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नामक ग्रंथ से लिया गया है। इस पाठ में एक ऐसे बालक की कहानी कही गई है, जिसका मन अध्ययन की अपेक्षा खेल-कूद में कुछ ज्यादा ही लगता है। खेलने के लिए वह पशु-पक्षियों तक का आह्वान करता है, लेकिन कोई भी उसके साथ खेलने को तैयार नहीं होता। इसका अनुभव हम इस प्रकार कर सकते हैं उस बालक को रास्ते में एक भौंरा मिला।
बालक ने उसे खेलने के लिए बुलाया। परंतु उसने कहा कि मैं शहद एकत्र करने में व्यस्त हूँ। तब उसे एक चिड़िया दिखाई दी। वह अपना घोंसला बनाने में व्यस्त थी। अतः उसने भी बालक के साथ खेलने से मना कर दिया। तब वह एक कुत्ते के पास जाकर उसे अपने साथ खेलने के लिए कहने लगा। कुत्ते ने कहा कि मैं अपने स्वामी के कार्य को पलभर के लिए भी नहीं छोड़ सकता। इससे बालक निराश होता है। उसे बोध होता है कि इस संसार में हर प्राणी अपने-अपने कार्य में व्यस्त है। एक वही है जो निरुद्देश्य इधर-उधर घूमता रहता है। इसके बाद वह निश्चय करता है कि वह अपना समय व्यर्थ नहीं गँवाएगा, बल्कि अध्ययन करेगा।
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