→ संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से विशेषकर क्रिया के साथ जाना जाता है, उसे कारक कहते हैं |
→ कारक के चिह्न को परसर्ग या विभक्ति कहते हैं |
1. कर्ता कारक (ने) – (Karta Karak)
‘कर्ता’ का शाब्दिक अर्थ होता है – “करने वाला”
जैसे:
(i) सीता ने गाना गाया |
(ii) कृष्ण ने बाँसुरी बजाई |
(iii) वेदांत सो रहा है |
(iv) रेखा खाना खा रही है |
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया करने वाले का पता चलता है, उसे “कर्ता कारक” कहते है |
नोट → जब क्रिया सकर्मक हो तथा भूतकाल में हो तभी परसर्ग “ने” का प्रयोग किया जाता है |
जैसे:
(i) सीमा गाना गा रही है | (वर्तमान काल)
(ii) पिताजी कल फोन करेगें | (भविष्यत काल)
(iii) बच्चा बहुत रोया | (भूतकाल, अकर्मक क्रिया)
(iv) तरुण ने खाना खाया | (भूतकाल, सकर्मक क्रिया)
2. कर्म कारक (‘को’) – Karm Karak
वाक्य की क्रिया का फल जिस संज्ञा या सर्वनाम पर पड़ता है उसे कर्म कारक कहते हैं |
कर्म कारक की विभक्ति “को” है |
जैसे: माँ ने रेखा को लड्डू खिलाए
(i) जैसे: गीता ने पत्र लिखा |
प्रश्न – क्या लिखा ?
उत्तर = ‘पत्र’
(ii) जैसे: राम ने पिता जी को पत्र लिखा |
प्रश्न – क्या लिखा ?
उत्तर = ‘पत्र’
3. करण कारक (Karan Karak)
“करण” का शाब्दिक अर्थ है – “साधन” |
जैसे:
(i) राम साइकिल से बाजार गया |
(ii) रेखा चाकू से फल काटती है |
(iii) मोहन चम्मच से चीनी घोलता है |
4. संप्रदान कारक (Sampradan Karak)
वाक्य में कर्ता जिसके लिए कोई कार्य करता है या जिसे कुछ देता है, उस पद को संप्रदान कारक कहते हैं |
जैसे:
(i) दीदी वेदांत के लिए खिलौने लाई |
(ii) गीता ने सीता को किताब दी |
नोट → संप्रादन कारक में हमेशा दान का भाव अर्थात किसी को कुछ दिए जाने का भाव होता है |
5.अपादान कारक “से” (Apadan Karak)
वाक्य में जिस पद से अलग होने का भाव प्रकट हो, वह पद अपादान कारक होता है |
जैसे:
(i) गंगा हिमालय से निकलती है |
(ii) पेड़ से पत्ते गिरते हैं
अपादान कारक की विभक्ति या परसर्ग “से” है |
जिन शब्दों से घृणा, तुलना, भय, द्वेष, ईष्या, शर्माने आदि का भाव प्रकट हो वहाँ भी अपादान कारक होता है |
जैसे:
(i) राम मक्खियों से घृणा करता है |
(ii) चूहा बिल्ली से डरता है |
(iii) रेखा राधा से सुंदर है |
5. संबंध कारक (का, के, की, रा, रे, री) – (Sambandh Karak)
संज्ञा या सर्वनाम शब्द के जिस रूप से उसका वाक्य में आए अन्य संज्ञा / सर्वनाम शब्दों से संबंध ज्ञात हो, उसे संबंध कारक कहते हैं |
जैसे:
(i) नीलम के पिताजी अध्यापक है |
(ii) राधा की पुस्तक वहाँ है |
(iii) वेदांत का भाई आ गया |
→ संबंध कारक की विभक्तियाँ का, के, की, ना, ने, नी, रा, रे, री हैं |
6. अधिकरण कारक (Adhikaran Karak)
जिस पद से क्रिया से आधार का बोध होता है वह पद अधिकरण कारक होता है |
जैसे:
(i) कमल तालाब में खिलते हैं |
(ii) गैस पर खाना पक रहा है |
विशेष → जहाँ समय का बोध हो वहाँ “को” परसर्ग होने पर भी वह अधिकरण कारक होता है |
जैसे: मोहन शाम को घर आएँगा |
7. संबोधन कारक (Sambodhan Karak)
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से बुलाने या पुकारने का बोध हो, उसे संबोधन कारक कहते है |
जैसे:
(i) अरे मोहन ! पानी तो पिला दे |
(ii) हे भगवान ! अब क्या होगा ?
जैसे → अरे, हे, अजी, ओ, आदि |
जैसे:
(i) बच्चों ! पढ़ाई कर लो |
(ii) भाइयो और बहनों ! ध्यान से सुनिए |
विशेष → संबोधन कारक में संज्ञा शब्दों के बाद संबोधन चिह्न (!) भी लगाया जाता है |
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