो जाता है। यद्यपि रावण युवा है और जटायु वृद्ध तथापि वह रावण को ललकारता है और कहता है कि मेरे जीवित रहते तुम सीता का अपहरण नहीं कर सकते। जटायु अपने पैने नाखूनों और पंजों से रावण पर आक्रमण करता है और उसके शरीर पर अनेक घाव कर देता है। जटायु रावण के धनुष को तोड़ डालता है। इस प्रकार रावण रथ से विहीन, नष्ट घोड़ों और सारथी वाला हो जाता है। जटायु पर रावण लात से प्रहार करता है। जटायु हार नहीं मानता है तथा बदले में रावण पर आक्रमण करता है। वह रावण की दशों भुजाओं को उखाड़ डालता है। इस प्रकार इस पाठ में जटायु की शूरवीरता की कहानी कही गई है।
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