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प्रस्तुत पाठ ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक ग्रंथ के ‘मित्र भेद’ नामक तंत्र से लिया गया है। इसके रचयिता विष्णुशर्मा हैं। इस कथा में लोभ के दुष्परिणाम को दिखाया गया है। कथासार इस प्रकार है किसी स्थान पर जीर्णधन नामक व्यापारी रहता था। वह धन कमाने के उद्देश्य से दूसरे देशों को जाया करता था। एक बार उसने अपने पूर्वजों के द्वारा कमाई हुई लोहे की तराजू को एक सेठ के यहाँ धरोहर रख दिया। वह विदेश से आकर उस सेठ से अपनी धरोहर वापस माँगने लगा तो उस सेठ ने कहा कि उसे तो चूहों ने खा लिया।
यह सुनकर जीर्णधन सेठ को पाठ पढ़ाने की एक युक्ति सोची। वह नहाने का बहाना करके उस सेठ के पुत्र को अपने साथ ले गया और उसको एक गुफा में छिपाकर वापस लौट आया। सेठ ने उससे अपने पुत्र के विषय में पूछा तो उसने कहा कि बच्चे को बाज उठा ले गया। यह सुनकर उसने जीर्णधन को बुरा-भला कहा तथा उससे झगड़ते हुए न्यायालय पहुँच गया। न्यायाधिकारी ने विवाद की सच्चाई जानकर सेठ को लोहे की वह तराजू लौटाने का आदेश दिया। अपने तराजू को पाकर जीर्णधन ने सेठ के बच को वापस कर दिया।
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