पाठ का सार
‘हामिद खाँ’ कहानी का घटना-स्थल ‘तक्षशिला’ है, जो अब पाकिस्तान का एक हिस्सा बन गया है। लेखक एक दिन समाचार पत्र में ‘तक्षशिला में आगज़नी’ समाचार पढ़ते हैं। यह समाचार पढ़ते ही उन्हें, ‘हामिद खाँ’ का स्मरण हो जाता है। लेखक अपने मन में हामिद खाँ के प्रति सहानुभूति रखते हैं और ईश्वर से उसकी हिप़्फाज़त के लिए दुआ माँगते हैं।
इस घटना से दो साल पूर्व लेखक तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गए थे। लेखक ने वहाँ के परिवेश का चित्रांकन किया है। वहाँ के बाज़ार की हस्तरेखाओं जैसी तंग गलियों का उन्होंने वर्णन किया है गंदगी का और भूख लगने पर होटल ढूँढ़ने का भी जिक्र किया है।
वहाँ लेखक को एक दुकान नज़र आई जहाँ चपातियाँ सेंकी जा रही थीं। चपातियों की सोंधी महक से लेखक के पाँव अपने आप उस दुकान की ओर मुड़ गए। लेखक ने मुस्कुराहट के साथ उस दुकान में प्रवेश किया। वह दुकानदार से भोजन मिलने न मिलने के विषय में पूछताछ करते रहे। उत्तर ‘हाँ’ में मिलने पर वह खाना खाने के लिए बैठ गए।
इसी बीच लेखक के लिबास और हाव-भाव को देखने से दुकानदार को लेखक के हिंदू होने का संदेह हुआ और उसने लेखक से उनका परिचय पूछा। आपस में थोड़ी-सी बातचीत होने पर दुकानदार को पता चला कि लेखक हिंदू हैं। चूँकि वह दुकान मुसलमान की थी इसलिए दुकानदार ने लेखक का भ्रम दूर कर देना मुनासिब समझा। लेखक ने दुकानदार को बताया कि वह हिंदुस्तान के दक्षिणी छोर पर मद्रास के आगे मालाबार क्षेत्रा का रहने वाला है। दुकानदार ने पूछा कि क्या वह हिंदू है? तब लेखक के हामी भरने पर उसने लेखक से पूछा कि क्या वे मुसलमानी होटल में खाना खाएँगे?
लेखक ने हामी भरी और दुकानदार को मालाबार के होटलों के विषय में बताया, "क्यों नहीं? हमारे यहाँ तो अगर बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं।"
उस दुकानदार ने लेखक का अपने स्तर पर भव्य स्वागत करते हुए खाना खिलाया। लेखक ने खाना खाकर रुपए दुकानदार की ओर बढ़ाए। थोड़ी ना-नुकुर के बाद लेखक ने उसे रुपया लेने के लिए विवश कर दिया। दुकानदार ने फिर लेखक के हाथ में पैसे लौटा कर कहा‘‘भाइर्जान, मैंने खाने के पैसे आपसे ले लिए हैं, मगर मैं चाहता हूँ कि यह आप ही के हाथों में रहे। आप जब हिन्दुस्तान वार्षिक पहुँचें तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर इस पैसे से पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद को याद करें।’’
लेखक वहाँ से तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चले गए। उसके बाद उन्होंने फिर कभी हामिद खाँ को नहीं देखा लेकिन हामिद खाँ की आवाज़, उसके साथ बिताए क्षणों की यादें उनके मन में ताशा हैं। उसकी वह मुसकान लेखक के दिल में बसी हुई है। लेखक अखबार में सांप्रदायिक दंगे का समाचार पढ़कर भावुक हो जाते हैं। उन्हें पुरानी बातों का स्मरण हो जाता है तथा वे अपने उद्गार इन शब्दों में व्यक्त करते हैंμ‘‘तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग से हामिद और उसकी वह दुकान, जिसने मुझ भूखे को दोपहर में छाया और खाना देकर मेरी क्षुधा को तृप्त किया था, बची रहे। मैं यही प्रार्थना अब भी कर रहा हूँ।’’ सांप्रदायिक सद्भाव उत्पन्न करने वाली यह कहानी छोटी होती हुई भी अत्यंत मामिर्क है। यह कहानी सापंद्रायिक भेद-भाव के उभरे निशान को मिटा डालने वाली कहानी है, जो भारत के मौजूदा परिवेश में अत्यंत प्रासंगिक है।
शब्दार्थ
1. हामिद खां पाठ में किस विषय पर चर्चा हुई है? |
2. हामिद खां कौन हैं? |
3. हामिद खां पाठ में कौन-कौन से मुद्दे पर विचारविमर्श हुआ है? |
4. हामिद खां के अनुसार शिक्षा क्यों महत्वपूर्ण है? |
5. हामिद खां के अनुसार उच्चतर शिक्षा क्यों आवश्यक है? |
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